Uttar Pradesh

StateCommission

A/250/2016

Ansal Housing & Construction Ltd - Complainant(s)

Versus

Dr. Harendra Singh Yadav - Opp.Party(s)

Sanjiv Singh

01 Jun 2018

ORDER

STATE CONSUMER DISPUTES REDRESSAL COMMISSION, UP
C-1 Vikrant Khand 1 (Near Shaheed Path), Gomti Nagar Lucknow-226010
 
First Appeal No. A/250/2016
( Date of Filing : 09 Feb 2016 )
(Arisen out of Order Dated 15/12/2015 in Case No. C/232/2014 of District Jhansi)
 
1. Ansal Housing & Construction Ltd
Delhi
...........Appellant(s)
Versus
1. Dr. Harendra Singh Yadav
Agra
...........Respondent(s)
 
BEFORE: 
 HON'BLE MR. JUSTICE AKHTAR HUSAIN KHAN PRESIDENT
 HON'BLE MR. Mahesh Chand MEMBER
 
For the Appellant:
For the Respondent:
Dated : 01 Jun 2018
Final Order / Judgement

राज्‍य उपभोक्‍ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ

अपील सं0- 250/2016

                                   (सुरक्षित)

 

(जिला उपभोक्‍ता विवाद प्रतितोष फोरम, झांसी द्वारा परिवाद सं0- 232/2014 में पारित आदेश दि0 15.12.2015 के विरूद्ध)

  1. M/s Ansal Housing and Construction Ltd. Through its Managing Director Registered office: 15 U.G.F., Indra prakash 21, Barahkhamba road, New Delhi.
  2. M/s Ansal Housing and Construction Ltd. Site Office: Shop no. 6, First floor, Opposite medical college, Distt. Jhansi. Through it’s Manager.

                                                                              ………Appellants

Versus

  1. Dr. Harendra singh yadav S/o Late Shri Nanak Chandra R/o 34/94 Khatipara, Loha mandi, Distt. Agra.
  2. Dr. Kirti W/o Shri Harendra singh yadav R/o 34/94 Khatipara, Loha mandi, Distt. Agra

                                                                     ………..Respondents

समक्ष:-                       

माननीय न्‍यायमूर्ति श्री अख्‍तर हुसैन खान, अध्‍यक्ष।

माननीय श्री महेश चन्‍द, सदस्‍य।   

अपीलार्थीगण की ओर से उपस्थित       : श्रीमती सुचिता सिंह,

                                     विद्वान अधिवक्‍ता।

प्रत्‍यर्थीगण  की ओर से उपस्थित         : श्री आलोक सिन्‍हा,

                                     विद्वान अधिवक्‍ता।

दिनांक:-  13.07.2018

 

माननीय न्‍यायमूर्ति श्री अख्‍तर हुसैन खान, अध्‍यक्ष  द्वारा उद्घोषित

                                                 

निर्णय

  परिवाद सं0- 232/2014 डॉ0 हरेन्‍द्र सिंह यादव व अन्‍य बनाम प्रबंधक निदेशक अंसल हाउसिंग एण्‍ड कंसट्रक्‍शन लि0 व एक अन्‍य में जिला फोरम, झांसी द्वारा पारित निर्णय और आदेश दि0 15.12.2015 के विरूद्ध यह अपील धारा 15 उपभोक्‍ता संरक्षण अधिनियम के अंतर्गत आयोग के समक्ष प्रस्‍तुत की गई है।

  आक्षेपित निर्णय और आदेश के द्वारा जिला फोरम ने परिवाद स्‍वीकार करते हुए निम्‍न आदेश पारित किया है:-

परिवादीगण का परिवाद स्‍वीकार किया जाता है और विपक्षीगण को आदेशित किया जाता है कि इस निर्णय के एक माह के भीतर प्रश्‍नगत यूनिट सं0- सी.एफ.एफ.52 की रजिस्‍ट्री परिवादीगण के पक्ष में निष्‍पादित करें तथा अनुबंध की शर्तों के अनुसार पूर्ण निर्मित यूनिट का भौतिक कब्‍जा प्रदान करें। विपक्षीगण परिवादीगण से ली गयी 2,62,000/-रू0 की अधिक धनराशि 12 प्रतिशत ब्‍याज की दर से परिवाद दाखिल करने की तिथि से भुगतान की तिथि तक परिवादीगण को अदा करे। विपक्षीगण क्षतिपूर्ति के रूप में मुब0-50,000/-रू0 एवं वाद व्‍यय के रूप में मुब0- 10,000/-रू0 परिवादीगण को प्रदान करेंगे।

