Uttar Pradesh

StateCommission

A/2008/867

Vidhut Vitran Khand - Complainant(s)

Versus

Hazi Ashfaq Ahmad - Opp.Party(s)

M N Mishra

17 Aug 2023

ORDER

STATE CONSUMER DISPUTES REDRESSAL COMMISSION, UP
C-1 Vikrant Khand 1 (Near Shaheed Path), Gomti Nagar Lucknow-226010
 
First Appeal No. A/2008/867
( Date of Filing : 02 May 2008 )
(Arisen out of Order Dated in Case No. of District State Commission)
 
1. Vidhut Vitran Khand
a
...........Appellant(s)
Versus
1. Hazi Ashfaq Ahmad
a
...........Respondent(s)
 
BEFORE: 
 HON'BLE MR. JUSTICE ASHOK KUMAR PRESIDENT
 
PRESENT:
 
Dated : 17 Aug 2023
Final Order / Judgement

राज्‍य उपभोक्‍ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।

(मौखिक)                                                                                  

अपील संख्‍या:-867/2008

दक्षिणांचल विद्युत वितरण निगम लि0 द्वारा अधिशासी अभियंता

बनाम

हाजी अशफाक अहमद पुत्र श्री हाजी नजरूद्दीन

समक्ष :-

मा0 न्‍यायमूर्ति श्री अशोक कुमार, अध्‍यक्ष

अपीलार्थी के अधिवक्‍ता         : श्री इसार हुसैन

प्रत्‍यर्थी के अधिवक्‍ता           : श्री सुशील कुमार शर्मा के सहयोगी

  श्री नन्‍द कुमार

दिनांक :- 17.8.2023

मा0 न्‍यायमूर्ति श्री अशोक कुमार, अध्‍यक्ष द्वारा उदघोषित

निर्णय

प्रस्‍तुत अपील, अपीलार्थी/ विद्युत विभाग की ओर से इस आयोग के सम्‍मुख धारा-15 उपभोक्‍ता संरक्षण अधिनियम, 1986 के अन्‍तर्गत जिला उपभोक्‍ता विवाद प्रतितोष आयोग, दि्वतीय आगरा द्वारा परिवाद सं0-269/2006 में पारित एकपक्षीय निर्णय/आदेश दिनांक 08.5.2007 के विरूद्ध योजित की गई है।

संक्षेप में वाद के तथ्‍य इस प्रकार है कि प्रत्‍यर्थी/परिवादी द्वारा अपीलार्थी/विपक्षी से पी0वी0सी0 सोल बनाने हेतु 25 हार्सपावर का विद्युत कनेक्‍शन स्‍वयं की जीविका चलाने हेतु लिया गया था एवं अपीलार्थी/विपक्षी सं0-1 द्वारा प्रत्‍यर्थी/परिवादी के यहॉ मैकेनिकल मीटर लगाया गया एवं बाद में इस मीटर को हटाकर इलैक्‍ट्रोनिक मीटर सं0-आई.जे.166 लगाया गया। अपीलार्थी/विपक्षी सं0-1 के कर्मचारियों द्वारा हमेशा प्रत्‍यर्थी/परिवादी को परेशान कर अवैध धन की मॉग की जाती रही, जिसके परिपेक्ष्‍य में अपीलार्थी/विपक्षी सं0-1 द्वारा दिनांक 30.4.2002 को मीटर सं0-आई0जे0-166 जो कि जयपुर का बना था कि चैकिंग की गई एवं उसके स्‍थान पर दूसरा इलैक्‍ट्रोनिक मीटर सं0-ए0आई0ई0-061 लगाया गया तथा सीलिंग सर्टीफिकेट दिया गया।

