राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।
सुरक्षित
अपील संख्या-1966/2008
1. मुजफ्फरनगर डेवलपमेन्ट अथारिटी, मुजफ्फरनगर द्वारा वाइस
प्रेसीडेन्ट।
2.ओ.एस.डी. मुजफ्फरनगर डेवलपमेन्ट अथारिटी।
...........अपीलार्थीगण@विपक्षीगण
बनाम
अविनाश सिंघल पुत्र श्री सुशील सिंघल निवासी ब्रह्मपुरी
मुजफ्फरनगर। .......प्रत्यर्थी/परिवादी
अपील संख्या-1977/2008
अविनाश सिंघल पुत्र श्री सुशील सिंघल निवासी ब्रह्मपुरी
मुजफ्फरनगर। .......अपीलार्थी/परिवादी
बनाम
मुजफ्फरनगर विकास प्राधिकरण बिहाइन्ड जैट कालेज सिविल लाइन्स
साउथ मुजफ्फरनगर यू0पी0 द्वारा वाइस चेयरमैन व अन्य।
...........प्रत्यर्थीगण@विपक्षीगण
समक्ष:-
1. मा0 श्री राजेन्द्र सिंह, सदस्य।
2. मा0 श्री सुशील कुमार, सदस्य।
अपीलार्थी की ओर से उपस्थित : श्री वी0एस0 बिसारिया के सहयोगी श्री पुनीत सहाय बिसारिया, विद्वान अधिवक्ता।
प्रत्यर्थी की ओर से उपस्थित : श्री विकास अग्रवाल, विद्वान अधिवक्ता।
दिनांक 30.11.2021
मा0 श्री सुशील कुमार, सदस्य द्वारा उदघोषित
निर्णय
1. परिवाद संख्या 20/2001 अविनाश सिंघल बनाम मुजफ्फरनगर विकास प्राधिकरण तथा एक अन्य में पारित निर्णय एवं आदेश दिनांक 16.09.2008 के विरूद्ध अपील संख्या 1966/08 मुजफ्फरनगर विकास प्राधिकरण द्वारा प्रस्तुत की गई है, जबकि अपील संख्या 1977/08 परिवादी अविनाश सिंघल द्वारा प्रस्तुत की गई है। चूंकि दोनों अपीलें एक निर्णय से प्रभावित होकर दाखिल की गई हैं, इसलिए दोनों अपीलों का निस्तारण एक
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ही निर्णय से किया जा रहा है। प्रत्येक पत्रावली में निर्णय की एक-एक प्रति रखी जाएगी।
2. परिवाद के तथ्य संक्षेप में इस प्रकार हैं कि विपक्षी ने तहसील परिसर में वर्ष 1999 में दुकान का निर्माण किया। द्वितीय विज्ञापन में यह शर्त थी कि 40 प्रतिशत जमा करने के बाद दुकानों का कब्जा और अनुबंध प्राधिकरण द्वारा कर दिया जाएगा। यह प्रस्ताव केवल 15.06.99 तक वैध था। परिवादी ने 07.06.99 को दुकान संख्या 60जी कीमत रू. 550000/- को क्रय करने का अनुबंध निष्पादित किया। दि. 26.06.2000 तक अंकन रू. 398756/- जमा किए जा चुके थे, जो 40 प्रतिशत की राशि से अधिक थे, परन्तु प्राधिकरण द्वारा कब्जा नहीं दिया गया तब परिवादी ने मा0 उच्च न्यायालय के समक्ष याचना की, जिसमें आदेश पारित किया गया कि विपक्षी के कार्यालय में प्रत्यावेदन दिया जाए, तदनुसार प्रत्यावेदन दिया गया, जिस पर विपक्षीगण ने दि. 08.12.2000 को यह आदेश पारित किया कि निर्माण पूर्ण नहीं है तथा भगत सिंह रोड से वास्तविक काम्पलेक्स के लिए रास्ता उपलब्ध नहीं हो पाया है, इसलिए परिवादी को दुकान का कब्जा नहीं दिया जा सकता।
3. विपक्षीगण का कथन है कि स्वयं परिवादी ने दि. 21.10.99 को निष्पादित अनुबंध की शर्त संख्या 2 का उल्लंघन किया है, नियत अवधि में किश्तें जमा नहीं की गई हैं, इसलिए एलाटमेन्ट दि. 25.02.2000 को निरस्त कर दिया गया है। परिवादी के आश्वासन पर कि वह नियमित रूप से किश्तों का भुगतान करेगा, दि. 06.03.2000 को अनुबंध पुनर्जीवित किया गया। परिवादी को कब्जा अनुबंध की शर्त संख्या 13 के अनुसार निर्माण की स्थिति के अनुसार दिया जाना है। यह भी उल्लेख किया गया
