(सुरक्षित)
राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ
अपील सं0- 1181/2017
(जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, अम्बेडकरनगर द्वारा परिवाद सं0- 25/2010 में पारित निर्णय एवं आदेश दिनांक 03.06.2017 के विरुद्ध)
1. Ujagir S/o Late Mahngu, R/o Village Arkhapur Pargana and Tehsil Tanda, District Ambedkar Nagar.
2. Lal Bahadur S/o Late Mahngu, R/o Village Arkhapur Pargana and Tehsil Tanda, District Ambedkar Nagar.
………Appellant
Versus
1. Branch Manager, Bank of baroda Branch Tanda, District Ambedkar Nagar.
2. United India insurance company limited, Hotel alka raje building, 2nd floor, Rikabganj, District Faizabad.
……….Respondents
समक्ष:-
1. माननीय श्री गोवर्धन यादव, सदस्य।
2. माननीय श्री विकास सक्सेना, सदस्य।
अपीलार्थी की ओर से : डॉ0 उदय वीर सिंह के सहयोगी
श्री कृष्ण पाठक,
विद्वान अधिवक्ता।
प्रत्यर्थी सं0 2 की ओर से : श्री विवेक सक्सेना
दिनांक:- 27.07.2021
माननीय श्री विकास सक्सेना, सदस्य द्वारा उद्घोषित
निर्णय
1. परिवाद सं0- 25/2010 महंगू ‘’मृतक’’ प्रतिस्थापित उत्तराधिकारीगण उजागिर व एक अन्य बनाम शाखा प्रबंधक बैंक ऑफ बड़ौदा व एक अन्य में पारित निर्णय एवं आदेश दि0 03.06.2017 के विरूद्ध उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 की धारा 15 के अंतर्गत यह अपील प्रस्तुत की गई है।
2. मामले के तथ्य संक्षेप में इस प्रकार हैं कि परिवादी ने उपरोक्त परिवाद इन आधारों पर योजित किया कि उसने सघन मिनी डेरी परियोजना से पशुपालन करने के लिए कर्ज के रूप में धनराशि मु033,000/- ऋण बैंक आफ बड़ौदा से लिया था। कर्ज प्राप्त होने के उपरांत उसने एक गाय व एक भैंस खरीदा जिसका बीमा उसने प्रत्यर्थी सं0- 2/विपक्षी सं0- 2 यूनाइटेड इंडिया इंश्योरेंस कं0लि0 से कराया। परिवादी उक्त गाय व भैंस का पालन करता रहा। कुछ दिनों बाद परिवादी की उक्त भैंस मर गई जिसकी सूचना उत्तराधिकारी परिवादी ने तुरंत सघन मिनी डेरी परियोजना को दी जो प्रत्यर्थी सं0-2/विपक्षी सं0- 2 इंश्योरेंस कं0लि0 को प्रेषित कर दी गई। बीमा कम्पनी ने भैंस का इंश्योरेंस क्लेम का एक चेक रू0 8,000/- प्रत्यर्थी सं0- 1/विपक्षी सं0- 1 को प्रेषित कर दिया। परिवादी की उपरोक्त गाय दि0 12.03.2006 को मर गई जिसकी सूचना भी उसने तुरंत सघन मिनी डेरी परियोजना अम्बेडकरनगर को दी जो प्रत्यर्थी सं0- 2/विपक्षी सं0- 2 को प्रेषित कर दी गई। जांच-पड़ताल करने के बाद प्रत्यर्थी सं0- 2/विपक्षी सं0- 2 बीमा कम्पनी ने मु010,000/- जरिए चेक प्रत्यर्थी सं0- 1/विपक्षी सं0- 1 बैंक आफ बड़ौदा को भेजना बताया, किन्तु प्रत्यर्थी सं0- 1/विपक्षी सं0- 1 इस तथ्य को मानने के लिए तैयार नहीं हुए और उन्होंने यह नहीं माना कि 10,000/-रू0 का चेक उनको प्राप्त हुआ है, अत: यह परिवाद प्रस्तुत किया गया है।
