Uttar Pradesh

StateCommission

A/2002/2621

M/s Navrang Transport - Complainant(s)

Versus

Hind Chemical Ltd - Opp.Party(s)

V P Sharma

07 Sep 2022

ORDER

STATE CONSUMER DISPUTES REDRESSAL COMMISSION, UP
C-1 Vikrant Khand 1 (Near Shaheed Path), Gomti Nagar Lucknow-226010
 
First Appeal No. A/2002/2621
( Date of Filing : 28 Oct 2002 )
(Arisen out of Order Dated in Case No. of District State Commission)
 
1. M/s Navrang Transport
Kanpur
...........Appellant(s)
Versus
1. Hind Chemical Ltd
Kanpur
...........Respondent(s)
 
BEFORE: 
 HON'BLE MR. Vikas Saxena PRESIDING MEMBER
 HON'BLE MRS. SUDHA UPADHYAY MEMBER
 
PRESENT:
 
Dated : 07 Sep 2022
Final Order / Judgement

                                  (सुरक्षित)

राज्‍य उपभोक्‍ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ

 

अपील सं0- 2621/2002

 

(जिला उपभोक्‍ता विवाद प्रतितोष आयोग, कानपुर नगर द्वारा परिवाद सं0- 728/2000 में पारित निर्णय व आदेश दिनांक 11.10.2001 के विरुद्ध)

 

M/s. Navrang Transport Movers, a Proprietorship Concern having its Head Office at 133/19, Transport Nagar, Kanpur through its Manager.

                                             ……..Appellant

 

Versus

 

M/s. Hind Chemicals Limited, a Company duly incorporated Under the Companies Act 1956, Having its Registered Office at M/336, Rail Bazar, Kanpur, Service Through its Secretary Sri Mahendra Rohatgi.

                                                                           ……..Respondent

     

समक्ष:-

     मा0 श्री विकास सक्‍सेना, सदस्‍य।

     मा0 श्रीमती सुधा उपाध्‍याय, सदस्‍य।

 

अपीलार्थी की ओर से उपस्थित : श्री वी0पी0 शर्मा, विद्वान अधिवक्‍ता।                                                                                                                                                    

प्रत्‍यर्थी की ओर से उपस्थित   : श्री आलोक रंजन, विद्वान अधिवक्‍ता।

                                                                                         

दिनांक:- 22.06.2023

मा0 श्री विकास सक्‍सेना, सदस्‍य द्वारा उद्घोषित

 

निर्णय

1.          परिवाद सं0- 728/2000 मै0 हिन्‍द केमिकल्‍स लि0 बनाम मै0 नवरंग ट्रांसपोर्ट मूवर्स में जिला उपभोक्‍ता आयोग, कानपुर नगर द्वारा पारित निर्णय व आदेश दि0 11.10.2001 के विरुद्ध यह अपील प्रस्‍तुत की गई है।

2.          विद्वान जिला उपभोक्‍ता आयोग ने प्रश्‍नगत आदेश के माध्‍यम से निम्‍नलिखित आदेश पारित किया है:-

            ‘’अभिलेख का परीक्षण किया गया। रसीद की छायाप्रति से स्‍पष्‍ट है कि परिवादी द्वारा भेजी गई दवा की पेटियों के लिए शुल्‍क दिया गया। अत: विपक्षी सेवा में त्रुटि का दोषी है। दवाओं की पेटियों के एक वर्ष से अधिक तक  निर्दिष्‍ट स्‍थान पर न पहुंचने से उनका प्रभाव नष्‍ट हो जाना स्‍वाभाविक है। अत: प्रत्‍यर्थी/परिवादी की प्रार्थना के अनुसार मूल्‍य के भुगतान की मांग पूरीतरह से उचित है।

            अत: फोरम विपक्षी को निर्देशित करता है कि वह इस आदेश के अनुसार पेटियों की दवाओं के मूल्‍य रू010009.23पैसा तथा शुल्‍क रू0 97/- को बुकिंग की तिथि से 12 प्रतिशत ब्‍याज के साथ परिवादी को इस आदेश के 30 दिन के भीतर भुगतान करें तथा क्षतिपूर्ति और वाद व्‍यय के रूप में भी रू0 2500/- का भुगतान करें।‘’ 