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दिनांक 30.4.2002 को उक्‍त सीलिंग सर्टीफिकेट अपीलार्थी/विपक्षी सं0-1 के जूनियर इंजीनियर श्री डी0के0 कुलश्रेष्‍ठ द्वारा दी गई, जो कि पुराने मीटर को इनटैक्‍ट बताया त‍था मीटर चालू हालत में बताया। इसके बाद पुराने मीटर को अपीलार्थी/विपक्षी सं0-1 के कर्मचारियों द्वारा अपने कब्‍जे में लिया गया तथा उक्‍त मीटर को अपीलार्थी/विपक्षी के कर्मचारियों द्वारा अलग से किसी कपड़े में न तो सील लगायी गई और न ही प्रत्‍यर्थी/परिवादी से हस्‍ताक्षर ही कराये गये और न ही किसी रिपोर्ट की प्रति दी गई। उसके उपरांत दिनांक 25.5.2002 को मीटर संख्‍या-ए0आई0ई0-061 पुन: बदल दिया गया तथा उसके स्‍थान पर ए0आई0ई0-087 लगाकर दूसरा प्रमाण पत्र दिया गया। पुराने मीटर को इनटैक्‍ट एवं चालू हालत में बताया गया, किन्‍तु पूर्व की भॉति कोई सीलिंग की कार्यवाही नहीं की गई और न ही प्रमाण पत्र दिया गया। प्रत्‍यर्थी/परिवादी चूंकि 25 हार्सपावर का कनेक्‍शनधारी है अत्एव अपीलार्थी/विपक्षी सं0-1 के एस0डी0ओ0 जे0ई0 की यह जिम्‍मेदारी थी कि वह अपने क्षेत्र में स्थित विद्युत कनेक्‍शन पर लगे मीटर की सील एवं रीडिंग इत्‍यादि स्‍वयं लेता एवं मासिक जॉच करता, किन्‍तु अपीलार्थी/विपक्षी के उक्‍त कर्मचारियों द्वारा कोई भी ऐसा सद्भावी कदम नहीं उठाया गया।

दिनांक 01.12.2003 को प्रत्‍यर्थी/परिवादी के पास एक बिल प्राप्‍त हुआ जो कि मीटर सं0-आई0जे0-166 रिपोर्ट से सम्‍बन्धित एक लैब रिपोर्ट तैयार कर धनराशि रू0 3,52,249.83 पैसे की मॉग की गई। उक्‍त मॉग के विरूद्ध प्रत्‍यर्थी/परिवादी द्वारा आपत्ति की गई एवं यह कहा गया कि अपीलार्थी/विपक्षी के द्वारा यह बिल गलत दिया गया जबकि उनको पुराने उपभोग के आधार पर बिल देना चाहिए था, जो कि प्रत्‍यर्थी/परिवादी के ऊपर 8,000.00 रू0 होता है, परन्‍तु अपीलार्थी/विपक्षी

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के द्वारा प्रत्‍यर्थी/परिवादी की उक्‍त आपत्ति पर कोई कार्यवाही नहीं की गई। प्रत्‍यर्थी/परिवादी को मा0 उच्‍च न्‍यायालय इलाहाबाद द्वारा अपने निर्णय के द्वारा आदेशित किया कि उसकी समस्‍या का हल किया जाए, परन्‍तु अपीलार्थी/विपक्षी द्वारा इस पर कोई कार्यवाही नहीं की गई। अधिशासी अभियंता द्वारा न तो प्रत्‍यर्थी/परिवादी की आपत्ति सुनी गई और न ही विद्युत अधिनियम के प्राविधान के अनुसार बिल तैयार किये गये, बल्कि उसका उत्‍पीड़न किया गया तथा मीटरसं0-आई0जे0-166 की लैब के अनुसार बिल के भुगतान हेतु दबाव डाला गया। अपीलार्थी/विपक्षी द्वारा भेजा गया बिल पूर्णत: गलत है, जो नियमों को ध्‍यान में रखते हुए नहीं बनाया गया, न ही प्रत्‍यर्थी/परिवादी की मीटर की कोई जानकारी उसे दी गई न ही हाई कोर्ट के निर्देशों का पालन अपीलार्थी/विपक्षी द्वारा किया गया। प्रत्‍यर्थी/परिवादी लगातार विद्युत बिलों का भुगतान करता चला आ रहा है। प्रत्‍यर्थी/परिवादी अपीलार्थी/विपक्षी के वरिष्‍ठ अधिकारियों/कर्मचारियों से भी मिला, परन्‍तु उनके द्वारा कोई कार्यवाही नहीं की गई अत्एव विवश होकर परिवाद जिला उपभोक्‍ता आयोग के सम्‍मुख प्रस्‍तुत किया गया।

