(मौखिक)
राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ
अपील सं0- 545/2000
Allahabad development authority, 7th floor, Indira bhawan, Civil lines, Allahabad. Through its Secretary, Allahabad development authority.
………Appellant
Versus
Dinesh kumar srivastava, S/o Late Ram adhaar lal, R/o Union bank of India, Karanda, Distt. Gazipur.
……….Respondent
समक्ष:-
1. माननीय श्री सुशील कुमार, सदस्य।
2. माननीय श्री विकास सक्सेना, सदस्य।
अपीलार्थी की ओर से : श्री दीपक मेहरोत्रा के सहयोगी
श्री मनोज कुमार,
विद्वान अधिवक्ता।
प्रत्यर्थी की ओर से : कोई नहीं।
दिनांक:- 23.02.2021
माननीय श्री सुशील कुमार, सदस्य द्वारा उद्घोषित
निर्णय
1. परिवाद सं0- 1292/1995 दिनेश कुमार श्रीवास्तव बनाम इलाहाबाद विकास प्राधिकरण इलाहाबाद में पारित निर्णय एवं आदेश दि0 24.01.2000 के विरूद्ध उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 की धारा 15 के अंतर्गत यह अपील प्रस्तुत की गई है। परिवाद स्वीकार करते हुए अपीलार्थी/विपक्षी को निर्देशित किया गया है कि प्रत्यर्थी/परिवादी से जो राशि अंकन 43,056/-रू0 06/-पैसा मांगी गई है उस मांग के सम्बन्ध में दी गई नोटिस निरस्त की जाती है।
2. परिवाद पत्र में वर्णित तथ्यों के अनुसार प्रत्यर्थी/परिवादी ने स्टेनली रोड आवास योजना में स्व वित्त पोषित योजना के अंतर्गत वर्ष 1988 में भवन क्रय किया था जिसका कब्जा दि0 03.06.1992 को विलम्ब से दिया गया। अगस्त 1989 में सम्पूर्ण राशि का भुगतान कर दिया गया था। देरी से कब्जा देने के लिए अंकन 40,000/-रू0 प्रतिकर की मांग की गई तथा यह भी उल्लेख किया गया है कि विक्रय पत्र का निष्पादन नहीं किया गया है तथा अपीलार्थी/विपक्षी द्वारा दि0 25.05.1995 को 43,053/-रू0 06/-पैसा अतिरिक्त धनराशि मांगी गई जो विधि विरुद्ध है। निर्माण निम्न श्रेणी का है और प्रत्यर्थी/परिवादी को अंकन 40,000/-रू0 मरम्मत में खर्च करना पड़ा।
3. अपीलार्थी/विपक्षी का कथन है कि वर्ष 1990 में निर्माण पूरा हो चुका था, कब्जा भी दिया जा चुका था। प्रत्यर्थी/परिवादी स्वयं जनपद गाजीपुर से कब्जा लेने नहीं आया। प्रत्यर्थी/परिवादी को आवंटित फ्लैट का प्रारम्भिक मूल्य 1,60,000/-रू0 था, परन्तु वास्तविक लागत 2,03,053/-रू0 05/-पैसा आयी है। इस प्रकार अंकन 43,053/-रू0 05/-पैसा का भुगतान प्रत्यर्थी/परिवादी को करना है।
4. दोनों पक्षकारों के साक्ष्य पर विचार करने के पश्चात जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा यह निष्कर्ष दिया गया कि कब्जा देने के पांच वर्ष पश्चात वास्तविक लागत की मांग करना उचित नहीं है और तदनुसार देरी से मांग करने के आधार पर अर्थात धनराशि की मांग का नोटिस रद्द कर दिया गया। प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश को इन आधारों पर चुनौती दी गई है कि जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा पारित निर्णय/आदेश विधि विरुद्ध है। आवंटन के समय अनुमानित कीमत आंकी गई थी। वास्तविक कीमत का आंकलन निर्माण के पश्चात किया जाता है, अर्थात कीमत वसूल करने का प्राधिकरण का अधिकार है।
5. अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता श्री दीपक मेहरोत्रा के सहयोगी अधिवक्ता श्री मनोज कुमार को सुना गया। प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश तथा पत्रावली का अवलोकन किया गया।
6. चूँकि आवंटन के समय अनुमानित कीमत वर्णित की गई थी न कि वास्तविक कीमत, इसलिए प्राधिकरण को निर्माण के पश्चात यहां तक कि कब्जा देने के पश्चात भी वास्तविक कीमत का आंकलन करना है। यदि प्राधिकरण द्वारा वास्तविक कीमत का आंकलन करते हुए अंकन 43,053/-रू0 मांग की गई है तब इस मांग में किसी प्रकार की अवैधानिकता नहीं है। जिला उपभोक्ता आयोग ने अपने निर्णय में यह उल्लेख किया है कि प्राधिकरण को वास्तविक मूल्य सुनिश्चित करने का अधिकार है, परन्तु देरी से मांग करने के आधार पर मांग पत्र निरस्त किया गया है। देरी से अन्तिम लागत के आधार पर बकाया धनराशि की मांग करना इस नोटिस के निरस्तीकरण का आधार नहीं बनता। स्वयं प्राधिकरण द्वारा देरी से प्रस्तुत किए गए नोटिस के आधार पर अधिकतम इस राशि पर कोई ब्याज वसूल न किया जाए। समस्त मांग पत्र निरस्त नहीं किया जा सकता। तदनुसार प्रश्नगत निर्णय/आदेश अपास्त होने योग्य है। तदनुसार अपील स्वीकार होने योग्य है।
आदेश
7. अपील इस प्रकार स्वीकार की जाती है कि इलाहाबाद विकास प्राधिकरण अंकन 43,053/-रू0 06/-पैसा प्रत्यर्थी/परिवादी से प्राप्त करने के लिए अधिकृत है, परन्तु चूँकि अतिरिक्त धनराशि की गणना सात वर्ष बाद की गई है इस देरी के लिए प्राधिकरण उत्तरदायी है। अत: देरी के कारण इस राशि पर प्रत्यर्थी/परिवादी से कोई ब्याज वसूल नहीं किया जायेगा। जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा पारित निर्णय/आदेश अपास्त किया जाता है।
8. अपील में उभयपक्ष अपना-अपना व्यय स्वयं वहन करेंगे।
(विकास सक्सेना) (सुशील कुमार)
सदस्य सदस्य
शेर सिंह, आशु0,
कोर्ट नं0- 2