Uttar Pradesh

StateCommission

A/1082/2015

Smt R. T. Rarasar - Complainant(s)

Versus

Citticor Maruti Finance Ltd - Opp.Party(s)

Alok Sinha

12 Sep 2017

ORDER

STATE CONSUMER DISPUTES REDRESSAL COMMISSION, UP
C-1 Vikrant Khand 1 (Near Shaheed Path), Gomti Nagar Lucknow-226010
 
First Appeal No. A/1082/2015
(Arisen out of Order Dated 12/05/2015 in Case No. c/940/2008 of District Kanpur Nagar)
 
1. Smt R. T. Rarasar
Kanpur Nagar
Kanpur Nagar
UP
...........Appellant(s)
Versus
1. Citticor Maruti Finance Ltd
Delhi
Delhi
Delhi
...........Respondent(s)
 
BEFORE: 
 HON'BLE MR. JUSTICE AKHTAR HUSAIN KHAN PRESIDENT
 
For the Appellant:
For the Respondent:
Dated : 12 Sep 2017
Final Order / Judgement

राज्‍य उपभोक्‍ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ

अपील सं0- 1082 /2015

                                   (मौखिक)

(जिला उपभोक्‍ता विवाद प्रतितोष फोरम, कानपुर नगर द्वारा परिवाद सं0- 940/2008 में पारित आदेश दि0 12.05.2015 के विरूद्ध)

Smt. R.T. Parasar W/o R.K. Parasar, R/o 35/3 V-Block No. 4, Govind nagar, Kanpur nagar.

                                                                                         …… Appellant                                                    

Versus

Citicorp Maruti Finance Ltd. Through collection officer citi group global services Ltd. A-25, Mohan cooperative, Mathura road, New Delhi.

                                                                                            ……Respondent    

समक्ष:-                       

माननीय न्‍यायमूर्ति श्री अख्‍तर हुसैन खान, अध्‍यक्ष। 

अपीलार्थी की ओर से उपस्थित : श्री आलोक सिन्‍हा, विद्वान अधिवक्‍ता।

प्रत्‍यर्थी की ओर से उपस्थित : कोई नहीं।  

दिनांक:-  12.09.2017

 

माननीय न्‍यायमूर्ति श्री अख्‍तर हुसैन खान, अध्‍यक्ष  द्वारा उद्घोषित

                                                     

निर्णय

 

  परिवाद सं0- 940/2008 श्रीमती आर0टी0 पारासर बनाम सिटी कार्यालय मारूति फाइनेंस लि0 में जिला फोरम, कानपुर नगर द्वारा पारित निर्णय और आदेश दि0 12.05.2015 के विरूद्ध यह अपील धारा 15 उपभोक्‍ता संरक्षण अधिनियम, 1986 के अंतर्गत आयोग के समक्ष प्रस्‍तुत की गई है।

  आक्षेपित निर्णय और आदेश के द्वारा जिला फोरम ने परिवाद निरस्‍त कर दिया है, जिससे क्षुब्‍ध होकर परिवाद की परिवादिनी ने यह अपील प्रस्‍तुत की है।

  अपील की सुनवाई के समय अपीलार्थी की ओर से उसके विद्वान अधिवक्‍ता श्री आलोक सिन्‍हा उपस्थित आये हैं। प्रत्‍यर्थी की ओर से नोटिस तामीला के बाद भी कोई उपस्थित नहीं हुआ है।

  मैंने अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्‍ता के तर्क को सुना है और आक्षेपित निर्णय और आदेश तथा पत्रावली का अवलोकन किया है।

