राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।
सुरक्षित
अपील सं0-१७४७/२०१८
(जिला मंच, मथुरा द्वारा परिवाद सं0-१३७/२०१३ में पारित निर्णय एवं आदेश दिनांक २३-०८-२०१८ के विरूद्ध)
१. मथुरा वृन्दावन डेवलपमेण्ट अथारिटी, मथुरा द्वारा वाइस चेयरमेन, ३२, सिविल लाइन्स, मथुरा।
२. सैक्रेटरी, मथुरा वृन्दावन डेवलपमेण्ट अथारिटी, मथुरा।
३. प्रौपर्टी आफीसर, मथुरा वृन्दावन डेवलपमेण्ट अथारिटी, मथुरा।
................. अपीलार्थीगण/विपक्षीगण।
बनाम्
डॉ0 श्रीमती विभा सरीन पत्नी श्री अजय सरीन, निवासी-१०१, नादान महल रोड, लखनऊ।
.................. प्रत्यर्थी/परिवादी।
समक्ष:-
१. मा0 श्री उदय शंकर अवस्थी, पीठासीन सदस्य।
२. मा0 श्री गोवर्द्धन यादव, सदस्य।
अपीलार्थीगण ओर से उपस्थित :- श्री एन0सी0 उपाध्याय विद्वान अधिवक्ता
प्रत्यर्थी की ओर से उपस्थित :- श्री नवीन कुमार तिवारी विद्वान अधिवक्ता।
दिनांक : २१-०६-२०१९.
मा0 श्री उदय शंकर अवस्थी, पीठासीन सदस्य द्वारा उदघोषित
निर्णय
प्रस्तुत अपील, जिला मंच, मथुरा द्वारा परिवाद सं0-१३७/२०१३ में पारित निर्णय एवं आदेश दिनांक २३-०८-२०१८ के विरूद्ध योजित की गयी है।
संक्षेप में तथ्य इस प्रकार हैं कि प्रत्यर्थी/परिवादिनी के कथनानुसार उसके पति स्व0 अजय सरीन को अपीलार्थी विकास प्राधिकरण द्वारा कदम विहार (रॉची बॉंगर) योजना के अन्तर्गत अल्प आय वर्ग का भवन सं0-एल.आई.जी.-५९ बी आबंटित किया गया जिसकी पंजीकरण धनराशि ७,०००/- रू० दिनांक २२-०७-१९९८ को एवं भवन का आबंटन शुल्क १५,०००/- रू० दिनांक ०३-०८-१९९८ को प्राप्त किया गया, जिसकी १८० मासिक किश्तें ८७१/- रू० प्रति माह निर्धारित की गईं। परिवादिनी के पति अजय सरीन की मृत्यु परिवाद के लम्बित रहने के मध्य हो गई, अत: प्रत्यर्थी/परिवादिनी डॉ0 श्रीमती विभा सरीन को मूल परिवादी अजय सरीन के
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उत्तराधिकारी के रूप में परिवाद में प्रतिस्थापित किया गया। परिवादिनी के पति को उपरोक्त भवन सं0-एल0आई0जी0-५९ बी से संलग्न अतिरिक्त भूमि भी दिनांक १५-०५-१९९१ को आबंटित की गई, जिस पर कार्नर चार्ज ३,०१५/- रू० एवं भूमि का लीज रेण्ट ४,६१७.३५ रू० भूमि की मालियत ५९,८१७.५० रू० की १०० किश्तें निर्धारित कर पहली किश्त ९४९/- रू० भूमि की एवं ८७१/- रू० भवन की दिनांक २५-०७-१९९१ को अपीलार्थी द्वारा प्राप्त की गई। भवन की मालियत ७६,०५०/- रू० निर्धारित की गई जिस पर १५ प्रतिशत रिबेट अपीलार्थी द्वारा दी गई। उपरोक्तानुसार ६८,६४०/- रू० मालियत में से २२,०००/- रू० जमा धनराशि घटाकर मात्र ४६,६४०/- रू० की अदायगी परिवादी ने ५५ किश्तें ८७१/- रू० प्रतिमाह के अनुसार अदा कीं। तदोपरान्त भिन्न-भिन्न तिथियों पर जारी किए गये विभिन्न पत्रों द्वारा भिन्न-भिन्न धनराशि बकाया दर्शित होना बताया गया। परिवादिनी के पति ने कई बार पत्राचार अपीलार्थीगण से किया कि किस प्रकार उक्त धनराशि उसके ऊपर बकाया दर्शायी गई है। परिवादिनी के पति ने विधिक नोटिस प्रेषित की तब अपीलार्थी के अधिवक्ता श्री वीरेन्द्र चौधरी ने दिनांक ३१-०७-२००३ को भूमि व भवन दोनों की बकाया धनराशि १,०५,९०५.३५ दर्शायी, परन्तु दिनांक ३१-०३-२००४ के पत्र द्वारा आपने भवन की बकाया धनराशि १,००५,०४.