सुरक्षित
राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।
अपील संख्या-2185/2015
Tata Motors Insurance Broking & Advisory Services Ltd, AFL House, Ist Floor, Lok Bharti Complex, Marol Maroshi Road, Andheri East, Mumbai 400059.
अपीलार्थी/विपक्षी संख्या-2
बनाम्
1. Deepak Ojha S/o Bhaskar Prasad Ojha, 20, Prayagraj Colony, Sarayatki, Chatnam road, Junsi, Allahabad.
2. G.P. Motors Pvt Ltd, M.G. Marg, Civil Lines, Allahabad, Through its Manager.
3. National Insurance Company Ltd, 5, Sardar Patel Marg, Civil Lines, Allahabad 211001, and Regional Office at Royal Insurance Building, IInd Floor, J. Tata road, Churchgate, Mumbai 400020.
प्रत्यर्थीगण/परिवादी/विपक्षी संख्या-1 व 3
एवं
अपील संख्या-2191/2015
National Insurance Company, Through its Authorized Officer Regional Office: Jeevan Bhawan, Phase-II Naval Kishore Road Hazratganj, Lucknow.
अपीलार्थी/विपक्षी संख्या-3
बनाम्
1. Deepak Ojha S/o Bhaskar Prasad Ojha, R/o-Prayagraj, Colony Sarayatki, Chatnaag Road, Jhunsi, Allahabad.
2. G.P. Motors Pvt Ltd, 31, MG. Marg, Civil Lines, Allahabad, Through its Manager.
3. Tata Motors Insurance Company Ltd, 801804, 8th Floor, Tulsiyamni Nariman, Mumbai 400.
प्रत्यर्थीगण/परिवादी/विपक्षी संख्या-1 व 2
समक्ष:-
1. माननीय श्री राजेन्द्र सिंह, सदस्य।
2. माननीय श्री सुशील कुमार, सदस्य।
विपक्षी संख्या-2, टाटा मोटर्स की ओर से : श्री राजेश चड्ढा, विद्वान अधिवक्ता।
परिवादी की ओर से : श्री अनिल कुमार मिश्रा, विद्वान अधिवक्ता।
विपक्षी सं0-1, जी0पी0 मोटर की ओर से : कोई नहीं।
विपक्षी सं0-3, नेशनल इंश्योरेंस की ओर से : श्री प्रशान्त कुमार, विद्वान अधिवक्ता।
दिनांक: 13.01.2021
माननीय श्री सुशील कुमार, सदस्य द्वारा उद्घोषित
निर्णय
1. परिवाद संख्या-79/2014, दीपक ओझा बनाम जी0पी0 मोटर प्रा0लि0 तथा अन्य में पारित निर्णय एवं आदेश दिनांक 18.08.2015 के विरूद्ध अपील संख्या-2185/2015, विपक्षी संख्या-2/अपीलार्थी, टाटा मोटर्स इन्श्योरेंस ब्रोकिंग एण्ड एडवाइजरी सर्विस लिमिटेड के द्वारा प्रस्तुत की गई है तथा इसी निर्णय एवं आदेश के विरूद्ध अपील संख्या-2191/2015, विपक्षी संख्या-3/अपीलार्थी, नेशनल इंश्योरेंस कंपनी के द्वारा प्रस्तुत की गई है। चूंकि दोनों अपीलें एक ही निर्णय एंव आदेश से प्रभावित होकर प्रस्तुत की गई हैं, इसलिए दोनों अपीलों का निस्तारण एक ही निर्णय से किया जा रहा है।