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कि मुख्य रास्ता भगत सिंह रोड पर देवी प्रसाद रीडिंग रूम से कायम होना है, इस पर न्यायालय का स्टे होने के कारण विलम्ब हो रहा है, परन्तु इसमें समझौता हो चुका है, इसलिए ध्वस्तीकरण की कार्यवाही के पश्चात रास्ता बनवाने का कार्य प्रगति पर है। यह भी कथन किया गया कि परिवादी ने मा0 न्यायालय के समक्ष जो याचिका प्रस्तुत की थी उसमें पारित आदेश को फोरम के समक्ष चुनौती नहीं दी जा सकी है।
4. दोनों पक्षकारों के साक्ष्य पर विचार करने के पश्चात जिला उपभोक्ता मंच द्वारा यह निष्कर्ष दिया गया कि परिवादी ने किसी प्रकार की शर्त का उल्लंघन नहीं किया है और प्राधिकरण द्वारा सेवा में कमी की गई है, तदनुसार एक माह के अंदर दुकान का बैनामा निष्पादित कर कब्जा देने का आदेश दिया गया और परिवादी द्वारा जमा की गई राशि अंकन रू. 220000/- पर 24 प्रतिशत की दर से दि. 07.06.99 से अदा करने का आदेश दिया गया है।
5. इस निर्णय के विरूद्ध अपील संख्या 1977/08 अविनाश सिंघल द्वारा इन आधारों पर प्रस्तुत की गई है कि परिवादी जो बेरोजगार है उसे व्यापार की क्षति हुई है, जीवन-यापन की क्षति हुई है, मानसिक एवं शारीरिक प्रताड़ना हुई है, इसलिए परिवादी द्वारा जमा की गई संपूर्ण राशि अंकन रू. 619587/- पर जमा करने की तिथि से कब्जा देने की तिथि 16.12.11 तक 24 प्रतिशत की दर से ब्याज दिए जाने का आदेश दिया जाना चाहिए, जबकि जिला उपभोक्ता मंच ने केवल रू. 220000/- की राशि पर ब्याज अदा करने का आदेश दिया है, साथ ही जुलाई 1999 से दि. 16.16.12.11 तक रू. 300/- प्रतिदिन व्यापार की हानि के मद में प्रतिकर दिलाए जाने का आदेश दिया जाना चाहिए।
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6. मुजफ्फरनगर विकास प्राधिकरण द्वारा अपील संख्या 1966/08 इन आधारों पर प्रस्तुत की गई है कि चूंकि प्रत्यर्थी स्वयं डिफाल्टर रहा है, उसने स्वयं कुल राशि जमा नहीं की है। अपीलार्थी की ओर से किसी प्रकार की सेवा में कमी नहीं की गई है, चूंकि लाला देवी प्रसाद के उत्तराधिकारियों द्वारा रिट याचिका संख्या 1067/2000 प्रस्तुत कर दी गई और मा0 न्यायालय के आदेश के अनुपालन में कुछ भूमि लाला देवी प्रसाद रीडिंग रूम के लिए दी गई थी, इसलिए जिला उपभोक्ता मंच द्वारा अंकन रू. 220000/- पर 24 प्रतिशत अदा करने का आदेश देकर त्रुटि कारित की है।
7. दोनों पक्षकारों के विद्वान अधिवक्ताओं की बहस को सुना गया। प्रश्नगत निर्णय व आदेश तथा पत्रावली का अवलोकन किया गया।
8. इस अपील के विनिश्चय के लिए प्रथम विनिश्चयात्मक बिन्दु यह उत्पन्न होता है कि क्या विपक्षीगण विज्ञापन के अनुसार दुकान के मूल्य की 40 प्रतिशत की धनराशि जमा कराने के पश्चात कब्जा प्राप्ति करने के दायित्वाधीन थे? द्वितीय क्या परिवाद अंकन रू. 40000/- समय पर जमा किए गए या वह खुद इस राशि को जमा करने में विफल रहा?
