राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उत्तर प्रदेश, लखनऊ।
सुरक्षित
अपील सं0-1209/2014
(जिला उपभोक्ता आयोग, कानपुर नगर द्वारा परिवाद सं0-472/2012 में पारित प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश दिनांक 08-05-2014 के विरूद्ध)
श्रीमती प्रभा देवी पत्नी श्री सुभाष चन्द्र निवासिनी 1049, ईदगाह रोड, गांधी नगर, उन्नाव वर्तमान निवासी 19/183, पटकापुर, कानपुर नगर।
........... अपीलार्थी/परिवादिनी।
बनाम
1. चोला मण्डलम एम0एस0 जनरल इंश्योरेंस कं0लि0, मुख्य कार्यालय डेरे हाउस द्वितीय तल, एन0एस0सी0 बोस रोड, चेन्नई द्वारा प्रबन्धक।
2. चोला मण्डलम एम0एस0 जनरल इंश्योरेंस कं0लि0, कार्यालय एम0सी0एस0 हाण्डा बिल्डिंग 96/5, प्रथम तल, चुन्नीगंज, कानपुर नगर द्वारा प्रबन्धक।
....... विपक्षीगण।
समक्ष:-
1. मा0 श्री राजेन्द्र सिंह, सदस्य।
2. मा0 श्री सुशील कुमार, सदस्य।
अपीलार्थी की ओर से उपस्थित: श्री संजय कुमार वर्मा विद्वान अधिवक्ता।
प्रत्यर्थीगण की ओर से उपस्थित :श्री तरूण कुमार मिश्रा विद्वान अधिवक्ता।
दिनांक :- 15-02-2023.
मा0 श्री राजेन्द्र सिंह, सदस्य द्वारा उदघोषित
निर्णय
यह अपील, उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम १९८६ के अन्तर्गत जिला उपभोक्ता आयोग, कानपुर नगर द्वारा परिवाद सं0-472/2012 में पारित प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश दिनांक 08-05-2014 के विरूद्ध योजित की गयी है।
संक्षेप में अपीलार्थी/परिवादिनी का कथन है कि विद्वान जिला आयोग द्वारा पारित निर्णय एवं आदेश मनमाना, विधि विरूद्ध और विभिन्न
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न्यायिक दृष्टान्तों के विपरीत है। परिवादिनी वाहन सं0-यू0पी0 35 एच 5827 की पंजीकृत स्वामिनी है और उसने इस सम्बन्ध में एक बीमा 2,54,655/- रू0 का लिया था जो दिनांक 16-10-2010 से 15-10-2011 तक वैध था। दुर्भाग्यवश दिनांक 04-09-2011 को उक्त वाहन थाना बर्रा जिला कानपुर नगर से चोरी हो गया और परिवादिनी ने थाने में जा कर इसकी रिपोर्ट लिखाने की कोशिश की जो नहीं लिखी गई। बाद में न्यायालय के आदेश दिनांक 06-10-2011 से अं0धा0 379 आईपीसी एफ0आई0आर0 पंजीकृत की गई और विवेचना के उपरान्त विवेचक ने दिनांक 18-11-2011 को अन्तिम रिपोर्ट प्रेषित की जिसे स्वीकार किया गया। चोरी की सूचना टेलीफोन के माध्यम से दिनांक 04-09-2011 को विपक्षी बीमा कम्पनी को दे दी गई थी और सारे अभिलेख भी अन्वेषक को दे दिए गए थे जिसकी प्राप्ति स्वीकार नहीं की गई। बीमा कम्पनी बीमित धनराशि को अदा करने के लिए उत्तरदायी थी किन्तु उसने इसे अदा नहीं किया। उसके द्वारा सेवा में गम्भीर कमी की गई। विद्वान जिला फोरम ने अभिकथनों का भली-भांति अवलोकन नहीं किया और विधि विरूद्ध त्रुटियुक्त निर्णय पारित किया जिसके विरूद्ध अपील प्रस्तत की गई। अत: प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश विधि विरूद्ध और तथ्यों से परे है। ऐसी स्थिति में विद्वान जिला आयोग का प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश अपास्त होने एवं अपील स्वीकार होने योग्य है।
हमने उभय पक्ष के विद्वान अधिवक्तागण को सुना एवं पत्रावली का सम्यक रूप से परिशीलन किया।
हमने विद्वान जिला आयोग के प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश का अवलोकन किया। विद्वान जिला आयोग ने अपने निष्कर्ष में लिखा है कि परिवादिनी ने ऐसा कोई अभिलेख प्रस्तुत नहीं किया है, जिससे यह स्पष्ट हो सके कि घटनाकी सूचना अविलम्ब लिखित रूप से स्थानीय थाने को दी गयी थी। परिवादिनी द्वारा प्रस्तुत प्रथम सूचना रिपोर्ट के अवलोकन से यह भी