2. परिवादी, दीपक ओझा ने उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम की धारा 12 के अन्तर्गत एक परिवाद इन तथ्यों के साथ प्रस्तुत किया कि वह U P 70 V 9500 का पंजीकृत स्वामी है, जो विपक्षी संख्या-1, जी0पी0 मोटर प्रा0लि0 से क्रय किया गया था, जिसका फाइनेन्स बैंक आफ बड़ौदा, झूंसी से कराया था तथा वाहन का बीमा भी विपक्षी संख्या-1, जी0पी0 मोटर प्रा0लि0 के माध्यम से ही विपक्षी संख्या-2 व 3 के द्वारा प्रथम वर्ष के लिए कराया गया था, जिसका भुगतान फाइनेन्स की किस्तों से लिया गया था। प्रथम पालिसी कालातीत हो गई थी, इसके बाद विपक्षीगण द्वारा वाहन का मौका निरीक्षण कर दिनांक 21.11.2012 को नई पालिसी जारी की गई थी। परिवादी ने उक्त पालिसी के एवज में अंकन 25,951/- रूपये का चेक संख्या-502910 विपक्षी संख्या-1, जी0पी0 मोटर प्रा0लि0 को दिया गया था। बीमित वाहन दिनांक 20.04.2013 को दुर्घटनाग्रस्त हो गया। इस दुर्घटना में गाड़ी पूर्णतया क्षतिग्रस्त हो गई तथा स्वंय परिवादी एवं उसकी पत्नी को प्राणघातक चोटें आईं और दोनों का इलाज लम्बे समय तक जीवन ज्योति अस्पताल में चलता रहा। दिनांक 24.04.2013 को विपक्षी संख्या-1 के सर्विस सेण्टर में वाहन खड़ा किया और इसकी सूचना फाइनेन्स कंपनी एवं विपक्षी संख्या-1 को दी गई। बीमित वाहन की मरम्मत की राशि का भुगतान विपक्षीगण द्वारा नहीं किया गया, जिस पर परिवादी ने दिनांक 08.08.2013 एवं दिनाकं 22.08.2013 को लिखित रूप से निवेदन किया। विपक्षी संख्या-1 ने दिनांक 23.08.2013 को सूचित किया कि गाड़ी की मरम्मत की लागत अंकन 8,13,705/- रूपये आ सकती है। इस राशि का 50 प्रतिशत भुगतान परिवादी को करना होगा और शेष राशि के भुगतान के लिए विपक्षी संख्या-3, नेशनल इंश्योरेंस कंपनी से सम्पर्क करने के लिए कहा गया। वार्ता करने पर बताया गया कि वाहन का बीमा कैन्सिल हो गया है। परिवादी ने यह भी अनुरोध किया कि उससे कोई राशि न ली जाए। परिवादी ने अपना बैंक स्टेटमेंट निकाला तब उसे पहली बार दिनांक 06.12.2013 को ज्ञात हुआ कि अंकन 25,951/- रूपये के चेक का भुगतान दिनांक 22.11.2012 को हो गया था, किंतु बैंक स्टेटमेंट के अनुसार उसी दिन यह भुगतान वापस आ गया और कारण बिना तारीख का चेक रहा। बीमा कम्पनी द्वारा कभी भी चेक वापस नहीं किया गया, चेक के संबंध में कोई सूचना नहीं दी गई और न ही बीमा चालू रखने के लिए भुगतान करने के लिए कहा गया। इस प्रकार विपक्षीगण ने लापरवाही एवं सेवा में कमी किया है, इसलिए विपक्षीगण का दायित्व है कि वह वाहन में कारित क्षतिपूर्ति की राशि का भुगतान बीमा पालिसी की व्यवस्था के अनुसार करे।
3. विपक्षी संख्या-1 ने लिखित कथन में उल्लेख किया है कि ग्राहक को सुविधा देने के लिए परिवादी का चेक लेकर विपक्षीगण को पहुंचा दिया गया है। बीमा पालिसी में यह शर्त थी कि यदि चेक अनादरित हुआ तो बीमा पालिसी स्वत: रद्द हो जाएगी। चूंकि चेक अनादरित हुआ, इसलिए बीमा पालिसी स्वत: समाप्त हो गई, जिसकी जानकारी परिवादी को करा दी गई और मरम्मत के लिए परिवादी को ही पैसा अदा करने के लिए कहा गया। विपक्षी संख्या-1 ने सेवा में कोई कमी नहीं की है। परिवादी की स्वंय की लापरवाही के कारण बीमा निरस्त हुआ है। परिवादी ने स्वंय अपने बैंक खाते को चेक किया, उसे ज्ञात हो चुका था कि बैंक से चेक अनादरित हो चुका है और पालिसी निरस्त हो चुकी है, इसलिए परिवादी का दावा निरस्त होना कहा गया।
4. विपक्षी संख्या-2 एवं 3 की ओर से कोई उपस्थित नहीं हुआ, इसलिए उनके विरूद्ध एकतरफा सुनवाई की गई।
