Uttar Pradesh

Barabanki

CC/153/2020

Poonam - Complainant(s)

Versus

District Magistrate & C.M.O. etc. - Opp.Party(s)

Ram Autaar

14 Feb 2023

ORDER

जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, बाराबंकी।
परिवाद प्रस्तुत करने की तिथि       29.12.2020
अंतिम सुनवाई की तिथि            21.01.2023
निर्णय उद्घोषित किये जाने के तिथि  14.02.2023
परिवाद संख्याः 153/2020
श्रीमती पूनम आयु करीब 37 वर्ष पत्नी पप्पू निवासी ग्राम मल्लांवा पोस्ट खिंझना विकास खण्ड निन्दूरा तहसील फतेहपुर थाना बड्डूपुर जनपद-बाराबंकी।
द्वारा-श्री रामऔतार, अधिवक्ता
 
बनाम
1. श्रीमान जिला अधिकारी जनपद-बाराबकी।
2. श्रीमान मुख्य चिकित्साधिकारी महोदय जनपद- बाराबंकी।
3. श्रीमान अधीक्षक महोदय सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र घुॅघटेर तहसील फतेहपुर जनपद-बाराबंकी।
द्वारा-श्री सुनील कुमार मौर्य, अपर जिला शासकीय अधिवक्ता
 
