Uttar Pradesh

StateCommission

A/2009/2197

Indian Oil Corporation - Complainant(s)

Versus

Ganna Vikas Parishad - Opp.Party(s)

Manish Jauhari

09 Jan 2015

ORDER

STATE CONSUMER DISPUTES REDRESSAL COMMISSION, UP
C-1 Vikrant Khand 1 (Near Shaheed Path), Gomti Nagar Lucknow-226010
 
First Appeal No. A/2009/2197
(Arisen out of Order Dated in Case No. of District )
 
1. Indian Oil Corporation
a
...........Appellant(s)
Versus
1. Ganna Vikas Parishad
a
...........Respondent(s)
 
BEFORE: 
 HON'BLE MR. Alok Kumar Bose PRESIDING MEMBER
 
For the Appellant:
For the Respondent:
ORDER

राज्‍य उपभोक्‍ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।

सुरक्षित

अपील संख्‍या-2197/2009

(जिला उपभोक्‍ता फोरम, मेरठ द्वारा परिवाद संख्‍या-534/2003 में पारित निर्णय दिनांक 03.12.2008 के विरूद्ध)

चीफ डिवीजनल मैनेजर, इंडियन आयल कारपोरेशन लि0(एम.डी) संजय

प्‍लेस आगरा।                                       .........अपीलार्थी@विपक्षी

बनाम्

1. गन्‍ना विकास परिषद द्वारा सेक्रेटरी मलियाना मेरठ।

2. एन.एस कमेटी द्वारा सेक्रेटरी मलियाना मेरठ।            ........प्रत्‍यर्थी/परिवादी

समक्ष:-

1. मा0 श्री राम चरन चौधरी, पीठासीन सदस्‍य।

2. मा0 श्री राज कमल गुप्‍ता, सदस्‍य।

अपीलार्थी की ओर से उपस्थित    : श्री मनीष जौहरी, विद्वान अधिवक्‍ता।

प्रत्‍यर्थी की ओर से उपस्थित     :श्री पवित्र नारायन, विद्वान अधिवक्‍ता।

दिनांक 12.08.2015

मा0 श्री राज कमल गुप्‍ता, सदस्‍य द्वारा उदघोषित

निर्णय

      प्रस्‍तुत अपील जिला उपभोक्‍ता विवाद प्रतितोष फोरम मेरठ के परिवाद संख्‍या 534/2003 में पारित निर्णय एवं आदेश दि. 03.12.2008 के विरूद्ध योजित की गई है। जिला मंच द्वारा निम्‍न आदेश पारित किया गया है:-

      '' परिवादीगण का परिवाद विरूद्ध विपक्षीगण एकपक्षीय रूप से स्‍वीकार किया जाता है। विपक्षीगण को आदेशित किया जाता है कि विपक्षीगण अंकन 174270.43 रूपये मय 9 प्रतिशत वार्षिक ब्‍याज धनराशि जमा करने के दिनांक से अंतिम भुगतान की तिथि तक परिवादीगण को नियमानुसार अदा करें। विपक्षीगण 2000 रूपये परिवाद व्‍यय भी परिवादीगण को अदा करें अन्‍यथा परिवादीगण विपक्षीगण के विरूद्ध धारा 25/27 सी.पी. एक्‍ट 1986 के तहत कार्यवाही करने के लिए स्‍वतंत्र होंगे।''

      संक्षेप में तथ्‍य इस प्रकार हैं कि परिवादीगण गन्‍ना विकास परिषद है, जो अपने निर्धारित क्षेत्र में कार्य करती है। परिवादीगणों के अनुसार उसका मुख्‍य कार्य क्षेत्र गन्‍ना का विकास करना तथा गन्‍ना को क्रय केन्‍द्रों तक अबाध रूप से पहुंचाने के लिए पक्‍की सड़कों का निर्माण करना है। परिवादी को सड़कों के निर्माण हेतु मैक्‍स फाल्‍ट की आवश्‍यकता होती है, जिसे परिवादी विपक्षी इंडियन ऑयल कारपोरेशन से क्रय करके सड़क के निर्माण का कार्य करते हैं। परिवादी ने सड़क निर्माण हेतु विपक्षीगणों से मैक्‍स फाल्‍ट क्रय किया और उसके