5. दोनों पक्षकारों के साक्ष्य पर विचार करने के पश्चात् विद्वान जिला उपभोक्ता फोरम/आयोग, इलाहाबाद द्वारा परिवाद को स्वीकार करते हुए निम्नलिखित आदेश पारित किया गया :-
'' परिवादी द्वारा प्रस्तुत यह परिवाद-पत्र विपक्षी सं0-2 व 3 के विरूद्ध अंशत: संयुक्त एवं पृथक रूपेण आज्ञप्त किया जाता है। विपक्षी सं0-2 व 3 को यह निर्देश दिया जाता है कि वे इस आदेश के 2 माह के अन्तर्गत परिवादी को 6,00000/-रू0 वाहन के टोटल लास के मद में क्षति-पूर्ति मय 8 प्रतिशत वार्षिक साधारण ब्याज परिवाद दाखिल करने की तिथि से वास्तविक भुगतान की तिथि तक का अदा करे। विपक्षी सं0-2 व 3 से 20,000/-रू0 क्षति-पूर्ति तथा 2,000/-रू0 वाद व्यय भी प्राप्त करने का अधिकारी है। ''
6. इस निर्णय एवं आदेश को टाटा मोटर्स इंश्योरेंस ब्रोकिंग एण्ड एडवाइजरी सर्विसेज लि0 यानी कि विपक्षी संख्या-2/अपीलार्थी द्वारा इन आधारों पर चुनौती दी गई है कि विद्वान जिला उपभोक्ता फोरम/आयोग द्वारा पारित आदेश सारवान रूप से त्रुटिपूर्ण है, तथ्यों के आधार पर भी गलत है, अवैध, मनमाना तथा कल्पना एवं संभावनाओं पर आधारित है। यह भी उल्लेख किया गया कि अपीलार्थी/विपक्षी संख्या-2 पर कभी भी समन की तामील नहीं हुई, इसलिए उसके विरूद्ध एकपक्षीय आदेश पारित किया गया है। निर्णय की प्रमाणित प्रतिलिपि भी अपीलार्थी/विपक्षी संख्या-2 को प्रस्तुत नहीं कराई गई। ग्राहकों को बीमा पालिसी प्राप्त कराने के उद्देश्य से अपीलार्थी/विपक्षी संख्या-2 कार्यरत है, उनके द्वारा स्वंय बीमा पालिसी जारी नहीं की गई है, जिस बीमा कम्पनी को प्रीमियम अदा किया गया है, उसके द्वारा पालिसी जारी की गई है और स्वंय परिवाद पत्र में इस तथ्य का उल्लेख किया गया है, इसलिए अपीलार्थी/विपक्षी संख्या-2 के विरूद्ध पारित निर्णय एवं आदेश अवैध है।
7. नेशनल इंश्योरेंस कंपनी यानी विपक्षी संख्या-3/अपीलार्थी की ओर से अपील इन आधारों पर प्रस्तुत की गई है कि विद्वान जिला उपभोक्ता फोरम/आयोग ने सही तथ्यात्मक स्थिति का सही अवलोकन नहीं किया और तकनीकि अंदाज में निर्णय पारित किया गया है। यह निर्णय एकतरफा और विपक्षी संख्या-3/अपीलार्थी को सुनवाई का अवसर दिए बगैर पारित किया गया है तथा इस बिन्दु पर कतई विचार नहीं किया है कि स्वंय परिवादी की त्रुटि के कारण पालिसी निरस्त हो चुकी थी, पालिसी अस्तित्व में नहीं थी, क्योंकि प्रीमियम अदा नहीं किया गया। इस स्थिति में भी विपक्षी संख्या-3/अपीलार्थी के विरूद्ध पारित प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश अपास्त होने योग्य है।
8. अपीलार्थी/विपक्षी संख्या-2, टाटा मोटर्स के विद्वान अधिवक्ता श्री राजेश चड्ढा तथा प्रत्यर्थी संख्या-1/परिवादी के विद्वान अधिवक्ता श्री अनिल कुमार मिश्रा एवं विपक्षी संख्या-3, नेशनल इंश्योरेंस कंपनी के विद्वान अधिवक्ता श्री प्रशान्त कुमार उपस्थित आए। विपक्षी संख्या-1, जी0पी0 मोटर प्रा0लि0 की ओर से कोई उपस्थित नहीं हुआ। उपस्थित अधिवक्तागण को मौखिक रूप से सुना गया। प्रश्नगत निर्णय/आदेश एवं दोनों पत्रावलियों का अवलोकन किया गया।
