(सुरक्षित)
राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ
परिवाद सं0- 116/2010
Khestriya Shree Gandhi ashram, Akbarpur (Ambedkar nagar), through its Mantri Sri Vidya dhar dubey.
…….Complainant
Versus
1. General Manager, Bank of Baroda Hazratganj, Lucknow.
2. Bank of baroda, Lanka, Varansi, through its Regional Manager.
3. The Senior Branch Manager, Bank of baroda, Akbarpur. Ambedkar Nagar.
4. Director, Khadi and Village Industries commission, Sanskrit Vishwa Vidyalya marg, Teliya bagh, Varansi.
5. Khadi and Village Industries Commission, Faizabad road, Indira nagar, Lucknow. Through State Director.
……Opposite Parties.
समक्ष:-
माननीय श्री सुशील कुमार, सदस्य।
माननीय श्री विकास सक्सेना, सदस्य।
परिवादी की ओर से : श्री सर्वेश कुमार शर्मा,
विद्वान अधिवक्ता।
विपक्षीगण सं0- 1, 2 व 3 की ओर से : श्री प्रशांत कुमार श्रीवास्तव,
विद्वान अधिवक्ता।
विपक्षीगण सं0- 4 व 5 की ओर से : श्री अशोक कुमार सिंह,
विद्वान अधिवक्ता
दिनांक:- 23.02.2021
माननीय श्री सुशील कुमार, सदस्य द्वारा उद्घोषित
निर्णय
1. परिवादी द्वारा यह परिवाद धारा 17 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अंतर्गत विपक्षीगण के विरुद्ध प्रस्तुत किया गया है, जिसमें विपक्षी सं0- 2 बैंक आफ बड़ौदा के विरुद्ध इस आशय का अनुतोष प्राप्त करने के लिए प्रस्तुत किया गया है कि विपक्षी सं0- 2, परिवादी के खाते में 65,21,895.32/-रू0 अतिरिक्त ब्याज वसूली के रूप में वापस जमा कराये। विपक्षी सं0- 3 के विरुद्ध अंकन 10,00,000/-रू0 मानसिक प्रताड़ना के लिए दिलाये जाने का अनुतोष मांगा गया है तथा अंकन 10,00,000/-रू0 आय में हानि की क्षतिपूर्ति के लिए और अंकन 50,000/-रू0 वाद खर्च का अनुतोष मांगा गया है।
2. परिवाद पत्र के अनुसार परिवादी KVIC से सम्बद्ध खादी इकाई है। सामाजिक एवं बुनकर उत्थान का उद्देश्य प्राप्त करने के लिए खादी के क्षेत्र में उद्योगरत संस्थानों को वित्तीय योजना बैंक आफ बड़ौदा के माध्यम से लागू की गई ब्याज छूट KVIC द्वारा सीधे बैंक आफ बड़ौदा अकबरपुर ब्रांच में जमा करा दी गई तथा लिंक ब्रांच बाम्बे निर्धारित कर दी गई। KVIC द्वारा जारी परिपत्र दि0 26/30-04-1996 के अनुसार परिवादी को केवल 04 प्रतिशत ब्याज अदा करना था और ब्याज KVIC को बैंक में लिंक ब्रांच में सीधे जमा करना था। इस परिपत्र में यह भी अंकित था कि बैंक द्वारा चक्रवृद्धि ब्याज वसूला जायेगा, क्योंकि अग्रिम रूप से KVIC द्वारा लिंक ब्रांच बाम्बे में धन उपलब्ध करा दिया गया है। लिंक ब्रांच से प्राप्त कर ब्याज छूट की धनराशि तुरंत ऋणी के खाते में जमा की जानी थी।
