सुरक्षित
राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0 लखनऊ
(जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष फोरम, मेरठ द्वारा परिवाद संख्या 238 सन 2014 में पारित प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश दिनांक 16.06.2015 के विरूद्ध)
अपील संख्या 1516 सन 2015
MEERUT INSTITUTE OF ENGINEERING & TECHNOLOGY ( Approved by AICTE & Affiliated to U.P. Technical University, Lucknow) situated at NH-58 Baghpat Crossing, Bypass Road, Meerut U.P. through its Director .
.......अपीलार्थी/प्रत्यर्थी
-बनाम-
JUNAID son of Shamshuddin, resident of 1685 Mohalla Teehai, Mill Road Mawanan, District Meerut, Uttar Pradesh.
. .........प्रत्यर्थी/परिवादी
समक्ष:-
मा0 श्री उदय शंकर अवस्थी, पीठासीन सदस्य।
मा0 श्री गोवर्धन यादव, सदस्य।
अपीलार्थी की ओर से विद्वान अधिवक्ता - श्री सर्वेश कुमार शर्मा।
प्रत्यर्थी की ओर से विद्वान अधिवक्ता - कोई नहीं ।
दिनांक:-05-08-2019
श्री गोवर्धन यादव, सदस्य द्वारा उद्घोषित
निर्णय
प्रस्तुत अपील, जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष फोरम, मेरठ द्वारा परिवाद संख्या 238 सन 2014 में पारित प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश दिनांक 16.06.2015 के विरूद्ध प्रस्तुत की गयी है ।
संक्षेप में, प्रकरण के आवश्यक तथ्य इस प्रकार हैं परिवादी ने वर्ष 2012 में यू0पी0एस0ई0ई0 के माध्यम से बी.फार्मा के अध्ययन हेतु रोल नम्बर 8611286 द्वारा परीक्षा दी और उसे MEERUT INSTITUTE OF ENGINEERING & TECHNOLOGY मेरठ बी.फार्मा हेतु अध्ययन मिला । परिवादी ने दिनांक 22.07.2012 को 5000.00 रू0, दिनांक 24.07.2012 को 10,000.00 एवं दिनांक 16.08.2012 को 25000.00रू0 विपक्षी इन्स्टीटयूट में जमा किए । इसी मध्य दिनांक 27.06.2011 से 29.10.2012 तक परिवादी गम्भीर रूप से बीमार हो गया इस कारण वह इन्स्टीटयूट में अध्ययन नहीं कर सका। जान बचाने हेतु उसे धन की आवश्यकता हुयी इसलिए उसने इन्स्टीटयूट में जमा की गयी अपनी धनराशि को वापस करने की मांग की जिसे विपक्षी ने नहीं दिया जिससे क्षुब्ध होकर परिवादी द्वारा परिवाद जिला मंच के समक्ष योजित किया गया।
जिला मंच के समक्ष विपक्षी की ओर से पर्याप्त तामीली के बावजूद कोई उपस्थित नहीं हुआ और न ही अपना लिखित कथन दाखिल किया जिसके कारण जिला मंच ने विपक्षी के विरूद्ध एक पक्षीय कार्यवाही करते हुए जिला मंच ने परिवादी द्वारा प्रस्तुत साक्ष्य एवं अभिवचनों के आधार पर निम्न आदेश पारित किया :-
'' परिवादी द्वारा प्रस्तुत परिवाद आंशिक रूप से स्वीकृत किया जाता है। परिवादी अंकन 20,000.00 रू0 मय 09 प्रतिशत वार्षिक ब्याज परिवाद योजन की तिथि 29.07.2014 से भुगतान की तिथि तक विपक्षी कालिज से प्राप्त करने का अधिकारी होगा। इसके अतिरिक्त परिवादी अंकन 5000.00 रू0 परिवाद व्यय भी विपक्षी कालिज से प्राप्त करने का अधिकारी है। विपक्षी कालिज को आदेशित किया जाता है कि वह उपरोक्त अवार्ड की गयी धनराशि परिवादी को अन्दर एक माह अदा करे। ''
उक्त आदेश से क्षुब्ध होकर प्रस्तुत अपील योजित की गयी है।
