Uttar Pradesh

Chanduali

MA/86/2016

Ravindra Gupta - Complainant(s)

Versus

Dr Santosh - Opp.Party(s)

C.M Tripathi

20 Feb 2017

ORDER

District Consumer Disputes Redressal Forum, Chanduali
Final Order
 
Miscellaneous Application No. MA/86/2016
In
00
 
1. Ravindra Gupta
mauja Kamalpur Post-Kamlapur Thana Dhina
Chandauli
UP
...........Appellant(s)
Versus
1. Dr Santosh
Dewkali Road Kamalpur Thana-Dhina
Chandauli
UP
...........Respondent(s)
 
BEFORE: 
 HON'BLE MR. JUSTICE Ramjeet Singh Yadav PRESIDENT
 HON'BLE MR. Lachhaman Swaroop MEMBER
 
For the Appellant:
For the Respondent:
Dated : 20 Feb 2017
Final Order / Judgement

20-2-2017
    पत्रावली आदेशार्थ हुई। परिवादी के प्रार्थना पत्र अर्न्तगत धारा 24क(।।)उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम पर परिवादी की एक पक्षीय बहस सुनी गयी है,पत्रावली का सम्यक रूपेण परिशीलन किया गया।
    परिवादी के अधिवक्ता द्वारा यह तर्क दिया गया कि प्रस्तुत मामले में परिवादी दिनांक 1-11-2007 को प्रातः 8 बजे इनायतपुर से अपनी मोटरसाइकिल से कमालपुर की ओर आ रहा था कि रास्ते में एक बच्चे को बचाने में मोटरसाइकिल पलट गयी जिससे परिवादी के दाहिने पैर से चोट लग गयी जिससे वहॉं मौजूद लोगों ने परिवादी को विपक्षी संख्या 1 के हास्पिटल में भर्ती कराया। विपक्षी संख्या 1 ने परिवादी के दाहिने पैर का दिनांक 1-11-2007 को एक्सरे किया और बताया कि परिवादी के दाहिने पैर में फैक्चर हो गया है तत्पश्चात विपक्षी संख्या 1 द्वारा परिवादी के पैर में प्लास्टर चढा दिया गया और एक माह तक प्लास्टर बांधे रखने की सलाह दी गयी और रू0 15000/- का बिल बनाकर परिवादी को दिया। विपक्षी संख्या 1 द्वारा एक माह बाद प्लास्टर काटने के बाद परिवादी के दाहिने पैर में सूजन होगया और मवाद बनने लगा। परिवादी ने विपक्षी संख्या 1 को दिखाया तो कुछ दवा लिखकर 15 दिन बाद आने की सलाह दिये । किन्तु परिवादी के दाहिने पैर में मवाद काफी फैलने लगा तब परिवादी ने शर्मा फैक्चर क्लीनिक मुगलसराय में दिनांक 6-12-2007 को दिखाया तो डाक्टर ने परिवादी के पैर का एक्सरे किया तो एक्सरे में पैर की हड्डी में फैक्चर नहीं पाया और पैर के ऊपर से चोट लगने और एक माह तक प्लास्टर बांधे रखने की वजह से पैर में संक्रमण हो गया जिससे परिवादी के पैर काटने की स्थिति में आ गयी। तत्पश्चात परिवादी ने दिनांक 12-12-2007 को लाइफ लाइन हास्पिटल मुगलसराय में डा0 राजेश कुमार को दिखाया जहॉं डाक्टर द्वारा दवा देने पर परिवादी को कुछ राहत महसूस होने लगी लेकिन दवा का पावर ज्यादा होने के कारण परिवादी का पैर सूख कर काफी पतला होने लगा जिससे परिवादी को चलने-फिरने में काफी मुसीबत का सामना करना पडा। परिवादी ने दिनांक 20-8-2008 को न्यायालय न्यायिक मजिस्ट्रेट चन्दौली में 156(3)द0प्र0संहिता के अर्न्तगत प्रार्थना पत्र दिया जिस पर न्यायिक मजिस्ट्रेट चन्दौली द्वारा विपक्षी संख्या 1 व 2 के विरूद्ध प्रथम