समक्षः-
माननीय श्री संजय खरे, अध्यक्ष
माननीय श्रीमती मीना सिंह, सदस्य
माननीय डाॅ0 एस0 के0 त्रिपाठी, सदस्य
उपस्थितः परिवादी की ओर से -कोई नहीं
         विपक्षीगण की ओर से-श्री सुनील कुमार मौर्य, अधिवक्ता
द्वारा-डाॅ0 एस0 के0 त्रिपाठी, सदस्य
निर्णय
        परिवादिनी ने यह परिवाद, विपक्षीगण के विरूद्व धारा-35 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 2019 प्रस्तुत कर दिनांक 13.11.2017 को विपक्षी संख्या-02 के कर्मियों द्वारा असफल नसबन्दी आपरेशन के बावजूद जन्मे जीवित बच्चे  की परवरिश पालन पोषण, खाना कपड़ा, चिकित्सा-स्वास्थ्य, भरण पोषण, शिक्षा दीक्षा, भविष्य निर्धारण आदि के भार वहन हेतु रू0 4,50,000/-बतौर क्षतिपूर्ति शारीरिक, मानसिक व आर्थिक क्षतिपूर्ति के रूप में रू0 30,000/-वाद व्यय रू0 15,000/-तथा अधिवक्ता फीस रू0 5,000/-दिलाये जाने हेतु प्रस्तुत किया है।
           संक्षेप में परिवादिनी ने अपने परिवाद में मुख्य रूप से अभिकथन किया है कि वह उपरोक्त पते की निवासिनी है। परिवादिनी को एक लड़का राज करन आयु 13 वर्ष व दो पुत्रियां अन्जली आयु 10 वर्ष व सूटी आयु 6 वर्ष तीन बच्चे है। उसके पति के पास आमदनी का कोई नियमित जरिया नहीं है। परिवादिनी अपने परिवार को आगे नहीं बढ़ाना चाहती थी इस लिये दिनांक 13.11.2017 को सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र घुॅघटेर जनपद बाराबंकी में परिवार नियोजन हेतु अपनी नसबन्दी करायी जिसका प्रमाण पत्र संख्या आई0 पी0 डी0/ओ0 पी0 डी0 44112 है। सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र घुॅघटेर बाराबंकी में दिनांक 13.11.2017 को चिकित्सकों  द्वारा घोर लापरवाही से नसबन्दी की गई जिसके कारण परिवादिनी गर्भवती हो गई जिसकी पुष्टि समाधान पैथोलोजी एण्ड डायग्नोस्टिक सेन्टर महमूदाबाद सीतापुर के अल्ट्रासाउन्ड कराने से हुई तत्पश्चात परिवादिनी ने दिनांक 27.05.2019 को जिलाधिकारी, मुख्य चिकित्साधिकारी व मा0 मुख्यमंत्री को प्रार्थना पत्र दिया। मुख्य चिकित्साधिकारी ने पत्रांक 2019-20/12694 दिनांक 31.05.2019 द्वारा परिवादिनी को नसबन्दी प्रमाण पत्र, गर्भधारण पुष्टि हेतु कराया गया अल्ट्रासाउन्ड रिपोर्ट व काली फिल्म मूल रूप में लेकर स्वास्थ्य केन्द्र घुॅघटेर, बाराबंकी में क्षतिपूर्ति दावा फार्म भरने हेतु कहा गया। परिवादिनी कई बार विपक्षी संख्या-03 के पास गई परन्तु वे बराबर टाल-मटोल कर रहे थे। इसी तरह विपक्षी संख्या-02 द्वारा पत्र दिनांक 21.06.2019 प्रेषित किया गया जिसके अनुपालन में पुनः परिवादिनी ने विपक्षी संख्या-03 से सम्पर्क स्थापित किया परन्तु कोई कार्यवाही नहीं हुई। परिवादिनी ने एक पुत्र को जन्म दिया जिसकी आयु 01 वर्ष है। परिवादिनी ने जिलाधिकारी को दिनांक 26.08.2019 व 11.11.2020 को पत्र प्रेषित किया परन्तु उसका उत्तर नहीं दिया गया। विपक्षी संख्या-02 के चिकित्सको द्वारा नसबन्दी में की गई लापरवाही से परिवादिनी गर्भवती हुई और पुत्र को जन्म दिया तथा वर्तमान में पुनः तीन माह की गर्भवती है जो सेवा में कमी है। उसके पति को उक्त जन्मी संतान की परवरिश पालन पोषण, खाना कपड़ा, चिकित्सा-स्वास्थ्य, भरण पोषण, शिक्षा दीक्षा, भविष्य निर्धारण आदि का भार वहन करना पड़ेगा। परिवादिनी ने दिनांक 20.11.2020 को क्षतिपूर्ति दिलाये जाने हेतु रजिस्टर्ड नोटिस प्रेषित किया परन्तु उसे कोई धनराशि अदा नहीं की गई। अतः परिवादिनी ने उक्त अनुतोष हेतु प्रस्तुत परिवाद योजित किया है। परिवाद के समर्थन में शपथपत्र दाखिल किया गया है।
