Uttar Pradesh

StateCommission

A/2006/1145

N I A Co - Complainant(s)

Versus

Jatin Kumar Soni - Opp.Party(s)

Dinesh Kumar

03 Aug 2021

ORDER

STATE CONSUMER DISPUTES REDRESSAL COMMISSION, UP
C-1 Vikrant Khand 1 (Near Shaheed Path), Gomti Nagar Lucknow-226010
 
First Appeal No. A/2006/1145
( Date of Filing : 11 May 2006 )
(Arisen out of Order Dated in Case No. of District State Commission)
 
1. N I A Co
a
...........Appellant(s)
Versus
1. Jatin Kumar Soni
a
...........Respondent(s)
 
BEFORE: 
 HON'BLE MR. Rajendra Singh PRESIDING MEMBER
 HON'BLE MR. SUSHIL KUMAR JUDICIAL MEMBER
 
PRESENT:
 
Dated : 03 Aug 2021
Final Order / Judgement

                                                           (सुरक्षित)

राज्‍य उपभोक्‍ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ

अपील संख्‍या-1145/2006

(जिला उपभोक्‍ता विवाद प्रतितोष फोरम, उन्‍नाव द्वारा परिवाद संख्‍या-124/2004 में पारित निर्णय/आदेश दिनांक 22.03.2006 के विरूद्ध)

                                    

दि न्‍यू इण्डिया एश्‍योरेन्‍स कम्‍पनी लि0, 1099 आवास विकास कालोनी, जिला उन्‍नाव, द्वारा आफिसर इनचार्ज लीगल सेल, दि न्‍यू इण्‍डिया एश्‍योरेन्‍स कम्‍पनी लि0, 94, एम.जी. मार्ग, हजरतगंज, लखनऊ।

अपीलार्थी/विपक्षी सं0-1

बनाम

1. जतिन कुमार सोनी पुत्र स्‍व0 लाल मन सोनी, निवासी-ग्राम व पोस्‍ट सहरावां, परगना असोहा, तहसील पुरवा, जिला उन्‍नाव।

2. अवध ग्रामीण बैंक, ब्रांच सोहरामऊ, जिला उन्‍नाव, द्वारा ब्रांच मैनेजर।

                                     प्रत्‍यर्थीगण/परिवादी/विपक्षी सं0-2

समक्ष:-                           

1. माननीय श्री राजेन्‍द्र सिंह, सदस्‍य।

2. माननीय श्री सुशील कुमार, सदस्‍य।

अपीलार्थी की ओर से उपस्थित   : श्री दिनेश कुमार, विद्वान अधिवक्‍ता।  

प्रत्‍यर्थीगण की ओर से उपस्थित  : कोई नहीं।

दिनांक:  12.08.2021  

माननीय श्री सुशील कुमार, सदस्‍य  द्वारा उद्घोषित                                                 

निर्णय

1.         परिवाद संख्‍या-124/2004, जतिन कुमार सोनी बनाम न्‍यू इण्डिया इन्‍श्‍योरेन्‍स कम्‍पनी लि0 तथा एक अन्‍य में विद्वान जिला उपभोक्‍ता फोरम/आयोग, उन्‍नाव द्वारा पारित प्रश्‍नगत निर्णय/आदेश दिनांक 22.03.2006 के विरूद्ध यह अपील प्रस्‍तुत की गई है। इस निर्णय/आदेश द्वारा विद्वान जिला उपभोक्‍ता फोरम/आयोग ने परिवाद स्‍वीकार करते हुए विपक्षी बीमा कम्‍पनी को निर्देशित किया है कि वह अंकन 55,000/- रूपये का भुगतान दो माह के अन्‍दर परिवादी को करे अन्‍यथा इस राशि पर दिनांक 27.05.2004 से भुगतान की तिथि तक 18 प्रतिशत ब्‍याज देय होगा। विपक्षी बीमा कम्‍पनी परिवादी को अंकन 1,000/- रूपये परिवाद व्‍यय भी अदा करे।

2.         परिवाद पत्र के तथ्‍य संक्षेप में इस प्रकार हैं परिवादी ने कपड़े का व्‍यापार करने के लिए बैंक से ऋण प्राप्‍त किया था। दुकान में शार्ट सर्किट के कारण आग लग गई और दुकान में रखा करीब 70,000/- रूपये का सामान जल गया। इस अग्निकाण्‍ड की सूचना बीमा कम्‍पनी को दी गई और बीमाक्‍लेम प्रस्‍तुत किया गया, परन्‍तु बीमा कम्‍पनी द्वारा बीमाक्‍लेम नकार दिया गया, इसलिए परिवाद प्रस्‍तुत किया गया।

3.         विपक्षी बीमा कम्‍पनी को यह तथ्‍य स्‍वीकार है कि बीमा पालिसी जारी की गई थी, परन्‍तु अग्निकाण्‍ड के कारण हुए नुकसान से इंकार किया गया है।

