(मौखिक)
राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ
अपील संख्या-653/2014
पंजाब नेशनल बैंक
बनाम
डा0 शेखर श्रीवास्तव तथा एक अन्य
एवं
अपील संख्या-687/2014
डा0 शेखर श्रीवास्तव तथा एक अन्य
बनाम
ब्रांच मैनेजर, पंजाब नेशनल बैंक
समक्ष:-
1. माननीय श्री राजेन्द्र सिंह, सदस्य।
2. माननीय श्री सुशील कुमार, सदस्य।
परिवादीगण की ओर से उपस्थित : श्री आर.के. मिश्रा,
विद्वान अधिवक्ता।
विपक्षी बैंक की ओर से उपस्थित : श्री एस.एम. बाजपेयी, विद्वान
अधिवक्ता।
दिनांक : 03.08.2023
माननीय श्री सुशील कुमार, सदस्य द्वारा उदघोषित
निर्णय
1. परिवाद संख्या-426/2010, डा0 शेखर श्रीवास्तव तथा एक अन्य बनाम ब्रांच मैनेजर, पंजाब नेशनल बैंक में विद्वान जिला आयोग, इलाहाबाद (अतिरिक्त पीठ) द्वारा पारित निर्णय/आदेश दिनांक 28.2.2014 के विरूद्ध अपील संख्या-653/2014 विपक्षी, पंजाब नेशनल बैंक द्वारा प्रस्तुत की गई है, जबकि अपील संख्या-687/2014 स्वंय परिवादीगण द्वारा क्षति की राशि में बढ़ोत्तरी के लिए प्रस्तुत की गई है। चूंकि दोनों
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अपीलें एक ही निर्णय/आदेश से क्षुब्ध होकर प्रस्तुत की गई हैं, इसलिए दोनों अपीलों का निस्तारण एक साथ किया जा रहा है। इस हेतु अपील संख्या-653/2014 अग्रणी अपील होगी और इस निर्णय/आदेश की मूल प्रति अपील संख्या-653/2014 में रखी जाए और इसकी एक सत्य प्रति संबंधित अपील मे भी रखी जाए।
2. उभय पक्ष के विद्वान अधिवक्तागण को सुना गया तथा प्रश्नगत निर्णय/आदेश एवं पत्रावलियों का अवलोकन किया गया।
3. परिवाद के तथ्यों के अनुसार परिवादीगण ने विपक्षी बैंक से अंकन 14 लाख रूपये का ऋण दिनांक 8.6.2004 को लिया था। परिवादीगण अंकन 11,900/-रू0 लोन अकाउण्ट में जमा करते हुए कुल 7,11,113/-रू0 जमा किए। परिवादीगण ने अंकन 99,913/-रू0 अधिक भुगतान किए हैं, जो अगले मासिक किश्तों में समायोजित होना है। विपक्षी द्वारा बाद में एक नया एग्रीमेंट दिनांक 15.9.2007 को जिसके द्वारा ऋण की राशि पुन: अंकन 14 लाख रूपये कर दी गई, परन्तु ईएमआई 11,900/-रू0 ही रखी गई। एक मुश्त योजना के अंतर्गत परिवादीगण ने विपक्षी के यहां दिनांक 13/14.9.2007 को लगभग 2,15,000/-रू0 जमा किया था और उस समय 11,41,106/-रू0 बकाया दिखाया गया था। परिवादीगण की धनराशि समायोजित नहीं की गई और अंकन 14 लाख रूपये का ऋण पुन: बना दिया गया। परिवादीगण द्वारा लगभग 13 लाख रूपये जमा किया जा चुका है। परिवादीगण ने जब स्टेटमेंट आफ अकाउण्ट देखा तो उसमें 1,08,459/-रू0 अतिरिक्त दिखाया जा रहा है और 12,49,565/-रू0 दिखाया गया है, इसकी शिकायत की गई, परन्तु कोई कार्यवाही नहीं हुई।
4. विपक्षी का कथन है कि परिवादीगण ने नियमित रूप से मासिक किश्तों का भुगतान नहीं किया। यद्यपि इस तथ्य को स्वीकार
