Uttar Pradesh

Chanduali

CC/82/2002

GHURHAU YADEV - Complainant(s)

Versus

DR .RAJEV - Opp.Party(s)

14 Aug 2015

ORDER

Heading1
Heading2
 
Complaint Case No. CC/82/2002
 
1. GHURHAU YADEV
SAYADARAJA CHANDUALI
...........Complainant(s)
Versus
1. DR .RAJEV
ALINAGER MUGALSARAI CHANDUALI
............Opp.Party(s)
 
BEFORE: 
 HON'BLE MR. JUSTICE Ramjeet Singh Yadav PRESIDENT
 HON'BLE MRS. Shashi Yadav MEMBER
 
For the Complainant:
For the Opp. Party:
ORDER

14-8-2015                          
    पत्रावली आदेशार्थ प्रस्तुत हुई।
    वारासत प्रार्थना पत्र पर उभय पक्षों के विद्वान अधिवक्ता को सुना गया तथा पत्रावली का सम्यक अवलोकन किया गया। प्रस्तुत मामले में परिवादी की मृत्यु के उपरान्त उसके भाई राजनरायन यादव ने वरासत प्रार्थना पत्र इस आधार पर दिया है कि मृतक परिवादी घुरहू का उनके अतिरिक्त अन्य कोई वारिस नहीं है और वे मृतक के सगे भाई है। प्रार्थना पत्र के साथ राजनरायन यादव का शपथ पत्र भी दाखिल है।
    इस प्रार्थना पत्र के विरूद्ध विपक्षी की ओर से आपत्ति दाखिल की गयी है जिसमे मुख्य रूप से यह कहा गया है कि  प्रार्थना पत्र वरासत विधि विरूद्ध होने के कारण निरस्त किये जाने योग्य है। यह प्रार्थना पत्र उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 के तहत पोषणीय नहीं है और मृतका धनावती देवी की मृत्यु के पश्चात प्रार्थी राजनरायन यादव को कोई शारीरिक,मानसिक व आर्थिक क्षति नहीं पहुंची है और न ही उसने मृतका के इलाज में कोई खर्च किया है। प्रार्थी राजनरायन यादव मृतका का वारिस नहीं है। परिवादी घुरहू की मृत्यु कई वर्ष पूर्व हो चुकी है और वरासत प्रार्थना पत्र कालबाधित होने के कारण स्वीकार किये जाने योग्य नहीं है। उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम में परिवादी की मृत्यु के पश्चात वारिसों को प्रतिस्थापित किये जाने का कोई प्राविधान नहीं है। अतः वरासत प्रार्थना पत्र निरस्त किये जाने योग्य है।
    उभय पक्षों को सुनने तथा पत्रावली के अवलोकन से स्पष्ट है कि प्रस्तुत मामले में परिवादी घुरहू की मृत्यु दिनांक 16-8-2006 को हो चुकी है जैसा कि पत्रावली में संलग्न मृत्यु प्रमाण पत्र से स्पष्ट है जबकि वरासत प्रार्थना पत्र दिनांक 26-11-2014 को अर्थात परिवादी की मृत्यु से 8 वर्ष 3 माह से भी अधिक समय बाद दिया गया है। अतः यह प्रार्थना पत्र स्पष्ट रूप से काल बाधित है। परिवादी पक्ष से बिलम्ब क्षमा करने के लिए कोई प्रार्थना पत्र भी नहीं दिया गया है और न ही वरासत प्रार्थना पत्र में बिलम्ब का कोई कारण बताया गया है।
    इस सम्बन्ध में विपक्षी के विद्वान अधिवक्ता द्वारा ए.आई.आर. 1993 (आंध्रप्रदेश) पेज 156 मोरसा अंजइया बनाम कोन्द्रा गून्टे वैंकटेश्वरलू तथा अन्य के विधि व्यवस्था का हवाला दिया गया है जिसमे माननीय आंध्रप्रदेश उच्च न्यायालय द्वारा यह सिद्धान्त प्रतिपादित किया गया है कि जहाॅं पक्षकार के विधिक उत्तराधिकारी को प्रतिस्थापित करने हेतु कार्यवाही न की गयी हो तो वहाॅं न्यायालय स्वतः अपनी निहित शक्तियों के प्रयोग से मुकदमे को उपसमित होने से रोक नहीं सकता है।
    इसी प्रकार विपक्षी की ओर से ए.आई.आर. 2000(इलाहाबाद)पेज 253 जाटव पंचायत कमेटी तथा अन्य बनाम सेवेन्थ अपर जिला जज इटावा तथा अन्य का हवाला दिया गया है जिसमे माननीय इलाहाबाद उच्च न्यायालय द्वारा यह सिद्धान्त प्रतिपादित किया गया है कि जहाॅं पक्षकार की मृत्यु के उपरान्त प्रतिस्थापन प्रार्थनापत्र समय सीमा के बाद दिया गया हो और जहाॅं बिलम्ब को क्षमा करने के लिए कोई प्रार्थना पत्र नहीं दिया गया हो वहाॅं ऐसे प्रतिस्थापन प्रार्थना पत्र को पोषणीय नहीं माना जा सकता है।
    उपरोक्त विधि व्यवस्थाओं के जबाब में परिवादी पक्ष से उनके अधिवक्ता द्वारा किसी विधि व्यवस्था का उल्लेख नहीं किया है।
    पत्रावली के अवलोकन से यह स्पष्ट है कि प्रस्तुत मामले में परिवादी की मृत्यु के 8 वर्ष 3 माह से अधिक समय बाद प्रतिस्थापन प्रार्थना पत्र दिया गया है जिसमे बिलम्ब का कोई कारण नहीं बताया गया है और बिलम्ब क्षमा करने के लिए कोई प्रार्थना पत्र भी नहीं दिया गया है। जबकि प्रतिस्थापन प्रार्थना पत्र अत्यधिक बिलम्ब से दिया गया है। ऐसी स्थिति में फोरम की राय में यह प्रतिस्थापन प्रार्थना पत्र स्वीकार किये जाने योग्य नहीं है। अतः इसे निरस्त किया जाता है और तद्नुसार प्रस्तुत मुकदमा उपसमित (अवेट) किया जाता है। पत्रावली दाखिल दपतर हो।

 

(शशी यादव)                                                          (रामजीत सिंह यादव)
   सदस्या                                                                  अध्यक्ष

 

 
 
[HON'BLE MR. JUSTICE Ramjeet Singh Yadav]
PRESIDENT
 
[HON'BLE MRS. Shashi Yadav]
MEMBER

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