  जिला फोरम के निर्णय और आदेश से क्षुब्‍ध होकर परिवाद के विपक्षीगण की ओर से यह अपील प्रस्‍तुत की गई है।   

  अपील की सुनवाई के समय अपीलार्थीगण की ओर से विद्वान अधिवक्‍ता श्रीमती सुचिता सिंह और प्रत्‍यर्थीगण की ओर से विद्वान अधिवक्‍ता श्री आलोक सिन्‍हा उपस्थित आये हैं।

  हमने उभयपक्ष के तर्क को सुना है और आक्षेपित निर्णय एवं आदेश तथा पत्रावली का अवलोकन किया है।

  अपील के निर्णय हेतु संक्षिप्‍त सुसंगत तथ्‍य इस प्रकार है कि प्रत्‍यर्थी/परिवादीगण ने उपरोक्‍त परिवाद जिला फोरम, झांसी के समक्ष इस कथन के साथ प्रस्‍तुत किया है कि उन्‍होंने विपक्षीगण के यहां यूनिट क्रय करने के लिए आवेदन किया, जिस पर विपक्षीगण ने उन्‍हें दि0 29.09.2009 को यूनिट सं0- सी0एफ0एफ052, 1300 स्‍क्‍वायर फिट (120.77 स्‍क्‍वायर मीटर) आवंटित किया जिसके कुल मूल्‍य 19,50,000/-रू0 से  डिसकाउंट काटकर मूल्‍य 18,98,000/-रू0 उन्‍हें बताया गया। परिवाद पत्र के अनुसार प्रारम्भिक रूप से उपरोक्‍त यूनिट का आवंटन परिवादी सं0- 1 डॉ0 हरेन्‍द्र सिंह के नाम था। बाद में दि0 27.03.2010 को उन्‍होंने अपने प‍त्‍नी का नाम जोड़ने के लिए आवंटन पत्र विपक्षीगण को दिया जिसकी रसीद विपक्षीगण के कर्मचारी सुशील चतुर्वेदी द्वारा दी गई और जून 2010 में परिवादी सं0- 1 की पत्‍नी परिवादिनी सं0- 2 डॉ0 कीर्ति का नाम यूनिट में जोड़ा गया। इस कारण परिवादीगण बैंक से फाइनेंस शीघ्र नहीं करा पाये। विपक्षीगण ने परिवादीगण से 25,000/-रू0 ब्‍याज का दि0 02.11.2010 को गलत तरीके से वसूला है।

  परिवाद पत्र के अनुसार प्रत्‍यर्थी/परिवादीगण का कथन है कि उनके और विपक्षीगण के बीच जो आवंटन अनुबंध हुआ था वह एकपक्षीय था। अनुबंध पत्र में विपक्षीगण ने पूरी शर्तें नहीं लिखी हैं और वे समय-समय पर न्‍यायालय द्वारा दिये गये निर्णय के अनुसार स्‍वयं अनुबंध को परिवर्तित कर लेते हैं। परिवाद पत्र के अनुसार प्रत्‍यर्थी/परिवादीगण का कथन है कि आवंटन पत्र विपक्षीगण ने जो दूसरे आवंटियों को दिया है उसमें उल्‍लेख है कि आवंटित यूनिट का पोजेशन आवंटन पत्र की तिथि से 36 महीने के अन्‍दर दिया जायेगा, बशर्ते कोई दैवीय आपदा न हो। परन्‍तु प्रत्‍यर्थी/परिवादीगण के आवंटन पत्र की धारा 29 में युक्तिसंगत समय के अन्‍दर आवंटित यूनिट का पोजेशन उपलब्‍ध कराये जाने का उल्‍लेख है जो अस्‍पष्‍ट है और भ्रामक है।

  परिवाद पत्र के अनुसार प्रत्‍यर्थी/परिवादीगण का कथन है कि उन्‍होंने 29.09.2009 से 01.08.2014 तक विभिन्‍न तिथियों में कुल 22,72,458.59/-रू0 का भुगतान विपक्षीगण को किया है। विपक्षीगण ने दि0 14.10.2010 को एक्‍सटर्नल डेवलपमेंट चार्जेस के तहत 11,700/-रू0 एवं क्‍लब फीस हेतु 12,500/-रू0 गलत तरीके से प्राप्‍त किया है, क्‍योंकि क्‍लब प्रारम्‍भ नहीं हुआ है और न ही परिवादी अभी उक्‍त यूनिट में रह रहा है, परिवादीगण उक्‍त यूनिट में जब निवास करने लगेंगे तब यह धनराशि देय होगी।