 अपीलार्थी/विपक्षीगण की ओर से नोटिस तामीला के बावजूद भी  जिला उपभोक्‍ता आयोग के सम्‍मुख कोई उपस्थित नहीं हुआ और न ही कोई प्रतिवाद पत्र प्रस्‍तुत किया, अत्एव जिला उपभोक्‍ता आयोग द्वारा अपीलार्थी/विपक्षीगण के विरूद्ध परिवाद की कार्यवाही एकपक्षीय रूप से अग्रसारित की गई।

 विद्वान जिला उपभोक्‍ता आयोग ने उभय पक्ष के अभिकथन एवं उपलब्‍ध साक्ष्‍य पर विस्‍तार से विचार करने के उपरांत परिवाद को स्‍वीकार करते हुए निम्‍न आदेश पारित किया है:-

 

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''परिवाद पत्र विपक्षी सं0-1 के विरूद्ध स्‍वीकार किया जाता है मीटर संख्‍या-आई0जे0-166 पर तैयार की गई लैब रिपोर्ट को एतद्द्वारा अवैध घोषित करते हुए निरस्‍त किया जाता है एवं उक्‍त लैब रिपोर्ट के आधार पर तैयार राजस्‍व निर्धारण रू0 3,52,249.83 को निष्‍प्रभावी किया जाता है। इसके अतिरिक्‍त विपक्षी सं0-1 निर्णय के 30 दिवस के भीतर परिवादी को बतौर परिवाद व्‍यय रूपया-1000.00 भी अदा करेगा। विपक्षी सं0-2 व 2 के विरूद्ध परिवाद इस स्‍तर पर खण्डित किया जाता है कि वह परिवादी से उपरोक्‍त राजस्‍व निर्धारण की धनराशि की बसूली ना करें।''

जिला उपभोक्‍ता आयोग के प्रश्‍नगत निर्णय/आदेश से क्षुब्‍ध होकर अपीलार्थी/ विद्युत विभाग की ओर से प्रस्‍तुत अपील योजित की गई है।

अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्‍ता द्वारा कथन किया गया कि जिला उपभोक्‍ता आयोग द्वारा पारित निर्णय/आदेश पूर्णत: तथ्‍य और विधि के विरूद्ध है। अपीलार्थी के अधिवक्‍ता द्वारा कथन किया गया कि अपीलार्थी द्वारा प्रत्‍यर्थी/परिवादी को जो राजस्‍व निर्धारण रू0 3,52,249.83 पैसे का नोटिस भेजा गया वह उचित है एवं नियमानुसार भेजा गया है।

अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्‍ता द्वारा यह कथन किया गया कि प्रत्‍यर्थी द्वारा 25 हार्सपावर के औद्योगिक बिजली कनेक्‍शन प्राप्‍त किया गया था। यह भी कथन किया गया कि चैकिंग रिपोर्ट के विरूद्ध कोई भी आपत्ति प्रत्‍यर्थी द्वारा दर्ज नहीं करायी गई है। यह भी कथन किया गया कि प्रत्‍यर्थी द्वारा जिला उपभोक्‍ता आयोग के समक्ष ऐसा कोई साक्ष्‍य प्रस्‍तुत नहीं किया गया, जिससे यह प्रमाणित हो कि मीटर की सील टैम्‍पर्ड नहीं थी। 

 

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यह भी कथन किया गया कि प्रत्‍यर्थी को यह अधिकार है कि वह राजस्‍व निर्धारण के बिल को समक्ष न्‍यायालय/कमिश्‍नर के समक्ष चुनौती देता, परन्‍तु उसके द्वारा ऐसा नहीं किया गया।