-2-

अनुसार उक्‍त संव्‍यवहार निरंतर परस्‍पर विद्यमान है। इस प्रकार वे विपक्षी के उपभोक्‍ता हैं। इस संव्‍यवहार के दौरान दि. 29.08.94 को बैंक ड्राफ्ट के माध्‍यम से परिवादी संख्‍या 2/प्रत्‍यर्थी संख्‍या 2 ने बैंक ड्राफ्ट के माध्‍यम से रू. 40000/- अदा किया,‍ जिसके बदले में न तो विपक्षीगण/अपीलार्थी ने मैक्‍स फाल्‍ट उपलब्‍ध करवाया और न ही वह धनराशि लौटायी। इसी प्रकार 1987 में रू. 160530/- अदा किया, जिसमें से रू. 159151.03 पैसे का मैक्‍स फाल्‍ट सप्‍लाई किया, परन्‍तु अवशेष धनराशि रू. 1378.97 पैसे वापस नहीं किया। दि. 12.10.89 को बैंक ड्राफ्ट से अं‍कन रू. 40000/- अदा किए गए, लेकिन विपक्षीगण ने कोई मैक्‍स फाल्‍ट की सप्‍लाई नहीं की। वर्ष 1988 में रू. 140000/- विपक्षीगण को दिया, परन्‍तु उसमें से केवल रू. 84318.44 पैसे का सामान ही प्रदत्‍त किया। इस प्रकार विपक्षीगण/अपीलार्थी ने अंकन रू. 137060.53 पैसे अवशेष धनराशि का भुगतान परिवादी को नहीं किया जो समय-समय पर मैक्‍स फाल्‍ट की सप्‍लाई हेतु विभिन्‍न तिथियों में अदा किया गया था। अग्रिम भुगतान अंकन रू. 658521.55 पैसे में से माल प्रदत्‍त करने के बाद शेष धनराशि रू. 37209.90 पैसे परिवादीगण को प्रदान नहीं किया। विपक्षीगण/अपीलार्थी ने सेवा में कमी की है, जिससे परिवादीगण को मानसिक व आर्थिक हानि हुई। परिवादीगण ने अपीलार्थी से यह अनुतोष चाहा कि उन्‍हें रू. 174270.43 पैसे 9 प्रतिशत वार्षिक ब्‍याज के साथ दिलाया जाए।

      जिला मंच के समक्ष अपीलार्थी ने अपना लिखित कथन प्रस्‍तुत किया है और परिवाद का विरोध किया है। अपीलार्थी ने अपने लिखित कथन में कहा है कि परिवादी और इंडियन ऑयल कारपोरेशन का सम्‍बद्ध एक क्रेता और विक्रेता का है। परिवादी सड़क निर्माण का कार्य करता है, इंडियन ऑयल कारपोरेशन कोई भी सेवा प्रदान नहीं करता है, बल्कि उत्‍पादन और बिक्री के व्‍यापार में है। परिवादी उपभोक्‍ता की श्रेणी में नहीं आता है। परिवाद भारी रूप से कालबाधित है और उसे कोई धनराशि परिवादी को देय नहीं है। जिला मंच को इस परिवाद के निस्‍तारण का क्षेत्राधिकार प्राप्‍त नहीं है।   

      पीठ द्वारा उभय पक्ष के विद्वान अधिवक्‍ताओं की बहस को सुना गया तथा पत्रावली पर उपलब्‍ध अभिलेखों का परिशीलन किया गया।

      जिला मंच द्वारा प्रश्‍नगत निर्णय में यह अंकित किया गया है कि अपीलार्थी/विपक्षीगण ने प्रतिवाद पत्र के साथ शपथ पत्र प्रस्‍तुत नहीं किया और जिसके

 

-3-

फलस्‍वरूप जिला मंच द्वारा प्रश्‍नगत एकपक्षीय निर्णय पारित किया गया, जिससे क्षुब्‍ध होकर विपक्षीगण/अपीलार्थी पक्ष द्वारा वर्तमान अपील योजित किया गया।

      यहां इस बात पर उल्‍लेख करना उचित प्रतीत होता है कि लिखित कथन के समर्थन में शपथपत्र प्रस्‍तुत न करने के कारण लिखित कथन के अभिवचन पर विचार न करना विधिसम्‍मत नहीं है। लिखित कथन के अभिवचन पर भी विचार किया जाना आवश्‍यक है। जिला मंच द्वारा लिखित कथन के संदर्भ में विचार नहीं किया गया है और परिवाद को एकपक्षीय रूप से निर्णीत किया गया, जो विधिनुकूल नहीं है।

