राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ
अपील सं0- 2556/2016
(सुरक्षित)
(जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष फोरम, कुशीनगर द्वारा परिवाद सं0- 57/2016 में पारित आदेश दि0 01.09.2016 के विरूद्ध)
Royal sundaram General insurance company Ltd. (Formerly known as Royal sundaram alliance insurance company Ltd.) Rider House, plot no : 136, Sector 44, Gurgaon, Haryana – 122002, Head office Royal sundaram General insurance company Ltd., No. 1, Second floor, Subramaniam building, club house road, Chennai- 600002 through its officer In-charge.
……….Appellant
Versus
- Gyaneshwar jaiswal S/o Late Badhu Jaiswal Resident of ward no. – 12, Kashya, District- Kushinagar.
- State bank of India, Branch- Hata, Post – Hata, District-Kushinagar through Branch Manager.
………..Respondents
समक्ष:-
माननीय न्यायमूर्ति श्री अख्तर हुसैन खान, अध्यक्ष।
अपीलार्थी की ओर से उपस्थित : श्री दिनेश कुमार,
विद्वान अधिवक्ता।
प्रत्यर्थी सं0- 1 की ओर से उपस्थित : श्री बी0 के0 उपाध्याय,
विद्वान अधिवक्ता।
प्रत्यर्थी सं0- 2 की ओर से उपस्थित : कोई नहीं।
दिनांक:- 05.02.2018
माननीय न्यायमूर्ति श्री अख्तर हुसैन खान, अध्यक्ष द्वारा उद्घोषित
निर्णय
परिवाद सं0- 57/2016 ज्ञानेश्वर जायसवाल बनाम रायल सुन्दरम एलायंस इंश्योरेंस कं0लि0 व दो अन्य में जिला फोरम, कुशीनगर द्वारा पारित निर्णय और आदेश दि0 01.09.2016 के विरूद्ध यह अपील धारा 15 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 के अंतर्गत आयोग के समक्ष प्रस्तुत की गई है।
आक्षेपित निर्णय और आदेश के द्वारा जिला फोरम ने परिवाद स्वीकार करते हुए निम्न आदेश पारित किया है:-
“परिवाद विपक्षी सं0- 1 व 2 के विरुद्ध स्वीकार किया जाता है तथा विपक्षी सं0- 1 व 2 को आदेशित किया जाता है कि वे परिवादी को चोरी हुई प्रश्नगत गाड़ी की बीमित राशि 6,59325.00/-रू0 तथा शारीरिक, मानसिक कष्ट के एवज में 3,000/-रू0 का भुगतान एक माह के अन्दर परिवादी को कर दें। इस अवधि में भुगतान नहीं करने की स्थिति में परिवाद दाखिल होने की तिथि से वास्तविक भुगतान तिथि तक उक्त सम्पूर्ण राशि पर 06 प्रतिशत ब्याज विपक्षी सं0- 1 व 2 द्वारा परिवादी को देय होगा।“
जिला फोरम के निर्णय और आदेश से क्षुब्ध होकर परिवाद के विपक्षी सं0- 1 Royal sundaram General insurance company Ltd. (Formerly known as Royal sundaram alliance insurance company Ltd.) ने यह अपील प्रस्तुत की है।
अपील की सुनवाई के समय अपीलार्थी की ओर से विद्वान अधिवक्ता श्री दिनेश कुमार और प्रत्यर्थी सं0- 1 की ओर से विद्वान अधिवक्ता श्री बी0के0 उपाध्याय उपस्थित आये हैं। प्रत्यर्थी सं0- 2 की ओर से कोई उपस्थित नहीं हुआ है।
मैंने उभयपक्ष के विद्वान अधिवक्तागण के तर्क को सुना है और आक्षेपित निर्णय और आदेश तथा पत्रावली का अवलोकन किया है।