           परिवादिनी के तरफ से दस्तावेजी साक्ष्य के रूप में सूची दिनांक 29.12.2022 से रजिस्टर्ड नोटिस, नसबन्दी प्रमाण पत्र, नसबन्दी आपरेशन के बाद निर्देश, अल्ट्रासाउन्ड रिपोर्ट दिनांक 19.04.2019, फिल्म, प्रार्थना पत्र दिनांक 27.05.2019, मुख्य चिकित्साधिकारी का पत्र दिनांक 31.05.2019, पत्र दिनांक 21.06.2021, प्रार्थना पत्र दिनांक 26.08.2019, 10.11.2019, मूल रजिस्ट्री रसीद व आधार कार्ड दाखिल किया है। 
         विपक्षीगण द्वारा वादोत्तर दाखिल करते हुये परिवाद की धारा-3 लगायत 9 से इंकार करते हुये विशेष वक्तब्य में यह कहा है कि परिवादिनी समुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र बाराबंकी में शासन की परिवार नियोजन की कल्याणकारी नीति के अन्तर्गत आयोजित नसबन्दी कैम्प में आयी। शासन की पालिसी तथा नसबन्दी हेतु निर्देश से परिवादिनी को अवगत कराया गया। शर्तो पर परिवादिनी ने अपने हस्ताक्षर बनाये। सहमति की शर्त (ख) के अनुसार समस्त व्यवहारिक प्रयोजन के लिये यह आपरेशन स्थाई है एवं मुझे यह भी ज्ञात है कि इस आपरेशन के असफल हो जाने की भी संभावनाये है जिसके लिये मेरे या मेरे सम्बन्धियों अथवा अन्य किसी व्यक्ति वह चाहे कोई भी हो के द्वारा आपरेशन करने वाले शल्य चिकित्सक और स्वास्थ्य केन्द्र को जिम्मेदार नहीं ठहराया जायेगा। शर्त (ग) में यह उल्लेख है कि मै इस बात से भली भाॅति अवगत हूॅ कि एक ऐसा आपरेशन करवा रहा/रही हूॅ जिसमे जोखिम है। शर्त (झ) में यह उल्लेख है कि नसबन्दी आपरेशन के कारण हुयी जटिलता नसबन्दी की असफलता या मृत्यु की अविश्वसनीयता घटना (नसबन्दी सम्बन्धी कारणों से) होने पर मैं, मेरा पति पत्नी तथा आश्रित अविवाहित बच्चे भारत सरकार की परिवार नियोजन क्षतिपूर्ति योजना के तहत वर्तमान में प्रावधानित मुआवजे की राशि को पूर्ण तथा अन्तिम भुगतान के रूप में स्वीकार करेगें तथा उसके ऊपर इस संदर्भ में किसी कोर्ट आफ लाॅ के समक्ष अन्य मुआवजे की माॅग या क्षतिपूर्ति जिसमे नसबन्दी के असफल होने पर जन्म लेने वाले बच्चे का पालन पोषण शामिल है, के लिये माॅग करने के पात्र नहीं होगें। उक्त शर्तो की स्वीकृति पर परिवादिनी की मेडिकल प्रक्रिया की गई परन्तु मेडिकल कारणों से उसकी नसबन्दी पूर्ण रूपेण न हो सकी। दो नलिकाओं में से परिवादिनी की एक नलिका को बांधा गया तथा दूसरी नलिका को मेडिकल कारणों से नहीं बांधा जा सका क्योंकि वह अंडाशय से अपवाद स्वरूप् किन्ही कारणों से चिपकी थी। अंडाशय से छुड़ाना और बांधा जाना नसबन्दी प्रक्रिया में संभव नहीं है। फलतः दूसरी नलिका अवरोधित नहीं हुई ऐसी दशा में परिवादिनी की नसबन्दी पूर्ण न हो सकी। चूॅकि बायी तरफ की टयूब अंडाशय से से चिपकी हुई थी इस लिये उसे बांधा जाना संभव न हो सका। परिवादिनी को गर्भधारण से अपने को रोकने हेतु परिवार नियोजन की सलाह दी गई थी। परिवादिनी ने डाक्टर के सलाहनुसार परिवार नियोजन के विकल्पो का प्रयोग नहीं किया इसी कारण वह गर्भवती हुई। परिवादिनी ने क्रम संख्या-6 की शर्त का भी अनुपालन नहीं किया। प्रकरण में किसी प्रकार की कोई लापरवाही नहीं बरती गई है। अतः परिवाद निरस्त किये जाने की याचना की गई है। विपक्षीगण द्वारा वादोत्तर के समर्थन में शपथपत्र दाखिल किया गया है।
              विपक्षीगण द्वारा सूची से नसबन्दी आपरेशन हेतु सहमति पत्र दो वर्क, पत्र दिनांक 24.12.2020 तथा रजिस्ट्री रसीद मूल रूप में दाखिल किया है।