3.          प्रत्‍यर्थी/परिवादी का परिवाद पत्र में संक्षेप में कथन इस प्रकार है कि प्रत्‍यर्थी/परिवादी एक कम्‍पनी है जो दवाइयों के निर्माता के रूप में कार्य करती है। अपीलार्थी/विपक्षी एक पब्लिक कैरियर के रूप में कार्य करता है जो माल भेजने के व्‍यापार में संलिप्‍त है। अपने सामान्‍य व्‍यापार के पराक्रम में प्रत्‍यर्थी/परिवादी कम्‍पनी ने दवाओं की तीन पेटियां कानपुर से बरहनी, जिला सिद्धार्थनगर बेचने के लिए प्रेषित किया तथा अपीलार्थी/विपक्षी ने पब्लिक कैरियर के रूप में इसे भेजना स्‍वीकार किया। उक्‍त माल की माल रसीद सं0- 26102 दिनांकित 10.08.1998 की प्रति अभिलेख पर है। इनवाइस सं0- 501 दिनांकित 10.08.1998 के अनुसार भेजे गए माल की कीमत रू010009.23पैसे थी। उक्‍त माल प्रेषित किए जाने के तीन माह के उपरांत भी माल निर्दिष्‍ट स्‍थान पर नहीं पहुंचा। प्रत्‍यर्थी/परिवादी ने रजिस्‍टर्ड A/D पत्र दिनांकित 09.11.1998 से सामान के निर्दिष्‍ट स्‍थान पर न पहुंचने की सूचना दी। इसके बाद भी नॉन डिलीवरी की सूचना अपीलार्थी/विपक्षी को भेजी गई। अपीलार्थी/विपक्षी ने अपने पत्र दिनांकित 22.12.1998 के माध्‍यम से प्रत्‍यर्थी/परिवादी को सूचित किया कि सामान निर्दिष्‍ट स्‍थान पर पहुंच गया है तथा इसकी डिलीवरी बरहनी कार्यालय से प्रेषिती (कंसाइनी) को भेजी गई है, किन्‍तु अपीलार्थी/विपक्षी के पत्र दिनांकित 27.02.1999 जो अपीलार्थी/विपक्षी के गोरखपुर शाखा द्वारा दिया गया उससे यह परिलक्षित हुआ कि तीन पेटियों में से दो पेटियां दिनांकित 18.12.1998 को पहुंची हैं। आयुर्वेदिक दवाओं के रूप में माल होने के कारण एक निश्चित समय में विनष्‍ट हो जाती हैं। इसलिए प्रत्‍यर्थी/परिवादी ने क्षतिपूर्ति के लिए क्‍लेम रू0 14,431/- का अपीलार्थी/विपक्षी से मांग। इस सम्‍बन्‍ध में पंजीकृत पत्र दिनांकित 13.10.1999 तथा उपरोक्‍त पत्र दिनांकित 18.11.1999 एवं 24.12.1999 प्रेषित किया गया। अपीलार्थी/विपक्षी ने पत्र दिनांकित 01.01.2000 के माध्‍यम से प्रत्‍यर्थी/परिवादी को सूचित किया कि वे निर्दिष्‍ट स्‍थान से पुन: कानपुर के लिए बचे हुए माल को पुन: बुक करा सकते हैं। ऐसा कोई भी इरादा प्रत्‍यर्थी/परिवादी का नहीं था, बल्कि उक्‍त देरी के कारण आयुर्वेदिक दवायें विनष्‍ट हो जाने की पूरी सम्‍भावना थी। इसके लिए अपीलार्थी/विपक्षी उत्‍तरदायित्‍व रखते हैं। प्रत्‍यर्थी/परिवादी ने इनवाइस के अनुसार नष्‍ट माल की मूल्‍य रू010009.23पैसे तथा उस पर ब्‍याज रू0 2500/- एवं मानसिक क्‍लेश हेतु 5500/-रू0 कुल रू0 22563.30पैसे की क्षतिपूर्ति की दावेदारी की।

4.          जिला उपभोक्‍ता आयोग द्वारा उपरोक्‍त निर्णय पारित करते हुए रू010009.23पैसे दिलाया गया। उक्‍त निर्णय से व्‍यथित होकर यह अपील प्रस्‍तुत की गई है।