यह भी कथन किया गया इस सम्‍बन्‍ध में मा0 सर्वोच्‍च न्‍यायालय द्वारा Punjab State Electricity Board & ... vs Ashwani Kumar on 14 March, 1997 में इस आशय का सिद्धांत प्रतिपादित किया गया है कि प्रत्‍यर्थी को यह साबित करना होगा कि निरीक्षण के दौरान निरीक्षण करने वाले अधिकारी ने गलत चेकिंग रिपोर्ट तैयार की है।

यह भी कथन किया गया कि जिला उपभोक्‍ता आयोग द्वारा किसी विशेषज्ञ साक्ष्‍य के बगैर जो निर्णय/आदेश पारित किया गया है, वह अनुचित है। यह भी कथन किया गया कि अपीलार्थी द्वारा किसी प्रकार की सेवा में कमी नहीं की गई है।

यह भी कथन किया गया कि प्रत्‍यर्थी द्वारा अनुचित लाभ प्राप्‍त करने के उद्देश्‍य से गलत एवं असत्‍य कथनों के आधार पर परिवाद प्रस्‍तुत किया गया है।

अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्‍ता द्वारा अपील को स्‍वीकार कर जिला उपभोक्‍ता आयोग द्वारा पारित निर्णय/आदेश को अपास्‍त किये जाने की प्रार्थना की गई।

अपीलार्थी के अधिवक्‍ता द्वारा अपील को स्‍वीकार कर जिला उपभोक्‍ता आयोग द्वारा पारित निर्णय/आदेश को अपास्‍त किये जाने की प्रार्थना की गई।

प्रत्‍यर्थी के विद्वान अधिवक्‍ता द्वारा कथन किया गया कि जिला उपभोक्‍ता आयोग द्वारा पारित निर्णय/आदेश पूर्णत: तथ्‍य और विधि के अनुकूल है। यह भी कथन किया गया कि प्रत्‍यर्थी द्वारा अपीलार्थी से

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पी0वी0सी0 सोल बनाने हेतु 25 हार्सपावर का विद्युत कनेक्‍शन प्राप्‍त किया गया था।

यह भी कथन किया गया कि अपीलार्थी द्वारा मैकेनिकल मीटर बदलकर इलैक्‍ट्रोनिक मीटर सं0-आई.जे.166 लगाया गया, परन्‍तु उक्‍त मीटर में खराबी होने के कारण उसके स्‍थान पर दूसरा इलैक्‍ट्रोनिक मीटर सं0-ए0आई0ई0-061 दिनांक 30.4.2002 को लगाया गया। तत्‍पश्‍चात पुन: मीटर में खराबी होने पर तीसरा नया मीटर ए0आई0ई0-087 दिनांक 25.5.2002 को लगाया गया, जो कि वर्तमान में चालू है।

प्रत्‍यर्थी के अधिवक्‍ता द्वारा अपील पत्रावली के पृष्‍ठ सं0-32 की ओर ध्‍यान आकर्षित करते हुए यह कथन किया गया कि इलैक्‍ट्रोनिक मीटर सं0-आई.जे.166 की सीलिंग के सम्‍बन्‍ध में इनटैक्‍ट का उल्‍लेख किया गया है।

प्रत्‍यर्थी की ओर से अपील पत्रावली के पृष्‍ठ सं0-34 पर बल देते हुए यह कथन किया गया कि उपरोक्‍त राजस्‍व निर्धारण गलत प्रकार से किया गया है, जो कि अनुचित एवं निराधार है।

यह भी कथन किया गया कि मीटर बदलते समय विद्युत विभाग द्वारा नियमों का पालन नहीं किया गया और न ही अपीलार्थी द्वारा प्रत्‍यर्थी को कोई निर्धारण की सूचना दी गई।