4.         दोनों पक्षकारों की साक्ष्‍य पर विचार करने के पश्‍चात विद्वान जिला उपभोक्‍ता फोरम/आयोग द्वारा यह निष्‍कर्ष दिया गया कि परिवादी की दुकान में आग लगने के कारण अंकन 55,000/- रूपये के सामान की क्षति हुई है। तदनुसार अंकन 55,000/- रूपये अदा करने का आदेश दिया गया है।

5.         इस निर्णय/आदेश को अपील में इन आधारों पर चुनौती दी गई है कि विद्वान जिला उपभोक्‍ता फोरम/आयोग द्वारा पारित प्रश्‍नगत निर्णय/आदेश विधिसम्‍मत नहीं है। मनमाने तरीके से निर्णय/आदेश पारित किया गया है। बैंक से रूपये निकालने के पश्‍चात उसके उपयोग का कोई तरीका परिवादी द्वारा नहीं बताया गया। 18  प्रतिशत की दर से ब्‍याज अदा करने का आदेश देना अनुचित है।

6.         अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्‍ता श्री दिनेश कुमार उपस्थित आए। प्रत्‍यर्थीगण की ओर से कोई उपस्थित नहीं हुआ। अत: केवल अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्‍ता की बहस सुनी गई तथा प्रश्‍नगत निर्णय/आदेश एवं पत्रावली का अवलोकन किया गया।

7.         अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्‍ता का यह तर्क है कि बीमाक्‍लेम प्रस्‍तुत करने के पश्‍चात सर्वेयर की नियुक्ति की गई। सर्वेयर द्वारा पाया गया कि केवल दुकान के प्‍लास्‍टर की क्षति हुई है। सामान जलने का कोई सबूत नहीं पाया गया, क्‍योंकि जलने से बचा हुआ कोई भी सामान मौके पर मौजूद नहीं था। बिलों की प्रम‍ाणिकता भी सत्‍यापित नहीं थी। सर्वेयर द्वारा जांच में पाया गया कि बिल फर्जी एवं बनावटी हैं। जांच में यह भी पाया गया कि साहिबा रेडीमेट गारमेण्‍ट्स की दुकान बीमित व्‍यक्ति के भतीजे के नाम है, जबकि बैंक अकाउण्‍ट एवं बीमा बीमित व्‍यक्ति के नाम है। बैंक से निकाली गई राशि का दुकान के लिए क्रय किए गए सामान के लिए कोई उपयोग नहीं किया गया है, इसलिए बीमाक्‍लेम वैध आधारों पर नकारा गया है। सर्वेयर द्वारा अपनी रिपोर्ट में स्‍पष्‍ट उल्‍लेख किया गया है दुकान के लिए सामान क्रय करना और दुकान में उपयोग करने का कोई सबूत नहीं है। इसी प्रकार जले हुए सामान की मौके पर कोई निशानी नहीं पाई गई। सर्वेयर को कोई स्‍टॉक रजिस्‍टर या सेल रजिस्‍टर प्राप्‍त नहीं हुआ है।

8.         विद्वान जिला उपभोक्‍ता फोरम/आयोग द्वारा यह निष्‍कर्ष दिया गया है कि जांच के दौरान 16 बिलों में से 07 बिल सही पाए गए हैं। न्‍यू सूर्या गारमेन्‍ट्स से सत्‍यापित बिलों के माध्‍यम से क्रय किए गए हैं। यह बिल केवल रूपये 34,314.55 पैसे के बारे में है। फर्नीचर के जलने का कोई सबूत मौके पर नहीं पाया गया। अत: अधिकतम 34,314.35 पैसे बीमाक्‍लेम स्‍वीकार किया जा सकता है। ब्‍याज की दर उच्‍च स्‍तर की दिलाई गई है, अत: ब्‍याज की दर 06 प्रतिशत किया जाना विधिसम्‍मत है। तदनुसार अपील आंशिक रूप से स्‍वीकार होने योग्‍य है।

आदेश

 

9.         प्रस्‍तुत अपील आंशिक रूप से स्‍वीकार की जाती है। विद्वान जिला उपभोक्‍ता फोरम/आयोग द्वारा पारित प्रश्‍नगत निर्णय/आदेश दिनांक 22.03.2006 इस प्रकार परिवर्तित किया जाता है कि विपक्षी बीमा कम्‍पनी परिवादी को अंकन 55,000/- रूपये के स्‍थान पर रूपये 34,314.55 अदा करेगी तथा ब्‍याज की दर 18 प्रतिशत के स्‍थान पर 06 प्रतिशत की जाती है। शेष आदेश यथावत् रहेगा।

           उभय पक्ष अपना-अपना व्‍यय भार स्‍वंय वहन करेंगे।

           आशुलिपिक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस निर्णय/आदेश को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दे।

 

                     

  (राजेन्‍द्र सिंह)                           (सुशील कुमार)

             सदस्‍य                                   सदस्‍य

 

 

लक्ष्‍मन, आशु0,

    कोर्ट-3

 
 
[HON'BLE MR. Rajendra Singh]
PRESIDING MEMBER
 
 
[HON'BLE MR. SUSHIL KUMAR]
JUDICIAL MEMBER
 

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