८४ रू० दर्शायी गयी। परिवादिनी के पति की भूमि की १०० किश्तें दिनांक १२-१०-१९९९ को समाप्त हो चुकी थीं, किन्तु दिनांक ०८-०१-२००४ को अतिरिक्त भूमि पर १३,०२२/- बकाया धनराशि अपीलार्थी विभाग द्वारा दर्शायी गई एवं दिनांक ३१-०३-२००४ को ५,७४५.७५ रू० दिनांक ३१-०७-२००४ को ४,४८४.९० रू० एडवान्स जमा दर्शाया गया एवं दिनांक २८-०२-२००९ को ४,४८४.९९ रू० एडवांस दर्शाया गया। परिवादिनी के पति द्वारा बार-बार रजिस्ट्री करने की मांग करने पर भी रजिस्ट्री नहीं कराई गई। हर बार नई धनराशि परिवादिनी के पति को परेशान करने के लिए बता दी जाती थी अत: परिवादिनी के पति द्वारा ओ0टी0एस0 के अन्तर्गत प्रार्थना पत्र जिस पर दिनांक ०८-१२-२०११ को ५,५०५/- रू० एवं १३-१२-२०११ को ५,०१०/- रू० धनराशि ओ0टी0एस0 हेतु जमा करायी गई तथा २६-०३-२०१२ को मा0 उपाध्यक्ष द्वारा निर्देशित किया गया कि भवन एवं भूमि की बकाया धनराशि १,१८,१७४/- जमा की जाय, जिसको परिवादिनी के पति ने २७.०३-२०१२ को जमा कर दिया तथा उपरोक्तानुसार रजिस्ट्री हेतु जनरल स्टाम्प पेपर भी खरीद लिए, जिससे डी0एम0 के सर्किल रेट
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का प्रभाव परिवादिनी के पति पर न पड़े। दिनांक ३१-०३-२०१२ को अपीलार्थी विभाग में परिवादिनी के पति को रजिस्ट्री हेतु बुलाया गया। विभाग में पहुँचने पर सम्पत्ति अधिकारी ने कहा कि आपकी अतिरिक्त भूमि की पुन: नाप करायी गयी है और उसकी कीमत ३३,०००/- जमा करवाईये जिसे परिवादिनी के पति ने जमा कर दिया फिर भी विक्रय विलेख अपीलार्थीगण द्वारा परिवादिनी के पति के पक्ष में आज तक निष्पादित नहीं किया गया। परिवादिनी के पति द्वारा २९-०६-१९९५ तक भवन की समस्त धनराशि की अदायगी तथा १२-१०-१९९९ तक अतिरिक्त भूमि की समस्त किश्तें अदा करने के बाबजूद रजिस्ट्री नहीं की गई। ओ0टी0एस0 स्कीम के उपरान्त भी अपीलार्थी ने १,८६,१७४/- रू० की धनराशि परिवादिनी के पति से जमा करवा ली किन्तु विक्रय पत्र निष्पादित नहीं किया गया जबकि विक्रय विलेख का निष्पादन वर्ष १९९९ में ही कर देना चाहिए था। परिवादिनी के पति द्वारा बार-बार विक्रय विलेख निष्पादित करने के लिए अपीलार्थीगण से आग्रह किया गया तब उन्होंने परिवादिनी के पति से नाखुश होकर एवं एक राय होकर एक पत्र सं0-५३/१३-१४ दिनांक ०८-०४-२०१३ रजिस्टर्ड डाक द्वारा जो १५-०५-२०१३ को प्राप्त हुआ भेजा, जिससे यह ज्ञात हुआ कि परिवादिनी के पति को प्रदान किए गये भवन सं0-एल0आई0जी0 ५९ बी व उसके कार्नर की भूमि को विवादित बताया और उस पर परिवादिनी के पति को बिना सूचना दिए एक समिति दिनांक २७-०९-२०१२ को गठित की जिसके द्वारा कथित शिकायतों व प्रकाशन की जांच की गई किन्तु परिवादिनी के पति को कोई प्रपत्र भी दिया गया और एक पक्षीय जांच निस्तारित की गई। अत: परिवाद निम्नलिखित अनुतोष के साथ योजित किया गया :-
१. परिवादिनी के पति को उसे आबंटित भवन सं0-एल0आई0जी0 ५९ बी तथा उससे संलग्न अतिरिक्त भूमि का विक्रय विलेख अपीलार्थीगण तत्काल निष्पादित करें।
२. परिवादिनी के पति द्वारा जमा की गई अधिक धनराशि ०२ प्रतिशत प्रतिमाह की दर से अपीलार्थीगण वापस करें।
३. अपीलार्थीगण से ०५.०० लाख रू० क्षतिपूर्ति के रूप में दिलाया जाय।