3. प्रत्यर्थी सं0- 1/विपक्षी सं0- 1 बैंक ने परिवाद की आपत्ति में यह कहा है कि प्रत्यर्थी सं0- 2/विपक्षी सं0- 2 बीमा कम्पनी द्वारा कथित चेक सं0- 215894 को रू0 10,000/- का चेक उन्हें भेजना कहा है, लेकिन ऐसा कोई चेक प्रत्यर्थी सं0- 1/विपक्षी सं0- 1 बैंक को प्राप्त नहीं हुआ है। यदि चेक मिला होता तो अवश्य परिवादी के ऋण खाते में क्रेडिट किया जाता। प्रत्यर्थी सं0- 2/विपक्षी सं0- 2 को यह देखना आवश्यक है कि ऐसी कोई रकम मु010,000/- उसके खाते से निकली भी है अथवा नहीं। परिवाद बिल्कुल गलत आधारों पर प्रस्तुत किया गया है, इसलिए कानूनन चलने योग्य नहीं है।
4. प्रत्यर्थी सं0- 2/विपक्षी सं0- 2 बीमा कम्पनी की ओर से आपत्ति में कथन किया गया है कि परिवादी के गाय के मरने की सूचना उन्हें प्रभारी, सघन मिनी डेरी परियोजना, अम्बेडकरनगर के पत्र दिनांकित 25.03.2006 के पत्र के द्वारा प्राप्त हुई थी जिसके द्वारा बीमे का दावा स्वीकार किया गया और रू0 10,000/- का डिस्चार्ज बाउचर प्रत्यर्थी सं0- 1/विपक्षी सं0- 1 के हस्ताक्षर एवं मुहर हेतु प्रेषित कर दिया गया तथा चेक सं0- 215894 मु010,000/- रजिस्टर्ड डाक से दि0 06.11.2007 को प्रेषित कर दिया गया। इससे स्पष्ट है कि प्रत्यर्थी सं0- 2/विपक्षी सं0- 2 बीमा कम्पनी ने सेवा में किसी प्रकार की कोई कमी नहीं की है। अत: परिवाद प्रत्यर्थी सं0- 2/विपक्षी सं0- 2 बीमा कम्पनी के विरुद्ध निरस्त होने योग्य है।
5. विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग ने परिवाद इन आधारों पर खारिज किया कि परिवादी की ओर से प्रस्तुत किए गए दस्तावेजों से कोई पुष्टिकारक प्रमाण नहीं दिए गए हैं। इस कारण यह परिवाद निरस्त किया, अत: इससे व्यथित होकर अपीलार्थीगण ने यह अपील प्रस्तुत की है।
6. अपील में मुख्य रूप से बल दिया गया कि विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग ने तथ्य एवं विधि दोनों की गलत विवेचना किया है। पक्षकारों के मध्य इस तथ्य पर कोई मतभेद नहीं है कि परिवादी की मृतक गाय का बीमा प्रचलित था और प्रत्यर्थी सं0- 2/विपक्षी सं0- 2 बीमा कम्पनी ने बीमे का क्लेम रू0 10,000/- के माध्यम से सेटेल भी कर दिया था। विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग ने इस आधार पर परिवाद खारिज किया है कि परियोजना प्रभारी सघन मिनी डेरी द्वारा एक पत्र यूनाइटेड इंडिया इंश्योरेंस कं0लि0 को लिखा जाना कहा है जिसकी कोई प्रतिलिपि दाखिल नहीं की गई है। मृतक पशु का स्वास्थ्य प्रमाण पत्र, बाजार क्रय रसीद, मृत्यु प्रमाण पत्र व पोस्टमार्टम रिपोर्ट आदि की प्रतिलिपि भी नहीं दी गई है। इन आधारों पर गलत प्रकार से परिवादी का परिवाद निरस्त किया गया है जब कि इन साक्ष्यों की कोई आवश्यकता नहीं थी। उभय पक्ष के मध्य यह विवाद है कि क्या प्रत्यर्थी सं0 2 ने प्रत्यर्थी सं0 1 को बीमे की धनराशि का