5.          अपील में मुख्‍य रूप से यह आधार लिए गए हैं कि विद्वान जिला उपभोक्‍ता आयोग ने अपीलार्थी/विपक्षी को सुनवाई का अवसर दिए बिना यह निर्णय पारित किया है। विद्वान जिला उपभोक्‍ता आयोग ने परिवाद निर्णीत करने की प्रक्रिया अपनायी है वह अविधिक है। एक ओर अपीलार्थी/विपक्षी को नोटिस उचित प्रकार से प्रेषित नहीं की गई है। दूसरी ओर निर्णय पीठ के एक मात्र सदस्‍य द्वारा पारित किया गया है। इस प्रकार उपभोक्‍ता संरक्षण अधिनियम, 1986 के प्रावधान के विपरीत है। परिवाद के तथ्‍यों से कोई भी सेवा में त्रुटि स्‍पष्‍ट नहीं होती है। प्रत्‍यर्थी/परिवादी द्वारा दि0 10.08.1998 को माल बुक करना बताया गया है तथा यह परिवाद दि0 16.11.2000 को धारा 24(ए) उपभोक्‍ता संरक्षण अधिनिय‍म में प्रदान समय-सीमा के बाहर वाद योजित किया गया है। अपीलार्थी/विपक्षी को कोई नोटिस प्राप्‍त नहीं हुई थी और बिना सुनवाई का अवसर दिए हुए उसके विरुद्ध निर्णय पारित किया गया है। प्रश्‍नगत माल अपीलार्थी/विपक्षी नवरंग ट्रांसपोर्ट मूवर्स को बुक नहीं किया गया था, बल्कि अन्‍य ट्रांसपोर्टर ‘’नवरंग ट्रांसपोर्ट कार्पोरेशन’’ को बुक किया गया था, जैसा कि रसीद से स्‍पष्‍ट है। विद्वान जिला उपभोक्‍ता आयोग द्वारा इस तथ्‍य को नजरंदाज किया गया कि प्रत्‍यर्थी/परिवादी द्वारा प्रश्‍नगत माल की डिलीवरी न लिए जाने पर माल पुन: वापसी के लिए बुक कराना होगा तथा यह सामान मेसर्स नवरंग ट्रांसपोर्ट मूवर्स को बुक किए गए थे।            

6.          हमने अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्‍ता श्री वी0पी0 शर्मा तथा प्रत्‍यर्थी के विद्वान अधिवक्‍ता श्री आलोक रंजन को सुना। प्रश्‍नगत निर्णय व आदेश तथा पत्रावली पर उपलब्‍ध अभिलेखों का सम्‍यक परिशीलन किया।

7.          उभयपक्ष के मध्‍य विवाद का विषय यह है कि अपीलार्थी/विपक्षी ट्रांसपोर्ट द्वारा निर्दिष्‍ट स्‍थान बरहनी को नहीं पहुंचाया गया। परिवाद के प्रस्‍तर 04 में स्‍पष्‍ट रूप से अंकित है कि प्रेषित किया गया माल निदिष्‍ट स्‍थान पर नहीं पहुंचा। इस सम्‍बन्‍ध में स्‍वयं प्रत्‍यर्थी/परिवादी द्वारा दिया गया पत्र दिनांकित 13.10.1999 अत्‍यंत महत्‍वपूर्ण है, जो मेसर्स नवरंग ट्रांसपोर्ट मूवर्स, 133/19 ट्रांसपोर्ट नगर कानपुर को सम्‍बोधित है, जिसमें अंकित किया गया है कि-

            “We recall a reference to your letter no. NTC/KP/98/526 dt. 22.12.98 under which you confirmed the despatch of our Consignment to Barhni. On telephonic contact with you, it was stated that the consignment was dispatched on 8.12.98. Now the consignment is lying at Barhni in entirely damaged condition in two plastic bags. Our 3 cortons are nowhere. The contents destroyed beyond identification and has completely lost its utility for medicinal use. On examination by our representative the contents were rejected in this condition on reaching its destination Barhni.”

8.          उक्‍त पत्र के अवलोकन से स्‍पष्‍ट होता है कि प्रत्‍यर्थी/परिवादी द्वारा प्रेषित किया गया माल निर्दिष्‍ट स्‍थान पर पहुंच गया था, किन्‍तु स्‍वयं प्रत्‍यर्थी/परिवादी के उक्‍त पत्र के अनुसार माल बुरीतरह विनष्‍ट हो जाने के कारण पहचान में नहीं आ रहा था और इस कारण प्रत्‍यर्थी/परिवादी के प्रतिनिधि ने इसको निरस्‍त कर दिया। उक्‍त पत्र से स्‍पष्‍ट होता है कि प्रत्‍यर्थी/परिवादी का यह कथन गलत है कि उक्‍त माल निर्दिष्‍ट स्‍थान पर नहीं पहुंचा था, बल्कि वास्‍तव में स्‍वयं प्रत्‍यर्थी/परिवादी की स्‍वीकारोक्ति के अनुसार माल विनष्‍ट हो जाने के कारण उसको प्रत्‍यर्थी/परिवादी के प्रतिनिधि ने लेने से मना कर दिया।

9.          पीठ के समक्ष प्रश्‍न यह है कि माल के विनष्‍ट होने के लिए क्षतिपूर्ति का उत्‍तरदायित्‍व सामान्‍य कैरियर रखता है या नहीं। यह मामला वर्ष 1998 का है एवं तत्समय लागू अधिनियम कैरियर अधिनियम, 1865 (जो बाद में कैरियर बाई रोड अधिनियम, 2007) से वापस लिया गया इस मामले पर लागू होता है, क्‍योंकि उस समय कैरियर अधिनियम, 1865 ऐसे संव्‍यवहार के लिए लागू होता था। कैरियर अधिनियम की धारा 8 तथा 9 यह प्रदान करती है कि कॉमन कैरियर प्रस्‍तुत मामले में अपीलार्थी/विपक्षी को दशा में संचरित माल के लिए तब उत्‍तरदायित्‍व रखता है जब कि यह क्षति कैरियर के अथवा इसके किसी प्रति‍निधि या एजेंट की लापरवाही या उपेक्षा अथवा छल के कारण होती है। धारा 8 तथा 9 निम्‍नलिखित प्रकार से है:-

