राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ
अपील संख्या-897/2015
(सुरक्षित)
(जिला उपभोक्ता फोरम-द्वितीय, लखनऊ द्वारा परिवाद संख्या 711/2013 में पारित आदेश दिनांक 10.12.2014 के विरूद्ध)
Tata AIA Life Insurance Company Limited
Peninsula Towers, 6th Floor,
Peninsula Corporate Park,
Ganpatrao Kadam Marg, Lower Panel,
Mumbai – 400013
Also At:-
Tata AIA Life Insurance Company Limited
2nd Floor, Ratan Square,
20 Vidhan Sabha Marg,
Lucknow (U.P.) ....................अपीलार्थी/विपक्षीगण
बनाम
1. Gyan Prakash Singh
2. Smt. Amita Singh
W/o Shri Gyan Prakash Singh
3. Nishi Singh
D/o Gyan Prakash Singh
All residents of 32, Sawroop Vihar, Khadagpur,
Indira Nagar, Lucknow -226016
................प्रत्यर्थी/परिवादीगण
समक्ष:-
माननीय न्यायमूर्ति श्री अख्तर हुसैन खान, अध्यक्ष।
अपीलार्थीगण की ओर से उपस्थित : श्री अवनीश पाल,
विद्वान अधिवक्ता।
प्रत्यर्थीगण की ओर से उपस्थित : श्री राम गोपाल,
विद्वान अधिवक्ता।
दिनांक: 14.06.2017
मा0 न्यायमूर्ति श्री अख्तर हुसैन खान, अध्यक्ष द्वारा उदघोषित
निर्णय
परिवाद संख्या-711/2013 ज्ञान प्रकाश सिंह आदि बनाम प्रबंधक टाटा ए0आई0जी0 लाइफ इंश्योरेंस व एक अन्य में जिला
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उपभोक्ता विवाद प्रतितोष फोरम-द्वितीय, लखनऊ द्वारा पारित निर्णय और आदेश दिनांक 10.12.2014 के विरूद्ध यह अपील उपरोक्त परिवाद के विपक्षीगण टाटा ए0आई0ए0 लाइफ इंश्योरेंस कं0लि0 व एक अन्य की ओर से धारा-15 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 के अन्तर्गत आयोग के समक्ष प्रस्तुत की गयी है।
जिला फोरम ने आक्षेपित निर्णय और आदेश के द्वारा उपरोक्त परिवाद आंशिक रूप से स्वीकार करते हुए निम्न आदेश पारित किया है:-
''परिवादी का परिवाद आंशिक रूप से स्वीकार किया जाता है। विपक्षीगण को संयुक्त एवं एकल रूप में आदेशित किया जाता है कि वह इस निर्णय की तिथि से दो माह के अंदर परिवादी को प्रोसेसिंग शुल्क काटकर उसकी प्रश्नगत उक्त धनराशि रू0 2,47000/-मय ब्याज दौरान वाद व आइंदा बशरह 9 (नौ) प्रतिशत साधारण वार्षिक ब्याज की दर के साथ अदा करें। इसके अतिरिक्त विपक्षीगण संयुक्त एवं एकल रूप में परिवादी को मानसिक क्लेश हेतु रू010,000/-(दस हजार) तथा रू05000/-(पॉच हजार) वाद व्यय अदा करेंगे, यदि विपक्षीगण संयुक्त एवं एकल रूप में उक्त निर्धारित अवधि के अंदर परिवादी को यह धनराशि अदा नहीं करते हैं तो विपक्षीगण को संयुक्त एवं एकल रूप में, समस्त धनराशि पर उक्त तिथि से ता अदायेगी तक 12 (बारह) प्रतिशत वार्षिक ब्याज की दर के साथ अदा करना पड़ेगा।''