      जिला मंच का आदेश दि. 03.12.08 को दिया गया है और यह अपील दि. 17.12.09 को प्रस्‍तुत की गई है। इस प्रकार स्‍पष्‍टत: अपील में लगभग एक वर्ष से अधिक का विलम्‍ब है। अपीलार्थी ने विलम्‍ब को क्षमा करने के लिए प्रार्थनापत्र दिया है, जो शपथपत्र से समर्थित है। प्रत्‍यर्थीगणों ने विलम्‍ब के क्षमा प्रार्थना पत्र का विरोध किया। यह सत्‍य है कि अपील अत्‍यंत विलम्‍ब से प्रस्‍तुत की गई है, जिसकी अपेक्षा एक सार्वजनिक उपक्रम संस्‍थान से नहीं की जा सकती, परन्‍तु चूंकि अपील में महत्‍वपूर्ण बिन्‍दु उठाए गए हैं, जैसे परिवादी का उपभोक्‍ता न होना, कालबाधित परिवाद का दायर होना तथा अपीलार्थी के लिखित कथन को इस आधार पर विचार न करना की हलफनामा दाखिल नहीं किया गया है। हम यह पाते हैं कि विलम्‍ब क्षमा किए जाने योग्‍य है, अत: विलम्‍ब को क्षमा किया जाता है।

      अपीलार्थी का कथन है कि प्रत्‍यर्थी/परिवादी उपभोक्‍ता की श्रेणी में नहीं आते हैं। परिवादीगण ने अपीलार्थी से जो मैक्‍स फाल्‍ट क्रय किया है वह व्‍यावसायिक उद्देश्‍य से किया है। क्रेता व विक्रेता के मध्‍य जो विवाद उठा है वह दीवानी न्‍यायालय से ही तय हो सकता है। परिवादी/प्रत्‍यर्थीगणों द्वारा जो विवाद उठाया है वह वर्ष 1984 का है जो कि 1989 तक चला, जबकि परिवाद वर्ष 2003 में प्रस्‍तुत किया गया है। इस प्रकार यह कालबाधित परिवाद प्रस्‍तुत किया गया है।

      प्रत्‍यर्थी का कथन है कि वह गन्‍ना किसानों की सुविधा के लिए सड़कों का निर्माण करता है और सड़क निर्माण के लिए उन्‍होंने मैक्‍स फाल्‍ट क्रय किया था। इस प्रकार वे उपभोक्‍ता की श्रेणी में आते हैं। उनके द्वारा वर्ष 1987 में रू. 16053/- अपीलार्थी को भुगतान किया गया था, जबकि मैक्‍स फाल्‍ट केवल रू. 159100/- की आपूर्ति की गई। वर्ष 1988 में रू. 140000/- भुगतान के विरूद्ध केवल रू. 84318.44 पैसे का मैक्‍स फाल्‍ट दिया

 

-4-

गया और इस प्रकार विभिन्‍न तिथियों से अब तक रू. 174270.43 पैसे का मैक्‍स फाल्‍ट नहीं दिया गया है। प्रत्‍यर्थीगण द्वारा अपने कथन के समर्थन में निम्‍न नजीरें प्रस्‍तुत की गई हैं:- Dr. Vijay Prakash Goyal  Vs Network Ltd. (2006) vol 3 AWC 4. 138,  Jay Kay Puri Engg. & ors.  Vs Breweries and distilleries 1998(1) CPJ 38 (N C), U.A. Md. Ali Raja  Vs  M/s Godrej photone Ltd. & Others.

