Uttar Pradesh

StateCommission

A/688/2016

Vodafone Store - Complainant(s)

Versus

Durga Shankar Singh - Opp.Party(s)

V P Sharma

10 Sep 2018

ORDER

STATE CONSUMER DISPUTES REDRESSAL COMMISSION, UP
C-1 Vikrant Khand 1 (Near Shaheed Path), Gomti Nagar Lucknow-226010
 
First Appeal No. A/688/2016
( Date of Filing : 07 Apr 2016 )
(Arisen out of Order Dated 27/01/2016 in Case No. C/09/2015 of District Basti)
 
1. Vodafone Store
Basti
...........Appellant(s)
Versus
1. Durga Shankar Singh
Basti
...........Respondent(s)
 
BEFORE: 
 HON'BLE MR. JUSTICE AKHTAR HUSAIN KHAN PRESIDENT
 HON'BLE MR. Mahesh Chand MEMBER
 
For the Appellant:
For the Respondent:
Dated : 10 Sep 2018
Final Order / Judgement

सुरक्षित

राज्‍य उपभोक्‍ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0 लखनऊ।

अपील संख्‍या : 688/2016

(जिला उपभोक्‍ता फोरम, बस्‍ती द्वारा परिवाद संख्‍या-09/2015 में पारित निर्णय एवं आदेश दिनांक 27-01-2016 के विरूद्ध)

1- Territorial Sales Manager, Vodafone Store, Malviya Road, Ranjeet Nagar Chauraha, Gandhi Nagar, Basti, Distt. Basti-272001.

2- Regional Sales Manager, Vodafone, Shalimar/Titanium Plot No. T.C/G—1/1 Vibhuti Khand, Gomti Nagar, Lko.

3- Jonal Sales Manager, Vodafone, Near Badi Bevkali, Mandir Faizabad, Distt. Faizabad. Appeallant 1,2,3 Through authorized signatory Known as Vodafone Mobile Services Ltd. Plot No. T.C/G-1/1,Vibhuti Khand, Gomti Nagar, Lucknow.        ...अपीलार्थी/विपक्षीगण

बनाम्

Durga Shanker Singh S/o Balvant Singh Resident H.No. 1375, Rautapur, Malviya Road Near Badshah Talkies Basti Po. Gandhi Nagar, the Basti sadar, Distt. Basti. 272001.

                                              ..........प्रत्‍यर्थी/परिवादी

अपीलार्थी  की ओर से उपस्थित-          श्री वी0 पी0 शर्मा।

प्रत्‍यर्थी की ओर से उपस्थित-            श्री सत्‍य प्रकाश पाण्‍डेय।

समक्ष  :-

  1. मा0 न्‍यायमूर्ति श्री अख्‍तर हुसैन खान,      अध्‍यक्ष।
  2. मा0 श्री महेश चन्‍द,                    सदस्‍य

दिनांक :   27 -09-2018

 

 

 

2

मा0 श्री महेश चन्‍द, सदस्‍य द्वारा उद्घोषित निर्णय

परिवाद संख्‍या-09/2015 दुर्गा शंकर सिंह बनाम् टैरीटोरियल सेल्‍स मैनेजर, वोडाफोन व दो अन्‍य  में जिला उपभोक्‍ता फोरम, बस्‍ती द्वारा पारित आक्षेपित निर्णय एवं आदेश दिनां‍क 27-01-2016 के विरूद्ध यह अपील उपभोक्‍ता संरक्षण अधिनियम की धारा-15 के अन्‍तर्गत इस आयोग के समक्ष प्रस्‍तुत की गई है।

इस प्रकरण में विवाद के संक्षिप्‍त सुसंगत तथ्‍य इस प्रकार है कि परिवादी ने रिलायंस कम्‍पनी से मोबाइल सिम पोस्‍ट पेड कनेक्‍शन जी0एस0एस0 मोबाइल नम्‍बर-9336078106 अपने नाम लिया था जिसे बाद में पोर्टबिलिटी द्वारा वोडाफोन कम्‍पनी में परिवर्तित करा लिया और वोडाफोन कम्‍पनी द्वारा ही उक्‍त मोबाइल नम्‍बर संचालित होता रहा और परिवादी विपक्षी संख्‍या-1 को नियमित रूप से बिलों का भुगतान करता रहा।  विपक्षी द्वारा परिवादी को अंतिम बिल रू0 2285.35 भेजा गया, जिसका भुगतान परिवादी ने दिनांक 19-11-2014 के पूर्व ही दिनांक 05-11-2014 को रू0 2300/- बोडाफोन स्‍टोर बस्‍ती में कर दिया जिसकी रसीद संख्‍या-13658 है। परिवादी पर कोई बकाया शेष नहीं रह गया फिर भी विपक्षी द्वारा परिवादी के मोबाइल की सेवाऍं बिना किसी पूर्व सूचना के बंद कर दी गयी और पूछने पर कोई कारण विपक्षी के कर्मचारियों द्वारा नहीं बताया गया। अचानक मोबाइल सेवायें बंद होने से परिवादी को प्रतिदिन हजारों रूपयों की क्षति हुई। परिवादी ने विपक्षीगण को दिनांक 31-12-2014 को नोटिस दिया जिसका विपक्षी ने कोई उत्‍तर नहीं दिया और न ही मोबाइल की सेवायें बहाल की जो कि विपक्षीगण के सतर पर सेवा में कमी है। इसलिए परिवादी ने परिवाद संख्‍या-09/2015 जिला फोरम, बस्‍ती के समक्ष समक्ष योजित करते हुए निम्‍न अनुतोष की याचना की :-

