राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।
(मौखिक)
अपील संख्या:-513/2019
1- बैंक ऑफ बड़ौदा, रीजनल ऑफिस, सुलतानपुर, द्वारा रीजनल मैनेजर 591/01 सिविल लाइन नं0-1, पी0डब्लू0डी0 ऑफिस के सामने, जिला सुलतानपुर।
2- बैंक ऑफ बड़ौदा, शाखा संग्रामपुर, जिला अमेठी द्वारा शाखा प्रबन्धक।
.......... अपीलार्थी/विपक्षीगण
बनाम
छोटे लाल यादव पुत्र स्व0 महादेव यादव, निवासी ग्राम-जोगाजीत मजरे भौसिंहपुर, जिला अमेठी (उ0प्र0)
…….. प्रत्यर्थी/परिवादी
समक्ष :-
मा0 न्यायमूर्ति श्री अशोक कुमार, अध्यक्ष
मा0 श्री सुशील कुमार, सदस्य
अपीलार्थी के अधिवक्ता : श्री अनिल कुमार मिश्रा
प्रत्यर्थीगण के अधिवक्ता : श्री टी0एच0 नकवी
दिनांक :-02-9-2022
मा0 श्री सुशील कुमार, सदस्य द्वारा उदघोषित
निर्णय
1- जिला उपभोक्ता आयोग, अमेठी द्वारा परिवाद सं0-66/2017 छोटे लाल यादव बनाम क्षेत्रीय प्रबन्धक, क्षेत्रीय कार्यालय सुल्तानपुर व एक अन्य में पारित निर्णय/आदेश दिनांक 14.3.2019 के विरूद्ध यह अपील बैंक आफ बड़ौदा द्वारा इस आधार पर प्रस्तुत की गई है कि जिला उपभोक्ता आयोग ने तथ्य एवं विधि के विरूद्ध निर्णय पारित किया है तथा परिवाद को अवैध एवं मनमाने रूप से स्वीकार किया है तथा परिवाद अवैध रूप से प्रस्तुत किया गया है। परिवादी ने नियमित रूप से ई.एम.आई. की राशि का भुगतान नहीं किया है, इसलिए वसूली कार्यवाही प्रारम्भ की गई। अपीलार्थी की ओर से सेवा में कोई कमी नहीं की गई है।
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3- दोनों पक्षकारों के विद्वान अधिवक्तागण को सुना तथा प्रश्नगत निर्णय/आदेश एवं पत्रावली का अवलोकन किया।
4- परिवाद के तथ्यों के अनुसार प्रत्यर्थी/परिवादी द्वारा अपीलार्थी बैंक ऑफ बड़ौदा से 30,000.00 रू0 का ऋण प्राप्त कर डीजल इंजन क्रय किया गया था। ऋण राहत योजना वर्ष-2008 के तहत किसानों का सम्पूर्ण ऋण मॉफ कर दिया गया था। प्रत्यर्थी/परिवादी का अंकन 10,328.00 रू0 का ऋण दर्शित करते हुए शासन को भेजा गया, शासन द्वारा अंकन 10,576.00 रू0 का ऋण मॉफ कर दिया और प्रत्यर्थी/परिवादी को राहत प्रमाण पत्र भी दे दिया गया, इसके बाद प्रत्यर्थी/परिवादी अनापत्ति प्रमाण पत्र मॉगता रहा, लेकिन यह प्रमाण पत्र जारी नहीं किया गया, इसलिए यह परिवाद प्रस्तुत किया गया है। परिवाद पत्र में यह भी कथन है कि दिनांक 15.9.2017 को बैंक स्टेटमेंट निकला गया और इसी स्टेटमेंट को लेकर विवाद उत्पन्न हुआ है।
5- अपीलार्थी/विपक्षी बैंक का कथन है कि प्रत्यर्थी/परिवादी द्वारा नियमित रूप से किस्त अदा नहीं की गई। केन्द्र सरकार द्वारा वर्ष-2008 में ऋण मॉफी योजना प्रारम्भ हुई थी। इस योजना के अनुसार दिनांक 31.3.2017 तक जो ऋण दिये गये थे तथा दिनांक 29.9.2008 तक जो अतिदेय थे, वह राशि मॉफ की गई थी, सम्पूर्ण बकाया राशि मॉफ नहीं की गई थी, इस योजना के अनुसार प्रत्यर्थी/परिवादी पर अंकन 10,981.00 रू0 बकाया थे, इसलिए शासन से प्राप्त राशि समायोजित कर दी गई थी। इस राशि के समायोजन के बाद भी प्रत्यर्थी/परिवादी के ऋण खाते में अंकन 6,365.00 रू0 बकाया थे, जिस पर नियमानुसार ब्याज की गणना हो रही है। प्रत्यर्थी/परिवादी द्वारा समय पर कोई आपत्ति नहीं की गई। दिनांक 20.9.2017 को 09 वर्ष बाद नोटिस दिया गया,