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अपीलार्थी/विपक्षीगण की ओर से विद्वान अधिवक्ता श्री अवनीश पाल और प्रत्यर्थी/परिवादीगण की ओर से विद्वान अधिवक्ता श्री राम गोपाल उपस्थित आए हैं।
मैंने उभय पक्ष के विद्वान अधिवक्तागण के तर्क को सुना है और आक्षेपित निर्णय और आदेश तथा पत्रावली का अवलोकन किया है।
वर्तमान अपील के निर्णय हेतु संक्षिप्त सुसंगत तथ्य इस प्रकार हैं कि प्रत्यर्थी/परिवादीगण ज्ञान प्रकाश सिंह, श्रीमती अमिता सिंह और निशि सिंह ने उपरोक्त परिवाद अपीलार्थी/विपक्षीगण के विरूद्ध जिला फोरम-द्वितीय, लखनऊ के समक्ष इस कथन के साथ प्रस्तुत किया है कि प्रत्यर्थी/परिवादी संख्या-1 एक अवकाश प्राप्त कर्मचारी है। उसे भविष्य निधि से प्रतिमाह 1515/-रू0 पेंशन के रूप में मिलता है। प्रत्यर्थी/परिवादिनी संख्या-2 उसकी पत्नी और प्रत्यर्थी/परिवादिनी संख्या-3 उसकी पुत्री है और सभी एक साथ एक ही घर में निवास करते हैं।
प्रत्यर्थी/परिवादीगण ने परिवाद पत्र में कहा है कि रिटायरमेंट के बाद प्रत्यर्थी/परिवादी संख्या-1 को जो धन विभाग से प्राप्त हुआ था, परिवार के भविष्य के लिए वह उसे किसी अच्छी योजना में लगाना चाहता था। इसी क्रम में वर्ष 2009 के द्वितीय सप्ताह में अपीलार्थी/विपक्षीगण के कुछ एजेन्ट उससे मिले और कम्पनी की पालिसी के सम्बन्ध में उसे बताया, जिस पर विश्वास कर प्रत्यर्थी/परिवादी संख्या-1 ने अपने नाम एक, अपनी पत्नी के नाम
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दो और अपनी पुत्री के नाम दो पालिसियॉं ली, जिनका विवरण निम्न है:-
क्रम सं0 | पालिसीधारक | जमा धनराशि | पालिसी लेने का दिनॉंक | पालिसी नं0 |
1. | ज्ञानप्रकाश सिंह | 49,900/ | 19.06.2009 | U2150118942 |
2. | श्रीमती अमिता सिंह | 49,900/ | 26.06.2009 | U143728485 |
3. | श्रीमती अमिता सिंह | 49,900/ | 28.06.2009 | U143728508 |
4. | निशी सिंह | 49,000/ | 11.06.2009 | U215018421 |
5. | निशी सिंह | 49,000/ | 11.06.2009 | U215018434 |
परिवाद पत्र के अनुसार प्रत्यर्थी/परिवादीगण का कथन है कि पालिसी लेने के 10-15 दिन के बाद अपीलार्थी/विपक्षीगण की ओर से उन्हें पालिसियॉं भेजी गयीं, जिसे देखकर वे हैरान हो गए क्योंकि पालिसी के अनुसार उन्हें 10 वर्ष तक किस्तें जमा करनी है, जबकि प्रत्यर्थी/परिवादी संख्या-1 की कुल मासिक आय 1514/-रू0 है और वह आगामी 10 वर्ष तक किस्तें अदा करने की स्थिति में नहीं है। इस कारण उपरोक्त पालिसियों के कागजात प्राप्त होने के एक हफ्ते बाद प्रत्यर्थी/परिवादी संख्या-1 ने अपीलार्थी/विपक्षीगण के प्रतिनिधि को फोन किया, किन्तु फोन नहीं उठाया गया तो उसने अपीलार्थी/विपक्षी संख्या-1 के कार्यालय में जाकर सम्पर्क किया और पालिसी लेने से मना किया। तब अपीलार्थी/विपक्षी संख्या-1 द्वारा उसे यह बताया गया कि वह मुम्बई हेड आफिस से सम्पर्क करे।