      प्रत्‍यर्थी का यह भी कहना है कि उपरोक्‍त परिवाद समय के अंदर दाखिल किया गया है और मैक्‍स फाल्‍ट की खरीद लगातार होती रही है, इसलिए यह कालबाधित परिवाद नहीं है।

      परिवादी गन्‍ना विकास परिषद है। गन्‍ना विकास परिषद उ0प्र0 शुगर केन रेगुलेशन आफ सप्‍लाई एवं परचेज एक्‍ट 1953 के अंतर्गत एक संस्‍था है, जिसका क्षेत्र एक निर्धारित शूगर फैक्‍ट्री का क्षेत्र होता है, जो कि प्रदेश शासन निर्धारित करता है। गन्‍ना विकास संस्‍थान के मुख्‍य कार्य निर्धारित क्षेत्र के विकास कार्यक्रम को मंजूरी देना गन्‍ना की प्रजातियों, बीजों, खाद आदि के लिए कार्यक्रम बनाना, सिंचाई व कृषि सुविधाएं गन्‍ना किसानों को देना तथा गन्‍ने में होने वाली बीमारियों आदि की रोकथाम तथा गन्‍ना किसानों और उस क्षेत्र के गन्‍ने के उत्‍पादन आदि से संबंधित कार्य आदि हैं। गन्‍ना विकास संस्‍थान का एक अपना फंड होता है जो कृषकों और गन्‍ना सोसायटी के अंशदान तथा सरकारी अनुदान से निर्मित होता है और इस फंड का उपयोग उपरोक्‍तानुसार निर्धारित कार्यक्रमों के लिए गन्‍ना विकास संस्‍थान अपने क्षेत्र में करती है। इस तथ्‍य से इंकार नहीं किया जा सकता कि गन्‍ना विकास परिषद एक ज्‍यूरीस्टिक/लीगल व्‍यक्ति है, परन्‍तु क्‍या उसे उपभोक्‍ता संरक्षण अधिनियम 1986 के अंतर्गत इस प्रकरण में उपभोक्‍ता की श्रेणी में रखा जा सकता है।

      उपभोक्‍ता संरक्षण अधिनियम 1986 की धारा 2(घ) में उपभोक्‍ता को परिभाषित किया गया है, जो निम्‍न प्रकार है:-

      (घ) '' उपभोक्‍ता'' से ऐसा कोई व्‍यक्ति अभिप्रेत है जो -

(1) किसी ऐसे प्रतिफल के लिए जिसका संदाय किया गया है या वचन दिया गया है या भागत: संदाय किया गया है, और भागत: वचन दिया गया हे, या किसी आस्‍थगित संदाय की पद्धति के अधीन किसी माल का क्रय करता है, और इसके अंतर्गत ऐसे किसी व्‍यक्ति से भिन्‍न, जो ऐसे प्रतिफल के लिए जिसका संदाय किया गया है या वचन दिया गया है या भागत: संदाय किया गया है या भागत: वचन दिया गया है या आस्‍थगित संदाय की पद्धति के अधीन माल का क्रय करता है ऐसे माल का कोई प्रयोगकर्ता भी है, जब ऐसा प्रयोग ऐसे व्‍यक्ति के अनुमोदन से किया जाता है किंतु इसके अंतर्गत ऐसा कोई व्‍यक्ति नहीं है जो ऐसे

 

 

-5-

माल को पुन: विक्रय या किसी वाणिज्यिक प्रयोजन के लिए अभिप्राप्‍त करता है, और

(2) किसी ऐसे प्रतिफल के लिए जिसका संदाय किया गया है या वचन दिया गया है या भागत: संदाय किया गया है और भागत: वचन दिया गया है, या किसी आस्‍थगित संदाय की पद्धति के अधीन सेवाओं को (भाड़े पर लेता है या उपभोग करता है) और इसके अंतर्गत ऐसे किसी व्‍यक्ति से भिन्‍न जो ऐसे किसी प्रतिफल के लिए जिसका संदाय किया गया है और वचन दिया गया है और भागत: संदाय किया गया है और भागत: वचन दिया गया है या किसी आस्‍थगित संदाय की पद्धति के अधीन सेवाओं को (भाड़े पर लेता है या उपभोग करता है) ऐसी सेवाओं का कोई हिताधिकारी भी है जब ऐसी सेवाओं का उपयोग प्रथम वर्णित व्‍यक्ति के अनुमोदन से किया जाता है(लेकिन इसमें कोई ऐसा व्‍यक्ति शामिल नहीं है, जो ऐसी सेवाओं को किसी वाणिज्यिक प्रयोजन के लिए उपाप्‍त करता है।)

स्‍पष्‍टीकरण- इस खण्‍ड के प्रयोजन के लिए '' वाणिज्यिक प्रयोजन '' में किसी व्‍यक्ति द्वारा माल का उपयोग और सेवाओं का उपाप्‍त नहीं आता जिसका उसने अनन्‍य रूप से स्‍व-नियोजन उपाय से अपनी जिविका उपार्जन के प्रयोजन के लिए क्रय और उपयोग किया है।