यह भी कथन किया गया कि अपीलार्थी द्वारा प्रत्‍यर्थी को प्रेषित बिल पूर्णत: गलत है, क्‍योंकि उपरोक्‍त बिल पुराने उपभोग के आधार पर नहीं तैयार किये गये है। यह भी कथन किया गया कि अपीलार्थी द्वारा मा0 उच्‍च न्‍यायालय इलाहाबाद के निर्देशों का भी पालन नहीं किया गया। प्रत्‍यर्थी के अधिवक्‍ता द्वारा अपील को निरस्‍त करने की प्रार्थना की गई।

 

-7-

प्रस्‍तुत अपील विगत 15 वर्षों से लम्बित है एवं पूर्व में अनेकों तिथियों पर अधिवक्‍तागण की अनुपस्थिति के कारण स्‍थगित की जाती रही है अत्एव मेरे द्वारा उभय पक्ष की ओर से उपस्थित विद्वान अधिवक्‍तागण को सुना गया तथा प्रश्‍नगत निर्णय/आदेश व पत्रावली पर उपलब्‍ध समस्‍त प्रपत्रों का अवलोकन किया गया।

मेरे द्वारा उभय पक्ष के विद्वान अधिवक्‍तागण के कथनों को सुना गया तथा विद्वान जिला उपभोक्‍ता आयोग द्वारा पारित प्रश्‍नगत निर्णय/आदेश एवं पत्रावली पर उपलब्‍ध समस्‍त अभिलेखों के परिशीलनोंपरांत यह पाया गया कि विद्वान जिला उपभोक्‍ता आयोग द्वारा पारित निर्णय/आदेश न ही तथ्‍यों पर आधारित है न ही विधि अनुकूल है।  

मेरे द्वारा अपीलार्थी की ओर से उपस्थित विद्वान अधिवक्‍ता श्री इसार हुसैन तथा प्रत्‍यर्थी के विद्वान अधिवक्‍ता श्री नन्‍द कुमार के कथनों को सुना गया तथा विद्वान जिला उपभोक्‍ता आयोग द्वारा पारित प्रश्‍नगत निर्णय/आदेश एवं पत्रावली पर उपलब्‍ध समस्‍त अभिलेखों के परिशीलनोंपरांत यह पाया गया कि विद्वान जिला उपभोक्‍ता आयोग द्वारा अपीलार्थी की ओर से ऊपर उल्लिखित तथ्‍यों की अनदेखी करते हुए जो निर्णय/आदेश पारित किया गया है, वह अनुचित है तथा जिला उपभोक्‍ता आयोग द्वारा अपीलार्थी का पक्ष सुने बगैर एकपक्षीय निर्णय/आदेश पारित किया है, जो मेरे विचार से तथ्‍य और विधि के विरूद्ध है, तद्नुसार अपीलार्थी के अधिवक्‍ता के तर्कों में बल पाया जाता है, अत्एव प्रस्‍तुत अपील स्‍वीकार की जाती है तथा विद्वान जिला उपभोक्‍ता आयोग, दि्वतीय आगरा द्वारा परिवाद सं0 269/2006 में पारित निर्णय/आदेश दिनांक 08.5.2007 अपास्‍त किया जाता है।

 

-8-

अंतरिम आदेश यदि कोई पारित हो, तो उसे समाप्‍त किया जाता है।

प्रस्‍तुत अपील में अपीलार्थी द्वारा यदि कोई धनराशि जमा की गयी हो तो उक्‍त जमा धनराशि को मय अर्जित ब्‍याज सहित अपीलार्थी को यथाशीघ्र विधि के अनुसार वापस की जाए।

आशुलिपिक/वैयक्तिक सहायक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस निर्णय/आदेश को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दें। `

 

                               (न्‍यायमूर्ति अशोक कुमार)                

                                          अध्‍यक्ष                                                                                                                               

हरीश सिंह

वैयक्तिक सहायक ग्रेड-2.,

कोर्ट नं0-1

 

 
 
[HON'BLE MR. JUSTICE ASHOK KUMAR]
PRESIDENT
 

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