अपील के निर्णय हेतु संक्षिप्त सुसंगत तथ्य इस प्रकार है कि प्रत्यर्थी/परिवादी ने उपरोक्त परिवाद जिला फोरम के समक्ष इस कथन के साथ प्रस्तुत किया है कि उसने विपक्षी सं0- 3 भारतीय स्टेट बैंक से वित्तीय सहायता प्राप्त कर एक स्विफ्ट डिजायर कार 6,94,276/-रू0 में मेसर्स आर0के0बी0के0 आटोमोबाइल्स प्रा0लि0, गोरखपुर से क्रंय किया और उसका बीमा 6,59,325/-रू0 मूल्य हेतु विपक्षी सं0- 1 से पैकेज पालिसी के अंतर्गत दि0 27.01.2014 से 26.01.2015 तक की अवधि के लिए कराया। बीमा अवधि में ही दि0 30.12.2014 को मोबाइल नं0- 9918345488 पर मोबाइल नं0- 8507092714 से फोन आया जिसमें बोलने वाले ने कहा कि वह वोडाफोन का चीफ इंजीनियर है बुद्धा होटल कसया में रूका है। एक गाड़ी भेज दीजिए, उसे निजी कार्य से जाना है। परिवादी की दो गाडि़यां पहले से वोडाफोन के कार्य में चलती थीं। अत: उसने उपरोक्त व्यक्ति को अधिकारी मानते हुए अपनी उपरोक्त निजी स्विफ्ट डिजायर कार जिसका नं0- यू0पी0 53 बी0एल0 2714 था ड्राइवर के साथ भेजा। उसके बाद वह व्यक्ति प्रत्यर्थी/परिवादी का उपरोक्त वाहन लेकर ड्राइवर के साथ कसया व हाटा कई जगह गया और शाम को सुकरौली के आगे गाड़ी रूकवाकर ड्राइवर से सामान लाने को कहा। ड्राइवर गाड़ी से उतर कर सामान लेने गया तो वह उक्त वाहन लेकर फरार हो गया। ड्राइवर जब वापस आया तो वाहन नहीं मिला तब ड्राइवर ने प्रत्यर्थी/परिवादी को फोन से सूचना दिया तब प्रत्यर्थी/परिवादी लखनऊ से कुशीनगर आया और कई लोगों से फोन कर पता किया तथा पता लगाया, परन्तु वाहन का कोई पता नहीं चला तब दि0 03.01.2015 को थाना हाटा, जनपद कुशीनगर में उसने घटना की लिखित सूचना दिया, जिस पर अपराध सं0- 05/2015 अंतर्गत धारा 406 आई0पी0सी0 दर्ज किया गया।
परिवाद पत्र के अनुसार प्रत्यर्थी/परिवादी का कथन है कि उसने विपक्षी सं0- 1 बीमा कम्पनी के प्रबंधक गोरखपुर को श्री एम0एन0 दीक्षित के माध्यम से घटना की सूचना दि0 31.12.2014 को दिया और दि0 03.01.2015 को लिखित सूचना विपक्षी सं0- 1 की गोरखपुर शाखा को दिया, जिस पर विपक्षीगण सं0- 1 व 2 ने उसका क्लेम नं0- एम0पी0 00924550 दर्ज किया। उसके बाद प्रत्यर्थी सं0- 2 ने इस आशय का पत्र भेजा कि घटना की सूचना सात दिन विलम्ब से क्यों दिया गया है तब प्रत्यर्थी/परिवादी ने क्लेम फार्म आर0सी0, एफ0आई0आर0 इनवाइस की प्रति, अन्तिम रिपोर्ट, आर0टी0ओ0 के पत्र, वाहन की ओरिजनल इग्नीशन, चाभी और लास्ट सर्विस बिल के साथ भेजा तब विपक्षीगण सं0- 1 और 2 ने अपना सर्वेयर नियुक्त किया और घटना की जांच करायी? उसके बाद विपक्षी सं0- 2 ने उससे पत्र दि0 07.04.2015 के द्वारा सात दिन विलम्ब से सूचना दिये जाने का स्पष्टीकरण चाहा तब परिवादी ने उसे अवगत कराया कि घटना की सूचना दि0 31.12.2014 को फोन द्वारा प्रबंधक गोरखपुर को एम0एन0 दीक्षित के माध्यम से दिया था और लिखित सूचना दि0 03.01.2015 को विपक्षी सं0- 1 के गोरखपुर शाखा को दिया था। इसके साथ ही उसने विपक्षी सं0- 2 के पत्र दि0 07.04.2015 के द्वारा मांगे गये अभिलेख भी उपलब्ध कराये तब विपक्षी सं0- 2 ने वाहन की द्वितीय इग्नीशन की मांग की, जिस पर प्रत्यर्थी/परिवादी ने उसे अवगत कराया कि द्वितीय इग्नीशन की पहले ही स्पीड पोस्ट भेजी जा चुकी है, फिर भी विपक्षीगण सं0- 1 व 2 ने प्रत्यर्थी/परिवादी के क्लेम का भुगतान नहीं किया। अत: विवश होकर उसने परिवाद जिला फोरम के समक्ष प्रस्तुत किया है।