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जिसका विधिवत जवाब दे दिया गया था, इसलिए परिवाद खारिज होने योग्य है।
6- दोनों पक्षकारों की बहस सुनने के पश्चात जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा यह निष्कर्ष दिया गया कि प्रत्यर्थी/परिवादी द्वारा मात्र 30,000.00 रू0 का ऋण लिया गया और अंकन 21,000.00 रू0 वापस कर दिया गया है। प्रत्यर्थी/परिवादी लघु/सीमान्त किसान की श्रेणी में आता है, इसलिए उसका अवशेष समस्त ऋण मॉफ किया गया है, इसलिए यदि बैंक द्वारा ऋण मॉफ करने में कोई त्रुटि की गई है, तो उसके लिए बैंक उत्तरदायी है। जिला उपभोक्ता आयोग का यह निष्कर्ष इस आधार पर विधि सम्मत प्रतीत नहीं होता है कि बैंक स्वयं ऋण माफी योजना का कोई लाभ प्रदान नहीं करता है। बैंक को जो राशि सरकार से प्राप्त होती है वही राशि बैंक द्वारा ऋण खाते में समायोजित कर दी जाती है। यदि प्रत्यर्थी/परिवादी का यह कथन है कि वह अधिक राशि की राहत प्राप्त करने के लिए अधिकृत है, तब इस आशय का अनुतोष जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा नहीं, अपितु दीवानी न्यायालय द्वारा दिया जा सकता है। उपभोक्ता आयोग को यह सुनिश्चित करने का अधिकार नहीं है कि प्रत्यर्थी/परिवादी किस सीमा तक ऋण राहत राशि प्राप्त करने के लिए अधिकृत है, इसलिए जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा विधि के विपरीत दिया गया निष्कर्ष अपास्त होने योग्य है।
आदेश
7- अपील स्वीकार की जाती है। जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा परिवाद सं0-66/2017 में पारित प्रश्नगत निर्णय/आदेश दिनांक 14.3.2019 अपास्त किया जाता है। यद्यपि यहॉ यह स्पष्ट किया जाता है कि यदि प्रत्यर्थी/परिवादी को यह विश्वास है कि उन्हें ऋण माफी योजना के अन्तर्गत समस्त देय राशि मॉफ
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की जानी चाहिए थी तब इस आशय की घोषणा के लिए दीवानी न्यायालय के समक्ष वाद प्रस्तुत कर सकता है तथा जिला उपभोक्ता आयोग एवं इस आयोग के समक्ष व्यतीत हुए समय की गणना की माफी की मॉग सक्षम न्यायालय से कर सकता है।
8- धारा-15 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 के अन्तर्गत अपील में जमा धनराशि मय अर्जित ब्याज सहित सम्बन्धित जिला उपभोक्ता आयोग को विधि अनुसार निस्तारण हेतु प्रेषित की जाए।
9- आशुलिपिक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस आदेश को आयोग की बेवसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दें।
(न्यायमूर्ति अशोक कुमार) (सुशील कुमार)
अध्यक्ष सदस्य
हरीश आशु.,
कोर्ट नं0-1