अपील के आधारों में कहा गया है कि जिला मंच का प्रश्नगत निर्णय विधिपूर्ण नहीं है तथा निर्णय मा0 नेशनल कमीशन द्वारा रीजनल इंस्टीटयूट आफ को-आपरेटिव मैनेजमेंट बनाम नवीन कुमार चौधरी III(2014)CPJ 120 (NC) के विरूद्ध सम्पूर्ण तथ्यों को संज्ञान में लिए बिना प्रश्नगत निर्णय पारित किया गया है, जो अपास्त किए जाने योग्य है। इस संबंध में विद्वान अधिवक्ता अपीलार्थी द्वारा कई विधि व्यवस्थाऐं प्रस्तुत की गयीं।
हमने अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता के तर्क विस्तारपूर्वक सुने एवं पत्रावली पर उपलब्ध साक्ष्यों का सम्यक अवलोकन किया। बहस हेतु प्रत्यर्थी/परिवादी की ओर से कोई उपस्थित नहीं हुआ।
पत्रावली के अवलोकन से स्पष्ट होता है कि परिवादी ने वर्ष 2012 में बी.फार्मा के अध्ययन हेतु अपीलार्थी MEERUT INSTITUTE OF ENGINEERING & TECHNOLOGY की संस्था में दिनांक 22.07.2012 को 5000.00 रू0, दिनांक 24.07.2012 को 10,000.00 एवं दिनांक 16.08.2012 को 25000.00रू0 विपक्षी जमा किए । इसी मध्य दिनांक 27.06.2011 से 29.10.2012 तक परिवादी गम्भीर रूप से बीमार हो गया इस कारण वह इन्स्टीटयूट में अध्ययन नहीं कर सका। जान बचाने हेतु उसे धन की आवश्यकता हुयी इसलिए उसने इन्स्टीटयूट में जमा की गयी अपनी धनराशि को वापस करने की मांग की जिसे विपक्षी ने नहीं दिया जबकि इस संबंध में अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता का तर्क है कि जिला मंच का निर्णय विधि-विरूद्ध है। परिवादी द्वारा इन्स्टीटयूट में प्रवेश लिया था तथा निदेशक डा0 मयंक गर्ग द्वारा कुलसचिव, उत्तर प्रदेश प्राविधिक विश्वविद्यालय आई0ई0टी0 परिसर सीतापुर रोड, लखनऊ को लिखे गए पत्र दिनांक 06.06.14 में स्पष्ट किया गया है कि छात्र द्वारा शैक्षिक सत्र शुरू होने के उपरांत सुचारू रूप से कक्षाऐं प्रारम्भ की थी एंव सत्र में छात्र की कुल उपस्थिति 37.5 प्रतिशत थी ।
प्रत्यर्थी के विद्वान अधिवक्ता ने यह तर्क लिया है कि अद्यतन विधिक दृष्टांतों के अनुसार शिक्षा विवाद के मामले सुनने का कोई क्षेत्राधिकार उपभोक्ता फोरम को नहीं रह गया है।
उन्होंने अपने मत के समर्थन में III (2014) CPJ 120 (NC) रीजनल इन्स्टीटयूट आफ कोआपरेटिव मैनेजमेंट बनाम नवीन कुमार चौधरी तथा अन्य विधिक व्यवस्थाऐं उद्धरित की हैं जिनमें यह विधि व्यवस्था है कि शिक्षण संस्थान किसी भी प्रकार की सेवा प्रदान नहीं करते हैं और न ही विद्यार्थी उपभोक्ता की परिभाषा में आते हैं।
उपर्युक्त सम्मानित विधि व्यवस्थाओं के प्रकाश में हम यह पाते हैं कि जिला फोरम को फीस वापसी के मामले से संबंधित परिवाद अवधारित करने का कोई क्षेत्राधिकार नही है। चूंकि उपभोक्ता फोरम को इस प्रकरण की सुनवाई का क्षेत्राधिकार नहीं रह गया है, अत: यह अपील स्वीकार किए जाने योग्य है।
आदेश
प्रस्तुत अपील स्वीकार करते हुए जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष फोरम, मेरठ द्वारा परिवाद संख्या 238 सन 2014 में पारित प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश
दिनांक 16.06.2015 निरस्त किया जाता है।
उभय पक्ष इस अपील का अपना-अपना व्यय स्वयं वहन करेंगे।
इस निर्णय की प्रमाणित प्रतिलिपि पक्षकारों को नियमानुसार नि:शुल्क उपलब्ध करा दी जाए।
(उदय शंकर अवस्थी) (गोवर्धन यादव)
पीठासीन सदस्य सदस्य
कोर्ट-2
(S.K.Srivastav,PA)