राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ
अपील संख्या-291/2015
(मौखिक)
(जिला उपभोक्ता फोरम-प्रथम, गाजियाबाद द्वारा परिवाद संख्या 200/2013 में पारित आदेश दिनांक 13.01.2015 के विरूद्ध)
1. Anoop Verma S/o Shri L.R. Verma
2. Smt. Madhu Verma W/o Shri Anoop Verma
Both r/o S.I/61, Shastri Nagar, Ghaziabad.
...................अपीलार्थीगण/परिवादीगण
बनाम
1. Shri Dheeraj Kumar Jain/Amit Kumar Jain
2. Shri Pawan Kumar Jain, Chairman through respondent No.1
Office at Mahagun India Pvt. Ltd. A-19, Noida, Gautam Budh
Nagar. Pin 201307. ................प्रत्यर्थीगण/विपक्षीगण
समक्ष:-
माननीय न्यायमूर्ति श्री अख्तर हुसैन खान, अध्यक्ष।
अपीलार्थीगण की ओर से उपस्थित : श्री वी0एस0 बिसारिया,
विद्वान अधिवक्ता।
प्रत्यर्थीगण की ओर से उपस्थित : श्री अनुराग श्रीवास्तव एवं
श्री विकास अग्रवाल,
विद्वान अधिवक्तागण।
दिनांक: 10-04-2017
मा0 न्यायमूर्ति श्री अख्तर हुसैन खान, अध्यक्ष द्वारा उदघोषित
निर्णय
परिवाद संख्या-200/2013 अनूप वर्मा व एक अन्य बनाम धीरज कुमार जैन व एक अन्य में जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष फोरम-प्रथम, गाजियाबाद द्वारा पारित आदेश दिनांक 13.01.2015 के विरूद्ध यह अपील उपरोक्त परिवाद के परिवादीगण अनूप वर्मा व एक अन्य की ओर से धारा-15 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 के अन्तर्गत इस आयोग के समक्ष प्रस्तुत की गयी है।
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आक्षेपित निर्णय और आदेश के द्वारा जिला फोरम ने उपरोक्त परिवाद खारिज कर दिया है। अत: क्षुब्ध होकर अपीलार्थी/परिवादीगण ने यह अपील प्रस्तुत की है।
अपील की सुनवाई के समय अपीलार्थी/परिवादीगण की ओर से उनके विद्वान अधिवक्ता श्री वी0एस0 बिसारिया और प्रत्यर्थी/विपक्षीगण की ओर से उनके विद्वान अधिवक्ता श्री अनुराग श्रीवास्तव एवं श्री विकास अग्रवाल उपस्थित आए।
हमने उभय पक्ष के विद्वान अधिवक्तागण के तर्क को सुना है और आक्षेपित आदेश तथा पत्रावली का अवलोकन किया है।
परिवाद पत्र के अनुसार अपीलार्थी/परिवादीगण का कथन है कि उन्होंने प्रत्यर्थी/विपक्षीगण के प्रोजेक्ट महागुन मस्कट स्थित क्रॉसिंग टाउनशिप, प्लॉट नं0 5, सैक्टर-11, डूण्डाहेड़ा, गाजियाबाद (उ0प्र0) में रेजीडैंशियल यूनिट (अपार्टमेंट) हेतु आवेदन किया, जिसके आधार पर उन्हें यूनिट नं0 1604 टाइप एच0आई0जी0-2 16वीं मंजिल पर 1890 स्क्वायर फुट क्षेत्रफल का फ्लैट उक्त योजना में प्रत्यर्थी/विपक्षीगण द्वारा एलाट किया गया। अपीलार्थी/परिवादीगण ने एलाटमेंट की शर्तें और औपचारिकतायें पूरी कीं। उन्हें फ्लैट पर कब्जा मार्च 2010 तक दिया जाना था, परन्तु जनवरी 2013 तक उन्हें कब्जा नहीं दिया गया। अत: एलाटमेंट की शर्तों के अनुसार प्रत्यर्थी/विपक्षीगण ने जुलाई 2010 से अक्टूबर 2012 तक का अपार्टमेंट के कब्जा में हुए विलम्ब का भुगतान 10/-रू0 स्क्वायर फुट की दर से 5,29,200/-रू0 अपीलार्थी/परिवादीगण को दिया। उसके बाद दिनांक 15.10.2012 को
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प्रत्यर्थी/विपक्षीगण द्वारा अपीलार्थी/परिवादीगण को कब्जा का आफर दिया गया, परन्तु वास्तविक कब्जा उन्हें प्रत्यर्थी/विपक्षीगण ने जनवरी 2013 में दिया और नवम्बर 2012 एवं दिसम्बर 2012 के विलम्ब की पैनाल्टी अदा नहीं की।
परिवाद पत्र के अनुसार अपीलार्थी/परिवादीगण का कथन है कि दिनांक 12.12.2008 तक उनके द्वारा कुल 39,15,566/-रू0 की धनराशि प्रत्यर्थी/विपक्षीगण के पास जमा की गयी थी। अत: वे इस रकम पर अप्रैल 2010 से जनवरी 2013 तक 19,48,082/-रू0 ब्याज पाने के अधिकारी हैं। इसके अलावा वे नवम्बर 2012 व दिसम्बर 2012 का फ्लैट पर कब्जा विलम्ब से देने का भुगतान 37,800/-रू0 और पाने के अधिकारी हैं। अत: उनके द्वारा परिवाद प्रस्तुत कर कुल धनराशि 19,85,882/-रू0 की वसूली प्रत्यर्थी/विपक्षीगण से चाही गयी है।
