राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ
अपील संख्या-1528/2015
(सुरक्षित)
(जिला उपभोक्ता फोरम-द्वितीय, मुरादाबाद द्वारा परिवाद संख्या 03/2014 में पारित आदेश दिनांक 30.05.2015 के विरूद्ध)
Cholamandalam MS General Insurance Company Ltd, Regional Office, 2nd floor, 4 Marry Gold, Shah Najaf Road, Sapru Marg, Lucknow through its Assistant General Manager. .................अपीलार्थी/विपक्षी
बनाम
1. Asif Ali Khan son of Sri Asik Ali Khan resident of Mohalla Bhup Singh near Holi Chowk, Jaspur, District-Udham Singh Nagar.
2. Vinayak Oters through his Owner/Manager, 10 K.M. Distance, Rampur Road, Moradabad.
................प्रत्यर्थीगण/परिवादी एवं विपक्षी सं03
समक्ष:-
माननीय न्यायमूर्ति श्री अख्तर हुसैन खान, अध्यक्ष।
अपीलार्थी की ओर से उपस्थित : श्री तरूण कुमार मिश्रा,
विद्वान अधिवक्ता।
प्रत्यर्थी सं01 की ओर से उपस्थित : श्री आलोक कुमार सिंह,
विद्वान अधिवक्ता।
प्रत्यर्थी सं02 की ओर से उपस्थित : कोई नहीं।
दिनांक: 04.10.2017
मा0 न्यायमूर्ति श्री अख्तर हुसैन खान, अध्यक्ष द्वारा उदघोषित
निर्णय
परिवाद संख्या-03/2014 आसिफ अली खान बनाम चोला मण्डलम एम0एस0 जनरल इंश्योरेंस कम्पनी लि0 व दो अन्य में जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष फोरम-द्वितीय, मुरादाबाद द्वारा पारित निर्णय और आदेश दिनांक 30.05.2015 के विरूद्ध यह अपील धारा-15 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 के अन्तर्गत आयोग के समक्ष प्रस्तुत की गयी है।
-2-
आक्षेपित निर्णय और आदेश के द्वारा जिला फोरम ने परिवाद स्वीकार करते हुए निम्न आदेश पारित किया है:-
''परिवाद योजित किए जाने की तिथि से वसूली की तिथि तक की अवधि हेतु 9 प्रतिशत वार्षिक ब्याज सहित 7,26,750/-रूपया (सात लाख छब्बीस हजार सात सौ पचास रूपया) की वसूली हेतु यह परिवाद परिवादी के पक्ष में, विपक्षी सं0-1 व 2 के विरूद्ध स्वीकार किया जाता है। इसके अतिरिक्त परिवादी विपक्षी सं0-1 व 2 से क्षतिपूर्ति की मद में 10,000/-रूपया (दस हजार) और परिवाद व्यय की मद में 2,500/-रूपया (दो हजार पॉंच सौ) अतिरिक्त पाने का अधिकारी होगा। इस आदेशानुसार धनराशि का भुगतान परिवादी को आज की तिथि से एक माह में किया जाय।''
जिला फोरम के निर्णय व आदेश से क्षुब्ध होकर परिवाद के विपक्षी बीमा कम्पनी ने यह अपील प्रस्तुत की है।
अपीलार्थी/विपक्षी बीमा कम्पनी की ओर से विद्वान अधिवक्ता श्री तरूण कुमार मिश्रा और प्रत्यर्थी सं01/परिवादी की ओर से विद्वान अधिवक्ता श्री आलोक कुमार सिंह उपस्थित आए हैं। प्रत्यर्थी संख्या-2 की ओर से कोई उपस्थित नहीं हुआ है।
मैंने उभय पक्ष के तर्क को सुना है और आक्षेपित निर्णय व आदेश तथा पत्रावली का अवलोकन किया है।
वर्तमान अपील के निर्णय हेतु संक्षिप्त सुसंगत तथ्य इस प्रकार हैं कि प्रत्यर्थी/परिवादी ने परिवाद जिला फोरम के समक्ष इस कथन के साथ प्रस्तुत किया है कि उसने महिन्द्रा एवं महिन्द्रा फाइनेन्सियल सर्विसेज से ऋण लेकर दिनांक 19.09.2012 को