  • यह कि विपक्षीगण को आदेश दिया जाए कि वह परिवादी की मोबाइल नम्‍बर-9336078106 की सेवाओं को तत्‍काल शुरू कर दे।
  • यह कि विपक्षीगण को आदेश दिया जावे कि वह विपक्षीगण की सेवा में कमी के कारण परिवादी को हुई आर्थिक क्षति रू0 1,00,000/- तथा मानसिक कष्‍ट के लिए क्षतिपूर्ति रू0 50,000/- कुल रू0 1,50,000/- परिवादी को अदा करें।

 

 

 

 

  1.  

 

  • यह कि खर्चा मुकदमा व मेहनताना विपक्षीगण से परिवादी को दिलाया जाए।
  • इसके अतिरिक्‍ अन्‍य कोई अनुतोष जो फोरम उचित समझे उसे विपक्षीगण से दिलाया जाए।

विपक्षी संख्‍या-3 को परिवाद की सूचना भेजी गयी परन्‍तु उसकी ओर से न तो कोई उपस्थित हुआ और न ही कोई प्रतिवाद पत्र प्रस्‍तुत किया गया जिसके फलस्‍वरूप विपक्षी संख्‍या-3 के विरूद्ध दिनांक 07-10-2015 को कार्यवाही एकपक्षीय प्रगति करने का आदेश पारित किया गया।

परिवाद का विरोध करते हुए विपक्षी संख्‍या-1 व 2 की ओर से प्रारम्भिक आपत्ति दाखिल करते हुए कहा गया कि परिवादी ने जिस तरह का परिवाद दाखिल किया है वह स्‍वीकार किये जाने योग्‍य नहीं है और विपक्षी संख्‍या-1 व 2 ने परिवाद पत्र के अभिकथनों को अस्‍वीकार करते हुए कहा है कि परिवाद गलत आधार पर योजित किया गया है और वास्‍तविक तथ्‍यों को भी छिपाकर दायर किया गया है। इसके अतिरिक्‍त कथन किया गया कि परिवादी को सूचना दी गयी थी कि यदि उसके ऊपर को बकाया शेष नहीं है तो इस संबंध में प्रमाण पत्र दाखिल करे और जिसमें कहा गया था कि प्रमाण पत्र दाखिल न करने पर कनेक्‍शन विच्‍छेदित कर दिया जायेगा किन्‍तु परिवादी ने कोई प्रमाण पत्र दाखिल नहीं किया। इसलिए परिवादी कोई अनुतोष पाने का अधिकारी नहीं है तथा कथन किया गया कि मा0 फोरम को परिवाद की सुनवाई का अधिकारनहीं है इसलिए परिवादी विपक्षी से कोई अनुतोष पाने का अधिकारी नहीं है।

जिला फोरम ने पक्षकारों द्वारा प्रस्‍तुत किये गये साक्ष्‍यों का परिशीलन करने तथा उनके तर्कों को सुनने के बाद आक्षेपित निर्णय दिनांक 27-01-2016 के द्वारा परिवादी का परिवाद स्‍वीकार कर लिया तथा निम्‍नलिखित आदेश पारित किया :-

’ परिवादी का परिवाद स्‍वीकार किया जाता है। विपक्षीगण को निर्देश दिया जाता है कि वह इस आदेश की तिथि से 30 दिन के अंदर परिवादी के मोबाइल नम्‍बर-9336078106 पर तत्‍काल परिचालन सेवा आरम्‍भ कर दे। विपक्षीगण को यह भी निर्देश दिया जाता है कि वह परिवादी को हुए शारीरिक एवं मानसिक कष्‍ट के लिए क्षतिपूर्ति रू0 10,000/- एवं परिवाद व्‍यय के रूप में रू0 5000/- का भुगतान उपरोक्‍त निर्धारित