9. पत्रावली के अवलोकन से ज्ञात होता है कि दि. 07.06.99 को परिवादी द्वारा अंकन रू. 220000/- जमा कराए गए और तत्पश्चात दोनों पक्षकारों के मध्य एक अनुबंध दि. 23.10.99 को निष्पादित हुआ। विपक्षीगण द्वारा दि. 07.09.99 को अंकन रू. 43339/- की किश्त की मांग की गई है, जबकि इस तिथि पर अनुबंध का निष्पादन नहीं हुआ था। पत्रावली के अवलोकन से यह भी ज्ञात होता है कि प्राधिकरण द्वारा दि. 07.04.2004 को उपाध्यक्ष से हस्ताक्षरित किया गया एक पत्र 08.08.13 को डाक द्वारा भेजा गया है, जिसमें उल्लेख है कि दि. 31.03.04 तक दुकान का बैनामा
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कराकर कब्जा प्राप्त करा लिया जाए। दि. 07.04.2004 को उपाध्यक्ष द्वारा हस्ताक्षरित पत्र 08.08.04 को प्रेषित करने का कोई औचित्य नहीं था। जिला उपभोक्ता मंच ने यह निष्कर्ष दिया गया कि ऐसा केवल परिवादी का उत्पीड़न करने के लिए किया गया। यथार्थ में बैनामा निष्पादित कराने की कोई मंशा प्राधिकरण की नहीं थी।
10. दोनों पक्षकारों के मध्य अनुबंध दि. 23.10.1999 को निष्पादित हुआ है, इसलिए दि. 07.09.99 तक अतिरिक्त किश्त के भुगतान करने का कोई अवसर परिवादी के पास नहीं था। अभिवचनों के अवलोकन से ज्ञात होता है कि 40 प्रतिशत जमा करने के पश्चात कब्जा देने के तथ्य से प्राधिकरण द्वारा इंकार नहीं किया गया है, इसलिए दि. 23.10.99 को नए अनुबंध को निष्पादित करने का कोई अवसर नहीं था, क्योंकि इस तिथि से पूर्व ही आवंटन की प्रक्रिया वादी के पक्ष में संपन्न हो चुकी थी। प्राधिकरण को अब यह अधिकार नहीं है कि वह विज्ञापन की शर्तों से मुकर जाए। परिवादी द्वारा विज्ञापन की शर्तों के अनुसार रू. 220000/- दि. 07.06.99 तक जमा किए गए हैं और प्राधिकरण की ओर से विज्ञापन की शर्तों के अनुसार इस राशि को जमा करने के पश्चात विज्ञापन में वर्णित समय अवधि के अंदर कब्जा प्रदान नहीं किया है। अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता का यह तर्क है कि मा0 उच्च न्यायालय में रिट याचिका लंबित होने के कारण मा0 न्यायालय के आदेश के अनुपालन के कारण समय पर निर्माण नहीं हो सका। चूंकि परिवादी द्वारा अंकन रू. 220000/- जमा किया जा चुका है, इसलिए इस अभिवाक का कोई लाभ प्राधिकरण को प्राप्त नहीं हो सकता। प्राधिकरण द्वारा इस राशि का उपयोग किया गया है और परिवादी को समय पर दुकान का कब्जा नहीं दिया गया, जिसके कारण परिवादी को भारी