3. भारतीय रिजर्व बैंक ने 29 मार्च 1988 के परिपत्र द्वारा KVIC से सम्बद्ध संस्थानों के लिए 12.5 प्रतिशत ब्याज वसूलने का आदेश दिया गया है। ये दोनों परिपत्र क्रम से एनेक्जर सं0- 1 व 2 हैं। परिवादी के नकद क्रेडिट खाते हैं। खाता सं0- 5285094 की सीमा अंकन 3,94,00,000/-रू0 है और दूसरे खाता सं0- 5285095 की सीमा 6,00,000/-रू0 है। ये दोनों खाते अकबरपुर अम्बेडकर नगर बैंक आफ बड़ौदा शाखा में मौजूद हैं। उपरोक्त वर्णित खाता संख्या की गणना चार्टेड एकाउंटेड द्वारा की गई और यह पाया कि बैंक द्वारा भारतीय रिजर्व बैंक के निर्देशों के विपरीत 12.5 प्रतिशत की दर से, अधिक दर से ब्याज वसूला गया है। ब्याज छूट का धन Suspension Account में दर्ज नहीं किया गया, इसलिए परिवादी को अधिक ब्याज अदा करना पड़ा और तदनुसार लाभ में कमी आयी। परिवाद पत्र में वर्ष 1994-1995 लगायत वर्ष 2007-08 के अतिरिक्त ब्याज वसूली का विवरण प्रस्तुत किया गया है जिसका कुल मूल्य 65,21,895.32/-रू0 दर्शाया गया है।
4. चार्टेड एकाउंटेड द्वारा किए गए आंकलन के अनुसार परिवादी द्वारा बैंक को पत्र लिखा गया जो एनेक्जर सं0- 4 है जिसका कोई उत्तर नहीं दिया गया। परिवादी द्वारा पुन: पत्र लिखा गया। इस पत्र का उत्तर दि0 11.08.2009 को दिया गया। परिवादी द्वारा पुन: दि0 16.06.2009 को पत्र लिखा गया। बैंक द्वारा दि0 24.06.2009 को आवश्यक कार्यवाही करने के लिए पत्र लिखा गया जो एनेक्जर सं0- 07 है, परन्तु कोई कार्यवाही नहीं की गई, इसलिए परिवादी द्वारा लीगल नोटिस दिनांकित 16.02.2010 एवं दि0 08.07.2010 प्रेषित किए गए जो एनेक्जर सं0- 08 एवं 09 है। तदनुसार उपरोक्त राशियों की वसूली के लिए परिवाद प्रस्तुत किया गया है।
5. KVIC द्वारा वाद पत्र में वर्णित तथ्यों को स्वीकार किया गया और यह कथन किया गया है कि बैंक के पास ब्याज की छूट की धनराशि अग्रिम रूप से जमा कर दी गई है और परिवादी इस छूट राशि को समायोजित कराने के लिए अधिकृत है।
6. बैंक की ओर से प्रस्तुत लिखित कथन में उल्लेख किया गया है कि परिवादी वर्ष 1994 से अनियमितता का उल्लेख कर रहा है, परन्तु लेखा विलेख प्रस्तुत नहीं किया गया है और लगभग 16 वर्ष पश्चात दावा प्रस्तुत किया गया है, इसलिए समयावधि से बाधित है। वर्ष 1994 से 2010 के बीच परिवादी ने हमेशा अपने देनदारियों को बगैर किसी आपत्ति के स्वीकार किया है। एनेक्जर सं0- 2 के सम्बन्ध में कोई उत्तर नहीं दिया गया। यद्यपि ऋण लेना स्वीकार किया गया। इस ऋण पर ब्याज दर 15.5 प्रतिशत एवं 17 प्रतिशत होने का उल्लेख किया गया। यह भी उल्लेख किया गया है कि भारतीय रिजर्व बैंक के दिशा-निर्देशों के अनुसार ब्याज वसूल किया गया है। इस तथ्य को स्वीकार किया गया है कि KVIC द्वारा 4 प्रतिशत से ऊपर के ब्याज पर छूट सम्बन्धी अनुबंध किया गया था, परन्तु छूट प्रदान किया जाना कुछ औपचारिकताओं की पूर्ति के पश्चात ही सम्भव था, परन्तु परिवादी