जिला फोरम के समक्ष प्रत्यर्थी/विपक्षीगण की ओर से लिखित कथन प्रस्तुत किया गया है और यह कथन किया गया है कि परिवाद जिला फोरम के आर्थिक क्षेत्राधिकार से परे है।
जिला फोरम ने उभय पक्ष के अभिकथन पर विचार करने के उपरान्त आक्षेपित निर्णय और आदेश पारित किया है और परिवाद इस आधार पर निरस्त किया है कि अपीलार्थी/परिवादीगण ने सेल डीड दिनांकित 24.12.2012 बिना किसी दबाव के प्रत्यर्थी/विपक्षीगण से निष्पादित कराया है। अत: सेल डीड के निष्पादन के बाद अब वे प्रत्यर्थी/विपक्षीगण से कोई अनुतोष पाने के अधिकारी नहीं हैं।
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अपीलार्थी/परिवादीगण के विद्वान अधिवक्ता का तर्क है कि जिला फोरम द्वारा पारित आक्षेपित निर्णय और आदेश विधि विरूद्ध और त्रुटिपूर्ण है।
प्रत्यर्थी/विपक्षीगण के विद्वान अधिवक्ता का तर्क है कि जिला फोरम के समक्ष अपीलार्थी/परिवादीगण द्वारा प्रस्तुत परिवाद ग्राह्य नहीं है। अत: जिला फोरम ने उसे अपास्त कर कोई गलती नहीं की है।
प्रत्यर्थी/विपक्षीगण के विद्वान अधिवक्ता का तर्क है कि जिला फोरम के आक्षेपित निर्णय और आदेश में हस्तक्षेप हेतु उचित आधार नहीं है।
हमने उभय पक्ष के तर्क पर विचार किया है।
परिवाद पत्र के कथन से यह स्पष्ट है कि अपीलार्थी/परिवादीगण को प्रत्यर्थी/विपक्षीगण द्वारा जो फ्लैट आवंटित किया गया है, उसका मूल्य 39,15,566/-रू0 है और उक्त फ्लैट का कब्जा समय से न देने के कारण अपीलार्थी/परिवादीगण ने 19,85,882/-रू0 क्षतिपूर्ति की मांग की है।
धारा-11 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 के अनुसार जिला फोरम को ऐसे परिवाद में संज्ञान लेने का अधिकार है, जिसमें प्रश्नगत माल या सेवा और क्षतिपूर्ति का मूल्य 20,00,000/-रू0 से अधिक न हो।
माननीय राष्ट्रीय आयोग ने अम्बरीश शुक्ला आदि बनाम फेरस इन्फ्रास्ट्रकचर प्राइवेट लिमिटेड 2016 (4) सी0पी0आर0 83 के वाद में स्पष्ट रूप से मत व्यक्त किया है कि संज्ञान लेने हेतु परिवाद का मूल्यांकन सेवा या वस्तु के मूल्य और याचित क्षतिपूर्ति के आधार पर
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निर्धारित किया जाएगा। मात्र याचित अनुतोष के आधार पर नहीं। अत: वर्तमान परिवाद का मूल्यांकन 20,00,000/-रू0 से अधिक है और जिला फोरम के आर्थिक क्षेत्राधिकार से परे है। प्रत्यर्थी/विपक्षीगण ने जिला फोरम के समक्ष उसके आर्थिक क्षेत्राधिकार को लिखित कथन में चुनौती भी दी है, फिर भी जिला फोरम ने परिवाद का निस्तारण गुणदोष के आधार पर किया है, जो उचित नहीं है।
उपरोक्त सम्पूर्ण विवेचना एवं परिवाद पत्र में अभिकथित तथ्यों पर विचार करने के उपरान्त यह स्पष्ट है कि जिला फोरम के समक्ष प्रस्तुत परिवाद जिला फोरम के आर्थिक क्षेत्राधिकार से परे है। अत: जिला फोरम द्वारा उसे ग्रहण कर जो आक्षेपित निर्णय और आदेश पारित किया गया है, वह अधिकार रहित और विधि विरूद्ध है। जिला फोरम को परिवाद में गुणदोष के आधार पर कोई आदेश पारित करने का अधिकार नहीं है। अत: जिला फोरम के निर्णय पर गुणदोष के आधार पर विचार करने की आवश्यकता नहीं है।
उपरोक्त निष्कर्षों के आधार पर अपील आंशिक रूप से स्वीकार की जाती है और जिला फोरम द्वारा पारित आक्षेपित निर्णय और आदेश को संशोधित करते हुए परिवाद अपीलार्थी/परिवादीगण को इस छूट के साथ निरस्त किया जाता है कि वह सक्षम फोरम में विधि के अनुसार परिवाद प्रस्तुत करने हेतु स्वतंत्र हैं।
(न्यायमूर्ति अख्तर हुसैन खान)
अध्यक्ष
जितेन्द्र आशु0
कोर्ट नं0-1