सूचना रिर्पोट दर्ज करते हुए मु0अप0सं0 15/8धारा 269/336/328आई0पी0सी0 व मेडिकल काउन्सिल एक्ट 15(3)1956 के अर्न्तगत मुकदमा पंजीकृत किया जो मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट चन्दौली के यहॉं विचाराधीन है। परिवादी द्वारा रमा फैक्चर क्लीनिक चकिया रोड गोधना मोड मुगलसराय के डा0 विनोद कुमार विन्द को जब अपना पैर दिखाया तो परिवादी के पैर का आपरेशन करके उसमे स्टील की राड लगाया गया जहॉं पर परिवादी के पैर का दो बार आपरेशन हुआ फिर भी परिवादी के पैर में कोई सुधार नहीं हो पा रहा है। तत्पश्चात परिवादी बी0एच0यू0वाराणसी,सिंह मेडिकल मलदहिया वाराणसी,राज आर्थोपैडिक हास्पिटल,सूरत,मनोरमा हास्पिटल सारनाथ वाराणसी,हेरिटेज हास्पिटल वाराणसी आदि कई नामी गिरामी हास्पिटलों में इलाज कराया और वर्तमान में भी परिवादी के पैर का इलाज चल रहा है। परिवादी की दिमागी स्थिति ठीक नही रही और जो लोग जहॉं कहते परिवादी अपने पैर के इलाज हेतु वही चला जाता। सिर्फ विपक्षीगण के घोर लापरवाही के कारण परिवादी चार-पांच वर्षो तक चल फिर पाने में पूर्णरूप से असमर्थ था जिसके कारण वाद न्यायालय में दाखिल नहीं कर पाया। परिवादी के पैर में जब थोडी हरकते होने लगी तब परिवादी अपने मुकदमे की पैरवी करने के लिए सन् 2013 में अधिवक्ता देवी दयाल सिंह को फाइल दिया, किन्तु देवी दयाल सिंह,एडवोकेट की सरकारी नौकरी लग जाने के कारण फाइल अधिवक्ता के पास ही छूट गयी और काफी प्रयास करने के बाद परिवादी को उक्त फाइल सन् 2014 में प्राप्त हुई। परिवादी के पैर का इलाज सन् 2014 में भी चलता रहा इसके बाद परिवादी के पिता की आकस्मिक मृत्यु सन् 2015 में हो जाने के कारण परिवादी, परिवाद दाखिल नहीं कर सका और अपने पिता की मृत्यु के बाद भी अपने पैर का इलाज कराता रहा। तत्पश्चात परिवादी विपक्षी संख्या 1 के हास्पिटल की जानकारी प्राप्त करने हेतु जन सूचना अधिकार अधिनियम के तहत मुख्य चिकित्साधिकारी चन्दौली से दिनांक 27-4-2016 को रजिस्टर्ड डाक से कुछ बिन्दुओं पर सूचना मांगा परन्तु जन सूचना अधिकारी द्वारा परिवादी को जबाब नहीं दिया गया तो परिवादी ने पुनः 2-6-2016 को स्मरण पत्र मुख्यचिकित्साधिकारी चन्दौली को दिया फिर भी कोई जबाब प्राप्त नहीं हुआ तब परिवादी ने दिनांक 14-6-2016 को प्रथम अपीलीय अधिकारी के यहॉं अपील किया किन्तु वहॉं से भी 
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परिवादी को कोई जबाब नहीं मिला। तत्पश्चात परिवादी ने दिनांक 4-7-2016 को राज्य सूचना आयोग में अपील किया परन्तु राज्य सूचना आयोग लखनऊ द्वारा परिवादी के पक्ष में कोई कार्यवाही नहीं हुई लेहाजा परिवादी द्वारा दिनांक 17-8-2016 को केन्द्रीय सूचना आयोग नई दिल्ली में अपील की गयी लेकिन केन्द्रीय सूचना आयोग भी परिवादी के प्रार्थना पत्र पर आजतक कोई कार्यवाही नहीं किये। विपक्षीगण द्वारा अपने कर्तव्यों का सही निर्वाह न करने के कारण एवं गलत इलाज करने के कारण परिवादी उसका खामियाजा अपने जीवन में भोग रहा है। अतः विपक्षीगण का कृत्य उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम की धारा 2(1)(छ) के अर्न्तगत सेवा में कमी को दर्शाता है और विपक्षीगण का यह कृत्य अनफेयर ट्रेड प्रैक्टिस के अर्न्तगत भी आता है। परिवादी ने दिनांक 2-11-2016 को विपक्षीगण को विधिक नोटिस भेजकर क्षतिपूर्ति की मांग किया किन्तु विपक्षीगण ने कोई कार्यवाही नहीं किया तब उसके बाद यह दावा दाखिल किया है। अतः जो भी विलम्ब हुआ है वह क्षमा किये जाने योग्य है।
    इस प्रार्थना पत्र के विरूद्ध विपक्षीगण  को रजिस्टर्ड डाक से नोटिस भेजी गयी किन्तु विपक्षीगण ने नोटिस लेने से इन्कार कर दिया और उनकी ओर से कोई आपत्ति भी दाखिल नहीं है। अतः उनके विरूद्ध परिवादी के धारा 24क(2)उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के प्रार्थना पत्र को एक पक्षीय रूप से सुना गया।
    परिवादी के अधिवक्ता के तर्को को सुनने तथा पत्रावली के अवलोकन से यह स्पष्ट है कि प्रस्तुत मामले में परिवादी के अभिकथनों के मुताबिक विपक्षीगण द्वारा परिवादी का इलाज दिनांक 1-11-2007 को किया गया है। परिवादी का अभिकथन है कि विपक्षी संख्या 1 ने एक्सरे करने के बाद यह कहा था कि परिवादी के पैर में फ्रैक्चर है और इसी आधार पर परिवादी के दाहिने पैर पर प्लास्टर लगाया गया और एक महीने तक प्लास्टर बांधे रखने के की सलाह दी गयी। एक माह बाद जब प्लास्टर काटा गया तो परिवादी के पैर में सूजन हो गयी थी और मवाद बनने लगा था। जिसे विपक्षी संख्या 1 को दिखाया तो उसने कुछ दवाएं लिख दिया और परिवादी को 15 दिन बाद आने की सलाह दिया लेकिन दिनांक 6-12-2007 को जब परिवादी के पैर में काफी मवाद फैलने लगा तो उसने मुगलसराय शर्मा फ्रैक्चर क्लीनिक में एक्सरे कराया तो एक्सरे में उसके पैर की हड्डी में कोई फ्रैक्चर नहीं पाया गया बल्कि पैर के ऊपर चोट लगना पाया गया और एक माह तक प्लास्टर बांधने के कारण पैर में संक्रमण होना पाया गया। इस प्रकार यह स्पष्ट है कि दिनांक 6-12-2007 को परिवादी को इस तथ्य की जानकारी हो गयी थी कि विपक्षी संख्या 1 द्वारा उसका गलत इलाज किया गया था और पैर में कोई फ्रैक्चर न होने पर भी प्लास्टर लगा दिया गयाथा जिसके कारण परिवादी के घाव में संक्रमण हो गया किन्तु परिवादी ने प्रस्तुत परिवाद दिनांक 21-11-2016 को दाखिल किया है अर्थात यह परिवाद परिवादी के गलत इलाज होने की जानकारी होने के लगभग 9 वर्ष बाद दाखिल किया गया है जो अत्यधिक विलम्ब से दाखिल किया गया है। विधि का यह सुस्पष्ट सिद्धान्त है कि जहॉं कोई परिवाद समय-सीमा के बाद दाखिल किया जायेगा वहॉं दिन प्रतिदिन के विलम्ब का युक्तियुक्त एवं सम्यक स्पष्टीकरण देना आवश्यक होगा। उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अर्न्तगत कोई परिवाद दाखिल करने की समय-सीमा 2 वर्ष निर्धारित की गयी है जबकि प्रस्तुत परिवाद परिवादी के गलत इलाज की जानकारी होने के लगभग 9 वर्ष बाद दाखिल किया गया है। इस प्रकार स्पष्ट है कि यह परिवाद विधि द्वारा निर्धारित समय-सीमा से लगभग 7 वर्ष बाद दाखिल किया गया है। जहॉं तक विलम्ब के स्पष्टीकरण