Uttar Pradesh

StateCommission

A/2681/2015

Krishan Bihari - Complainant(s)

Versus

Gurudev Tractor - Opp.Party(s)

B. K. Upadhayay

05 Oct 2017

ORDER

STATE CONSUMER DISPUTES REDRESSAL COMMISSION, UP
C-1 Vikrant Khand 1 (Near Shaheed Path), Gomti Nagar Lucknow-226010
 
First Appeal No. A/2681/2015
(Arisen out of Order Dated 10/08/2015 in Case No. C/04/2012 of District Banda)
 
1. Krishan Bihari
Banda
...........Appellant(s)
Versus
1. Gurudev Tractor
Banda
...........Respondent(s)
 
BEFORE: 
 HON'BLE MR. JUSTICE AKHTAR HUSAIN KHAN PRESIDENT
 
For the Appellant:
For the Respondent:
Dated : 05 Oct 2017
Final Order / Judgement

राज्‍य उपभोक्‍ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखन

अपील संख्‍या-2681/2015

(मौखिक)

(जिला उपभोक्‍ता फोरम, बॉंदा द्वारा परिवाद संख्‍या 04/2012 में पारित आदेश दिनांक 10.08.2015 के विरूद्ध)

कृष्‍ण बिहारी पुत्र बद्री प्रसाद, निवासी ग्राम-जसपुरा, थाना-जसपुरा, तहसील-बॉंदा, जिला-बॉंदा।           ...................अपीलार्थी/परिवादी

बनाम

1. गुरूदेव ट्रैक्‍टर एजेन्‍सीज (सोनालिका) सिविल लाइन, बॉंदा,  द्वारा                  

   प्रोपराईटर।

2. यूनीवर्सल सोम्‍यो जनरल इंन्‍श्‍योरेन्‍स कम्‍पनी लिमिटेड,  कार्यालय-               

   201-208 स्रेथस्‍टल प्‍लाजा ऑफ साइड इन्‍फीन्‍ट्री माल, लिंक रोड,          

   अन्‍धेरी (पश्चिम) मुम्‍बई-400058 द्वारा प्रबन्‍धक।                                   

                             .................प्रत्‍यर्थीगण/विपक्षीगण

समक्ष:-

माननीय न्‍यायमूर्ति श्री अख्‍तर हुसैन खान, अध्‍यक्ष।

अपीलार्थी की ओर से उपस्थित : श्री बी0के0 उपाध्‍याय,                  

                           विद्वान अधिवक्‍ता।

प्रत्‍यर्थी सं01 की ओर से उपस्थित : श्री अदील अहमद,

                               विद्वान अधिवक्‍ता।

प्रत्‍यर्थी सं02 की ओर से उपस्थित : कोई नहीं।

दिनांक: 05-10-2017         

मा0 न्‍यायमूर्ति श्री अख्‍तर हुसैन खान, अध्‍यक्ष द्वारा उदघोषित

निर्णय

परिवाद संख्‍या-04/2012 कृष्‍ण बिहारी बनाम गुरूदेव ट्रैक्‍टर एजेन्‍सीज व एक अन्‍य में जिला उपभोक्‍ता विवाद प्रतितोष फोरम,  बॉंदा द्वारा पारित निर्णय और आदेश  दिनांक  10.08.2015 के विरूद्ध यह अपील परिवाद के परिवादी कृष्‍ण बिहारी की ओर से धारा-15 उपभोक्‍ता संरक्षण अधिनियम 1986 के अन्‍तर्गत विलम्‍ब माफी प्रार्थना पत्र के साथ आयोग के समक्ष प्रस्‍तुत की गयी है।

 

 

 

-2-

अपीलार्थी की ओर से विद्वान अधिवक्‍ता श्री बी0के0 उपाध्‍याय और प्रत्‍यर्थी संख्‍या-1 की ओर से विद्वान अधिवक्‍ता श्री अदील अहमद उपस्थित आए हैं। प्रत्‍यर्थी संख्‍या-2 की ओर से कोई उपस्थित नहीं हुआ है।

मैंने अपीलार्थी और प्रत्‍यर्थी संख्‍या-1 के विद्वान अधिवक्‍तागण को विलम्‍ब माफी प्रार्थना पत्र पर सुना है और पत्रावली का अवलोकन किया है।

      आक्षेपित निर्णय और आदेश दिनांक 10.08.2015 की प्रति दिनांक 12.08.2015 को अपीलार्थी को जिला फोरम ने उपलब्‍ध करायी है, जबकि अपील दिनांक 30.12.2015 को अपील हेतु निर्धारित मियाद पूरी होने के 110 दिन बाद प्रस्‍तुत की गयी है। विलम्‍ब माफी प्रार्थना पत्र में अपीलार्थी ने अपील प्रस्‍तुत करने में हुए विलम्‍ब का कारण यह बताया है कि आक्षेपित निर्णय और             आदेश दिनांक 10.08.2015 की नि:शुल्‍क सत्‍य प्रतिलिपि             दिनांक 12.08.2015 को उसके विद्वान अधिवक्‍ता को प्राप्‍त हुई, परन्‍तु उन्‍होंने उसे यह प्रति प्राप्‍त नहीं कराया। उन्‍होंने अतिरिक्‍त प्रति दिनांक 29.10.2015 को प्राप्‍त कर उसे दिनांक 15.12.2015 को प्राप्‍त कराया। तब उसे आक्षेपित निर्णय और आदेश की जानकारी हुई। तब उसने अपील तैयार कराकर प्रस्‍तुत किया है।

     अपीलार्थी ने विलम्‍ब माफी प्रार्थना पत्र के समर्थन में अस्‍पष्‍ट और भ्रामक शपथ पत्र प्रस्‍तुत किया है। अपने शपथ पत्र में उसने स्‍पष्‍ट रूप से यह कथन नहीं किया है कि उसके विद्वान  अधिवक्‍ता