द्वारा इन औपचारिकताओं की पूर्ति नहीं की गई। छूट प्राप्त करना परिवादी तथा KVIC के मध्य का विवाद है। बैंक का कोई लेना देना नहीं है। KVIC से प्राप्त होने के पश्चात परिवादी के खाते में छूट की धनराशि दर्ज कर दी गई। स्वयं परिवादी ने छूट पात्रता प्रमाण पत्र प्रस्तुत नहीं किया। परिवादी लॉक धन को हड़पना चाहता है। उसने बैंक के साथ भी धोखा किया है, क्योंकि बैंक के पक्ष में साम्या बंधक निष्पादित नहीं किया है। बैंक के पास केवल 12 अवधि का अभिलेख रहता है। इस अवधि के पश्चात का विवरण बैंक के पास मौजूद नहीं है। स्वयं परिवादी द्वारा दि0 23.09.1997, 10.04.1997, 10.12.2001, 22.02.2004, 06.03.2006, 01.09.2008, 14.07.2011 एवं 14.09.2013 को अपना ऋण दायित्व स्वीकार किया गया है। परिवादी ने असत्य कहानी दर्शित करते हुए परिवाद पत्र प्रस्तुत किया वह उपभोक्ता नहीं है। बैंकिंग लोकपाल के समक्ष शिकायत की जानी चाहिए। परिवाद अत्यधिक देरी से प्रस्तुत किया गया है जो समयावधि से बाधित है।
7. परिवादी के विद्वान अधिवक्ता श्री सर्वेश कुमार शर्मा और विपक्षीगण सं0- 1, 2 व 3 के विद्वान अधिवक्ता श्री प्रशांत कुमार श्रीवास्तव तथा विपक्षीगण सं0- 4 व 5 के विद्वान अधिवक्ता श्री अशोक कुमार सिंह को सुना गया एवं पक्षकारों द्वारा प्रस्तुत दस्तावेजों का अवलोकन किया गया जिनका उल्लेख आगे चलकर किया जायेगा।
8. सर्वप्रथम इस बिन्दु पर विचार किया जाता है कि क्या परिवादी, विपक्षीगण सं0- 1 लगायत 3 के सम्बन्ध में उपभोक्ता है? इस प्रश्न का उत्तर सकारात्मक है, क्योंकि परिवादी द्वारा ऋण प्राप्त किया गया है और ऋण के बदले ब्याज अदा करता है। विपक्षीगण सं0- 1 लगायत 3 के विद्वान अधिवक्ता द्वारा यह बहस की गई है कि प्रकरण बैंकिंग लोकपाल के समक्ष प्रस्तुत किया जाना चाहिए था। ऐसा यह है कि बैंक द्वारा कारित त्रुटि की शिकायत बैंकिंग लोकपाल को भी की जा सकती है, परन्तु इस अवसर की उपलब्धता का तात्पर्य यह नहीं है कि उपभोक्ता आयोग का क्षेत्राधिकार समाप्त हो गया है। अत: निष्कर्ष यह दिया जाता है कि परिवादी द्वारा प्रस्तुत किया गया परिवाद उपभोक्ता के रूप में संधारणीय है। अब इस बिन्दु पर विचार किया जाता है कि क्या यह परिवाद समयावधि से बाधित है? विपक्षीगण सं0- 1 लगायत 3 के विद्वान अधिवक्ता का यह तर्क है कि परिवादी द्वारा वर्ष 1994 से ब्याज राशि वापस लौटाने की मांग की गई है, जब कि परिवाद वर्ष 2010 में प्रस्तुत किया गया है।