अपीलार्थीगण के कथनानुसार गलत तथ्यों के आधार पर परिवाद योजित किया गया। अपीलार्थीगण के कथनानुसार प्रत्यर्थी/परिवादिनी स्वयं यह स्वीकार करती है कि उसके पति
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द्वारा ओ0टी0एस0 स्कीम के अन्तर्गत स्वेच्छा से प्रार्थना पत्र दिया गया और दिनांक २७-०३-२०१२ को समस्त हिसाब अच्छी तरह से समझने के पश्चात् भवन सं0-एल0आई0जी0 ५९ बी के सन्दर्भ में १,१८,१७४/- रू० बकाया होना स्वीकार किया गया और उसी दिन उसके द्वारा बकाया धनराशि १,१८,१७४/- रू० प्राधिकरण कोष में जमा करायी गई। अपीलार्थीगण का यह भी कथन है कि श्री दिनेश कुमार शर्मा, श्री विजय चतुर्वेदी एवं श्री नृपेन्द्र चौधरी आदि द्वारा अपने स्तर से विभिन्न अधिकारियों एवं मा0 मुख्यमंत्री जी को परिवादिनी के पति के पक्ष में आबंटित भवन सं0-५९ बी से संलग्न अतिरिक्त भूमि २३९.२७ वर्ग मीटर के आबंटन की वैधता की शिकायत की गई तथा इसी सम्बन्ध में दिनांक ०८-०५-२०१२ को प्रकाशित दैनिक समाचार पत्र में प्रकाशित समाचार का संज्ञान लेते हुए उपाध्यक्ष विकास प्राधिकरण द्वारा एक जांच समिति का गठन दिनांक २७-०९-२०१२ को किया गया। इस समिति द्वारा प्रकरण की विस्तृत जांच की गई और समिति इस निष्कर्ष पर पहुँची कि भवन के साथ लगी हुई अतिरिक्त भूमि परिवादिनी के पति को किसी वैध आदेश से आबंटित नहीं की गई है तथा मात्र मांग पत्र के आधार पर भूमि की कीमत जमा करा ली गई थी जो पूर्णरूप से अवैधानिक कृत्य था। प्राधिकरण अभिलेख में भवन सं0-५९ बी से लगी भूमि परिवादिनी के पति के पक्ष में आबंटन किये जाने के कोई वैध आदेश नहीं हैं और केवल आर्डर शीट पर मांग पत्र जारी किए जाने की लिपिक की आख्या पर सचिव के हस्ताक्षर करा लिए गये। अपीलार्थीगण का यह भी कथन है कि सर्व प्रथम तो परिवादिनी के पति के पक्ष में कोई वैधानिक आबंटन के आदेश नहीं हैं किन्तु यदि तर्क के लिए यह मान भी लिया जाय कि सचिव द्वारा मांग पत्र जारी करने के आदेश पर हस्ताक्षर सोच-समझ कर किए हैं, तो भी उसे वैध आबंटन नहीं माना जा सकता है क्योंकि किसी भूमि/भवन के आबंटन करने का क्षेत्राधिकार केवल उपाध्यक्ष को प्राप्त है और सचिव की शक्तियों में नहीं आता है। परिवादिनी के पति के पक्ष में कोई अतिरिक्त भूमि आबंटन हेतु कोई आदेश पारित नहीं किया गया। परिवादिनी के पति द्वारा प्राधिकरण के किसी लिपिक से सॉठ-गॉठ कर एक फर्जी मांग पत्र जारी करा लिया गया। अपीलार्थी का यह भी कथन है कि आबंटित भूमि/भवन के साथ संलग्न अतिरिक्त भूमि के निस्तारण के सम्बन्ध में उत्तर प्रदेश शासन के प्रमुख सचिव द्वारा जो दिशा निर्देश पत्र सं0-१०६४/९-आ-१-९६ दिनांक ०५ मार्च, १९९६ द्वारा निगर्त किये गये
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उसमें यह स्पष्ट रूप से निर्देश दिया गया है कि जहॉं तक सम्भव हो अतिरिक्त भूखण्ड यदि नये भूखण्ड के रूप में प्रयोग में लाया जा सकता है तो उसे नया भूखण्ड बनाकर आबंटित किया जाय। प्रस्तुत प्रकरण में भवन सं0-५९ बी का कुल क्षेत्रफल ८१.७८ वर्ग मीटर है और विवादित अतिरिक्त भूमि का क्षेत्रफल २३९.