राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।
सुरक्षित
अपील संख्या-2855/2013
टाटा मोटर्स फाइनेन्स लि0 24 होमी मोदी स्ट्रीट, मुम्बई
एण्ड फार्थ फ्लोर कंचनजंघा बिल्डिंग, बाराखंभा रोड न्यू दिल्ली।
...........अपीलार्थी@विपक्षी
बनाम
1.गीता पाण्डेय पत्नी श्री रमाकांत पाण्डेय ग्राम कोरूसंड
पोस्ट गोहरी परगना एण्ड तहसील सोरम जिला इलाहाबाद।
2.मोटर्स एण्ड जनरल सेल्स लि0 45, मयूर रोड, राजापुर,
इलाहाबाद। .....प्रत्यर्थीगण/परिवादिनी
अपील संख्या-2689/2013
मोटर्स एण्ड जनरल सेल्स लि0 इलाहाबाद सेन्टर द्वारा सेन्टर इंचार्ज
45, मयूर रोड, राजापुर, इलाहाबाद। अपीलार्थी/विपक्षी
बनाम
गीता पाण्डेय व अन्य। .......प्रत्यर्थीगण/परिवादिनी
समक्ष:-
1. मा0 श्री सुशील कुमार, सदस्य।
2. मा0 श्री विकास सक्सेना, सदस्य।
अपीलार्थी की ओर से उपस्थित : श्री राजेश चडढा, विद्वान अधिवक्ता।
प्रत्यर्थी की ओर से उपस्थित : श्री संजीव बहादुर श्रीवास्तव, विद्वान
अधिवक्ता।
दिनांक 23.11.2022
मा0 श्री सुशील कुमार, सदस्य द्वारा उदघोषित
निर्णय
1. परिवाद संख्या 157/2003 श्रीमती गीता पाण्डेय बनाम टाटा फाइनेन्स लि0 व दो अन्य में पारित निर्णय से प्रभावित होकर अपील संख्या 2689/13 मोटर एण्ड जनरल सेल्स लि0 द्वारा प्रस्तुत की गई है, जबकि अपील संख्या 2855/13 टाटा मोटर्स फाइनेन्स लि0 द्वारा प्रस्तुत की गई है।
2. परिवाद के तथ्य संक्षेप में इस प्रकार हैं कि परिवादिनी ने एक ट्रक संख्या यूपी 70पी-9977 के लिए रू. 540000/- का फाइनेन्स विपक्षी संख्या
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1 एवं 2 से दि. 20.10.99 को कराया था। ऋण की अदायगी 35 किश्तों में करने के लिए कहा गया था, परन्तु कागज मिलने पर ज्ञात हुआ कि केवल 23 किश्तों की ऋण की अदायगी की व्यवस्था की गई थी। परिवादिनी इस अनुबंध का पालन करने के लिए भी तैयार रही। शिकायत पर विपक्षी द्वारा आश्वासन दिया गया था कि किश्त की संख्या में भूल सुधार कर लिया जाएगा। परिवादिनी द्वारा 07 किश्तें जमा की गई, परन्तु विपक्षी ने 03.11.2000 को गाड़ी छीनकर अपने नियंत्रण में कर ली। बाद में एक मीटिंग के दौरान कहा गया कि परिवादिनी अंकन एक लाख रूपये के दो चेक शपथपत्र के साथ दि. 31.03.01 तक भुगतान करने के साथ अदा करें, तब गाड़ी मुक्त कर दी जाएगी। परिवादिनी द्वारा दि. 02.03.01 को पचास- पचास हजार रूपये के दो चेक विपक्षीगण को दिए, परन्तु विपक्षीगण द्वारा ट्रक नहीं छोड़ा गया। बाद में 15.03.2001 को रू. 50000/- नगद मांगे गए और चेक वापस करने के लिए कहा गया। परिवादिनी द्वारा क्रमश: 45 हजार रूपये, 22 हजार रूपये और दस हजार रूपये तीन बार जमा किए, फिर भी गाड़ी नहीं छोड़ी गई। रू. 50000/- का एक चेक वापस कर दिया गया। जब विपक्षी द्वारा गाड़ी बाजार में ले गए, उससे पूर्व दुर्घटनाग्रस्त हो चुकी थी, उसके टायर चोरी हो गए थे, इसकी शिकायत भी विपक्षीगण से की गई थी, परन्तु गाड़ी नहीं छोड़ी गई और न कोई कार्यवाही की गई। दि. 01.12.01 को विधिक नोटिस दिया गया, इसके बाद परिवाद प्रस्तुत किया गया।
3. विपक्षी संख्या 1 व 2 का कथन है कि परिवादी में वाहन का स्वामित्व निहित नहीं है। फाइनेन्सर सेवा प्रदाता नहीं है, अपितु व्यावसायिक कार्य करता है, इसलिए परिवादिनी भी उपभोक्ता नहीं है। दि. 20.10.99 के
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अनुबंध के अनुसार आर्बीटेशन को मामला सुपुर्द किए जाने के लिए इस आयोग को वाद की सुनवाई का क्षेत्राधिकार नहीं है। परिवादिनी द्वारा किश्तों की अदायगी में त्रुटि की गई, इसलिए 13.11.2000 को वाहन कब्जे में लिया गया, उस समय परिवादिनी पर रू. 275000/- केवल भुगतान चार्ज के अलावा बकाया थे। दि. 12.11.01 को वाहन बाजार कीमत के अनुसार रू. 350000/- में विक्रय कर दिया गया। इस राशि को समायोजित करने के बाद भी परिवादिनी पर अभी भी रू. 364651/- बकाया है, जिसकी वसूली का अधिकार विपक्षी संख्या 1 एवं 2 को प्राप्त है।