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परिवाद पत्र में प्रत्यर्थी/परिवादीगण की ओर से कहा गया है कि उपरोक्त पालिसी का फार्म स्वयं अपीलार्थी/विपक्षीगण द्वारा भरे गए हैं। उसमें जो विवरण दर्शाया गया है वह अपीलार्थी/विपक्षीगण द्वारा भरा गया है। यहॉं तक कि पालिसी पर प्रत्यर्थी/परिवादिनी संख्या-2 का हस्ताक्षर भी उन्होंने बनाया है, जो घोर अनुचित व्यापार का प्रतीक है।
परिवाद पत्र में प्रत्यर्थी/परिवादीगण ने आगे कहा है कि अपीलार्थी/विपक्षी संख्या-1 और उसके प्रतिनिधि से बात करने के चक्कर में काफी समय निकल गया। इस बीच प्रत्यर्थी/परिवादीगण ने अपीलार्थी/विपक्षीगण को जमा धनराशि वापस करने के लिए कई बार पत्र व ई-मेल किया। तब अपीलार्थी/विपक्षीगण ने प्रत्यर्थी/परिवादीगण के पत्र के जवाब में बताया कि आपने फ्री लुक समय में धन वापसी के लिए आवेदन नहीं किया था। अत: जमा धनराशि वापस नहीं की जाएगी, जबकि प्रत्यर्थी/परिवादीगण ने पालिसी मिलने के हफ्ते भर बाद ही पालिसी लेने से मना कर दिया था।
परिवाद पत्र में प्रत्यर्थी/परिवादीगण की ओर से कहा गया है कि यदि प्रत्यर्थी/परिवादी संख्या-1 को यह बताया गया होता कि उनकी पालिसी 10 वर्ष तक चलेगी और उसे अपनी, अपनी पत्नी व पुत्री की पालिसी में प्रतिवर्ष 2,47,700/-रू0 जमा करना होगा तो प्रत्यर्थी/परिवादी संख्या-1 अपनी मासिक आय को ध्यान में रखकर पालिसी कभी नहीं लेता। वास्तव में अपीलार्थी/विपक्षीगण के प्रतिनिधि ने अनुचित व्यापार प्रक्रिया अपनाते हुए एक बार धन
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लगाने की बात कहकर प्रत्यर्थी/परिवादीगण को पालिसी दिलवायी थी।
परिवाद पत्र में प्रत्यर्थी/परिवादीगण ने कहा है कि उनके द्वारा जमा धनराशि का 1/5 हिस्सा ही चेक द्वारा अपीलार्थी/विपक्षीगण ने भेजा, जिसे उन्होंने अपने खाते में जमा नहीं किया है।
परिवाद पत्र में प्रत्यर्थी/परिवादीगण ने यह भी कहा है कि यदि वे उक्त धनराशि बैंक या डाकघर में जमा करते तो उन्हें मूलधन के साथ ब्याज भी अदा किया जाता और यदि उन्हें यह बताया गया होता कि तीन साल बाद पालिसी बन्द करने पर उन्हें जमा धन का 1/5 हिस्सा ही मिलेगा तो वे कभी भी ऐसी पालिसी नहीं लेते।
जिला फोरम के समक्ष अपीलार्थी/विपक्षीगण की ओर से लिखित कथन प्रस्तुत नहीं किया गया है और परिवाद की सुनवाई उनके विरूद्ध एकपक्षीय रूप से की गयी है। अत: जिला फोरम ने परिवाद पत्र के कथन और प्रत्यर्थी/परिवादीगण द्वारा प्रस्तुत शपथ पत्र व अभिलेखों पर विचार करते हुए एकपक्षीय रूप से परिवाद आंशिक रूप से स्वीकार करते हुए उपरोक्त प्रकार से आदेश पारित किया है।
अपीलार्थी/विपक्षीगण के विद्वान अधिवक्ता का तर्क है कि अपीलार्थी/विपक्षीगण को जिला फोरम की नोटिस दिनांक 05.09.2013 को मिली थी। उसके बाद उन्होंने दिनांक 17.09.2013 को श्री आदित्य सिंह अधिवक्ता को अपना