२७ वर्ग मीटर है। इस प्रकार अतिरिक्त भूमि को ७९ – ८० वर्ग मीटर के ०३ भूखण्डों में सृजित कर आबंटन किया जा सकता था और उसे किसी प्रकार से भी ऐसी अतिरिक्त भूमि नहीं माना जा सकता था कि जिसमें अलग से भूखण्ड सृजित करना सम्भव न हो। यह तथ्य भी इस ओर इंगित करता है कि परिवादिनी के पति द्वारा प्राधिकरण के किसी लिपिक से साजकर विवादित मांग पत्र जारी कराया गया और बिना कोई आबंटन आदेश प्राप्त किये भूखण्ड की मनमानी कीमत जमा करा दी गई। अपीलार्थीगण का यह भी कथन है कि परिवादी का यह कथन पूर्णत: असत्य है कि उसे विवादित भूमि के अवैध आबंटन के खिलाफ हुई शिकायतों की कोई जानकारी नहीं दी गई। वास्तविकता यह है कि उपरोक्त शिकायतों के बारे में परिवादिनी के पति को पूर्ण जानकारी दी गई और उसके द्वारा मांग की सूचनाओं के उत्तर में जनसूचना अधिकारी ने अपने उत्तर दिनांक ०३-०५-२०१२ द्वारा उसे सूचित कर दिया था कि प्रस्तुत प्रकरण में आगे की कार्यवाही शिकायतों के निस्तारण के पश्चात् ही की जायेगी।
जिला मंच ने प्रश्नगत निर्णय में यह मत व्यक्त करते हुए कि वर्ष १९९१ में परिवादिनी के पति को आबंटित भवन सं0-५९ बी से संलग्न भूमि का ५९,८१७/- रू० मूल्य निर्धारण करते हुए देय सम्पूर्ण धनराशि की अदायगी १०० किश्तों में किए जाने हेतु मांग पत्र सचिव द्वारा जारी किया गया तथा तद्नुसार परिवादिनी के पति द्वारा धनराशि की अदायगी भी की जाती रही। परिवादिनी के पति द्वारा ओ0टी0एस0 स्कीम के अन्तर्गत आवेदन पत्र प्रस्तुत किए जाने पर भी अतिरिक्त भूमि के मूल्य की अदायगी हेतु परिवादिनी के पति को सूचित किया गया तथा तद्नुसार परिवादिनी के पति द्वारा अपीलार्थी द्वारा मांगी गई धनराशि की अदायगी की गई। अपीलार्थी के अधिवक्ता द्वारा परिवादिनी के पति को प्रेषित पत्रों तथा विभाग द्वारा किए पत्राचार में भी समय-समय पर भवन सं0-५९ बी से संलग्न भूमि का आबंटन किया जाना स्वीकार किया गया। इसके बाबजूद वर्ष १९९१ के बाद वर्ष २०१३ में परिवादिनी के पति को
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अतिरिक्त भूमि का आबंटन अस्वीकार किया गया। अत: जिला मंच ने अपीलार्थी के इस कथन को अस्वीकार करते हुए, भवन सं0-५९ बी से संलग्न अतिरिक्त भूमि का परिवादिनी के पति के पक्ष में आबंटन होना मानते हुए प्रश्नगत निर्णय द्वारा अपीलार्थीगण को निर्देशित किया कि प्रश्नगत भवन सं0-५९ बी व उससे संलग्न अतिरिक्त भूमि के सम्बन्ध में यदि कोई बकाया धनराशि बनती है तो उसे प्राप्त करके नियमानुसार विक्रय पत्र परिवादिनी डॉ0 विभा सरीन के पक्ष में निर्णय की तिथि से ४५ दिन के अन्दर निष्पादित किया जाना सुनिश्चित करें तथा क्षतिपूर्ति के रूप में २५,०००/- रू० एवं ५,०००/- रू० वाद व्यय के रूप में प्रत्यर्थी/परिवादिनी को भुगतान करें।
इस निर्णय से क्षुब्ध होकर यह अपील योजित की गयी।
हमने अपीलार्थी की ओर से विद्वान अधिवक्ता श्री एन0सी0 उपाध्याय तथा प्रत्यर्थी/परिवादिनी के विद्वान अधिवक्ता श्री नवीन कुमार तिवारी के तर्क सुने तथा अभिलेखों का अवलोकन किया।
अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता द्वारा तर्क के मध्य यह स्वीकार किया गया कि प्रत्यर्थी/परिवादिनी के पति श्री अजय सरीन को एल0आई0जी0 भवन सं0-५९ बी क्षेत्रफल ८१.७८ वर्ग मीटर दिनांक २३-०७-१९८८ को आबंटित किया गया था। इस भवन के सन्दर्भ में देय समस्त धनराशि का भुगतान किया जाना भी अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता द्वारा स्वीकार किया गया। क्योंकि परिवाद की सुनवाई के मध्य परिवादिनी के पति श्री अजय सरीन की मृत्यु हो गई तथा उसके विधिक उत्तराधिकारी के रूप में परिवादिनी को परिवाद में प्रतिस्थापति किया गया अत: अधिवक्ता अपीलार्थी द्वारा यह सूचित किया गया कि अपीलार्थी भवन सं0-५९ बी का विक्रय पत्र परिवादिनी के पक्ष में निष्पादित किए जाने हेतु तैयार है किन्तु अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता द्वारा यह तर्क प्रस्तुत किया गया कि परिवादिनी के पति श्री अजय सरीन के पक्ष में इस भवन सं0-५९ बी से संलग्न भूमि अपीलार्थी द्वारा आबंटित नहीं की गई। परिवादिनी के पति ने दिनांक २६-०९-१९९० को भवन सं0-५९ बी से संलग्न भूमि आबंटित किए जाने हेतु अपीलार्थी के समक्ष प्रार्थना पत्र प्रस्तुत किया किन्तु इस प्रार्थना पत्र पर अतिरिक्त भूमि के सन्दर्भ में आबंटन हेतु काई आदेश पारित नहीं किया गया। अपीलार्थी की ओर से यह स्वीकार
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किया गया कि तत्कालीन सचिव द्वारा अतिरिक्त भूमि के सन्दर्भ में दिनांक १५-०५-१९९१ को मांग पत्र निर्धारित मूल्य की अदायगी हेतु जारी किया गया। अपीलार्थी की ओर से यह भी स्वीकार किया गया कि इस मांग पत्र के अनुपालन में परिवादिनी के पति द्वारा धनराशि की अदायगी भी की गई। इस सन्दर्भ में अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता द्वारा यह तर्क प्रस्तुत किया गया कि श्री दिनेश कुमार शर्मा, श्री विजय चतुर्वेदी एवं श्री नृपेन्द्र चौधरी आदि द्वारा अपने स्तर से विभिन्न अधिकारियों एवं मा0 मुख्यमंत्री जी को परिवादिनी के पति के पक्ष में आबंटित भवन सं0-५९ बी से लगी हुई अतिरिक्त भूमि २३९.२७ वर्ग मीटर के आबंटन की वैधता की शिकायत की गई तथा इसी सम्बन्ध में दिनांक ०८-०५-२०१२ को प्रकाशित दैनिक समाचार पत्र में प्रकाशित समाचार का संज्ञान लेते हुए उपाध्यक्ष विकास प्राधिकरण द्वारा एक जांच समिति का गठन दिनांक २७-०९-२०१२ को किया गया। इस समिति द्वारा प्रकरण की विस्तृत जांच की गई और समिति इस निष्कर्ष पर पहुँची कि भवन के साथ लगी हुई अतिरिक्त भूमि परिवादिनी के पति को किसी वैध आदेश से आबंटित नहीं की गई है तथा मात्र मांग पत्र के आधार पर भूमि की कीमत जमा की गई थी जो पूर्णरूप से अवैधानिक कृत्य था। प्राधिकरण अभिलेख में भवन सं0-५९ बी से लगी भूमि परिवादिनी के पति के पक्ष में आबंटन किये जाने के कोई वैध आदेश नहीं हैं और केवल आर्डर शीट पर मांग पत्र जारी किए जाने की लिपिक की आख्या पर सचिव के हस्ताक्षर करा लिए गये। अपीलार्थी की ओर से यह तर्क भी प्रस्तुत किया गया कि किसी भूमि अथवा भवन के आबंटन का क्षेत्राधिकार केवल उपाध्यक्ष को प्राप्त है, सचिव को स्वतन्त्र रूप से किसी भूमि/भवन के आबंटन का अधिकार प्राप्त नहीं है। अपीलार्थी की ओर से यह तर्क भी प्रस्तुत किया गया कि यह तथ्य निर्विवाद है कि भवन सं0-५९ बी का कुल क्षेत्रफल ८१.७८ वर्ग मीटर और विवादित अतिरिक्त भूमि का क्षेत्रफल २३९.२७ वर्ग मीटर है। आबंटित भवन के साथ संलग्न अतिरिक्त भूमि के सम्बन्ध में उत्तर प्रदेश शासन के प्रमुख सचिव द्वारा जारी पत्र सं0-१०६४/९-आ-१-९६ दिनांक ०५ मार्च, १९९६ के अनुसार जहॉं तक सम्भव हो अतिरिक्त भूखण्ड यदि नये भूखण्ड के रूप में प्रयोग में लाया जा सकता है तो उसे नया भूखण्ड बनाकर आबंटित किया जाय। प्रस्तुत प्रकरण में भवन सं0-५९ बी का कुल क्षेत्रफल ८१.७८ वर्ग मीटर है और विवादित अतिरिक्त भूमि का क्षेत्रफल २३९.२७ वर्ग मीट है। इस