चेक भेजा या नहीं। विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा प्रत्यर्थी सं0- 2/विपक्षी सं0- 2 को नया चेक जारी करने का निर्देश दिया जा सकता था, क्योंकि प्रत्यर्थी सं0- 1/विपक्षी सं0- 1 बैंक द्वारा कहा गया है कि उनके द्वारा चेक प्राप्त नहीं हुआ और न ही कोई धनराशि खाते में से निकासी की गई। बीमा कम्पनी ने स्वीकार किया है कि उन्होंने क्लेम को सेटेल कर दिया है, किन्तु विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग ने इस तथ्य को नजरंदाज करते हुए परिवादी का परिवाद खारिज किया है। अत: प्रश्नगत निर्णय व आदेश अपास्त करते हुए अपील स्वीकार किए जाने योग्य है।
7. अपीलार्थीगण के विद्वान अधिवक्ता डॉ0 उदय वीर सिंह के सहयोगी श्री कृष्ण पाठक विद्वान अधिवक्ता उपस्थित हैं। प्रत्यर्थी सं0 2 की ओर से विद्धान अधिवक्ता श्री विवेक सक्सेना उपस्थित हैं।
8. हमने उभय पक्ष के विद्वान अधिवक्तागण के तर्क को सुना तथा पत्रावली पर उपलब्ध अभिलेखों का परिशीलन किया गया।
9. विद्धान जिला उपभोक्ता फोरम ने परिवादी का परिवाद साक्ष्य के अभाव में खारिज किया। निर्णय के अवलोकन से स्पष्ट होता है कि प्रत्यर्थी सं0 1 बैंक द्वारा कथन किया गया है कि बीमे के क्लेम के धनराशि रूपये 10,000/- का चेक उसे प्राप्त नहीं हुआ है, जिस कारण उक्त धनराशि ऋण खाते में समायोजित नहीं की जा सकी है। विद्धान जिला उपभोक्ता फोरम अपने निर्णय में निष्कर्ष दिया है कि प्रत्यर्थी सं0 2 द्वारा ऐसा कोई प्रमाण प्रस्तुत नहीं किया गया है कि ऐसा कोई चेक उसने भेजा और न ही स्टेटमेंट आफ एकाउण्ट प्रस्तुत किया है। विद्धान जिला उपभोक्ता फोरम ने इस आधार पर परिवाद खारिज किया कि परिवाद में बीमित पक्ष से संबंधित साक्ष्य प्रमाण पत्र, बाजार क्रय रसीद, मृत्यु प्रमाण पत्र, पोस्ट मार्टम रिपोर्ट पत्रावली पर उपलब्ध नहीं कराया है चूंकि परिवादी द्वारा फोरम के माध्यम से बीमा क्लेम दिलाया जाने की याचना की गयी है इसलिए परिवाद निस्तारित करते समय उक्त साक्ष्य का अध्ययन करना आवश्यक है। उक्त साक्ष्यों को न दिये जाने के आधार पर परिवाद खारिज किया गया है।
10. निर्णय के उपरोक्त निष्कर्ष से ही स्पष्ट होता है कि विद्धान जिला उपभोक्ता फोरम ने यह माना है कि परिवादी ने बीमे के क्लेम दिलाये जाने की प्रार्थना की है किन्तु प्रत्यर्थी सं0 1 व प्रत्यर्थी सं0 2 के अभिवचनो के अवलोकन से यह स्पष्ट होता है कि प्रत्यर्थी सं0 2 यूनाइटेड इण्डिया इंश्योरेंस कम्पनी लिमिटेड ने परिवादी के बीमे के क्लेम को स्वीकार किया है और क्लेम की धनराशि रूपये 10,000/- का चेक रजिस्टर्ड डाक द्वारा प्रेषित किया है। परिवाद प्रस्तर 15 व 16 में अंकित है कि बीमे के क्लेम की धनराशि रूपये 10,000/- का चेक प्रत्यर्थी सं0 1 बैंक को भेजा गया। उक्त चेक का नम्बर इत्यादि दिया गया है जबकि प्रत्यर्थी सं0 1 बैंक का कथन है कि उसे ऐसा