 

4

अवधि में कर दें।यदि उपरोक्‍त क्षतिपूर्ति एवं परिवाद व्‍यय की धनराशि का भुगतान उपरोक्‍त निर्धारित समयावधि में नहीं किया जाता है तो इन धनराशियों पर इस आदेश की तिथि से भुगतान की तिथि तक 07 प्रतिशत वार्षिक की दर से ब्‍याज देय होगा।

उपरोक्‍त आक्षेपित आदेश से क्षुब्‍ध होकर यह अपील योजित की गयी है।

अपील की सुनवाई के समय अपीलार्थीगण की ओर से विद्धान अधिवक्‍ता श्री वी0 पी0 शर्मा उपस्थित हुए। प्रत्‍यर्थी की ओर से विद्धान अधिवक्‍ता श्री सत्‍य प्रकाश पाण्‍डेय उपस्थित हुए।

पीठ द्वारा उभयपक्षों के विद्धान अधिवक्‍ताओं  के तर्कों को सुना गया तथा आक्षेपित निर्णय और आदेश तथा पत्रावली का अवलोकन किया गया।

पत्रावली के अवलोकन से यह तथ्‍य निर्विवाद रूप से स्‍पष्‍ट होता है कि प्रत्‍यर्थी/परिवादी ने पूर्व में रिलायंस कम्‍पनी से मोबाइल कनेक्‍शन लिया था जिसका मोबाइल नम्‍बर-9336078106 था। रिलायंस कम्‍पनी से अपने कनेक्‍शन को वोडाफोन कम्‍पनी में संयोजित कराने हेतु पो‍र्टबिलिटी सुविधा का उपयोग किया। वोडाफोन कम्‍पनी ने उक्‍त मोबाइल कनेक्‍शन पर पो‍र्टबिलिटी की सुविधा का लाभ देते हुए परिवादी का  मोबाइल संयोजन स्‍थापित कर दिया। प्रत्‍यर्थी/परिवादी को वोडाफोन कम्‍पनी से रू0 2285.35 का बिल प्राप्‍त हुआ जिसका भुगतान उसे दिनांक 19-11-2014 तक करना था किन्‍तु परिवादी/प्रत्‍यर्थी ने उक्‍त बिल की धनराशि रू0 2300/- का भुगतान दिनांक 05-11-2014 को ही वोडाफोन कम्‍पनी के स्‍टोर, बस्‍ती में कर दिया और रसीद संख्‍या-13658 प्राप्‍त कर ली। उक्‍त धनराशि जमा होने के बाद बिना किसी पूर्व सूचना के वोडाफोन मोबाइल कम्‍पनी द्वारा प्रत्‍यर्थी/परिवादी का मोबाइल कनेक्‍शन काट दिया गया और परिवादी द्वारा बार-बार सम्‍पर्क करने के बावजूद भी अपीलार्थी/विपक्षी द्वारा मोबाइल कनेक्शन पुर्नस्‍थापित नहीं किया गया और कहा गया कि आपने अपने पूर्व मोबाइल सेवा प्रदाता से अदेयता प्रमाण पत्र लेकर प्रस्‍तुत नहीं किया है इसीलिए मोबाइल कनेक्‍शन काटा गया है। इसी से क्षुब्‍ध होकर प्रश्‍नगत परिवाद जिला फोरम के समक्ष प्रस्‍तुत किया गया है।

 

5

जिला फोरम ने पक्षकारों को सुनने के बाद यह अवधारित किया है कि बिना किसी पूर्व नोटिस के प्रत्‍यर्थी/परिवादी का मोबाइल कनेक्‍शन काटना विपक्षी/अपीलार्थी के स्‍तर पर सेवा में कमी है। मोबाइल कनेक्‍शन काटने से पूर्व  अपीलार्थी का यह दायित्‍व था कि वह प्रत्‍यर्थी को अवगत कराता कि पूर्व मोबाइल  सेवा प्रदाता को कितनी धनराशि का बिल प्रत्‍यर्थी/परिवादी पर बकाया है, यदि कोई है तो उक्‍त बकाया धनराशि का बिल परिवादी को उपलब्‍ध कराना चाहिए था तथा जिला फोरम के समक्ष भी प्रस्‍तुत करना चाहिए था जो नहीं किया गया। अपीलीय स्‍तर पर भी अपीलार्थी/विपक्षी ने पूर्व सेवा प्रदाता का देयता बिल लेकर जमा नहीं किया है जिससे विदित हो कि उसका मोबाइल कनेक्‍शन बकाया होने के कारण काटा गया है। इसके अतिरिक्‍त अपीलार्थी द्वारा अपील में यह भी आधार लिया गया है कि विवाद इण्डिया टेलीग्राफ एक्‍ट की धारा-7 बी से बाधित है और उपभोक्‍ता फोरम में इस प्रकार का परिवाद पोषणीय नहीं है।