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प्रकार अतिरिक्त भूमि को ७९ – ८० वर्ग मीटर के ०३ भूखण्डों में सृजित कर आबंटन किया जा सकता था और उसे किसी प्रकार से भी ऐसी अतिरिक्त भूमि नहीं माना जा सकता था कि जिसमें अलग से भूखण्ड सृजित करना सम्भव न हो। अपीलार्थी की ओर से यह तर्क भी प्रस्तुत किया गया कि परिवादिनी के पति द्वारा प्राधिकरण के किसी लिपिक से साजकर विवादित मांग पत्र जारी कराया गया और बिना कोई आबंटन आदेश प्राप्त किये भूखण्ड की मनमानी कीमत जमा करा दी गई। अपीलार्थी की ओर से यह तर्क भी प्रस्तुत किया गया कि परिवादिनी के पति द्वारा प्रश्नगत अतिरिक्त भूमि के सन्दर्भ में जमा की गई धनराशि तत्कालीन योजना के अन्तर्गत निर्धारित ब्याज दर के अनुसार परिवादिनी को वापस की जा सकती है।
प्रत्यर्थी/परिवादिनी के विद्वान अधिवक्ता द्वारा यह तर्क प्रस्तुत किया गया कि प्रश्नगत अतिरिक्त भूमि के स्वयं अपीलार्थी द्वारा निर्धारित मूल्य की सूचना प्रत्यर्थी/परिवादिनी के पति को प्रेषित की गई तथा निर्धारित मूल्य के किश्तों की अदायगी की सूचना भी प्रत्यर्थी/परिवादिनी के पति को वर्ष १९९१ में प्रेषित की गई। प्रत्यर्थी/परिवादिनी के पति द्वारा समय-समय पर किश्तों का भुगतान किया गया। अपीलार्थी द्वारा समय-समय पर भिन्न-भिन्न धनराशि का मांग पत्र जारी किए जाने के कारण प्रत्यर्थी/परिवादिनी के पति द्वारा आवेदन पत्र ओ0टी0एस0 योजना के अन्तर्गत प्रस्तुत किया गया। इस ओ0टी0एस0 योजना के अन्तर्गत प्रत्यर्थी/परिवादिनी के पति को प्रश्नगत अतिरिक्त भूमि की देय धनराशि से अवगत कराया गया। तद्नुसार देय धनराशि की अदायगी की गई। तदोपरान्त २० वर्ष से अधिक समय बीत जाने के उपरान्त अपीलार्थीगण द्वारा यह कहा जा रहा है कि अतिरिक्त भूमि का आबंटन प्रत्यर्थी/परिवादिनी के पति के पक्ष में नहीं किया गया। यदि प्रत्यर्थी/परिवादिनी के पति के पक्ष में प्रश्नगत भूमि का आबंटन नहीं किया गया होता तब स्वाभाविक रूप से अपीलार्थी द्वारा इस भूमि के सन्दर्भ में धनराशि प्राप्त नहीं की गई होती। यदि गलती से धनराशि प्राप्त की ली गई थी तो यह धनराशि प्रत्यर्थी/परिवादिनी के पति को वापस की जाती। यदि अपीलार्थी के कर्मचारियों द्वारा अवैध रूप से अतिरिक्त भूमि के सन्दर्भ में मांग पत्र जारी किया गया तब ऐसे कर्मचारियों/ अधिकारियों के विरूद्ध कोई कार्यवाही अपीलार्थी द्वारा की गई होती किन्तु ऐसी कोई कार्यवाही अपीलार्थी द्वारा सम्बन्धित कर्मचारियों/अधिकारियों के विरूद्ध नहीं की गई। ऐसी परिस्थिति में यह नहीं माना जा
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सकता कि वस्तुत: प्रश्नगत अतिरिक्त भूमि का आबंटन प्रत्यर्थी/परिवादिनी के पति के पक्ष में नहीं किया गया।
उल्लेखनीय है कि प्रस्तुत प्रकरण के सन्दर्भ में मुख्य विवाद यह है कि क्या प्रत्यर्थी/परिवादिनी के पति स्व0 श्री अजय सरीन को आबंटित भवन सं0-५९ बी से संलग्न अतिरिक्त भूमि का आबंटन प्रत्यर्थी/परिवादिनी के पति को किया गया ?