               परिवादिनी द्वारा जवाबुल जवाब व शपथपत्र दाखिल किया गया है। 
               विपक्षीगण द्वारा शपथपत्र साक्ष्य दाखिल किया गया है। 
               परिवादिनी ने अपनी लिखित बहस दिनांक 03.11.2022 को योजित किया है।
               विपक्षीगण ने अपनी लिखित बहस दिनांक 03.11.2022 को योजित किया है। 
               परिवादिनी पूनम ने शपथपत्र साक्ष्य पी0 डब्लू0-1 तथा पप्पू ने साक्ष्य पी0 डब्लू0-2 दाखिल किया है। 
               हमने उभय पक्षों द्वारा प्रस्तुत लिखित बहस एवं पत्रावली पर उपलब्ध अभिलेखों/साक्ष्यों का परिशीलन किया। प्रश्नगत प्रकरण में परिवादिनी की नसबन्दी सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र घुघटेर जनपद-बाराबंकी में दिनांक 13.11.2017 को हुई जिसका प्रमाण पत्र हास्पिटल पंजीयन संख्या-(आई पी डी/ओ पी डी) 44112 जारी किया गया। परिवादिनी का आरोप है कि नसबन्दी करने हेतु तैनात चिकित्सकों की घोर लापरवाही के कारण परिवादिनी नसबन्दी के बावजूद गर्भवती हो गई। परिवादिनी ने विपक्षी संख्या-01 के रूप में जिलाधिकारी, बाराबंकी, विपक्षी संख्या-02 के रूप में मुख्य चिकित्साधिकारी, बाराबंकी तथा विपक्षी संख्या-03 के रूप में अधीक्षक, सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र घुंघटेर तहसील-फतेहपुर जनपद-बाराबंकी को प्रतिवादी बनाया है। नसबन्दी प्रमाण पत्र के अवलोकन से स्पष्ट है कि परिवादिनी की नसबन्दी दिनांक 13.11.2017 को लाभार्थी के रूप में सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र घुंघटेर, बाराबंकी में की गई थी जिसके लिये परिवादिनी द्वारा कोई धनराशि प्रतिफल सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र को अदा किये जाने का अभिलेखीय प्रमाण नहीं है। प्रमाण पत्र पर नसबन्दी के फालोअप के लिये प्रस्तर 1 लगायत 13 में कतिपय दिशा निर्देश भी अंकित है जिसके प्रस्तर-12 में अंकित है किः-
‘‘ महिला नसबन्दी: मासिक धर्म न आने/गर्भ ठहरने की संभावना होने पर दो हफ्ते के अन्दर गर्भावस्था की संभावना नकारने के लिये स्वास्थ्य केन्द्र पर आयें, गर्भ ठहरने की स्थिति में निःशुल्क गर्भ समापन की सेवाएं स्वास्थ्य केन्द्र से प्राप्त करें।‘‘
              साथ ही उक्त प्रमाण पत्र के अंत में यह भी अंकित किया है किः-
‘‘नसबन्दी आपरेशन के कारण हुई जटिलता/नसबन्दी की असफलता या मृत्यु की अविश्वसनीय घटना (नसबन्दी सम्बन्धी कारणों से) होने पर मैं/मेरा पति/पत्नी तथा आश्रित अविवाहित बच्चे भारत सरकार की परिवार नियोजन क्षतिपूर्ति योजना के तहत वर्तमान में प्राविधानित मुआवजे की राशि को पूर्ण तथा अन्तिम भुगतान के रूप में स्वीकार करेंगें तथा उसके ऊपर इस संदर्भ में किसी भी कोर्ट आॅफ लाॅ के समक्ष किसी अन्य मुआवजे की माॅग करने के पात्र नहीं होगें।
            उपरोक्त प्राविधान के सम्बन्ध में मुझे भली भाॅति अवगत करा दिया गया है कि नसबन्दी आपरेशन के कारण हुई असफलता/जटिलता/मृत्यु से सम्बन्धित दावे को असफलता/जटिलता सम्बन्धी परीक्षण रिपोर्ट प्राप्त करने के 90 दिनों की समय सीमा के अन्तर्गत मेरे/ मेरे आश्रित द्वारा प्रस्तुत करने पर ही दावा निपटारे हेतु मान्य होगा। इस तथ्य से मुझे भलीभाॅति अवगत करा दिया गया है तथा मेरे/मेरे आश्रितों द्वारा पूर्णतः समझ लिया गया है।‘‘