  परिवाद पत्र में प्रत्‍यर्थी/परिवादी ने कहा है कि विपक्षीगण ने आवंटन पत्र में जो सुविधायें परिवादी को बतायी थीं वे सुविधायें उपलब्‍ध नहीं करायी गई हैं और प्रत्‍यर्थी/परिवादीगण को आवंटित यूनिट को आवंटन पत्र की तिथि से 36 महीने के अन्‍दर कब्‍जा नहीं दिया गया है न ही रजिस्‍ट्री की गई है जब कि प्रत्‍यर्थी/परिवादीगण ने दि0 03.09.2012 तक आवंटित यूनिट के मूल्‍य 18,98,000/-रू0 हेतु 18,91,094/-रू0 का भुगतान कर दिया था।

  परिवाद पत्र के अनुसार प्रत्‍यर्थी/परिवादीगण का कथन है कि दि0 24.06.2014 को यूनिट का पोजेशन आफर भेजा गया है जिसमें 62,008/-रू0 की और मांग की गई है जो एलाटमेंट लेटर के अनुसार उचित नहीं है। परन्‍तु प्रत्‍यर्थी/परिवादीगण को आवंटित यूनिट का पोजेशन लेना था, अत: उन्‍होंने दि0 01.08.2014 को 2,62,500/-रू0 विपक्षीगण को अदा कर दिया है, फिर भी विपक्षीगण ने परिवाद प्रस्‍तुत करने तक परिवादीगण को आवंटित यूनिट का भौतिक कब्‍जा प्रदान नहीं किया है जिससे प्रत्‍यर्थी/परिवादीगण को 10,000/-रू0 प्रतिमाह मकान का किराया अदा करना पड़ रहा है।

  परिवाद पत्र के अनुसार अपीलार्थी/विपक्षीगण द्वारा प्रत्‍यर्थी/परिवादीगण को नोटिस दी जा रही है कि वे फायर फाइटिंग क्‍लब फीस, वाटर कनेक्‍शन चार्जेस, सीवर कनेक्‍शन चार्जेस एवं अन्‍य चार्जेस का भुगतान 2,62,490.91/-रू0 करें, अन्‍यथा उसकी यूनिट का आवंटन निरस्‍त कर दिया जायेगा, परन्‍तु जब परिवादीगण ने मौके का निरीक्षण किया तो पाया कि उन्‍हें आवंटित यूनिट का निर्माण पूरा नहीं है और रोड भी नहीं बनी है तथा उन्‍हें आवंटित यूनिट के सामने से ट्रक निकल रही है, अत: प्रत्‍यर्थी/परिवादीगण ने जिला फोरम के समक्ष अपीलार्थी/विपक्षीगण के विरुद्ध परिवाद प्रस्‍तुत कर निम्‍न अनुतोष चाहा है:-

  1. यह कि परिवादीगणों के पक्ष में बिना कोई अतिरिक्‍त चार्ज लिये हुए यूनिट नम्‍बर C-FFS2 की रजिस्‍ट्री की जावे, एवं भौतिक कब्‍जा बुकलेट में दी गई सुविधाओं के अनुसार प्रदान किया जावे।
  2. यह कि यूनिट की कीमत 19,04,914.90/-रू0 के अलावा 22,72,458.59/-रू0 लिये गये हैं जो 3,67,543.69/-रू0 अधिक लिये गये हैं उक्‍त धनराशि 30.09.2012 से भुगतान की तिथि तक 24 प्रतिशत ब्‍याज सहित दिलाया जाये।
  3. यह कि 62,008/-रू0 जो अतिरिक्‍त सिक्‍योरिटी के चार्ज लिये गये हैं वह भी वापस दिलाया जाये अथवा भविष्‍य में जब परिवादीगण निवास करें तो उसमें समायोजित किया जावे।
  4. यह कि जो किराये में 1,50,000/-रू0 अब तक दिसम्‍बर 2014 तक भुगतान किये गये हैं उक्‍त धनराशि भी दिलायी जावे, एवं जनवरी 2015 से यूनिट का भौतिक कब्‍जा प्रदान न करने पर 10,000/-रू0 प्रतिमाह दिलाया जावे।
  5. यह कि मानसिक कष्‍ट के तहत 5,00,000/-रू0 दिलाया जावे एवं परिवाद खर्चे का 25,000/-रू0 दिलाया जावे।
  6. यह कि अन्‍य मुआवजा जो न्‍यायालय की राय में जो उचित हो वह भी दिलाया जावे।