9. परिवाद पत्र के अवलोकन से ज्ञात होता है कि परिवादी द्वारा चार्टेड एकाउंटेड से अपना खाता चेक कराया गया तब इस तथ्य की जानकारी हुई कि विपक्षीगण द्वारा ब्याज में छूट समायोजित नहीं की जा रही है और सम्पूर्ण ब्याज राशि परिवादी से वसूल की जा रही है। इस तथ्य के उजागर होने के पश्चात दि0 24.06.2008 को वरिष्ठ शाखा प्रबंधक बैंक आफ बड़ौदा अकबरपुर को पत्र लिखा गया। पुन: दि0 11.08.2009 और दि0 16.06.2009 को पत्र लिखा गया। बैंक द्वारा दि0 24.06.2009 को यह जवाब दिया गया कि समुचित कार्यवाही की जा रही है और इसके पश्चात दि0 16.02.2010 को विधिक नोटिस भेजा गया। अत: वाद का कारण उस समय उत्पन्न हुआ जब बैंक द्वारा दि0 24.06.2009 को आवश्यक कार्यवाही का भरोसा दिया गया, परन्तु आवश्यक कार्यवाही नहीं की गई और विधिक नोटिस दिनांकित 16.02.2010 के पश्चात भी कोई कार्यवाही नहीं की गई। अत: यह परिवाद समयावधि के अंतर्गत है।
10. अब इस बिन्दु पर विचार करना है कि क्या परिवादी ब्याज छूट की राशि वापस प्राप्त करने के लिए अधिकृत है? इस प्रश्न का उत्तर भी सकारात्मक है, क्योंकि विपक्षीगण सं0 4 एवं 5 द्वारा लिखित कथन में स्वीकार किया गया है कि वर्ष 1994 से दि0 31.03.2008 तक ब्याज छूट की राशि अंकन 65,21,895.32/-रू0 बैंक में जमा कराये गए और बैंक द्वारा इस राशि को अपने खाते में रखा गया, परन्तु परिवादी को छूट प्रदान नहीं की गई।
11. एनेक्जर सं0- 1 परिपत्र दिनांकित 26/30.04.1996 के तथ्यों की प्रमाणिकता से विपक्षीगण सं0- 1 लगायत 3 द्वारा इंकार नहीं किया गया है, उनका केवल यह कथन है कि यह परिपत्र पढ़ने में नहीं आ रहा है। अगर यह परिपत्र पढ़ने में नहीं आ रहा था तब इसकी दूसरी प्रति प्राप्त की जा सकती थी। ऐसा प्रतीत होता है कि इस परिपत्र में वर्णित शर्तों का अनुपालन न करने के कारण बैंक द्वारा यह भ्रामक अभिवाक लिया गया है कि एनेक्जर सं0- 1 पठनीय नहीं है।
12. एनेक्जर सं0- 2 के अवलोकन से ज्ञात होता है कि खादी ग्रामोद्योग के अंतर्गत स्थापित संस्था द्वारा यदि ऋण प्राप्त किया जाता है तब इस ऋण पर सभी बैंकों द्वारा केवल 12.5 प्रतिशत ब्याज वसूल किया जायेगा। एनेक्जर सं0- 2 से इस तथ्य की पुष्टि होती है, परन्तु बैंक द्वारा इस परिपत्र का भी उल्लंघन किया गया है।
13. विपक्षीगण सं0- 1 लगायत 3 के विद्वान अधिवक्ता का यह तर्क है कि परिवादी द्वारा विभिन्न अवसरों पर अपनी देनदारियों को स्वीकार किया गया है। विद्वान अधिवक्ता द्वारा इस पीठ का ध्यान स्वीकृत पत्र दिनांकित दि0 23.09.1997, 10.04.1997, 10.12.2001, 22.02.2004, 06.03.2006, 01.09.2008, 14.07.2011 एवं 14.09.2013 द्वारा आकर्षित किया गया है। ऐसा प्रतीत होता है कि विपक्षी द्वारा विभिन्न अवसरों पर परिवादी के विरुद्ध देय ऋण राशि तथा उस पर लगने वाले ब्याज की स्वीकृति की गई है, परन्तु इस स्वीकारोक्ति का तात्पर्य यह है कि अपने अधिकारों का बेवन नहीं है, चूँकि परिवादी को चार्टेड एकाउंटेड द्वारा खाता चेक करने के पश्चात ही यह ज्ञात हो सका है कि बैंक द्वारा ब्याज राशि में छूट समायोजित नहीं की जा रही है, इसलिए विपक्षीगण सं0- 1 लगायत 3 के विद्वान अधिवक्ता की ओर से जिन अभिस्वीकृत पत्रों का उल्लेख किया गया है उनका परिवादी के विरुद्ध विपरीत प्रभाव नहीं है।