4. दोनों पक्षकारों के साक्ष्य पर विचार करने के उपरांत जिला उपभोक्ता मंच द्वारा यह निष्कर्ष दिया गया कि वाहन के विक्रय होने के पश्चात परिवादिनी को वाहन उपलब्ध कराना संभव नहीं है, पर परिवादिनी द्वारा जमा कुल राशि अंकन रू. 170000/- + रू. 77000/- रू. 253000/- 08 प्रतिशत वार्षिक ब्याज के साथ अदा करने का आदेश दिया गया है। यह दोनों धनराशियां स्वयं परिवादिनी द्वारा अपीलार्थीगणों को अदा की गई हैं, परन्तु परिवादिनी द्वारा किश्तों के रूप में जो राशि अदा की गई, उसे वापस लौटाने का आदेश इस आधार पर नहीं दिया गया कि परिवादिनी द्वारा वाहन का उपयोग किया गया है। मानसिक प्रताड़ना के मद में दो लाख रूपये के स्थान पर केवल दो हजार रूपये का प्रतिकर सुनिश्चित किया गया है।
5. इस निर्णय व आदेश के विरूद्ध अपीलें इन आधारों पर प्रस्तुत की गई हैं कि दोनों अपीलों का सार यह है कि जिला उपभोक्ता मंच ने विधि विरूद्ध निर्णय पारित किया है। अपीलार्थी पर ऋण की राशि बकाया थी, दंड ब्याज बकाया था। वाहन व्यापारिक उद्देश्य के लिए क्रय किया गया था।
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अनुबंध का करार करने के लिए परिवादिनी उत्तरदायी है। प्रथम किश्त रू. 30500/- की देनी थी, जो अवशेष किश्त रू. 29400/- प्रतिमाह थी, परन्तु कभी भी समय पर किश्त की राशि जमा नहीं की गई, इसलिए वाहन जब्त किया गया। दि. 28.02.01 की मीटिंग में आपसी सहमति के आधार पर विवाद को सुलझाने का प्रयास किया गया। यह मीटिंग में तय हुआ कि परिवादिया समस्त बकाया किश्तों का भुगताने करेगी तब परिवादिया को वाहन उपलब्ध करा दिया जाएगा। विपक्षी द्वारा रू. 73000/- 3 किश्तों करना स्वीकार किया गया और पोस्ट डेटेड चेक 15.03.01 के माध्यम से रू. 50000/- जमा करना स्वीकार किया गया। दि. 07.11.01 को वाहन का विक्रय कर दिया गया, क्योंकि ऋण धन की वसूली की जानी थी। चूंकि जिला उपभोक्ता मंच ने अपीलार्थीगण के विधि विरूद्ध निर्णय पारित किया है, जो अपास्त होने योग्य है।
6. दोनों पक्षकारों के विद्वान अधिवक्ता को सुना तथा पत्रावली का अवलोकन किया गया।
7. दोनों पक्षकारों द्वारा व्यक्त एवं स्वीकृत तथ्यों के आधार पर यह स्पष्ट है कि जो वाहन परिवादिया द्वारा ऋण प्राप्त करके क्रय किया गया उस वाहन को अपीलार्थीगण द्वारा ऋण राशि की वसूली के उद्देश्य से विक्रय कर दिया गया है, इसलिए जिला उपभोक्ता मंच ने विक्रीत वाहन को वापस लौटाने का आदेश पारित नहीं किया है। इस आदेश के इस भाग को कोई चुनौती भी नहीं दी गई है, अत: वाहन विक्रय किए जाने की व्यवस्था के बिन्दु पर इन अपीलों के निस्तारण के दौरान स्वतंत्र निष्कर्ष देने की आवश्यकता नहीं है। इस आयोग द्वारा केवल इस बिन्दु पर विचार करना है कि जिला उपभोक्ता मंच ने परिवादिया द्वारा जमा नगद राशि को वापस
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लौटाने का आदेश विधिसम्मत आधार पर दिया है ? इस प्रश्न का उत्तर सकारात्मक है, क्योंकि वाहन विक्रय करने से पूर्व परिवादिया को नोटिस दिए जाने का कोई सबूत पत्रावली पर मौजूद नहीं है। वाहन का सीमित अवधि के लिए संचालन किया गया, इसलिए वाहन को इतने कम दामों में विक्रय नहीं किया जा सकता था। यदि परिवादिया को नोटिस दी जाती तब वह अवशेष किश्तों की धनराशि जमा करने का प्रयास करती, परन्तु परिवादिया के प्रयास तक अपीलार्थीगण वाहन को विक्रय करते हुए विफल कर दिया गया। परिवादिया द्वारा जिस अवधि में वाहन का संचालन किया गया उस अवधि में किश्तों का भुगतान किया गया, अत: जिला उपभोक्ता मंच का यह निष्कर्ष विधिसम्मत है कि परिवादिया द्वारा जो राशि जमा कराई गई है उस राशि को परिवादिया को वापस लौटाया जाए, अत: जिला उपभोक्ता मंच द्वारा पारित निर्णय व आदेश में हस्तक्षेप करने का कोई आधार नहीं है।
आदेश
8. उपरोक्त दोनों अपीलें, अपील संख्या 2855/2013 व अपील संख्या 2689/13 खारिज की जाती हैं।
इस निर्णय की एक प्रति अपील संख्या 2689/2013 में भी रखी जाए।
अपीलार्थी द्वारा धारा-15 के अंतर्गत जमा धनराशि अर्जित ब्याज सहित जिला उपभोक्ता आयोग को निस्तारण हेतु प्रेषित की जाए।
आशुलिपिक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस आदेश को आयोग की वेबसाइड पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दें।
(विकास सक्सेना) (सुशील कुमार) सदस्य सदस्य
राकेश, पी0ए0-2 कोर्ट-3