जिला फोरम के समक्ष विपक्षीगण सं0- 1 और 2 की ओर से लिखित कथन प्रस्तुत किया गया है जिसमें कहा गया है कि प्रत्यर्थी/परिवादी की उपरोक्त स्विफ्ट डिजायर कार का बीमा दि0 27.01.2014 से 26.01.2015 तक के लिए किया गया था, परन्तु प्रत्यर्थी/परिवादी ने इस वाहन की चोरी की सूचना सात दिन बाद दिया है। लिखित कथन में विपक्षीगण सं0- 1 व 2 की ओर से कहा गया है कि सूचना प्राप्त होने पर घटना की जांच के लिए श्री मनोज कुमार को सर्वेयर नियुक्त किया गया, जिन्होंने जांचोपरांत यह पाया कि ड्राइवर की लापरवाही से गाड़ी चोरी हुई है और गाड़ी का प्रयोग वाणिज्यिक तौर पर किया जा रहा था। लिखित कथन में विपक्षीगण सं0- 1 व 2 की ओर से यह भी कहा गया है कि लापरवाही पूर्वक ड्राइवर ने गाड़ी में चाभी छोड़ दिया था।
जिला फोरम ने उभयपक्ष के अभिकथन एवं उपलब्ध साक्ष्यों पर विचार करने के उपरांत यह माना है कि प्रत्यर्थी/परिवादी का वाहन चोरी हुआ है। अत: अपीलार्थी/बीमा कम्पनी वाहन की बीमित धनराशि प्रत्यर्थी/परिवादी को देने हेतु उत्तरदायी है। इसके साथ ही जिला फोरम ने प्रत्यर्थी/परिवादी को 3,000/-रू0 शारीरिक व मानसिक कष्ट हेतु क्षतिपूर्ति भी दिलाया जाना उचित माना है और तदनुसार आक्षेपित निर्णय और आदेश पारित किया है।
अपीलार्थी/बीमा कम्पनी के विद्वान अधिवक्ता का तर्क है कि जिला फोरम द्वारा पारित निर्णय और आदेश साक्ष्य और विधि के विरुद्ध है। प्रत्यर्थी/परिवादी ने वाहन चोरी की सूचना पुलिस और बीमा कम्पनी दोनों को विलम्ब से दिया है और इस प्रकार बीमा पालिसी की शर्त का उल्लंघन किया है। इसके साथ ही कथित घटना के समय वाहन का प्रयोग वाणिज्यिक उद्देश्य से किया जा रहा था जब कि वाहन प्राइवेट वाहन के रूप में पंजीकृत व बीमाकृत रहा है। इसके साथ प्रत्यर्थी/परिवादी के चालक ने वाहन की सुरक्षा हेतु आवश्यक उपाय नहीं किया है। चाभी वाहन में छोड़कर वह गया है जिससे घटना घटित हुई है। अपीलार्थी/बीमा कम्पनी बीमा पालिसी की शर्त का पालन न किये जाने के कारण बीमित धनराशि की अदायगी हेतु उत्तरदायी नहीं है। जिला फोरम का निर्णय त्रुटिपूर्ण है और निरस्त किये जाने योग्य है।
प्रत्यर्थी/परिवादी के विद्वान अधिवक्ता का तर्क है कि जिला फोरम द्वारा पारित निर्णय और आदेश साक्ष्य और विधि के अनुकूल है। प्रत्यर्थी ने समय से सूचना पुलिस और बीमा कम्पनी को दिया है और जो थोड़ा विलम्ब हुआ है उसका उचित कारण दर्शित किया है। अत: विलम्ब से सूचना के आधार पर प्रत्यर्थी/परिवादी का दावा कदापि अस्वीकार नहीं किया जा सकता है। प्रत्यर्थी के विद्वान अधिवक्ता का यह भी तर्क है कि प्रत्यर्थी/परिवादी द्वारा वाहन का वाणिज्यिक प्रयोग नहीं किया जा रहा था। उनका तर्क है कि अपीलार्थी/बीमा कम्पनी कदापि यह प्रमाणित नहीं कर सका है कि दुर्घटना के समय वाहन का वाणिज्यिक प्रयोग किया जा रहा था।