              विपक्षी के वादोत्तर की धारा-15 में कहा गया है कि नसबन्दी आपरेशन की शर्तो की स्वीकृति के बाद परिवादिनी को नसबन्दी के लिये मेडिकल प्रक्रिया की गई परन्तु मेडिकल कारणों से उसकी नसबन्दी पूर्ण रूपेण सफल न हो सकी। क्योंकि गर्भाशय तक शुक्राणु पहुचने हेतु दो नलिकायें होती है और इन्ही दो नलिकाओं को नसबन्दी द्वारा बांधा/अवरोधित किया जाता है। परिवादिनी की एक नलिका को बाॅधा/अवरोधित किया गया परन्तु दूसरी नलिका को मेडिकल कारणों से बांधा/अवरोधित न किया जा सका क्योंकि दूसरी नलिका अण्डाशय से अपवाद स्वरूप किन्ही कारणवश चिपकी हुई थी। उसे अण्डाशय से छुड़ाना और बांधा जाना नसबन्दी प्रक्रिया के तहत संभव नहीं था। इस कारण नहीं बांधा गया फलतः दूसरी नलिका अवरोधित नहीं हुई और ऐसी दशा में नसबन्दी परिवादिनी की पूर्ण न हो सकी और इस तथ्य से परिवादिनी को अवगत कराया गया और इसी कारण वश टीम के सर्जन द्वारा परिवादिनी के नसबन्दी प्रपत्र पर उक्त तथ्य को मेडिकल भाषा में अंकित किया गया है कि ‘‘चूॅकि बायी तरफ की ट्यूब अण्डाशय से चिपकी हुई थी अतः बायें तरफ की ट्यूब को बांधा जा सकना संभव नहीं था।‘‘ परिवादिनी ने घोर लापरवाही बरतते हुये डाक्टर के सलाहनुसार परिवार नियोजन के विकल्पों का प्रयोग जानबूझकर नहीं किया। इसके अतिरिक्त विपक्षी द्वारा दाखिल अभिलेख से इस तथ्य की भी पुष्टि होती है कि नसबन्दी शासन की कल्याणकारी नीति के तहत की जाती है एवं नसबन्दी हेतु कोई शुल्क नहीं लिया जाता है बल्कि शासन द्वारा प्रोत्साहन राशि अदा की जाती है अर्थात नसबन्दी कराने वाले महिला/पुरूष लाभार्थी की श्रेणी में आते है। उपरोक्त तथ्यों की पुष्टि स्वास्थ्य केन्द्र द्वारा लाभार्थी संख्या (आई. पी. डी./ओ.पी.डी.) 44112 हेतु दिनांक 13.11.2017 को जारी नसबन्दी आपरेशन हेतु आवेदन एवं सहमति प्रपत्र से भी होता है जिस पर डाक्टर मंजू श्री मेहता, सर्जन के हस्ताक्षर है। परिवादिनी द्वारा नसबन्दी करने में घोर लापरवाही का आरोप लगाया गया है किन्तु घोर लापरवाही किस डाक्टर के द्वारा की गई है, यह इंगित नहीं किया गया है। इसके अतिरिक्त परिवादिनी द्वारा यह भी स्पष्ट नहीं किया गया है कि नसबन्दी किस डाक्टर द्वारा की गई, न ही किसी डाक्टर विशेष को परिवाद में पक्षकार बनाया गया है।
                विपक्षी के विद्वान अधिवक्ता द्वारा अपने तर्को के समर्थन में माननीय उच्चतम न्यायालय द्वारा सिविल अपील संख्या 5128/2002 पंजाब राज्य बनाम शिवराम एवं अन्य के मामले में दिनांक 25.08.2005 को पारित दृष्टांत का आलम्बन लिया गया है जिसमे माननीय उच्चतम न्यायालय ने चिकित्सीय उपेक्षा के संबंध में सरकारी डाॅक्टर द्वारा नसबन्दी आपरेशन के बाद महिला द्वारा गर्भधारण के अपकृत्य हेतु डाॅक्टर को संविदा में तब तक उत्तरदायी नहीं ठहराया जा सकता जब तक कि वादी ने अभिकथन न किया हो एवं साबित न कर दिया हो कि डाॅक्टर ने 100 प्रतिशत गर्भधारण के अपवर्जन का आश्वासन दिया था। 0.3 प्रतिशत से 7 प्रतिशत की असफलता दर मान्यता प्राप्त क्षति के लिये डिक्री समर्थनीय नहीं है। यह भी उल्लिखित है कि राज्य का प्रतिनिधिक दायित्व केवल तभी होगा जब डाॅक्टर द्वारा शल्य-क्रिया को उपेक्षापूर्ण ढंग से करना पाया जाये। अनचाही गर्भावस्था हेतु आपरेशन करने वाले डाॅक्टर अथवा उसके नियोजक राज्य को या तो संविदा में या अपकृत्य में प्रतिकर के लिये दायी नहीं ठहराया जा सकता। माननीय उच्चतम न्यायालय ने उपरोक्त वाद निर्णय के प्रस्तर-28 में यह भी उल्लिखित किया है कि असफल नसबन्दी आपरेशन के वादो में