 

-3-

ने आक्षेपित निर्णय और आदेश की जो प्रति दिनांक 12.08.2015 को प्राप्‍त की थी उसे उपलब्‍ध नहीं कराया है और उन्‍होंने जो                 दिनांक 29.10.2015 को अतिरिक्‍त प्रति प्राप्‍त की है वह प्रति उसे दिनांक 15.12.2015 को दी है।

     प्रत्‍यर्थी संख्‍या-1 की ओर से विलम्‍ब माफी प्रार्थना पत्र के विरूद्ध आपत्ति‍ प्रस्‍तुत की गयी है और यह कथन किया गया है            कि अपीलार्थी का यह कथन गलत है कि उसे अतिरिक्‍त प्रति               दिनांक 15.12.2015 को प्राप्‍त हुई है।

     मैंने उभय पक्ष के तर्क पर विचार किया है।

     विलम्‍ब माफी प्रार्थना पत्र के कथन से ही यह स्‍पष्‍ट है कि अपीलार्थी/परिवादी के विद्वान अधिवक्‍ता को आक्षेपित निर्णय और आदेश दिनांक 10.08.2015 की प्रमाणित प्रतिलिपि जिला फोरम ने दिनांक 12.08.2015 को दी है और उसके बाद दिनांक 29.10.2015 को उसके विद्वान अधिवक्‍ता ने अतिरिक्‍त प्रति प्राप्‍त की है। फिर भी अपील दिनांक 30.12.2015 को प्रस्‍तुत की गयी है अर्थात् द्वितीय प्रति दिनांक 29.10.2015 को प्राप्‍त करने के दो महीने बाद प्रस्‍तुत की गयी है। अतिरिक्‍त प्रति दिनांक 29.10.2015 को प्राप्‍त करने के बाद अपीलार्थी/परिवादी को दिनांक 15.12.2015 को उसके विद्वान अधिवक्‍ता द्वारा वह प्रति उपलब्‍ध कराए जाने की बात बिल्‍कुल अविश्‍वसनीय और बनावटी प्रतीत होती है। अत: सम्‍पूर्ण तथ्‍यों और परिस्थितियों पर विचार करने के उपरान्‍त मैं इस मत का हूँ‍ कि अपील प्रस्‍तुत करने में हुए विलम्‍ब की माफी हेतु उचित और  पर्याप्‍त

 

-4-

आधार अपीलार्थी/परिवादी दर्शित करने में असफल रहा है।

     जिला फोरम ने अपने आक्षेपित निर्णय और आदेश में उल्‍लेख किया है कि परिवाद के विपक्षी संख्‍या-1 की ओर से यह तर्क किया गया है कि सीरजध्‍वज तिवारी और शिवदेवी ने मार्जिन मनी की धनराशि उपलब्‍ध न होने पर 1,25,000/-रू0 विपक्षी संख्‍या-1 से बिना ब्‍याज ऋण लिया, लेकिन वापस नहीं किया। इसके सम्‍बन्‍ध में विपक्षी संख्‍या-1 ने नोटिस दिया और वाद संख्‍या 283/12 नीरज कुमार गुप्‍ता बनाम सीरजध्‍वज तिवारी आदि सिविल जज सीनियर डिवीजन बॉंदा के न्‍यायालय में प्रस्‍तुत किया, जिसकी नोटिस परिवादी को प्राप्‍त हो चुकी है। अत: इस धनराशि को वापस करने से बचने के लिए उसने वर्तमान परिवाद जिला फोरम के समक्ष प्रस्‍तुत किया है।

इस सन्‍दर्भ में अपीलार्थी/परिवादी के विद्वान अधिवक्‍ता ने                माननीय राष्‍ट्रीय आयोग द्वारा निर्मल कुमार दास व अन्‍य बनाम तृष्‍णा राना व अन्‍य के वाद में दिया गया निर्णय, जो I (2016) CPJ 331 (NC) में प्रकाशित है, प्रस्‍तुत किया है, जिसमें              माननीय राष्‍ट्रीय आयोग ने यह मत व्‍यक्‍त किया है कि दीवानी वाद के साथ-साथ उपभोक्‍ता संरक्षण अधिनियम के अन्‍तर्गत कार्यवाही चल सकती है, परन्‍तु इस निर्णय का कोई लाभ अपीलार्थी/परिवादी को इस अपील में नहीं दिया जा सकता है क्‍योंकि अपीलार्थी/परिवादी ने वर्तमान अपील, अपील हेतु निर्धारित मियाद के बाद बहुत विलम्‍ब से प्रस्‍तुत की है और विलम्ब का जो कारण दर्शित किया है वह आधार युक्‍त और विश्‍वसनीय नहीं है। अत: अपील मियाद बाधा  के  आधार

 

-5-

पर ग्रहण नहीं की जा सकती है और मियाद माफ करने हेतु उचित आधार नहीं है।

     उपरोक्‍त निष्‍कर्ष के आधार पर अपीलार्थी/परिवादी द्वारा प्रस्‍तुत विलम्‍ब माफी प्रार्थना पत्र निरस्‍त किया जाता है और अपील मियाद बाधा के आधार पर अस्‍वीकार की जाती है।

     उभय पक्ष अपील में अपना-अपना वाद व्‍यय स्‍वयं वहन करेंगे।

 

                    (न्‍यायमूर्ति अख्‍तर हुसैन खान)           

                         अध्‍यक्ष            

जितेन्‍द्र आशु0

कोर्ट नं0-1     

 
 
[HON'BLE MR. JUSTICE AKHTAR HUSAIN KHAN]
PRESIDENT

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