प्रत्यर्थी के विद्वान अधिवक्ता का तर्क है कि यह कहना उचित नहीं है कि चालक ने वाहन की सुरक्षा हेतु उचित उपाय नहीं किया है और चाभी वाहन में छोड़ा है।
मैंने उभयपक्ष के विद्वान अधिवक्तागण के तर्क पर विचार किया है।
मैंने अपीलार्थी द्वारा लिखित तर्क में उल्लिखित न्यायिक निर्णयों का अवलोकन किया है।
प्रत्यर्थी/परिवादी का प्रश्नगत वाहन अपीलार्थी/बीमा कम्पनी से बीमित होना और उसका चोरी होना निर्विवाद है। चोरी की घटना दि0 30.12.2014 की बतायी गई है जब कि घटना की रिपोर्ट दि0 03.01.2015 को थाना हाटा, जनपद कुशीनगर में प्रत्यर्थी/परिवादी द्वारा दर्ज करायी गई है, परन्तु प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज कराने में विलम्ब का कारण प्रत्यर्थी/परिवादी ने परिवाद पत्र की धारा 5 में यह बताया है कि उसे वाहन चोरी होने की सूचना फोन से उसके चालक ने दी तब वह लखनऊ से कुशीनगर आया और लोगों से पता किया काफी तलाश करने पर वाहन नहीं मिला तब उसने दि0 03.01.2015 को सूचना पुलिस को दी है। इस प्रकार परिवाद पत्र के कथन से स्पष्ट है कि कि चोरी की घटना के तीसरे दिन जो प्रथम सूचना रिपोर्ट थाने में प्रत्यर्थी/परिवादी ने दर्ज कराया है उसका उचित और युक्त संगत कारण है। प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज कराने में जो विलम्ब हुआ है वह प्रत्यर्थी/परिवादी के उपरोक्त कथन एवं सामान्य मानव व्यवहार को देखते हुए उचित प्रतीत होता है। जिस प्रकार से वाहन की चोरी की घटना घटित होना परिवाद पत्र में अभिकथित है उसे देखते हुए वाहन की पहले तलाश करना और सम्भावित लोगों से पता लगाया जाना स्वाभाविक है। अत: पुलिस को विलम्ब से सूचना दिये जाने के आधार पर प्रत्यर्थी/परिवादी का दावा बीमा कम्पनी द्वारा अस्वीकार किया जाना उचित नहीं है। परिवाद पत्र की धारा 6 के अनुसार प्रत्यर्थी/परिवादी ने वाहन चोरी की सूचना तत्काल अपीलार्थी/विपक्षी के प्रबंधक गोरखपुर को एम0एन0 दीक्षित के माध्यम से दि0 31.12.2014 को दिया है और लिखित सूचना दि0 03.01.2015 को उसकी गोरखपुर शाखा में दिया है।
अपीलार्थी/बीमा कम्पनी ने अपने लिखित कथन में परिवाद पत्र की धारा 6 से स्पष्ट रूप से इनकार नहीं किया है, परन्तु अपने लिखित कथन की धारा 3 में कहा है कि चोरी की सूचना सात दिन बाद उसे दी गई है। अपीलार्थी/बीमा कम्पनी ने सात दिन बाद विलम्ब से प्रत्यर्थी/परिवादी द्वारा वाहन चोरी की सूचना दिया जाना प्रमाणित नहीं किया है। इसके साथ ही उल्लेखनीय है कि परिवाद पत्र में कथित उपरोक्त तथ्यों से यह स्पष्ट है कि प्रत्यर्थी/परिवादी को वाहन चोरी की सूचना जब प्राप्त हुई तब वह लखनऊ में था और लखनऊ से आकर वाहन की तलाश किया तथा पता किया और जब पता नहीं चला तो थाने में रिपोर्ट दर्ज करायी और