-3-
7,65,000/-रू0 में एक महिन्द्रा जायलो गाड़ी विपक्षी संख्या-3 से खरीदी और उसका बीमा विपक्षीगण संख्या-1 व 2 से कराया। वाहन का पंजीयन नम्बर यू0के0-06 वाई/0336 पर पंजीकृत था। दिनांक 10.12.2012 को प्रत्यर्थी/परिवादी का यह वाहन चालक मौ0 सलीम लेकर जा रहा था तभी वाहन को तमंचा के बल पर कुछ बदमाशों ने लूट लिया। चालक ने उसी दिन सम्बन्धित थाना में रिपोर्ट दर्ज करायी और सूचना प्रत्यर्थी/परिवादी को दिया तब प्रत्यर्थी/परिवादी ने वाहन लूट की सूचना विपक्षीगण को दी और वांछित अभिलेख उपलब्ध कराये। विपक्षीगण के सर्वेयर हिमांशु शर्मा ने जांच कर रिपोर्ट दिनांक 17.08.2013 को प्रस्तुत की, परन्तु विपक्षीगण प्रत्यर्थी/परिवादी के दावे के निस्तारण में विलम्ब करते रहे और अन्त में दिनांक 01.12.2013 को प्रत्यर्थी/परिवादी को बताया कि दावा बीमा निरस्त कर दिया गया है। अत: क्षुब्ध होकर प्रत्यर्थी/परिवादी ने परिवाद जिला फोरम के समक्ष प्रस्तुत किया है।
अपीलार्थी/विपक्षी बीमा कम्पनी की ओर से जिला फोरम के समक्ष लिखित कथन प्रस्तुत किया गया है, जिसमें कहा गया है कि कथित लूट की घटना के समय वाहन का वाणिज्यिक प्रयोग किया जा रहा था, जबकि वाहन निजी प्रयोग हेतु पंजीकृत व बीमित था। स्वयं प्रथम सूचना रिपोर्ट में उल्लेख है कि घटना के समय वाहन को 1800/-रू0 में बुक किया गया था।
लिखित कथन में अपीलार्थी/विपक्षी बीमा कम्पनी की ओर से यह भी कहा गया है कि चालक सलीम के पास वाणिज्यिक वाहन के चालन का वैध लाइसेंस नहीं था।
-4-
अपीलार्थी/विपक्षी बीमा कम्पनी की ओर से लिखित कथन में कहा गया है कि प्रत्यर्थी/परिवादी को बीमा दावा अस्वीकार करने की सूचना पंजीकृत पत्र दिनांक 12.11.2013 के द्वारा दी गयी है। दावा उचित आधार पर निरस्त किया गया है।
प्रत्यर्थी/विपक्षी संख्या-3 ने भी लिखित कथन जिला फोरम के समक्ष प्रस्तुत किया है और कहा है कि उसे गलत पक्षकार बनाया गया है।
जिला फोरम ने उभय पक्ष के अभिकथन एवं उपलब्ध साक्ष्यों पर विचार कर उपरोक्त प्रकार से निर्णय व आदेश पारित किया है।
अपीलार्थी/विपक्षी बीमा कम्पनी के विद्वान अधिवक्ता का तर्क है कि प्रश्नगत वाहन निजी प्रयोग हेतु पंजीकृत एवं बीमित था, परन्तु लूट की घटना के समय वाहन पर भाड़े की सवारियां बैठी थी और उन्हीं सवारियों द्वारा वाहन की लूट कारित किया जाना बताया गया है। वाहन चालक के पास वाणिज्यिक वाहन चलाने का ड्राइविंग लाइसेंस भी नहीं था। अत: बीमा कम्पनी ने उचित आधार पर प्रत्यर्थी/परिवादी का दावा बीमा अस्वीकार किया है। जिला फोरम ने परिवाद स्वीकार कर गलती की है। अपीलार्थी/विपक्षी बीमा कम्पनी के विद्वान अधिवक्ता का तर्क है कि विलम्ब क्षमा कर अपील गुणदोष के आधार पर निर्णीत किया जाना आवश्यक है।
अपीलार्थी/विपक्षी बीमा कम्पनी के विद्वान अधिवक्ता ने निम्न न्यायिक निर्णय अपने तर्क के समर्थन में सन्दर्भित किया है:-
-5-
III (2017) CPJ 214 (NC) RAJESH KUMAR versus NATIONAL INSURANCE COMPANY LTD. & ORS.