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स्पष्ट होता है कि वाहन चालक उमा शंकर माल उतारने के पश्चात वाहन को महरवान सिंह का पुरवा तिराहे के पास गाड़ी खड़ी कर लगभग 7.30 बजे अपने किसी मिलने वाले के पास चले गये। जब दो घंटे बाद वास आया तो गाड़ी अपने स्थान पर नहीं मिली। इस प्रकार प्रथम सूचना रिपोर्ट से यह स्पष्ट होता है कि चालक ने गाड़ी को बिना किसी देख-रेख के ही तिराहे के पास खड़ी करके चला गया था। इस प्रकार वाहन बिना किसी व्यक्ति के देख-रेख में खड़ा कर चले जाना यह चालक की लापरवाही है इसके लिए परिवादिनी स्वयं उत्तरदायी है। प्रथम सूचना रिपोर्ट में यह कहीं भी स्पष्ट नहीं है कि चालक वाहन को बन्द कर अपने मिलने वाले के पास चला गया था। यह चालक का उत्तरदायित्व होता है कि वह वाहन को हमेशा सुरक्षित अवस्था में खड़ा करे, लेकिन प्रथम सूचना रिपोर्ट के अवलोकन से यह स्पष्ट होता है कि चालक ने वाहन को असुरक्षित अवस्था में खड़ा कर दिया था। इस कारण वाहन के चोरी चले जाने के सम्बन्ध में परिवादिनी स्वयं उत्तरदायी है।
विद्वान जिला आयोग ने इसी आधार पर परिवादिनी का परिवाद निरस्त कर दिया।
वर्तमान मामले में यह स्पष्ट है कि चालक गाड़ी को तिराहे पर खड़ी करके चला गया था और जब लौट कर आया तो वाहन गायब था। यद्यप यहॉं पर चालक या वाहन स्वामिनी की लापरवाही परिलक्षित होती है किन्तु ऐसे मामलों में ‘’ नॉन स्टेण्डर्ड बेसिस ‘’ पर विभिन्न न्यायिक दृष्टान्तों के अनुसार बीमित धनराशि की 75 प्रतिशत धनराशि की अदायगी हेतु विधि व्यवस्था सुनिश्चित है।
In the case of National Insurance Company Limited Vs Nitin Khandelwa , (2008) 11 SCC 259 , the Hon’ble Supreme Court has held that where a vehicle has been registered as private vehicle and
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ensured as such but at the time of theft it was being run as taxi. The insurance company repudiated the claim on the sole ground that the vehicle was being run against the conditions of insurance policy.Hon’ble Supreme Court has said that by dismissing the appeal of insurance company, The State Commission As Well as NCDRC have committed no mistake.In the case of theft, the nature of use of the vehicle shall not be looked into and the insurance company cannot repudiate the claim solely on this ground. In the case of theft , violation of the conditions of policy is and the insurance company should pay. If it is presumed that there is violation of any condition even then the insurance company shall decide the claim of the petitioner on the basis of non-standard.
In the case of Om Prakash Vs. Reliance General Insurance Company and others Vs IV (2007) CPSPJ 10 ( SC ) , the Hon’ble Supreme Court has held that the repudiation of the claim of insurance policy shall be based on some genuine and sufficient grounds. The repudiation of insurance claim on the ground of delayed intimation to the company should be on proper grounds. To repudiate the insurance claim on technical grounds will lower the trust of the general public in life insurance Corporation. If the reason of delayed intimation has been shown than merely on technical basis
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repudiation of the claim in a mechanical way should not be done.