का सम्बन्ध है तो परिवाद में यह कहा गया है कि परिवादी अपने पैर का इलाज विभिन्न अस्पतालों में करवाता रहा इन अस्पतालों में वाराणसी के अनेक अस्पताल तथा सूरत के अस्पताल भी शामिल है। परिवादी के अधिवक्ता का तर्क है कि परिवादी अपने पैर को लेकर काफी तनावग्रस्त रहा और उसकी मानसिक स्थिति ठीक नहीं रही और लोग जहॉं बता देते थे वहॉं वह अपने इलाज के लिए चला जाता था और वह 4-5 वर्षो तक चल फिर पाने में पूर्ण रूप से असमर्थ था। सन् 2013 में कुछ ठीक होने पर उसने अधिवक्ता देवीदयाल सिंह को अपने मुकदमें की पैरवी हेतु फाइल दिया लेकिन अधिवक्ता महोदय की सरकारी नौकरी लग जाने के कारण फाइल उन्हीं के पास रह गयी और मुकदमा दाखिल नहीं हो सका। काफी प्रयास के बाद सन् 2014 में फाइल मिली लेकिन इसके बाद परिवादी अपने पैर का इलाज कराता रहा। पुनः सन् 2015 में उसके पिता की मृत्यु हो गयी अतः परिवाद दाखिल नहीं किया जा सका इसके बाद परिवादी विपक्षी संख्या 1 के अस्पताल की जानकारी प्राप्त करने हेतु जन सूचना अधिकार अधिनियम के तहत मुख्य चिकित्साधिकारी चन्दौली से जबाब 
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मांगा जो नहीं प्राप्त हुआ उसके बाद परिवादी राज्य सूचना आयोग एवं केन्द्रीय सूचना आयोग में भी अपील किया लेकिन कोई कार्यवाही नहीं हुई। तब उसने यह दावा दाखिल किया। फोरम की राय में परिवाद दाखिल करने में हुए विलम्ब का जो उपरोक्त कारण बताया गया है वह हरगिज विश्वसनीय एवं स्वीकार किये जाने योग्य नहीं है क्योंकि जब परिवादी अपने चोटों के इलाज के लिए वाराणसी के विभिन्न अस्पतालों में तथा सूरत के अस्पताल में जा सकता है तब इस बात का कोई कारण प्रतीत नहीं होता कि वह चन्दौली जिले में ही स्थित जिला उपभोक्ता फोरम में अपना परिवाद दाखिल न कर सके। परिवाद निर्धारित समय-सीमा से लगभग 7 वर्ष बाद दाखिल किया गया है। 2006(।)सीपीआर,182(एनसी) के मुकदमें में माननीय राष्ट्रीय आयोग  द्वारा यह सिद्धान्त प्रतिपादित किया गया है कि जहॉं गलत इलाज की जानकारी होने के 7/8 वर्ष बाद परिवाद दाखिल किया गया हो, तो ऐसे परिवाद को कालबाधित माना जायेगा। प्रस्तुत मामले में भी परिवादी को गलत इलाज की जानकारी होने के तथा निर्धारित समय-सीमा बीत जाने के लगभग 7 वर्ष बाद प्रस्तुत परिवाद दाखिल किया गया है और विलम्ब का जो कारण परिवाद में बताया गया है वह फोरम की राय में स्वीकार किये जाने योग्य नहीं पाया जाता है। इस प्रकार परिवादी का प्रस्तुत परिवाद कालबाधित है। अतः उसका प्रार्थना पत्र अर्न्तगत धारा 24 क(।।) उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम निरस्त किया जाता है। पत्रावली दाखिल दपतर हो। 
    

(लक्ष्मण स्वरूप)                                              (रामजीत सिंह यादव)
  सदस्य                                                        अध्यक्ष

 
 
[HON'BLE MR. JUSTICE Ramjeet Singh Yadav]
PRESIDENT
 
[HON'BLE MR. Lachhaman Swaroop]
MEMBER

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