कोई चेक प्राप्त नहीं हुआ है इस प्रकार यह विवाद प्रत्यर्थी सं0 1 तथा प्रत्यर्थी सं0 2 के मध्य का है। प्रत्यर्थी सं0 2 बीमाकर्ता द्वारा भेजा गया चेक प्राप्त हुआ था अथवा नहीं। प्रत्यर्थी सं0 2 बीमाकर्ता ने कहीं भी यह नहीं कहा है कि उक्त धनराशि उनके खाते से निकाल ली गयी हो। अत: यदि कोई चेक प्रत्यर्थी सं0 1 बैंक को प्राप्त नहीं हुआ है और चेक की धनराशि आहरित नहीं हुई है तो उक्त चेक का उत्तरदायित्व प्रत्यर्थी सं0 2 का समाप्त नहीं हो जाता है चूंकि चेक जारी करने वाला व्यक्ति का उत्तरदायित्व पेयमेंट होने के उपरान्त ही डिस्चार्ज होगा।
11. इस संबंध में निगोशिएबल इन्स्ट्रमेन्ट एक्ट, 1881 की धारा 82 उल्लेखनीय है जो यह प्रदान करता है कि चेक जारी करने वाले व्यक्ति का उत्तरदायित्व चेक के विनष्ट हो जाने पर अथवा उत्तरदायित्व से जारीकर्ता को अवमुक्त कर दिये जाने पर अथवा चेक के पेयमेंट के उपरान्त ही होता है धारा 82 निगोशिएबल इन्स्ट्रमेन्ट एक्ट इस प्रकार है:-
82. Discharge from liability:- The maker, acceptor or indorser respectively of a negotiable instrument is discharge from liability thereon-
(a) by cancellation- to a holder thereof who cancels such acceptor’s or indorser’s name with intent to discharge him, and to all parties claiming under such holder;
(b) by release- to a holder thereof who otherwise discharges such maker, acceptor or indorser, and to all parties deriving title under such holder after notice of such discharge;
(c) by payment- to all parties thereto, if the instrument is payable to bearer, or has been indorsed in blank, and such maker, acceptor or indorser makes payment in due course of the amount due thereon.
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13. इस प्रकार धारा 82 निगोशिएबल इन्स्ट्रमेन्ट एक्ट और उपरोक्त पत्र की छायाप्रति के अवलोकन से स्पष्ट होता है कि बीमे की धनराशि अदा करने के संबंध में प्रत्यर्थी सं0 2 बीमाकर्ता का उत्तरदायित्व समाप्त नहीं होता है अत: इस मामले में यह विधिक एवं उचित है कि बीमे की धनराशि बीमाकर्ता से बीमित परिवादी को दिलायी जाये।
अपील स्वीकार की जाती है। प्रश्गनत निर्णय व आदेश अपास्त किया जाता है। प्रत्यर्थी सं0 2/विपक्षी सं0 2 को निर्देशित किया जाता है कि वह एक माह के अंदर बीमे की धनराशि रूपये 10,000/- तथा इस पर वाद योजन की तिथि से वास्तविक अदायगी तक प्रचलित सेविंग बैंक दर का साधारण ब्याज भी प्रदान करें। अपील में उभय पक्ष अपना अपना वाद व्यय स्वयं वहन करेंगे।
आशुलिपिक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस आदेश को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दे।
(गोवर्धन यादव) (विकास सक्सेना)
सदस्य सदस्य
संदीप, आशु0 कोर्ट नं0-2