जहॉं तक एफ0आई0आर0 में हुए विलम्ब का प्रश्न है, इस सम्बन्ध में स्पष्ट है कि एफ0आई0आर0 धारा 156(3) दं0प्र0सं0 का प्रार्थना पत्र न्यायालय में दिने के उपरान्त पंजीकृत हुई। यदि परिवादिनी के कथन से थाने पर एफ0आई0आर0 पंजीकृत हो जाती तब उसके द्वारा धारा 156(3) दं0प्र0सं0 के अन्तर्गत कार्यवाही करने का कोई औचित्य नहीं था। जिला आयोग ने इन तथ्यों पर विचार क्यों नहीं किया।
इसके अतिरिक्त परिवादिनी ने स्वयं कहा है कि उसने टेलीफोन के माध्यम से सूचना दे दी थी। यह विश्वसनीय है। साथ ही साथ यह तथ्य भी स्वीकार किए जाने योग्य है कि थाने पर आम आदमी की एफ0आई0आर0 लिखने में अत्यधिक परेशान किया जाता है और कभी-कभी एफ0आई0आर0 नहीं लिखी जाती है। विद्वान जिला आयोग को इन तथ्यों को भी संज्ञान में लेना चाहिए था। ऐसी परिस्थिति में हम इस निष्कर्ष पर पहुँचते हैं कि विद्वान जिला आयोग का निर्णय स्वीकार होने योग्य नहीं है तदनुसार निरस्त होने योग्य है।
वर्तमान मामले में बीमित धनराशि 2,54,655/- रू0 निर्धारित की गई थी अत: परिवादिनी इस धनराशि की 75 प्रतिशत धनराशि अर्थात् 1,90,991/- रू0 बीमा धनराशि के रूप में पाने की अधिकारिणी होगी। इसके अतिरिक्त इस धनराशि पर दिनांक 04-09-2011 से वास्तविक भुगतान की तिथि तक 10 प्रतिशत वार्षिक साधारण ब्याज भी पाने की अधिकारिणी होगी। इसके अतिरिक्त मानसिक उत्पीड़न एवं शारीकिरक कष्ट के मद में 50,000/- रू0 तथा परिवाद व्यय के रूप में 10,000/- रू0 भी परिवादिनी पाने की अधिकारिणी होगी। यदि यह धनराशि 60 दिन के अन्दर अदा नहीं की जाएगी तब सम्पूर्ण धनराशि पर अपीलार्थी/परिवादिनी 15 प्रतिशत वार्षिक
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साधारण ब्याज पाने की अधिकारिणी होगी।
आदेश
वर्तमान अपील स्वीकार जाती है। जिला उपभोक्ता आयोग, कानपुर नगर द्वारा परिवाद सं0-472/2012 में पारित प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश दिनांक 08-05-2014 अपास्त किया जाता है। परिवादिनी का परिवाद आंशिक रूप से स्वीकार करते हुए विपक्षीगण को आदेशित किया जाता है कि वे अपीलार्थी/परिवादिनी को बीमित धनराशि 2,54,655/- रू0 की 75 प्रतिशत धनराशि अर्थात् 1,90,991/- रू0 दिनांक 04-09-2011 से वास्तविक भुगतान की तिथि तक 10 प्रतिशत वार्षिक साधारण ब्याज सहित 60 दिन के अन्दर अदा करें। इसके अतिरिक्त मानसिक उत्पीड़न एवं शारीकिरक कष्ट के मद में 50,000/- रू0 तथा परिवाद व्यय के रूप में 10,000/- रू0 भी परिवादिनी को विपक्षीगण द्वारा अदा किया जाए। यदि उक्त धनराशि 60 दिन के अन्दर अदा नहीं की जाएगी तब सम्पूर्ण धनराशि पर अपीलार्थी/परिवादिनी को विपक्षीगण द्वारा 15 प्रतिशत वार्षिक साधारण ब्याज देय होगा।
उभय पक्ष को इस निर्णय की प्रमाणित प्रति नियमानुसार उपलब्ध करायी जाय।
वैयक्तिक सहायक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस निर्णय को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दें।
(सुशील कुमार) (राजेन्द्र सिंह)
सदस्य सदस्य
निर्णय आज खुले न्यायालय में हस्ताक्षरित, दिनांकित होकर उद्घोषित किया गया।
(सुशील कुमार) (राजेन्द्र सिंह)
सदस्य सदस्य
प्रमोद कुमार,
वैय0सहा0ग्रेड-1,
कोर्ट नं.-2.