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वकील नियुक्त किया और उन्हें सम्पूर्ण अभिलेख प्रेषित किए। उन्होंने अपीलार्थी/विपक्षीगण को आश्वासन दिया कि वह केस देख रहे हैं, परन्तु दिनांक 22.12.2014 को अपीलार्थी/विपक्षीगण को एकपक्षीय आदेश की जानकारी हुई। तब उन्होंने निर्णय की कापी प्राप्त की है और अपील प्रस्तुत किया है।
अपीलार्थी/विपक्षीगण के विद्वान अधिवक्ता का तर्क है कि जिला फोरम द्वारा पारित आक्षेपित निर्णय और आदेश तथ्य एवं विधि के विरूद्ध है। अपीलार्थी/विपक्षीगण ने बीमा पालिसी की शर्त के अनुसार देय धनराशि प्रत्यर्थी/परिवादीगण को पहले ही वापस कर दी है। प्रत्यर्थी/परिवादीगण द्वारा प्रस्तुत परिवाद कालबाधित है और ग्राह्य नहीं है।
प्रत्यर्थी/परिवादीगण के विद्वान अधिवक्ता का तर्क है कि अपीलार्थी/विपक्षीगण नोटिस के तामीला के बाद भी उपस्थित नहीं आए हैं। अत: जिला फोरम ने उनके विरूद्ध परिवाद की कार्यवाही एकपक्षीय रूप से करके जो आक्षेपित निर्णय और आदेश पारित किया है, वह साक्ष्य और विधि के अनुकूल है। उसमें किसी हस्तक्षेप की आवश्यकता नहीं है।
हमने उभय पक्ष के तर्क पर विचार किया है।
निर्विवाद रूप से आक्षेपित निर्णय और आदेश अपीलार्थी/विपक्षीगण के विरूद्ध एकपक्षीय रूप से उनकी अनुपस्थिति में पारित किया गया है। अपीलार्थी/विपक्षीगण की ओर से लिखित कथन जिला फोरम के समक्ष प्रस्तुत नहीं किया गया है। स्वीकृत रूप से प्रत्यर्थी/परिवादीगण ने परिवाद पत्र की धारा-4 में अंकित
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अपीलार्थी/विपक्षीगण की 5 पालिसी ली है, जिसमें तीन पालिसी के लिए 49,900/-रू0 व दो पालिसी के लिए 49,000/-रू0 धनराशि जमा की गयी है और इन 5 पालिसियों में एक पालिसी प्रत्यर्थी/परिवादी संख्या-1 ज्ञान प्रकाश सिंह के नाम, दो पालिसी प्रत्यर्थी/परिवादिनी श्रीमती अमिता सिंह के नाम और दो पालिसी प्रत्यर्थी/परिवादिनी निशि सिंह के नाम है। परिवाद पत्र के कथन से ही यह स्पष्ट है कि अपीलार्थी/विपक्षीगण ने प्रत्यर्थी/परिवादीगण के आवेदन पर जमा धनराशि के 1/5 का चेक प्रत्यर्थी/परिवादीगण को भेजा है, जिसे उन्होंने कैश नहीं कराया है।
अपीलार्थी/विपक्षीगण ने परिवाद में नोटिस का तामीला होने से इंकार नहीं किया है। उनका कथन यह है कि उन्होंने जो अधिवक्ता नियुक्त किया था, उन्होंने अपीलार्थी/विपक्षीगण की ओर से परिवाद की पैरवी नहीं की और लिखित कथन प्रस्तुत नहीं किया, परन्तु अपीलार्थी/विपक्षीगण ने इस बात का कोई साक्ष्य या प्रमाण नहीं दिया है कि उन्होंने वास्तव में परिवाद की पैरवी हेतु अधिवक्ता नियुक्त किया था। यदि वास्तव में उन्होंने अधिवक्ता नियुक्त किया होता तो उन्हें फीस आदि का भुगतान किया गया होता और इसका विवरण अपीलार्थी/विपक्षीगण अपने अभिलेख से दर्शित कर सकते थे, परन्तु अपीलार्थी/विपक्षीगण ने अधिवक्ता नियुक्त करने और उन्हें फीस आदि का भुगतान करने के सम्बन्ध में अपनी कम्पनी का कोई अभिलेख प्रस्तुत नहीं किया है, जिसके आधार पर उनका यह कथन स्वीकार किया जा सके कि उन्होंने परिवाद में जिला फोरम से नोटिस प्राप्त होने पर अपना अधिवक्ता