  जिला फोरम के समक्ष अपीलार्थी/विपक्षीगण ने लिखित कथन प्रस्‍तुत किया है जिसमें कहा गया है कि परिवाद गलत कथन के साथ प्रस्‍तुत किया गया है। अनुबंध के अनुसार विवाद की स्थिति में विवाद आर्बीट्रेशन को संदर्भित किये जाने का प्राविधान है। अत: जिला फोरम को परिवाद सुनने का अधिकार नहीं है।

  लिखित कथन में अपीलार्थी/विपक्षीगण की ओर से कहा गया है कि प्रत्‍यर्थी/परिवादीगण को यूनिट Construction linked plan-C के अंतर्गत  आवंटित की गई थी और यूनिट की कीमत 18,98,000/-रू0 बतायी गई थी जिसमें क्‍लब फीस, कबर्ड कार पार्किंग, ई.डी.सी., प्रीपेड इलेक्ट्रिक मीटर, स्‍टाम्‍प डयूटी तथा रजिस्‍ट्रेशन आदि अनेक मद की धनराशि नहीं जोड़ी गई थी। लिखित कथन में अपीलार्थी/विपक्षीगण की ओर से यह भी कहा गया है कि एग्रीमेंट में एलाटमेंट के 36 माह के भीतर भौतिक कब्‍जा देने की बात नहीं कही थी। एलाटमेंट के एग्रीमेंट के प्रस्‍तर 29 में यह कहा गया था कि विपक्षीगण आवंटी को कब्‍जा युक्तिसंगत समय के अन्‍दर देने का प्रयास करेंगे। लिखित कथन में अपीलार्थी/विपक्षी की ओर से कहा गया है कि उन्‍होंने कब्‍जा के आफर का पत्र प्रत्‍यर्थी/परिवादीगण को भेजा था, परन्‍तु वे स्‍वयं कब्‍जा नहीं ले रहे हैं जिसके कारण रजिस्‍ट्री का निष्‍पादन नहीं हो पा रहा है।

  लिखित कथन में अपीलार्थी/विपक्षीगण ने कहा है कि उन्‍होंने सेवा में कोई त्रुटि नहीं की है। परिवाद निरस्‍त किये जाने योग्‍य है।

  लिखित कथन में विपक्षीगण ने यह भी कहा है कि परिवाद जिला फोरम के आर्थिक क्षेत्राधिकार से परे है।  

  जिला फोरम ने उभयपक्ष के अभिकथन एवं उपलब्‍ध साक्ष्‍यों पर विचार करने के उपरांत परिवाद स्‍वीकार करते हुए उपरोक्‍त प्रकार से आदेश पारित किया है।

  अपीलार्थीगण की विद्वान अधिवक्‍ता का तर्क है कि जिला फोरम द्वारा पारित निर्णय और आदेश साक्ष्‍य और विधि के विरुद्ध है। परिवाद जिला फोरम के आर्थिक क्षेत्राधिकार से परे है, अत: जिला फोरम ने जो आक्षेपित निर्णय और आदेश पारित किया है वह अधिकार रहित और विधि विरुद्ध है।

  प्रत्‍यर्थी/परिवादीगण के विद्वान अधिवक्‍ता का तर्क है कि जिला फोरम द्वारा पारित निर्णय और आदेश साक्ष्‍य और विधि के अनुकूल है।

  अपीलार्थी/विपक्षीगण की ओर से जिला फोरम के समक्ष आर्थिक क्षेत्राधिकार के आधार पर परिवाद जिला फोरम की अधिकारिता से परे होने का कथन नहीं किया गया है। अत: ऐसी स्थिति में अब अपीलार्थी/विपक्षीगण जिला फोरम के निर्णय और आदेश को आर्थिक क्षेत्राधिकार के आधार पर चुनौती नहीं दे सकते हैं।

  हमने उभयपक्ष के तर्क पर विचार किया है।

  अपीलार्थी/विपक्षीगण की ओर से जिला फोरम के समक्ष परिवाद में प्रस्‍तुत लिखित कथन की धारा 12 में यह स्‍पष्‍ट रूप से कहा गया है कि जिला फोरम को विवाद के निस्‍तारण का आर्थिक क्षेत्राधिकार नहीं है, परन्‍तु इस बिन्‍दु पर जिला फोरम ने विचार किये बिना आक्षेपित निर्णय और आदेश पारित किया है।