अपीलार्थी का यह स्पष्ट कथन है कि इस भूमि का प्रत्यर्थी/परिवादिनी के पति के पक्ष में कोई आबंटन आदेश जारी नहीं किया गया। परिवाद के अभिकथनों में यह आबंटन दिनांक १५-०५-१९९१ का बताया गया है किन्तु १५-०५-१९९१ का परिवादिनी के पति के पक्ष में प्रश्नगत अतिरिक्त भूमि का कोई आबंटन आदेश परिवादिनी द्वारा दाखिल नहीं किया गया, जबकि भवन सं0-५९ बी के परिवादिनी के पति के पक्ष में जारी किए गये आबंटन आदेश दिनांकित २३-०७-१९८८ की फोटोप्रति दाखिल की गई है। यह तथ्य निर्विवाद है कि अपीलार्थी के सचिव द्वारा जारी किए गये पत्र दिनांकित १५-०५-१९९१ द्वारा प्रश्नगत अतिरिक्त भूमि का मूल्य निर्धारित करते हुए तथा मूल्य की अदायगी हेतु किश्तें निर्धारित करते हुए सूचना परिवादिनी के पति को प्रेषित की गई किन्तु इस मांग पत्र को आबंटन आदेश के रूप में स्वीकार नहीं किया जा सकता। अपीलार्थी का यह भी कथन है कि सचिव को प्राधिकरण की भूमि/भवन आबंटित करने का कोई अधिकार भी प्राप्त नही है। यह अधिकार मात्र उपाध्यक्ष को प्राप्त है। इस सन्दर्भ में उन्होंने हमारा ध्यान अपील मेमो के साथ संलग्न पृष्ठ सं0-३३ लगायत ३६ की ओर आकृष्ट किया। यह भी उल्लेखनीय है कि प्रश्नगत अतिरिक्त भूमि का क्षेत्रफल २३९.२७ वर्ग मीटर है। यह भूमि परिवादिनी के पति को आबंटित भवन सं0-५९ बी से संलग्न भूमि बताई गई है। भवन सं0-५९ बी की भूमि का क्षेत्रफल ८१.७८ वर्ग मीटर बताया गया है। अतिरिक्त भूमि आबंटन के सन्दर्भ में उत्तर प्रदेश शासन के प्रमुख सचिव द्वारा जारी किए गये पत्र दिनांकित ०५-०३-१९९६ में दिए गये दिशा निर्देश, जिसकी फोटोप्रति अपील मेमो के साथ संलग्न पृष्ठ सं0-४६ के रूप में दाखिल की गई है के अनुसार यदि अतिरिक्त भूमि में स्वतन्त्र भूखण्ड निर्मित हो सकते हैं तो यथा सम्भव स्वतन्त्र भूखण्ड निर्मित किए जायें। प्रस्तुत प्रकरण में भवन सं0-५९ बी के साथ संलग्न भूमि का क्षेत्रफल इस भवन के क्षेत्रफल से लगभग ०३ गुना अधिक है और इसमें लगभग ८०
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वर्ग मीटर के ०३ भूखण्ड निर्मित किए जा सकते हैं।
उपरोक्त तथ्यों के आलोक में प्रश्नगत अतिरिक्त भूमि के सन्दर्भ में अपीलार्थी के उपाध्यक्ष द्वारा अथवा उनके द्वारा अनुमोदित कोई आबंटन पत्र जारी किया जाना प्रमाणित न होने के कारण इस भूमि का आबंटन परिवादिनी के पति के पक्ष में किया जाना स्वीकार किए जाने योग्य नहीं है।
उल्लेखनीय है कि इस अतिरिक्त भूमि के सापेक्ष परिवादिनी के पति द्वारा धनराशि जमा की जाती रही है जिसे अपीलार्थी द्वारा स्वीकार भी किया गया है। अपीलार्थी की ओर से यह धनराशि तत्कालीन योजना में प्रचलित ब्याज दर के अनुसार ०५ प्रतिशत वार्षिक की दर से वापस किया जाना भी प्रस्तावित किया जा रहा है। स्वयं अपीलार्थी का यह कथन है कि प्रश्नगत विवादित भूमि का कोई आबंटन परिवादिनी के पति के पक्ष में नहीं किया गया। ऐसी परिस्थिति में जमा की गई धनराशि पर तत्कालीन योजना के अनुसार वापसी के लिए ब्याज दर निर्धारित किए जाने का कोई औचित्य नहीं होगा। अपीलार्थीगण द्वारा जिला मंच के समक्ष कोई ऐसी साक्ष्य प्रस्तुत नहीं की गई कि प्रश्नगत भूमि के सन्दर्भ में धनराशि जमा किए जाने हेतु मांग पत्र जारी करवाने में परिवादिनी के पति की भी कोई भूमिका रही।