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नियुक्त किया था। ऐसी स्थिति में अपीलार्थी/विपक्षीगण का यह कथन आधार रहित है कि उन्होंने जिला फोरम से नोटिस मिलने पर अधिवक्ता नियुक्त किया था, परन्तु अधिवक्ता ने परिवाद में उपस्थित होकर पैरवी ठीक ढंग से नहीं की और लिखित कथन प्रस्तुत नहीं किया, जिससे परिवाद एकपक्षीय रूप से निर्णीत हुआ है। ऐसी स्थिति में मैं इस मत का हूँ कि यह मानने हेतु उचित और युक्तसंगत आधार है कि अपीलार्थी/विपक्षीगण नोटिस का तामीला होने के बाद भी बिना किसी उचित कारण के जिला फोरम के समक्ष उपस्थित नहीं हुए हैं और जिला फोरम के समक्ष परिवाद की कार्यवाही में भाग नहीं लिया है। उन्होंने जिला फोरम के समक्ष उपस्थित न होने का जो कारण बताया है, वह उपरोक्त विवेचना के आधार पर आधार रहित और अविश्वसनीय है। अत: मैं इस मत का हूँ कि जिला फोरम ने अपीलार्थी/विपक्षीगण के विरूद्ध परिवाद की कार्यवाही एकपक्षीय रूप से करके जो आक्षेपित निर्णय और आदेश पारित किया है, वह विधि विरूद्ध नहीं है।
प्रत्यर्थी/परिवादी संख्या-1 एक सेवानिवृत्त कर्मचारी है। प्रत्यर्थी/परिवादिनी संख्या-2 उसकी पत्नी और प्रत्यर्थी/परिवादिनी संख्या-3 उसकी पुत्री है और जैसा कि उपरोक्त विवरण से यह स्पष्ट है कि इन तीनों प्रत्यर्थी/परिवादीगण के नाम अपीलार्थी/विपक्षीगण ने जो पालिसी जारी की है, उनमें तीन पालिसी 49,900/-रू0 व दो पालिसी 49,000/-रू0 की है। यही धनराशि 10 वर्ष तक प्रत्येक पालिसी के लिए प्रत्येक वर्ष जमा करनी है। ऐसी स्थिति में प्रत्यर्थी/परिवादीगण का यह कथन आधार युक्त
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और विश्वसनीय प्रतीत होता है कि अपीलार्थी/विपक्षीगण के एजेन्ट ने उन्हें यह धनराशि मात्र एक बार जमा करना बताकर पालिसी लेने हेतु उत्प्रेरित किया है क्योंकि इतनी बड़ी धनराशि एक सेवानिवृत्त कर्मचारी व उसकी पत्नी व उसकी पुत्री प्रत्येक वर्ष लगातार 10 वर्ष तक जमा करने की हैसियत नहीं रखते हैं। अत: परिवाद पत्र के कथन एवं प्रत्यर्थी/परिवादीगण की ओर से प्रस्तुत शपथ पत्र एवं साक्ष्यों पर विचार करने से यह स्पष्ट है कि वास्तव में अपीलार्थी/विपक्षीगण के एजेन्ट ने प्रत्यर्थी/परिवादीगण को पालिसी लेने हेतु गलत सूचना दिया है और धोखा देकर उन्हें पालिसी लेने हेतु उत्प्रेरित किया है, जो अनुचित व्यापार पद्धति है। परिवाद पत्र के कथन एवं उपलब्ध