राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।
मौखिक
अपील संख्या-2871/1999
मै0 अंसल हाउसिंग एण्ड कान्स्ट्रक्शन लि0 15 यू.जी.एफ. इन्द्र
प्रकाश, 21 बाराखम्भा रोड, नई दिल्ली व एक अन्य।
...........अपीलार्थीगण
बनाम्
अविनाश कुमार पुत्र स्व0 एम0एल0 रिखरा व दो अन्य।
.......प्रत्यर्थीगण
समक्ष:-
1. मा0 श्री सुशील कुमार, सदस्य।
2. मा0 श्री विकास सक्सेना, सदस्य।
अपीलार्थी की ओर से उपस्थित : श्री अंकित श्रीवास्तव, विद्वान अधिवक्ता।
प्रत्यर्थी की ओर से उपस्थित : कोई नहीं।
दिनांक 23.02.2021
मा0 श्री सुशील कुमार, सदस्य द्वारा उदघोषित
निर्णय
परिवाद संख्या 940/1998 अविनाश कुमार बनाम अंसल हाउसिंग में पारित निर्णय व आदेश दि. 09.09.1999 के विरूद्ध यह अपील प्रस्तुत की गई है। जिला उपभोक्ता मंच द्वितीय लखनऊ ने विपक्षी/परिवादी को आदेशित किया है कि परिवादी द्वारा जमा की गई धनराशि पर दि. 01.06.91 से 01.07.96 तक 18 प्रतिशत ब्याज अदा करे तथा निबंधन की कार्यवाही पूर्ण कराकर कब्जा सुपुर्द कर दे।
परिवाद में वर्णित तथ्यों के अनुसार परिवादी द्वारा अंकन रू. 144200/- में एक भूखंड आवंटित कराया था। अंतिम भुगतान दि. 24.08.95 को कर दिया गया। विपक्षी द्वारा दि. 30.11.95 तक कब्जा दिया जाना था और पत्र दि. 30.05.97 द्वारा सूचित किया गया कि लखनऊ विकास प्राधिकरण शीघ्र ही भूखंड का निबंधन कर देगा, अत: निबंधन कब्जा प्राप्ति तथा क्षतिपूर्ति प्राप्त करने के उद्देश्य से परिवाद प्रस्तुत किया गया है।
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लिखित कथन में यह उल्लेख किया गया है कि निबंधन कराने का दायित्व लखनऊ विकास प्राधिकरण का है, निबंधन होने के पश्चात परिवादी को कब्जा सुपुर्द कर दिया जाएगा।
दोनों पक्षकारों के साक्ष्य पर विचार करने के पश्चात जिला उपभोक्ता मंच द्वारा उपरोक्त वर्णित निर्णय व आदेश पारित किया गया, जिसे इन आधारों पर चुनौती दी गई है कि पक्षकार के मध्य निष्पादित अनुबंध शर्तों के अनुसार निबंधन लखनऊ विकास प्राधिकरण को करना था और निबंधन करने के पश्चात कब्जा अपीलार्थी को सुपुर्द करना था, क्योंकि अपीलार्थी ने केवल विकास कार्य किया है। बीमा का स्वामित्व लखनऊ विकास प्राधिकरण में ही निहित है।
केवल अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता को सुना। दोनों पक्षकारों के मध्य निष्पादित अनुबंध की शर्तों का अवलोकन किया गया।
अनुबंध में वर्णित शर्त संख्या 10 के अनुसार निबंधन की कार्यवाही लखनऊ विकास प्राधिकरण द्वारा की जानी है न कि अपीलार्थी द्वारा। जिला उपभोक्ता मंच में प्रस्तुत किए गए परिवाद में लखनऊ विकास प्राधिकरण को पक्षकार नहीं बनाया गया है, जबकि अनुबंध की शर्तों के अनुसार परिवादी को यह तथ्य ज्ञात था कि विक्रय पत्र/लीज का निष्पादन लखनऊ विकास प्राधिकरण द्वारा किया जाएगा न कि अंसल हाउसिंग द्वारा, परन्तु लखनऊ विकास प्राधिकरण को पक्षकार नहीं बनाया गया है, इसलिए निबंधन की कार्यवाही से संबंधित कोई निर्देश लखनऊ विकास प्राधिकरण के लिए जारी नहीं किया गया है। इस आयोग के समक्ष अपना पक्ष रखने के लिए परिवादी उपस्थित नहीं है, परन्तु दोनों पक्षकारों के निष्पादन से स्पष्ट हो जाता है कि निबंधन कराने का दायित्व अपीलार्थी में निहित नहीं है, अपितु
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लखनऊ विकास प्राधिकरण में निहित है, इसलिए अपीलार्थी को यह निर्देश जारी नहीं किया जा सकता कि वह निबंधन की कार्यवाही पूर्ण करे। यद्यपि विपक्षी द्वारा निबंधक की कार्यवाही पूर्ण कराने में अपेक्षित सहायता उपलब्ध कराई जा सकती है और इस सहायता के उपलब्ध कराने के उद्देश्य से अपीलाथी द्वारा परिवादी को पत्र लिखा गया है कि वह लखनऊ विकास प्राधिकरण से अपने पक्ष में दस्तावेज निष्पादित करा लें।
उपरोक्त विवेचना से निष्कर्ष यह है कि विपक्षी/अपीलार्थी को निबंधक के लिए निर्देशित करने का आदेश विधिसम्मत नहीं है। इस प्रकार चूंकि निबंधन की कार्यवाही विपक्षी/अपीलार्थी द्वारा नहीं की जा सकती है, इसलिए उसके विरूद्ध ब्याज अधिरोपित करना या क्षतिपूर्ति का आदेश करना भी विधिसम्मत नहीं है। यह निर्णय अपास्त होने योग्य है। तदनुसार अपील स्वीकार होने योग्य है।
आदेश
प्रस्तुत अपील स्वीकार की जाती है। जिला मंच द्वारा पारित निर्णय व आदेश अपास्त किया जाता है, परन्तु अपीलार्थी से अपेक्षित है कि इस निर्णय के पारित होने के 10 दिन के अंदर परिवादी को निबंधन के संबंध में समुचित सुविधाओं का उल्लेख करते हुए एक पत्र प्रेषित करेंगे तथा उस पत्र की प्रति लखनऊ विकास प्राधिकरण को भी प्रेषित करें और परिवादी इस पत्र की प्राप्ति के पश्चात लखनऊ विकास प्राधिकरण के समक्ष निबंधन कराने के लिए लिखित में आवेदन प्रस्तुत करेंगे। यद्यपि लखनऊ विकास प्राधिकरण इस आयोग के समक्ष पक्षकार नहीं हैं, परन्तु चूंकि प्राधिकरण द्वारा भूमि विकास होने के उद्देश्य से अपीलार्थी को दी गई है, इसलिए प्राधिकरण का भी दायित्व है कि वह परिवादी के पक्ष में बगैर उसे किसी
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प्रकार की मानसिक कष्ट दिए बिना निबंधन की कार्यवाही पूर्ण करे और तत्पश्चात अपीलार्थी कब्जे की कार्यवाही पूर्ण करे।
उभय पक्ष अपना-अपना अपील-व्यय भार स्वयं वहन करेंगे।
इस निर्णय की प्रमाणित प्रतिलिपि पक्षकारों को नियमानुसार उपलब्ध करा दी जाए।
(विकास सक्सेना) (सुशील कुमार) सदस्य सदस्य
राकेश, पी0ए0-2
कोर्ट-2