  परिवाद पत्र में प्रत्‍यर्थी/परिवादीगण ने अनुतोष सं0- 1 में आवंटित यूनिट नं0- C-FFS2 की रजिस्‍ट्री एवं भौतिक कब्‍जा की मांग की है और अनुतोष सं0- 2 इस आशय का चाहा है कि यूनिट की कीमत 19,04,914.90/-रू0 के स्‍थान पर विपक्षीगण ने 22,72,458.59/-रू0 उनसे लिया है। अत: 3,67,543.69/-रू0 की अधिक ली गई धनराशि 30.09.2012 से भुगतान की तिथि तक 24 प्रतिशत ब्‍याज सहित दिलाया जाए। इसके साथ ही प्रत्‍यर्थी/परिवादीगण ने परिवाद पत्र में अनुतोष सं0- 3 62,008/-रू0 सिक्‍योरिटी चार्जेस के रूप में विपक्षीगण द्वारा ली गई धनराशि को वापस दिलाये जाने के सम्‍बन्‍ध में चाहा है। इसके साथ ही प्रत्‍यर्थी/परिवादीगण ने अनुतोष 4 और 5 में 1,50,000/-रू0 दिसम्‍बर 2014 तक का किराया और 5,00,000/-रू0 मानसिक कष्‍ट हेतु क्षतिपूर्ति चाहा है। इस प्रकार मा0 राष्‍ट्रीय आयोग द्वारा अम्‍बरीश शुक्‍ला आदि बनाम फेरस इंफ्रास्‍ट्रक्‍चर प्राइवेट लि0 2016 (4) सी0पी0आर0 83 के वाद में दिये गये निर्णय में प्रतिपादित सिद्धांत के आधार पर परिवाद का मूल्‍यांकन 20,00,000/-रू0 से बहुत अधिक है जब कि जिला फोरम का मात्र 20,00,000/-रू0 तक के परिवाद की सुनवाई का क्षेत्राधिकार है। ऐसी स्थिति में यह स्‍पष्‍ट है कि जिला फोरम के समक्ष प्रस्‍तुत वर्तमान परिवाद जिला फोरम के आर्थिक क्षेत्राधिकार से परे है और इस संदर्भ में अपीलार्थी/विपक्षीगण की ओर से लिखित कथन की धारा 12 में स्‍पष्‍ट आपत्ति अंकित की गई है, परन्‍तु जिला फोरम ने उस पर विचार किये बिना आक्षेपित निर्णय और आदेश पारित किया है। अत: हम इस मत के हैं कि प्रत्‍यर्थी/परिवादीगण द्वारा प्रस्‍तुत परिवाद जिला फोरम के आर्थिक क्षेत्राधिकार से परे है और जिला फोरम ने परिवाद ग्रहण कर जो आक्षेपित निर्णय और आदेश पारित किया है वह अधिकार रहित और विधि विरुद्ध है। अत: जिला फोरम द्वारा पारित आक्षेपित निर्णय और आदेश अपास्‍त करते हुए प्रत्‍यर्थी/परिवादीगण द्वारा प्रस्‍तुत परिवाद उन्‍हें इस छूट के साथ निरस्‍त किया जाना उचित है कि वे विधि के अनुसार सक्षम फोरम अथवा न्‍यायालय के समक्ष अपना दावा प्रस्‍तुत करने हेतु स्‍वतंत्र हैं।

  उपरोक्‍त निष्‍कर्ष के आधार पर अपील स्‍वीकार की जाती है और जिला फोरम द्वारा पारित आक्षेपित निर्णय और आदेश अपास्‍त करते हुए परिवाद जिला फोरम के आर्थिक क्षेत्राधिकार से परे होने के कारण प्रत्‍यर्थी/परिवादीगण को इस छूट के साथ निरस्‍त किया जाता है कि वे अपना दावा विधि के अनुसार सक्षम फोरम अथवा न्‍यायालय में प्रस्‍तुत करने हेतु स्‍वतंत्र हैं।

  अपील में उभयपक्ष अपना-अपना वाद व्‍यय स्‍वयं वहन करेंगे।                            

 

       

       (न्‍यायमूर्ति अख्‍तर हुसैन खान)           (महेश चन्‍द)                                  

                             अध्‍यक्ष                       सदस्‍य            

शेर सिंह आशु0,

कोर्ट नं0-1

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 
 
[HON'BLE MR. JUSTICE AKHTAR HUSAIN KHAN]
PRESIDENT
 
[HON'BLE MR. Mahesh Chand]
MEMBER

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