  अपील के निर्णय हेतु संक्षित सुसंगत तथ्‍य इस प्रकार हैं कि अपीलार्थी/परिवादिनी ने उपरोक्‍त परिवाद जिला फोरम के समक्ष इस कथन के साथ प्रस्‍तुत किया है कि उसने प्रत्‍यर्थी/विपक्षी सिटी कार्यालय मारूति फाइनेंस लि0 से लोन लेकर जेन एल0एक्‍स0 कार अगस्‍त 2004 में खरीदा था। लोन की धनराशि 8200/-रू0 की मासिक किश्‍तों में 36 किश्‍तों में अदा होनी थी जिसके लिए परिवादिनी ने अपने सी0सी0 एकाउण्‍ट नं0- 11052 इलाहाबाद बैंक शाखा दादानगर, कानपुर की 36 चेक विपक्षी को दी थी। किश्‍तों का भुगतान सितम्‍बर 2004 से शुरू होकर अगस्‍त 2007 तक पूरा हो गया। उसके बाद विपक्षी ने अपने अधिवक्‍ता के माध्‍यम से दि0 07.07.2008 को परिवादिनी को नोटिस दिया और 25,000/-रू0 बकाया दर्शाते हुए अदा करने को कहा तब परिवादिनी ने विपक्षी के विद्वान अधिवक्‍ता से सम्‍पर्क किया तो उन्‍होंने रिकॉर्ड के अभाव में कुछ बताने में असमर्थता व्‍यक्‍त कर दी। उसके बाद परिवादिनी ने अपने विद्वान अधिवक्‍ता के माध्‍यम से जवाब नोटिस भेजा जिसमें सम्‍पूर्ण किश्‍तें अदा करने की बात कही गई और यह भी कहा गया कि यदि किसी चेक का कोई भुगतान हुआ हो तो उसका ब्‍योरा दिया जाए, परन्‍तु विपक्षी बैंक ने परिवादिनी को कोई ब्‍योरा नहीं दिया और पुन: दूसरी नोटिस दि0 07.09.2008 को प्रेषित की, जिसमें 61,695/-रू0 38/-पैसा का बकाया दर्शित करते हुए उसकी मांग की।

  परिवाद पत्र के अनुसार परिवादिनी का कथन है कि उसके द्वारा किश्‍तों की अदायगी करने के बाद उसे एन0ओ0सी0 विपक्षी ने नहीं दिया है और गलत ढंग से 61,695/-रू0 38/-पैसा अवशेष दर्शित करते हुए उससे मांग की जा रही है तथा उसके लिए परिवादिनी की कार को नीलाम करने की विपक्षी द्वारा धमकी दी जा रही है। अत: परिवादिनी ने परिवाद जिला फोरम के समक्ष प्रस्‍तुत किया है और निवेदन किया है कि विपक्षी अथवा उसके एजेंट या कर्मचारी को वाहन कब्‍जा लेने अथवा उपरोक्‍त धनराशि 61,695/-रू0 38/-पैसा की रिकवरी बिना कानूनी प्रक्रिया अपनाये करने से रोका जाए। परिवादिनी ने 35,000/-रू0 क्षतिपूर्ति की भी मांग की है।

  जिला फोरम के समक्ष विपक्षी की ओर से लिखित कथन प्रस्‍तुत किया गया है और कहा गया है कि परिवादिनी को 2,29,850/-रू0 का लोन विपक्षी कम्‍पनी के द्वारा दिया गया था जिसके भुगतान हेतु परिवादिनी ने 35 चेक बैंक को मासिक किश्‍तों के भुगतान हेतु दिये थे। लिखित कथन में विपक्षी की ओर से यह भी कहा गया है कि सितम्‍बर 2004 के बाद परिवादिनी ने मासिक किश्‍तों के भुगतान में चूक की है और उसने ऋण की सम्‍पूर्ण धनराशि का करार के अनुसार भुगतान नहीं किया है। अत: वह एन0ओ0सी0 पाने की अधिकारी नहीं है।

  जिला फोरम ने उभयपक्ष के अभिकथन एवं उपलब्‍ध साक्ष्‍यों पर विचार किया है और अपने निर्णय में उल्‍लेख किया है कि विधि का यह प्रतिपादित सिद्धांत है कि परिवादिनी को अपना परिवाद अपने पैरों पर खड़े होकर अपने साक्ष्‍य के द्वारा प्रमाणित करना होगा। अत: विपक्षी की कमी का लाभ उसे नहीं दिया जा सकता है।

  जिला फोरम ने अपने निर्णय और आदेश में यह भी उल्‍लेख किया है कि परिवादिनी द्वारा परिवाद पत्र में कहा गया है कि उसके द्वारा विपक्षी को 1,00,000/-रू0 नकद तथा शेष ऋण की धनराशि की अदायगी के लिए 36 चेक एडवांस में दे दी गई थीं, परन्‍तु परिवादिनी द्वारा इस कथन के समर्थन में कोई साक्ष्‍य नहीं प्रस्‍तुत किया गया है। जिला फोरम ने अपने निर्णय में यह भी उल्‍लेख किया है कि परिवादिनी द्वारा अपने परिवाद पत्र में यह भी कहा गया है कि उसके द्वारा विपक्षी से लिया गया ऋण अदा कर दिया गया है, किन्‍तु परिवादिनी द्वारा अपने कथन के समर्थन में कोई साक्ष्‍य नहीं प्रस्‍तुत किया गया है।

  उपरोक्‍त उल्‍लेख के आधार पर जिला फोरम ने माना है कि परिवादिनी अपना परिवाद साबित नहीं कर सकी है। अत: जिला फोरम ने परिवाद आक्षेपित निर्णय और आदेश के द्वारा निरस्‍त कर दिया है।

  अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्‍ता का तर्क है कि जिला फोरम द्वारा पारित  निर्णय और आदेश साक्ष्‍य एवं विधि के विरूद्ध है और अपास्‍त किये जाने योग्‍य है।

  मैंने अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्‍ता के तर्क पर विचार किया है।

  उभयपक्ष के अभिकथन से यह स्‍पष्‍ट है कि अपीलार्थी/परिवादिनी ने प्रत्‍यर्थी/विपक्षी से कार लोन लिया है और इस लोन की कुल धनराशि 2,29,850/-रू0 थी जिसका भुगतान 8200/-रू0 की मासिक 36 किश्‍तों में होना था और इन किश्‍तों के भुगतान हेतु अपीलार्थी/परिवादिनी ने अपने खाते के 35 चेक प्रत्‍यर्थी/विपक्षी को दिये थे। प्रत्‍यर्थी/विपक्षी द्वारा लिखित कथन में यह नहीं कहा गया है कि अपीलार्थी/परिवादिनी ने जो 35 चेक किश्‍तों के भुगतान हेतु उसे दिये थे उन चेकों का भुगतान नहीं हुआ है अथवा उक्‍त चेक डिसऑनर हुए हैं। अपीलार्थी/परिवादिनी के ऋण खाते का पूर्ण विवरण प्रत्‍यर्थी/विपक्षी के पास ही होगा। अत: प्रत्‍यर्थी/विपक्षी, अपीलार्थी/परिवादिनी के ऋण खाते का विवरण (स्‍टेटमेंट) प्रस्‍तुत कर ऋण के भुगतान की स्थि‍ति स्‍पष्‍ट कर सकता था और यदि उसके द्वारा अपीलार्थी/परिवादिनी के ऋण खाते का विवरण जिला फोरम के समक्ष प्रस्‍तुत नहीं किया गया था तो ऐसी स्थिति में जिला फोरम धारा 13(4) उपभोक्‍ता संरक्षण अधिनियम के अंतर्गत विपक्षी को अपीलार्थी/परिवादिनी के ऋण खाते का पूर्ण विवरण भुगतान दर्शित करते हुए प्रस्‍तुत करने का निर्देश दे सकता था, परन्‍तु जिला फोरम के आक्षेपित निर्णय और आदेश से स्‍पष्‍ट है कि विपक्षी द्वारा अपीलार्थी/परिवादिनी के ऋण खाते का विवरण जिला फोरम के समक्ष प्रस्‍तुत नहीं किया गया है और न यह कहा गया है कि उसे अपीलार्थी/परिवादिनी ने जो 35 चेक किश्‍तों के भुगतान हेतु दी थी उक्‍त चेक डिसऑनर हुई है अथवा उसका भुगतान नहीं प्राप्‍त हुआ है।

  उपरोक्‍त विवेचना के आधार पर यह स्‍पष्‍ट है कि जिला फोरम ने पक्षों के बीच वास्‍तविक विवाद के निस्‍तारण में उचित व विधिक प्रक्रिया अपनाये बिना आक्षेपित निर्णय और आदेश पारित किया है जो उचित नहीं है। अत: जिला फोरम द्वारा पारित आक्षेपित निर्णय और आदेश त्रुटिपूर्ण है।

  उपरोक्‍त विवेचना एवं ऊपर निकाले गये निष्‍कर्ष के आधार पर अपील स्‍वीकार की जाती है और जिला फोरम द्वारा पारित आक्षेपित निर्णय और आदेश अपास्‍त करते हुए पत्रावली जिला फोरम को इस निर्देश के साथ प्रत्‍यावर्तित की जाती है कि वह प्रत्‍यर्थी/विपक्षी को धारा 13(4) उपभोक्‍ता संरक्षण अधिनियम के अंतर्गत अपीलार्थी/परिवादिनी के ऋण खाते का पूर्ण विवरण प्रस्‍तुत करने का निर्देश दे और उसके बाद उभयपक्ष को साक्ष्‍य और सुनवाई का अवसर देकर परिवाद में पुन: गुण-दोष के आधार पर निर्णय, इस निर्णय की प्रति प्राप्‍त होने की तिथि से तीन मास के अन्‍दर पारित करे।    

 

(न्‍यायमूर्ति अख्‍तर हुसैन खान)                                           

                                       अध्‍यक्ष                         

 

शेर सिंह आशु0,

कोर्ट नं0-1

      

 
 
[HON'BLE MR. JUSTICE AKHTAR HUSAIN KHAN]
PRESIDENT

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