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आर्थिक और मानसिक परेशानियों का सामना करना पड़ा, इसलिए इस राशि पर ब्याज के भुगतान का आदेश विधिसम्मत है, परन्तु 24 प्रतिशत प्रतिवर्ष की दर से ब्याज अदा करने का आदेश उचित प्रतीत नहीं होता। जिला उपभोक्ता मंच ने अपने निर्णय में यह उल्लेख किया है कि पक्षकारों के मध्य निष्पादित अनुबंध की शर्त के अनुसार 24 प्रतिशत प्रतिवर्ष की दर से ब्याज का भुगतान किया जाना है, परन्तु यह शर्त केवल क्रेता के लिए लागू होती है प्राधिकरण के लिए नहीं। प्राधिकरण लाभ हानि विहीन उद्देश्य के तहत क्षेत्र के विकास के लिए कार्य करता है, इसलिए प्राधिकरण पर इस दर से ब्याज अधिरोपित करना विधिसम्मत नहीं है। परिवादी द्वारा जमा राशि पर 9 प्रतिशत की दर से ब्याज अदा करने का आदेश उचित होता, अत: जिला उपभोक्ता मंच द्वारा पारित निर्णय अपील संख्या 1966/08 के संदर्भ में तदनुसार संशोधित होने योग्य है।
11. अपील संख्या 1977/08 में अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता का तर्क है कि परिवादी को व्यापारिक हानि हुई है, इसलिए प्रतिदिन की क्षतिपूर्ति रू. 300/- की दर से दिए जाने का आदेश विधिसम्मत है तथा परिवादी द्वारा जमा की गई संपूर्ण राशि पर ब्याज अदा करने का आदेश दिया जाना चाहिए। अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता के इस तर्क में बल प्रतीत होता है कि परिवादी द्वारा जमा की गई समस्त राशि अंकन रू. 619587/- हुई, उस अवधि के लिए ब्याज अदा करने का आदेश दिया जाना चाहिए जिस अवधि में कब्जा प्राप्ति में देरी हुई है और परिवादी अपने जीवन-यापन के लिए व्यापार प्रारंभ नहीं कर सका, परन्तु प्रतिदिन की दर से अंकन रू. 300/- प्रतिकर दिलाए जाने का आदेश देना इस आधार पर अनुचित होगा कि परिवादी अपने द्वारा जमा राशि पर केवल एक ही मद में लाभ प्राप्त कर
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सकता है न कि दो मद में यानी चूंकि उसके द्वारा जमा राशि पर कब्जा प्राप्त करने की तिथि तक 9 प्रतिशत प्रतिवर्ष की दर से ब्याज अदा करने का आदेश दिया जा रहा है, इसलिए प्रतिदिन की क्षतिपूर्ति का आदेश नहीं दिया जा सकता। तदनुसार उपरोक्त दोनों अपीलें आंशिक रूप से स्वीकार होने योग्य हैं।
आदेश
12. अपील संख्या 1966/08 आंशिक रूप से इस प्रकार स्वीकार की जाती है कि प्राधिकरण द्वारा परिवादी की जमा राशि पर केवल 09 प्रतिशत प्रतिवर्ष की दर से जमा करने की तिथि से कब्जा प्रदान करने की तिथि के मध्य का ब्याज अदा किया जाएगा।
13. अपील संख्या 1977/08 इस प्रकार आंशिक रूप से स्वीकार की जाती है कि परिवादी द्वारा विभिन्न तिथियों पर जमा कराई राशि पर जमा करने की तिथि से कब्जा प्राप्त करने की तिथि तक 09 प्रतिशत प्रतिवर्ष का साधारण ब्याज प्राधिकरण द्वारा किया जाएगा।
उभय पक्ष अपना-अपना अपीलीय व्यय स्वयं वहन करेंगे।
आशुलिपिक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस आदेश को आयोग की
वेबसाइड पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दें।
(राजेन्द्र सिंह) (सुशील कुमार) सदस्य सदस्य
निर्णय आज खुले न्यायालय में हस्ताक्षरित, दिनांकित होकर उद्घोषित किया गया।
(राजेन्द्र सिंह) (सुशील कुमार) सदस्य सदस्य
राकेश, पी0ए0-2 कोर्ट-2