9. अपीलार्थीगण के विद्वान अधिवक्ताओं का यह तर्क है कि चूंकि पालिसी का प्रीमियम अदा नहीं हो सका, इसलिए पालिसी रद्द हो चुकी थी। उनका यह भी तर्क है कि स्वंय परिवादी ने जो चेक जारी किया उस पर तिथि अंकित नहीं की, इसलिए चेक अनादरित हुआ।
10. प्रत्यर्थी संख्या-1/परिवादी के विद्वान अधिवक्ता का यह तर्क है कि बीमा कम्पनी द्वारा कभी भी चेक बैकं में प्रस्तुत नहीं किया गया। इस चेक पर तिथि अंकित थी। यह चेक कभी भी अनादरित नहीं हुआ। बीमा पालिसी रद्द होने की सूचना या पुन: पैसा जमा कराकर पालिसी प्राप्त कराने के संबंध में कोई सूचना बीमा कम्पनी द्वारा नहीं दी गई, इसलिए बीमा कम्पनी की सेवा में त्रुटि का मामला बनता है और बीमित वाहन को दुर्घटना में कारित क्षति की पूर्ति करने के लिए बीमा कम्पनी बाध्य है।
11. इस पीठ के समक्ष इस आशय का कोई अभिलेख प्रस्तुत नहीं किया गया, जिससे यह जाहिर हो सके कि परिवादी द्वारा पालिसी के लिए जो चेक दिया गया था वह बैंक में प्रस्तुत किया गया था और बैंक द्वारा चेक पर तिथि अंकित न होने के कारण अनादरित किया गया था, इसलिए अपीलार्थीगण का यह तर्क सबूत के अभाव में साबित नहीं है कि चेक बैंक से अनादरित हुआ, इस आधार पर पालिसी रद्द हो गई।
12. अब इस बिन्दु पर विचार करना है कि क्या परिवादी को यह तथ्य ज्ञात था कि बीमा पालिसी के लिए प्रीमियम धन की अदायगी नहीं हो सकी है और इस जानकारी के बावजूद स्वंय परिवादी ने प्रीमियम के धन की अदायगी का कोई प्रयास नहीं किया, जिसके कारण पालिसी रद्द हो चुकी थी।
13. परिवाद पत्र के पैरा संख्या-10 में यह उल्लेख है कि परिवादी ने दिनांक 06.12.2013 को अपना बैंक स्टेटमेंट निकाला तब उसे ज्ञात हुआ कि दिनांक 22.11.2012 को ही भुगतान हो गया था, परन्तु उसी दिन पैसा वापस बैंक खाते में आ गया और जिसका कारण बिना दिनांकित चेक बताया गया, यानी परिवाद पत्र के अनुसार दिनांक 06.12.2013 से पूर्व परिवादी को यह जानकारी नहीं थी कि उसके बैंक खाते से प्रीमियम राशि का भुगतान हुआ है या नहीं हुआ है, परन्तु परिवाद पत्र में किसी तथ्य को अंकित कर देने मात्र से यह नहीं माना जा सकता कि वह तथ्य ज्यों का त्यों विद्वान जिला उपभोक्ता फोरम या राज्य उपभोक्ता आयोग द्वारा सत्य मान लिया जाए। इस तथ्य को साबित करने का भार स्वंय परिवादी पर है कि यथार्थ में उसे दिनांक 06.12.2013 को इस तथ्य का पता चला कि दिनांक 22.11.2012 को पैसा निकलने के पश्चात् वापस बैंक खाते में जमा हो गया, परिवादी बैंक विवरण को विद्वान जिला उपभोक्ता फोरम/आयोग के समक्ष प्रस्तुत करके इस तथ्य को साबित कर सकता था कि उसके द्वारा दिनांक 06.12.2013 को ही बैंक स्टेटमेंट प्राप्त किया गया और इस तिथि से पूर्व उसे प्रीमियम के भुगतान होने या न होने के आधार पर कोई जानकारी नहीं हो सकी।