      2(घ) के स्‍पष्‍टीकरण में स्‍पष्‍ट रूप से यह कहा गया है कि यदि कोई व्‍यक्ति सेवा नियोजन उपाय से अपनी जीविकोपार्जन के प्रयोजन के लिए माल का उपयोग या सेवाओं का उपयोग करता है तो उसे वाणिज्यिक प्रयोजन नहीं माना जाएगा। स्‍पष्‍टत: गन्‍ना विकास संस्‍थान मैक्‍स फाल्‍ट का क्रय अपनी जीविकोपार्जन के लिए नहीं करता है। सड़क का निर्माण गन्‍ना विकास परिषद द्वारा अपने वैधानिक दायित्‍वों के अंतर्गत गन्‍ना किसानों के हित में करता है, अत: उसे अपीलार्थी का उपभोक्‍ता नहीं कहा जा सकता।

      जिला मंच के समक्ष कार्यवाही के दौरान अपीलार्थी ने अपना लिखित कथन प्रस्‍तुत किया था। जिला मंच को इस लिखित कथन में उठाए गए बिन्‍दुओं पर विचार करना चाहिए था। लिखित कथन को इस आधार पर निरस्‍त नहीं किया जा सकता कि वे शपथपत्र से समर्थित नहीं है। परिवाद में अंकित तथ्‍यों से यह स्‍पष्‍ट है कि परिवादी और अपीलार्थी का संबंध क्रेता और विक्रेता का है, वह वर्ष 1984 से विभिन्‍न तिथियों में मैक्‍स फाल्‍ट का क्रय कर रहा है और वर्ष 2002 तक विभिन्‍न तिथियों में बैंक ड्राफ्ट से धनराशि दी है और उनके सापेक्ष मैक्‍स फाल्‍ट प्राप्‍त किया है। परिवादी गन्‍ना विकास संस्‍थान का अपीलार्थी से अपने नियमित खरीद-फरोख्‍त के दौरान कुछ विवाद उत्‍पन्‍न हुआ, जिसे उपभोक्‍ता विवाद की श्रेणी में नहीं रखा जा सकता। इस तरह के खरीद-फरोख्‍त में आपस में संविदाएं होती हैं तथा विवाद के निस्‍तारण के लिए तिथिवार लेखा विवरण तथा अन्‍य साक्ष्‍य चाहिए। प्रश्‍नगत विषय वस्‍तु का प्रकरण उपभोक्‍ता संरक्षण अधिनियम के अंतर्गत समरी कार्यवाही में विधिक रूप से निस्‍तारित नहीं हो सकता है। परिवादी को सक्षम न्‍यायालय में चाराजोई करनी चाहिए थी।

-6-

      उपरोक्‍त के अतिरिक्‍त यह प्रकरण 1984 व 1989 से संबंधित है, जबकि परिवाद वर्ष 2003 में प्रस्‍तुत किया गया है, जो स्‍पष्‍टत: कालबाधित है।

      हम यह पाते हैं कि परिवादी उपभोक्‍ता की श्रेणी में नहीं आता है, परिवाद अपोषणीय है व कालबाधित है एवं यह भी पाया कि जिला मंच द्वारा शपथपत्र के अभाव में लिखित कथन पर विचार नहीं किया गया, जो न्‍यायसंगत नहीं है।

      उपरोक्‍त विवेचना के दृष्टिगत हम यह पाते हैं कि जिला मंच का निर्णय/आदेश दि. 03.12.2008 त्रुटिपूर्ण है और खण्डित किए जाने योग्‍य है। तदनुसार अपील स्‍वीकार किए जाने योग्‍य है।

आदेश

     प्रस्‍तुत अपील स्‍वीकार की जाती है तथा जिला मंच द्वारा पारित निर्णय/आदेश दि. 03.12.2008 खण्डित किया जाता है। उभय पक्ष अपीलीय व्‍यय स्‍वयं वहन करेंगे।

 

        (राम चरन चौधरी)                               (राज कमल गुप्‍ता)

         पीठासीन सदस्‍य                                     सदस्‍य

राकेश, आशुलिपक,

कोर्ट-5

 
 
[HON'BLE MR. Alok Kumar Bose]
PRESIDING MEMBER

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