वर्ष १९९१ में अतिरिक्त भूमि का मूल्य निर्धारित करते हुए देय धनराशि के भुगतान हेतु मांग पत्र अपीलार्थी के सचिव द्वारा जारी किया गया, अपीलार्थी की ओर से किए गए पत्राचारों में आबंटन स्वीकार किया गया तथा इस अतिरिक्त भूमि के मूल्य के सापेक्ष धनराशि प्राप्त की जाती रही है। तदोपरान्त २० वर्ष से अधिक समय बीतने के बाद अपीलार्थी द्वारा कहा जा रहा है कि लिपिकगण ने सॉंठ-गॉंठ करके बिना आबंटन के धनराशि का भुगतान करने हेतु मांग पत्र सचिव से जारी करा लिया किन्तु इस अवैध कृत्य हेतु किसी कर्मचारी/अधिकारी के विरूद्ध की गई किसी कार्यवाही से अवगत नहीं कराया गया। मात्र प्रश्नगत अतिरिक्त भूमि का परिवादिनी के पति के पक्ष में कथित आबंटन अस्वीकार करके अपीलार्थीगण द्वारा अपने कर्त्तव्यों की इतिश्री कर ली गई। अपीलार्थीगण का यह आचरण स्पष्ट रूप से अनुचित व्यापार प्रथा कारित करने एवं तद्नुसार सेवा में त्रुटि का है।
परिवादिनी के पति को अतिरिक्त भूमि के मूल्य की अदायगी हेतु भेजे गए पत्र में निर्धारित अवधि में धनराशि की अदायगी न किए जाने की स्थिति में १८ प्रतिशत वार्षिक ब्याज
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के भुगतान की मांग की गई है। परिवादिनी के पति से स्वयं अपीलार्थीगण के कथनानुसार बिना आबंटन के धनराशि के भुगतान की मांग की गई तथा भुगतान प्राप्त किया गया। ऐसी परिस्थिति में परिवादिनी को भी अतिरिक्त भूमि के सापेक्ष जमा की गई धनराशि पर धनराशि जमा करने की तिथि से १८ प्रतिशत वार्षिक साधारण ब्याज दिलाया जाना न्यायोचित होगा। अपील तद्नुसार आंशिक रूप से स्वीकार किए जाने योग्य है।
आदेश
प्रस्तुत अपील आंशिक रूप से स्वीकार की जाती है। जिला मंच, मथुरा द्वारा परिवाद सं0-१३७/२०१३ में पारित निर्णय एवं आदेश दिनांक २३-०८-२०१८ अपास्त किया जाता है। परिवाद आंशिक रूप से स्वीकार किया जाता है। अपीलार्थीगण को निर्देशित किया जाता है कि निर्णय की प्रति प्राप्ति की तिथि से ३० दिन के अन्दर प्रत्यर्थी/परिवादिनी को परिवादिनी के पति के पक्ष में आबंटित भवन सं0-५९ बी से संलग्न अतिरिक्त भूमि के सन्दर्भ में जमा की गई धनराशि मय ब्याज अदा करे। इस धनराशि पर परिवादिनी, धनराशि जमा किए जाने की तिथि से सम्पूर्ण धनराशि की अदायगी तक १८ प्रतिशत वार्षिक साधारण ब्याज प्राप्त करने की अधिकारिणी होगी। इसके अतिरिक्त अपीलार्थीगण को यह भी निर्देशित किया जाता है कि भवन सं0-५९ बी के विक्रय पत्र के सन्दर्भ में परिवादिनी द्वारा नियमानुसार समस्त औपचारिकताऐं पूर्ण किए जाने के उपरान्त १५ दिन के अन्दर इस भवन का विक्रय पत्र परिवादिनी के पक्ष में निष्पादित किया जाना सुनिश्चित करें। अपीलार्थीगण को यह भी निर्देशित किया जाता है कि निर्धारित अवधि में परिवादिनी को ५०००/- रू० वाद व्यय के रूप में भी अदा करे। ब्याज एवं वाद व्यय की उपरोक्त धनराशि परिवादिनी को अदा करने के उपरान्त अपीलार्थीगण अपने अधीनस्थ दोषी कर्मचारियों/अधिकारियों से बसूल करने के लिए स्वतन्त्र होंगे।
उभय पक्ष इस अपील का व्यय-भार स्वयं अपना-अपना वहन करेंगे।
उभय पक्ष को इस निर्णय की प्रमाणित प्रति नियमानुसार उपलब्ध करायी जाय।
(उदय शंकर अवस्थी) (गोवर्द्धन यादव)
पीठासीन सदस्य सदस्य
प्रमोद कुमार
वैय0सहा0ग्रेड-१,
कोर्ट-१.