बीमा कम्पनी को सूचना दिया। ऐसी स्थिति में बीमा कम्पनी को सूचना देने में यदि कोई विलम्ब हुआ है तो उसका उचित और युक्त संगत कारण दिखायी देता है और निर्विवाद रूप से बीमा कम्पनी ने सूचना प्राप्त होने पर अपना अन्वेषक नियुक्त किया है जिसने जांच के बाद प्रत्यर्थी/परिवादी के वाहन की चोरी की घटना को सही पाया है और यह रिपोर्ट दिया है कि प्रत्यर्थी/परिवादी के पास वाहन की एक चाभी है। दूसरी चाभी वाहन में थी जो चोरी हो गई है। ऐसी स्थिति में ड्राइवर ने लापरवाही बरती है। अत: बीमा कम्पनी के अन्वेषक की आख्या से भी प्रत्यर्थी/परिवादी के कार की चोरी की घटना प्रमाणित है। पुलिस विवेचना में भी चोरी की यह घटना बनावटी या फर्जी नहीं पायी गई है। अत: उपरोक्त सम्पूर्ण तथ्यों और साक्ष्यों पर विचार करने के उपरांत मैं इस मत का हूँ कि मा0 सर्वोच्च न्यायालय द्वारा सिविल अपील नं0- 15611/2017 ओम प्रकाश बनाम रिलायंस जनरल इंश्योरेंस व अन्य के वाद में दिये गये निर्णय दि0 04.10.2017 में प्रतिपादित सिद्धांत के आधार पर प्रत्यर्थी/परिवादी का दावा विलम्ब से सूचना पुलिस व बीमा कम्पनी को दिये जाने के आधार पर अस्वीकार किया जाना उचित नहीं है। मा0 सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय का संगत अंश नीचे उद्धरित किया जा रहा है:-
“It is common knowledge that a person who lost his vehicle may not straightaway go to the Insurance Company to claim compensation. At first, he will make efforts to trace the vehicle. It is true that the owner has to intimate the insurer immediately after the theft of the vehicle. However, this condition should not bar settlement of genuine claims particularly when the delay in intimation or submission of documents is due to unavoidable circumstances. The decision of the insurer to reject the claim has to be based on valid grounds. Rejection of the claims on purely technical grounds in a mechanical manner will result in loss of confidence of policy-holders in the insurance industry. If the reason for delay in making a claim is satisfactorily explained, such a claim cannot be rejected on the ground of delay. It is also necessary to state here that it would not be fair and reasonable to reject genuine claims which had already been verified and found to be correct by the Investigator. The condition regarding the delay shall not be a shelter to repudiate the insurance claims which have been otherwise proved to be genuine. It needs no emphasis that the Consumer Protection Act aims at providing better protection of the interest of consumers. It is a beneficial legislation that deserves liberal construction. This laudable object should not be forgotten while considering the claims made under the Act.”