प्रतिकर का दावा करने हेतु वाद हेतुक शल्य चिकित्सक की उपेक्षा के कारण प्रोदभूत होता है न कि बच्चे के जन्म के कारण स्वाभाविक कारणों से होने वाली असफलता से दावे का कोई आधार प्राप्त नहीं होता है। स्त्री, जिसने बच्चे का गर्भाधान किया है, का भी यह कर्तव्य है कि वह गर्भ के चिकित्सकीय समापन के लिये जाय अथवा न जाय। नसबन्दी आपरेशन कराने के बावजूद गर्भ ठहरने की जानकारी प्राप्त होने पर यदि दम्पत्ति बच्चे को जन्म देने का चुनाव करते है तो उसका अनचाहा बच्चा होना नहीं रह जाता है। ऐसे बच्चे के भरण पोषण एवं लालन पालन हेतु प्रतिकर का दावा नहीं किया जा सकता है। 
             परिवादिनी के प्रकरण में भी सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र घुंघटेर फतेहपुर जनपद-बाराबंकी द्वारा परिवादिनी श्रीमती पूनम की दिनांक 13.11.2017 को नसबन्दी आपरेशन शासन की कल्याणकारी नीति के तहत परिवादिनी के सहमति व्यक्त करने पर किया गया। सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र द्वारा नसबन्दी हेतु परिवादिनी से कोई शुल्क नहीं लिया गया बल्कि प्रोत्साहन राशि अदा की गई। अतः परिवादिनी ने वर्तमान प्रकरण में नसबन्दी की मेडिकल सेवा किसी प्रतिफल के एवज में प्राप्त नहीं की है। अतः परिवादिनी उपभोक्ता की श्रेणी में नहीं आती है। 
                    इसके अलावा प्रकरण में परिवादिनी द्वारा यह सिद्व नहीं किया गया है कि उसने नसबन्दी आपरेशन के उपरान्त कार्ड में दिये गये निर्देश का पालन किया अथवा नहीं। ऐसे में विपक्षी द्वारा दाखिल माननीय उच्चतम न्यायालय का दृष्टांत प्रश्नगत प्रकरण पर पूर्ण रूप से लागू होता है।
                   उपर्युक्त विवेचन से यह स्पष्ट है कि परिवादिनी द्वारा ऐेसा कोई साक्ष्य प्रश्नगत प्रकरण में प्रस्तुत नहीं किया है जिससे नसबन्दी किये जाने वाले किसी डाक्टर/डाक्टरों की कोई लापरवाही सिद्व होती है। साथ ही परिवादिनी द्वारा नसबन्दी पश्चात गर्भधारण के संबंध में चिकित्सकों द्वारा दी गई सलाह के अनुसार सम्यक सावधानी नहीं बरती गयी है। परिवादिनी को गर्भधारण के तत्काल बाद नसबन्दी प्रमाण पत्र में दिये निर्देशों के अनुसार सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र के चिकित्सकों को सूचित करना चाहिये था ताकि अन्य विकल्पों को लागू कर गर्भ धारण के फलस्वरूप होने वाली समस्या का निराकरण लाभार्थी के आवश्यकतानुसार किया जा सके। विपक्षीगण द्वारा प्रस्तुत अभिलेखीय साक्ष्यों/दर्शाये गये चिकित्सकीय कारणों/दृष्टांत के रूप में प्रस्तुत माननीय उच्चतम न्यायालय के निर्णय में पर्याप्त बल है तथा प्रश्नगत प्रकरण मे परिवादिनी द्वारा प्रस्तुत साक्ष्यों से विपक्षीगण के विरूद्व चिकित्सकीय लापरवाही अथवा सेवा में कमी का कोई मामला परिलक्षित नहीं होता। तद्नुसार परिवाद निरस्त किये जाने योग्य है।  
आदेश
परिवाद संख्या-153/2020 निरस्त किया जाता है। 
 
 
  (डाॅ0 एस0 के0 त्रिपाठी)       (मीना सिंह)         (संजय खरे)
              सदस्य                         सदस्य               अध्यक्ष
यह निर्णय आज दिनांक को  आयोग  के  अध्यक्ष  एंव  सदस्य द्वारा  खुले न्यायालय में उद्घोषित किया गया।
 
 
      (डाॅ0 एस0 के0 त्रिपाठी)        (मीना सिंह)          (संजय खरे)
           सदस्य                          सदस्य               अध्यक्ष
 
 
दिनांक 14.02.2023
 
 
 

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