14. यह भी उल्लेखनीय है कि परिवादी द्वारा दिए गए चेक के अनादरित होने पर बैंक द्वारा इस तथ्य की सूचना परिवादी को अवश्य दी गई होगी और उपधारणा की जा सकती है कि परिवादी को यह तथ्य ज्ञात हो चुका था कि बीमा पालिसी के प्रीमियम का भुगतान नहीं हो सका है। अत: अंतिम अवसर के सिद्धांत के तहत यह परिवादी का दायित्व था कि वह प्रीमियम के भुगतान की व्यवस्था करते और जब बैंक द्वारा उन्हें चेक के अनादरित होने की सूचना नहीं दी गई या उनके द्वारा समय पर बैंक विवरण प्रस्तुत नहीं किया गया तब यह त्रुटि भी परिवादी और बैंक के स्तर पर कारित हुई है न कि बीमा कम्पनी के स्तर पर।
15. विद्वान जिला उपभोक्ता फोरम/आयोग ने अपने निर्णय में यह उल्लेख किया है कि परिवादी को बीमा पालिसी प्राप्त कराई जा चुकी थी, इसलिए इस बीमा पालिसी की शर्तों के अनुसार बीमित वाहन को कारित क्षति की पूर्ति न कर सेवा में कमी की गई है, परन्तु इस तथ्य पर कोई विचार नहीं किया कि बीमा पालिसी प्रीमियम भुगतान के तहत जारी होती है। यदि किसी भी कारण से प्रीमियम का भुगतान नहीं हो पाता है तब पालिसी अस्तित्व में नहीं रह पाती। किसी पालिसी के विद्यमान होने के लिए प्रीमियम का भुगतान होना प्रथम शर्त है। अत: यह उल्लेख विधि विरूद्ध है कि बीमा पालिसी अस्तित्व में थी और विपक्षीगण द्वारा सेवा में कमी की गई है। स्वंय परिवादी ने सर्वोत्तम साक्ष्य यानी बैंक खाते का विवरण, पासबुक आदि को उपभोक्ता मंच के समक्ष प्रस्तुत नहीं किया और सर्वोत्तम साक्ष्य को छिपाया, इसलिए यह नहीं माना जा सकता कि परिवाद पत्र में वर्णित यह तथ्य साबित हुआ है कि परिवादी को प्रथम बार दिनांक 06.12.2013 को यह ज्ञात हुआ कि उसके खाते से पैसा निकला और वापस उसी दिन यानी दिनांक 22.11.2012 को जमा हो गया।
16. उपरोक्त विवेचना का निष्कर्ष यह है कि दुर्घटना की तिथि दिनांक 20.04.2013 को बीमा पालिसी अस्तित्व में नहीं थी, इसलिए अस्तित्व विहीन पालिसी के लिए किसी प्रकार की क्षतिपूर्ति परिवादी को प्रदान किया जाना संभव नहीं था। बीमा कम्पनी द्वारा बीमा क्लेम नकारने का आधार विधिसम्मत है और विद्वान जिला उपभोक्ता फोरम/आयोग द्वारा पारित निर्णय एवं आदेश विधि विरूद्ध है। तदनुसार अपास्त होने योग्य है और उपरोक्त दोनों अपीलें स्वीकार होने योग्य हैं।
आदेश
17. अपील संख्या-2185/2015 एवं अपील संख्या-2191/2015 स्वीकार की जाती हैं। विद्वान जिला उपभोक्ता फोरम/आयोग द्वारा पारित निर्णय एवं आदेश दिनांक 18.08.2015 अपास्त किया जाता है तथा परिवाद निरस्त किया जाता है।
18. अपीलों में उभय पक्ष अपना-अपना व्यय स्वंय वहन करेंगे।
19. इस निर्णय/आदेश की मूल प्रति अपील संख्या-2185/2015 में रखी जाए एवं इसकी एक सत्य प्रति अपील संख्या-2191/2015 में भी रखी जाए।
20. अपीलार्थीगण द्वारा प्रस्तुत दोनों अपीलों में धारा 15 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 के अन्तर्गत जमा धनराशि अर्जित ब्याज सहित अपीलार्थीगण को वापस की जाए।
21. उभय पक्ष को इस निर्णय/आदेश की सत्यप्रतिलिपि नियमानुसार उपलब्ध करा दी जाये।
(सुशील कुमार) (राजेन्द्र सिंह)
सदस्य सदस्य
लक्ष्मन, आशु0,
कोर्ट-2