परिवाद पत्र व प्रत्यर्थी/परिवादी के शपथ पत्र से यह स्पष्ट होता है कि उसने वाहन किराये पर नहीं भेजा था, बल्कि वोडा फोन कम्पनी का इंजीनियर समझ कर उसकी व्यक्तिगत सेवा के लिए भेजा था। अपीलार्थी/बीमा कम्पनी की ओर से ऐसा कोई साक्ष्य नहीं दिखाया जा सका है जिसके आधार पर यह निष्कर्ष अंकित किया जाए कि प्रश्नगत दुर्घटना के समय वाहन किराये पर वाणिज्यिक उद्देश्य से प्रयोग किया जा रहा था। अत: वाहन के वाणिज्यिक प्रयोग के आधार पर भी प्रत्यर्थी/परिवादी का दावा निरस्त किया जाना उचित नहीं दिखता है।
अन्वेषक की आख्या से स्पष्ट है कि वाहन की एक चाभी प्रत्यर्थी/परिवादी ने प्रस्तुत किया है एक चाभी वाहन के साथ चोरी होना पाया गया है। परिवाद पत्र के कथन से भी स्पष्ट है कि वाहन चोरी करने वाले व्यक्ति ने अपने को वोडा फोन कम्पनी का इंजीनियर बताकर प्रत्यर्थी/परिवादी का वाहन प्राप्त किया है और उसे इधर-उधर चलाने के बाद घटना के समय वाहन चालक को सामान लाने के लिए भेजा है। उसके बाद वह स्वयं गाड़ी लेकर चला गया है। परिवाद पत्र के इस कथन को देखते हुए बीमा कम्पनी के अन्वेषक द्वारा निकाला गया यह निष्कर्ष आधार युक्त और युक्ति संगत प्रतीत होता है कि वाहन की चाभी चालक वाहन में छोड़कर सामान लाने गया था तब वह व्यक्ति वाहन लेकर गायब हुआ है। ऐसी स्थिति में यह मानने हेतु उचित और युक्त संगत आधार है कि वाहन चालक ने वाहन की सुरक्षा हेतु सावधानी बरतने में चूक की है और वाहन की सुरक्षा हेतु उचित उपाय नहीं किया है जो बीमा पालिसी की शर्त का उल्लंघन है और ड्राइवर की यह चूक वाहन चोरी की घटना में सहायक हुई है। परन्तु ड्राइवर से यह चूक जिस परिस्थिति में हुई है उसे देखते हुए ड्राइवर की इस चूक के कारण प्रत्यर्थी/परिवादी को वाहन की सम्पूर्ण बीमित धनराशि से वंचित किया जाना उचित और न्याय संगत नहीं प्रतीत होता है। सम्पूर्ण तथ्यों एवं परिस्थितियों पर विचार करते हुए प्रत्यर्थी/परिवादी का दावा नान स्टैण्डर्ड बेसिस पर 25 प्रतिशत की कटौती कर स्वीकार किया जाना उचित है। अत: जिला फोरम ने जो प्रत्यर्थी/परिवादी को सम्पूर्ण बीमित धनराशि अदा करने हेतु अपीलार्थी/बीमा कम्पनी को आदेशित किया है उसे तदनुसार संशोधित किया जाना उचित है।
जिला फोरम ने प्रत्यर्थी/परिवादी को जो 3,000/-रू0 क्षतिपूर्ति शारीरिक व मानसिक कष्ट हेतु प्रदान किया है वह अनुचित प्रतीत होता है। अत: इसे अपास्त किया जाना उचित है। जिला फोरम ने जो 6 प्रतिशत वार्षिक की दर से परिवाद प्रस्तुत करने की तिथि से अदायगी की तिथि तक ब्याज दिया है वह उचित है। इसमें किसी हस्तक्षेप की आवश्यकता नहीं है।
उपरोक्त निष्कर्ष के आधार पर अपील आंशिक रूप से स्वीकार की जाती है और जिला फोरम द्वारा पारित आक्षेपित निर्णय और आदेश संशोधित करते हुए अपीलार्थी/विपक्षी को आदेशित किया जाता है कि वह प्रत्यर्थी/परिवादी को वाहन की बीमित धनराशि 6,59,325/-रू0 का 75 प्रतिशत 4,94,493/-रू0 75/-पैसा परिवाद प्रस्तुत करने की तिथि से अदायगी की तिथि तक 06 प्रतिशत वार्षिक ब्याज की दर से ब्याज सहित अदा करे।
अपील में उभयपक्ष अपना-अपना वाद व्यय स्वयं वहन करेंगे।
धारा 15 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अंतर्गत अपील में जमा धनराशि अर्जित ब्याज सहित जिला फोरम को इस निर्णय के अनुसार निस्तारण हेतु प्रेषित की जायेगी।
(न्यायमूर्ति अख्तर हुसैन खान)
अध्यक्ष
शेर सिंह आशु0,
कोर्ट नं0-1