             Common carrier liable for loss or damage caused by neglect or fraud of himself or his agent. —Notwithstanding anything herein before contained, every common carrier shall be liable to the owner for loss of or damage to any 1[property (including container, pallet or similar article of transport used to consolidate goods) delivered] to such carrier to be carried where such loss or damage shall have arisen from the criminal act of the carrier or any of his agents or servants and shall also be liable to the owner for loss or damage to any such property other than property to which the provisions of section 3 apply and in respect of which the declaration required by that section has not been made, where such loss or damage has arisen from the negligence of the carrier or any of his agents or servants.

            Plaintiffs, in suits for loss, damage, or non-delivery, not required to prove negligence or criminal act.—In any suit brought against a common carrier for the loss, damage or non-delivery of 1[goods (including container, pallets or similar article of transport used to consolidate goods) entrusted] to him for carriage, it shall not be necessary for the plaintiff to prove that such loss, damage or non-delivery was owing to the negligence or criminal act of the carrier, his servants or agents.”

10.           इस प्रकार धारा 8 एवं 9 सम्मिलित रूप से यह प्रदान करती है कि कॉमन कैरियर द्वारा सामान की डिलीवरी न किए जाने के सम्‍बन्‍ध में परिवादी को यह साबित करना आवश्‍यक नहीं है कि यह नॉन डिलीवरी कॉमन कैरियर द्वारा अथवा उसके किसी एजेंट या प्रतिनिधि की उपेक्षा छल या किसी कमी के कारण हुई है, किन्‍तु दूसरी ओर माल की क्षति के मामले में यह बिन्‍दु प्रत्‍यर्थी/परिवादी द्वारा साबित करना आवश्‍यक है कि यह क्षति कैरियर या उसके प्रतिनिधि उपेक्षा या छल के कारण हुई है।

11.         उपरोक्‍त पत्र के अवलोकन से स्‍पष्‍ट होता है कि प्रत्‍यर्थी/परिवादी ने यह स्‍वीकार किया है कि उसका माल क्षतिग्रस्‍त होकर पहुंचा था। इस कारण उसके प्रतिनिधि द्वारा डिलीवरी नहीं ली गई जब कि इसके विपरीत परिवाद में माल के न पहुंचने की बात कही गई है। इस प्रकार एक ओर प्रत्‍यर्थी/परिवादी द्वारा भिन्‍न कथन करके परिवाद लाया गया है जब कि वास्‍तव में उसकी शिकायत माल के क्षतिग्रस्‍त होने की थी। दूसरी ओर धारा 8 के अनुसार माल के क्षतिग्रस्‍त होने में कॉमन कैरियर (ट्रांसपोर्टर) द्वारा अथवा उसके प्रतिनिधि या एजेंट द्वारा लापरवाही या उपेक्षा साबित नहीं की गई है। अत: ऐसी दशा में प्रत्‍यर्थी/परिवादी अपने अभिकथनों के आधार पर क्षतिपूर्ति पाने का अधिकारी नहीं है। विद्वान जिला उपभोक्‍ता आयोग द्वारा उपरोक्‍त तथ्‍यों को नजरंदाज करते हुए प्रत्‍यर्थी/परिवादी का परिवाद आज्ञप्‍त किया गया है। अत: प्रश्‍नगत निर्णय व आदेश अपास्‍त होने योग्‍य एवं अपील स्‍वीकार किए जाने योग्‍य है।

आदेश

12.         अपील स्‍वीकार की जाती है। प्रश्‍नगत निर्णय व आदेश अपास्‍त किया जाता है।  

अपील में उभयपक्ष अपना-अपना व्‍यय स्‍वयं वहन करेंगे।

            प्रस्‍तुत अपील में अपीलार्थी द्वारा यदि कोई धनराशि जमा की गई हो तो उक्‍त जमा धनराशि अर्जित ब्‍याज सहित अपीलार्थी को यथाशीघ्र विधि के अनुसार वापस की जाए।

            आशुलिपिक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस निर्णय व आदेश को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दें।     

 

        (सुधा उपाध्‍याय)                              (विकास सक्‍सेना)

            सदस्‍य                                      सदस्‍य     

 

शेर सिंह, आशु0,

कोर्ट नं0- 3

 
 
[HON'BLE MR. Vikas Saxena]
PRESIDING MEMBER
 
 
[HON'BLE MRS. SUDHA UPADHYAY]
MEMBER
 

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