14. विपक्षीगण सं0- 1 लगायत 3 के विद्वान अधिवक्ता द्वारा यह बहस की गई है कि परिवादी को पात्रता प्रमाण पत्र जमा करना था यह प्रमाण पत्र जमा करने के पश्चात ही ब्याज में छूट की धनराशि समायोजित की जानी थी और जब से परिवादी द्वारा पात्रता प्रमाण पत्र दिया जा रहा है तब से ब्याज में छूट की धनराशि समायोजित की जा रही है। विपक्षीगण सं0- 1 लगायत 3 ने इस तथ्य से इंकार नहीं किया है कि KVIC द्वारा अग्रिम रूप से ब्याज में छूट की राशि उनके पास जमा नहीं की गई है। चूँकि बैंक के पास धनराशि जमा है इस राशि पर कोई ब्याज बैंक द्वारा KVIC को अदा नहीं किया गया है, इसलिए इस राशि के समायोजन के प्रयास का प्रथम दायित्व बैंक पर था। यदि बैंक को किसी प्रकार के प्रमाण पत्र की आवश्यकता थी तब इस सम्बन्ध में परिवादी को पत्र लिखा जा सकता था और परिवादी से सम्बन्धित प्रमाण पत्र की मांग की जा सकती थी। चूँकि KVIC द्वारा पूर्व में धनराशि जमा करायी जा चुकी थी जिसका तात्पर्य यह है कि KVIC को परिवादी की पात्रता स्वीकार थी। अत: बैंक द्वारा यह अभिवाक नहीं लिया जा सकता कि परिवादी द्वारा पात्रता प्रमाण पत्र प्रस्तुत नहीं किया गया है।
15. उपरोक्त विवेचना का निष्कर्ष यह है कि परिवादी ब्याज छूट की राशि जिसका विवरण परिवाद पत्र में दिया गया है अंकन 65,21,895.32/-रू0 वापिस उसके खाता में जमा कराने या भविष्य में ऋण की अदायगी के रूप में समायोजित कराने के लिए अधिकृत है।
16. परिवादी द्वारा मानसिक क्षति के रूप में अंकन 10,00,000/-रू0 की मांग की गई है यह राशि अत्यधिक है, परन्तु उपरोक्त वर्णित तथ्यों से स्पष्ट होता है कि परिवादी द्वारा अनावश्यक रूप से लम्बी अवधि के लिए विपक्षी बैंक से पत्राचार करने के लिए बाध्य होना पड़ा और उसके बाद विधिक कार्यवाही करने के लिए बाध्य होना पड़ा। इसलिए परिवादी अंकन 1,00,000/-रू0 बतौर मानसिक प्रताड़ना के लिए प्राप्त करने हेतु अधिकृत है।
17. परिवादी द्वारा, अधिक ब्याज काटे जाने के कारण व्यापार में हुई हानि हेतु 10,00,000/-रू0 क्षतिपूर्ति की मांग की गई है। ऐसा यह है कि ब्याज छूट की राशि समायोजित न करने के कारण परिवादी को अधिक राशि का भुगतान करना पड़ा। इस कारण निश्चित रूप से व्यापार में हानि कारित हुई है, परन्तु चूँकि इस हानि का विस्तृत विवरण नहीं किया है। अत: परिवादी व्यापार में हुई हानि हेतु अंकन 1,00,000/-रू0 क्षति प्राप्त करने के लिए अधिकृत है।
18. वाद खर्च के रूप में 50,000/-रू0 की मांग की गई है, परन्तु चूँकि उपभोक्ता आयोग के समक्ष कोई शुल्क देय नहीं है, इसलिए अंकन 5,000/-रू0 वाद व्यय के रूप में अदा करने का आदेश देना उचित होगा।
(विकास सक्सेना) (सुशील कुमार)
सदस्य सदस्य
शेर सिंह आशु0,
कोर्ट नं0-2