उभयपक्ष के विद्धान अधिवक्‍ताओं के तर्कों को सुनने और पत्रावली के अवलोकन के उपरान्‍त यह पीठ इस मत की है कि यदि प्रत्‍यर्थी/परिवादी ने पूर्व मोबाइल सेवा प्रदाता का अदेयता प्रमाण पत्र नहीं दिया था तो अपीलार्थी/विपक्षी को मोबाइल कनेक्‍शन प्रत्‍यर्थी/परिवादी को नहीं देना चाहिए था। समस्‍त औपचारिकताऍं पूरी करने के उपरान्‍त ही मोबाइल कनेक्‍शन दिया जाता है और यदि मोबाइल कनेक्‍शन दिया गया है तो उसे बिना कारण बताये अथवा नोटिस दिये विच्‍छेदित नहीं किया जा सकता है।

इस प्रकरण के तथ्‍य इस प्रकार के नहीं है जिससे कि यह प्रकरण इण्डियन टेलीग्राफ एक्‍ट की धारा-7 बी से परिवाद बाधित होता हो। माननीय राष्‍ट्रीय आयोग ने अपील संख्‍या-193 वर्ष 2014 विवेक भारद्धाज बनाम वोडाफोन एस्‍सार ईस्‍ट लि0 तथा 03 अन्‍य में अपने आदेश दिनांक 28 नवम्‍बर, 2016 द्वारा इस बिन्‍दु पर अपना मत स्थिर करते हुए हुए Bharti Hexacom Ltd. (Supra)  में प्रतिपादित सिद्धांत पर विश्‍वास किया है तथा कहा है कि इस प्रकार के प्रकरण उपभोक्‍ता फोरम में पोषणीय  है। Bharti Hexacom Ltd. (Supra) में निम्‍न सिद्धांत प्रतिपादित किया है कि-

  1. ‘’Order in Bharti Hexacom Ltd. (Supra) passed by three Members’ Bench alleged to be larger Bench decided that powers of telegraph authority are now not vested in the private telecom service providers and also in

 

  1.  

BSNL; so, Section 7B of Telegraph Act have no application and Forums constituted under Consumer Protection Act are competent to entertain desputes between individual telecom consumers and telecom service providers.’’

अत: उपरोक्‍त विधिक दृष्‍टांत के आलोक में यह प्रकरण भी जिला उपभोक्‍ता फोरम के समक्ष पोषणीय था। विद्धान जिला फोरम ने इस प्रकरण का निस्‍तारणकर कोई त्रुटि नहीं की है। प्रत्‍यर्थी/परिवादी अपीलार्थी/विपक्षीगण का उपभोक्‍ता है और उसको प्रतिफल के बदले सेवा प्राप्‍त करने का अधिकार प्राप्‍त है। अपीलार्थी/विपक्षीगण ने अनुचित व्‍यापार प्रथा अपनाई है और सेवा प्रदान करने में कमी की है। जिससे प्रत्‍यर्थी/परिवादी को मानसिक क्षति के साथ ही व्‍यावसायिक क्षति भी हुई है।

सम्‍पूर्ण तथ्‍यों पर विचार करने के उपरान्‍त पीठ इस मत की है कि अपीलार्थी की अपील में कोई बल नहीं है और अपील निरस्‍त होने योग्‍य है।

आदेश

अपील निरस्‍त की जाती है। जिला फोरम द्वारा पारित निर्णय और आदेश की पुष्टि की जाती हैु। अपीलार्थी को निर्देशित किया जाता है कि वह आदेश का अनुपालन 30 दिन के अंदर किया जाना सुनिश्‍चित करें।

उभयपक्ष अपना-अपना अपीलीय व्‍यय स्‍वयं वहन करेंगे।

 

(न्‍यायमूर्ति अख्‍तर हुसैन खान)                         (महेश चन्‍द)

         अध्‍यक्ष                                      सदस्‍य

कोर्ट नं0-1 प्रदीप मिश्रा, आशु0

 

 

 

 
 
[HON'BLE MR. JUSTICE AKHTAR HUSAIN KHAN]
PRESIDENT
 
[HON'BLE MR. Mahesh Chand]
MEMBER

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