(मौखिक)
राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष्ा आयोग, उ0प्र0, लखनऊ
अपील संख्या-659/2014
राज नारायण पुत्र श्री बानेश्वर, निवासी ग्राम व पोस्ट मिरगांव, परगना व तहसील सिकन्दरा, जिला कानपुर देहात।
अपीलार्थी/परिवादी
बनाम
बैंक आफ बड़ौदा, ब्रांच सिकन्दरा, पोस्ट, परगना व तहसील सिकन्दरा, कानपुर देहात, द्वारा ब्रांच मैनेजर।
प्रत्यर्थी/विपक्षी
समक्ष:-
1. माननीय श्री राजेन्द्र सिंह, सदस्य
2. माननीय श्री सुशील कुमार, सदस्य।
अपीलार्थी की ओर से उपस्थित : श्री आलोक सिन्हा, विद्वान
अधिवक्ता।
प्रत्यर्थी की ओर से उपस्थित : श्री हरि प्रसाद श्रीवास्तव,
विद्वान अधिवक्ता।
दिनांक : 31.03.2023
माननीय श्री सुशील कुमार, सदस्य द्वारा उदघोषित
निर्णय
1. परिवाद संख्या-102/2010, राज नारायण बनाम बैंक आफ बड़ौदा में विद्वान जिला आयोग, कानपुर देहात द्वारा पारित निर्णय/आदेश दिनांक 09.01.2014 के विरूद्ध यह अपील प्रस्तुत की गई है। विद्वान जिला आयोग ने परिवाद इस आधार पर खारिज कर दिया कि भारत सरकार के वित्त मंत्रालय द्वारा जारी परिपत्र 1/2008 के अनुसार परिवादी ऋण छूट योजना का लाभ प्राप्त करने क लिए अधिकृत नहीं है।
2. इस निर्णय एवं आदेश को इन आधारों पर चुनौती दी गई है कि विद्वान जिला आयोग ने परिपत्र की शर्तों के विपरीत निर्णय पारित किया है। परिवादी द्वारा दिनांक 31.03.2007 से पूर्व यानी दिनांक 09.03.2007 को को अंकन 48 हजार रूपये का ऋण प्राप्त किया गया था और वह इस ऋण
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का भुगतान नहीं कर सका, इसलिए इस ऋण को प्राप्त करने के लिए बैंक द्वारा अवैध रूप से डिमांड नोटिस प्रेषित किया गया।
3. अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता श्री आलोक सिन्हा तथा प्रत्यर्थी के विद्वान अधिवक्ता श्री हरि प्रसाद श्रीवास्तव को सुना गया तथा प्रश्नगत निर्णय/आदेश एवं पत्रावली का अवलोकन किया गया।
4. इस बिन्दु पर कोई विवाद नहीं है कि परिवादी परिपत्र के अनुसार जिस रकबे पर खेती करता है, उसके तहत छूट प्राप्त करने के लिए अधिकृत है, परन्तु विचारणीय प्रश्न है कि इस परिपत्र के अनुसार परिवादी का ऋण दिनांक 31.12.2007 को अतिदेय हो चुका था, क्योंकि परिपत्र की शर्तों के अनुसार जो ऋण दिनांक 31.03.2007 से पूर्व लिए गए हों तथा दिनांक 31.12.2007 को अतिदेय हो चुके हों, के प्रकरण के ऋण पर ही छूट का लाभ देय होगा। परिवादी द्वारा स्वीकार्य रूप से जो ऋण प्राप्त किया गया था, उसकी अवधि 18 महीने थी यानी ऋण का भुगतान 09.03.2007 के पश्चात 18 माह की अवधि व्यतीत होने पर किया जाना था। यद्यपि ऋण प्राप्तकर्ता को यह अधिकार प्राप्त था कि वह 18 माह पूर्व भी अपने ऋण को अदा कर सकते हैं, परन्तु ऋण के अतिदेय होने की स्थिति 18 माह के पश्चात उत्पन्न होती। 18 माह से पूर्व इस ऋण को कभी भी अतिदेय नहीं माना जा सकता। दिनांक 09.03.2007 से गणना करने पर 18 माह की अवधि दिनांक 09.09.2008 में अतिदेय होगी, जबकि परिपत्र के अनुसार अतिदेय दिनांक 31.12.2007 को होनी चाहिए। अत: इस सुविधा का लाभ प्राप्त करने के लिए परिवादी अधिकृत नहीं है। विद्वान जिला आयोग द्वारा पारित निर्णय विधिसम्मत है। प्रस्तुत अपील निरस्त होने योग्य है।
आदेश
5. प्रस्तुत अपील निरस्त की जाती है।
उभय पक्ष अपना-अपना व्यय भार स्वंय वहन करेंगे।
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आशुलिपिक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस निर्णय को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दे।
(सुशील कुमार) (राजेन्द्र सिंह)
सदस्य सदस्य
निर्णय एवं आदेश आज खुले न्यायालय में हस्ताक्षरित, दिनांकित होकर उद्घोषित किया गया।
(सुशील कुमार) (राजेन्द्र सिंह)
सदस्य सदस्य
लक्ष्मन, आशु0,
कोर्ट-2