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किया कि दिनांक 13.9.2007 को अंकन 1,50,000/-रू0 एवं दिनांक 14.9.2007 को अंकन 62,500/-रू0 परिवादीगण द्वारा जमा किए गए, परन्तु आगे कथन किया गया कि यह राशि जमा करने के बावजूद अंकन 11,41,106/-रू0 बकाया थे। यह ऋण खाता एनपीए हो गया था, परन्तु उपरोक्त वर्णित राशि जमा करने के पश्चात खाता एनपीए से बाहर होकर पुन: नियमित हो गया, इसलिए इस अवधि के दौरान जो ब्याज नहीं लगा था, वह ब्याज अंकन 1,08,459/-रू0 था, जिसे समायोजित किया गया है।
5. विद्वान जिला आयोग द्वारा इस बिन्दु पर यह निष्कर्ष दिया गया कि परिवादीगण ने बैंक के साथ एक पूरक समझौता किया था, उस समय अंकन 11,41,106/-रू0 बकाया दिखाया गया था, जिसमें सभी प्रकार का बकाया शामिल था, इसलिए परिवादीगण अतिरिक्त धनराशि देने के लिए बाध्य नहीं हैं। तदनुसार अंकन 1,08,459/-रू0 घटाते हुए शेष राशि पर ब्याज की गणना करते हुए वसूली का आदेश पारित किया है।
6. अपीलार्थी, बैंक के विद्वान अधिवक्ता ने अपने तर्क के समर्थन में परिपत्र प्रस्तुत किया है, जिसके अनुसार जब कोई खाता एनपीए हो जाता है तब ब्याज राशि अलग अंकित हो जाती है, परन्तु चूंकि प्रस्तुत केस में परिवादीगण ने सशपथ साबित किया है कि परिवादीगण द्वारा बैंक के साथ एक पूरक समझौता किया गया है, जिसमें अंकन 11,41,106/-रू0 बकाया दर्शाए गए थे। बैंक ने भी अपने लिखित कथन में इस राशि का उल्लेख किया है। अत: इस राशि को घटाने के पश्चात अवशेष राशि की वसूली के संबंध में विद्वान जिला आयोग द्वारा पारित किया गया निर्णय/आदेश विधिसम्मत है। अत: बैंक द्वारा प्रस्तुत की गई अपील संख्या-653/2014 निरस्त होने योग्य है।
7. अब परिवादीगण द्वारा क्षतिपूत्रि की राशि में बढ़ौत्तरी के लिए प्रस्तुत की गई अपील पर विचार किया जाता है। चूंकि अंकन
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1,08,459/-रू0 की गणना की गई है, इसी राशि को विद्वान जिला आयोग द्वारा घटाने का आदेश पारित किया गया है, इसलिए क्षतिपूर्ति की मद में अन्य कोई अनुतोष प्रदत्त करने की कोई आवश्यकता नहीं है। तदनुसार अपील संख्या-687/2014 भी निरस्त होने योग्य है।
आदेश
8. उपरोक्त दोनों अपीलें, अर्थात् अपील संख्या-653/2014 एवं अपील संख्या-687/2014 निरस्त की जाती हैं।
उभय पक्ष अपना-अपना व्यय भार स्वंय वहन करेंगे।
प्रस्तुत अपीलों में अपीलार्थी द्वारा यदि कोई धनराशि जमा की गई हो तो उक्त जमा धनराशि अर्जित ब्याज सहित सम्बन्धित जिला आयोग को यथाशीघ्र विधि के अनुसार निस्तारण हेतु प्रेषित की जाए।
आशुलिपिक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस निर्णय एवं आदेश को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दे।
(सुशील कुमार) (राजेन्द्र सिंह)
सदस्य सदस्य
निर्णय एवं आदेश आज खुले न्यायालय में हस्ताक्षरित, दिनांकित होकर उद्घोषित किया गया।
(सुशील कुमार) (राजेन्द्र सिंह)
सदस्य सदस्य
दि. 3.8.2023
लक्ष्मन, आशु0,
कोर्ट-2