साक्ष्यों से यह भी स्पष्ट है कि प्रत्यर्थी/परिवादीगण द्वारा पालिसी स्वीकार करने से असमर्थता व्यक्त किए जाने पर जमा धनराशि के मात्र 1/5 का ही अपीलार्थी/विपक्षीगण ने चेक भेजा है। शेष 4/5 धनराशि जब्त कर ली है। उपरोक्त परिस्थितियों में अपीलार्थी/विपक्षीगण द्वारा प्रत्यर्थी/परिवादीगण द्वारा जमा धनराशि में की गयी यह कटौती अनुचित है क्योंकि धोखा देकर प्रत्यर्थी/परिवादीगण को यह पालिसी लेने हेतु उत्प्रेरित किया गया है।
उपरोक्त सम्पूर्ण विवेचना के आधार पर मैं इस मत का हूँ कि जिला फोरम ने अपीलार्थी/विपक्षीगण के विरूद्ध सेवा में त्रुटि का जो निष्कर्ष निकाला है, वह उचित और युक्तसंगत है। अत: जिला फोरम ने अपीलार्थी/विपक्षीगण को जमा धनराशि ब्याज सहित वापस करने हेतु जो आदेशित किया है, वह उचित और विधिसम्मत
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है। उपरोक्त विवेचना से यह स्पष्ट है कि अपीलार्थी/विपक्षीगण नोटिस का तामीला होने के बाद भी बिना किसी पर्याप्त कारण के जिला फोरम के समक्ष उपस्थित नहीं हुए हैं। अत: आक्षेपित निर्णय और आदेश मात्र एकपक्षीय होने के आधार पर निरस्त किया जाना उचित नहीं है। जिला फोरम ने सम्पूर्ण तथ्यों पर विचार कर विधि के अनुसार निर्णय पारित किया है।
जिला फोरम ने प्रत्यर्थी/परिवादीगण को जो 10,000/-रू0 मानसिक क्लेश हेतु क्षतिपूर्ति दिया है, वह वाद के तथ्यों एवं परिस्थितियों को देखते हुए उचित है। जिला फोरम ने जो 5000/-रू0 वाद व्यय दिलाया है, वह भी उचित है।
अपील मेमो की धारा 3.9 से स्पष्ट है कि प्रत्यर्थी/परिवादीगण की सभी पालिसियों की 1/5 धनराशि का भुगतान अपीलार्थी/विपक्षीगण ने दिनांक 26.07.2012 को जारी किया है, जिसे प्रत्यर्थी/परिवादीगण ने स्वीकार न करते हुए चेक अपने खातों में जमा नहीं किया है। अत: परिवाद का वाद हेतुक दिनांक 26.07.2012 को उत्पन्न होने के बाद परिवाद निर्धारित समय-सीमा के अन्दर प्रस्तुत किया गया है। परिवाद में कदापि मीयाद बाधक नहीं है।
उपरोक्त विवेचना और ऊपर निकाले गए निष्कर्ष के आधार पर मैं इस मत का हूँ कि जिला फोरम द्वारा पारित आक्षेपित निर्णय और आदेश में किसी हस्तक्षेप की आवश्यकता नहीं है। अपील बल रहित है और सव्यय निरस्त किए जाने योग्य है।
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आदेश
अपील 10,000/-रू0 (दस हजार रूपए मात्र) व्यय सहित निरस्त की जाती है। वाद व्यय की यह धनराशि अपीलार्थी/विपक्षीगण, प्रत्यर्थी/परिवादीगण को अदा करेंगे।
अपीलार्थी/विपक्षीगण की ओर से धारा-15 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 के अन्तर्गत अपील में जमा धनराशि ब्याज सहित जिला फोरम को इस निर्णय के अनुसार निस्तारण हेतु प्रेषित की जाए।
(न्यायमूर्ति अख्तर हुसैन खान)
अध्यक्ष
जितेन्द्र आशु0
कोर्ट नं0-1