प्रत्यर्थी/परिवादी के विद्वान अधिवक्ता का तर्क है कि जिला फोरम का निर्णय व आदेश विधि अनुकूल है। अपीलार्थी/विपक्षी बीमा कम्पनी ने प्रत्यर्थी/परिवादी का दावा बीमा अस्वीकार कर गलती की है और सेवा में त्रुटि की है। प्रत्यर्थी/परिवादी के विद्वान अधिवक्ता का तर्क है कि अपील मियाद बाहर है।
प्रत्यर्थी/परिवादी के विद्वान अधिवक्ता ने अपने तर्क के समर्थन में निम्न न्यायिक निर्णयों को सन्दर्भित किया है:-
- IV (2008) CPJ 1 (SC) NATIONAL INSURANCE COMPANY LTD. versus NITIN KHANDELWAL.
- II (2010) CPJ 9 (SC), AMALENDU SAHOO versus ORIENTAL INSURANCE CO. LTD.
मैंने उभय पक्ष के तर्क पर विचार किया है।
आक्षेपित निर्णय की नि:शुल्क प्रमाणित प्रति अपीलार्थी को दिनांक 01.06.2015 को मिली है। उसके बाद उसने अपील दिनांक 29.07.2015 को निर्धारित अवधि के 28 दिन बाद विलम्ब माफी प्रार्थना पत्र के साथ प्रस्तुत किया है। अपील आदेश दिनांक 28.01.2016 के द्वारा इस शर्त पर ग्रहण की गयी है कि विलम्ब माफी प्रार्थना पत्र पर अन्तिम सुनवाई के समय सुना जायेगा।
अपीलार्थी ने विलम्ब से अपील प्रस्तुत करने का कारण यह बताया है कि उसे अपील की अनुमति हेतु अभिलेख अपने लखनऊ
-6-
कार्यालय के माध्यम से मुख्यालय चेन्नई भेजना पड़ा है, जिससे अपील हेतु अनुमति प्राप्त होने में विलम्ब हुआ है। उपरोक्त तथ्यों एवं परिस्थितियों को दृष्टिगत रखते हुए विलम्ब का बताया गया कारण युक्तिसंगत प्रतीत होता है। अत: विलम्ब क्षमा कर अपील का निस्तारण गुणदोष के आधार पर किया जा रहा है।
जिला फोरम के निर्णय से स्पष्ट है कि चालक मौ0 सलीम के पास प्रश्नगत घटना के समय वैध ड्राइविंग लाइसेंस था। इसके अतिरिक्त चोरी अथवा लूट की प्रश्नगत घटना से ड्राइविंग लाइसेंस का कोई सम्बन्ध नहीं है। अत: चालक के ड्राइविंग लाइसेंस के आधार पर दावा बीमा अस्वीकार किया जाना उचित नहीं है।
प्रश्नगत वाहन की लूट की घटना की जो रिपोर्ट चालक ने पुलिस थाना में घटना के बाद दर्ज कराया है उसमें घटना का विवरण इस प्रकार दिया है कि दो व्यक्ति स्टैण्ड से उसका प्रश्नगत वाहन अट्ठारह सौ रूपया किराया तय करके पांच सौ रूपया एडवांस किराया देकर लिये और वाहन पर बैठकर चले, परन्तु रास्ते में उन्होंने चालक को तमंचा दिखाकर डराकर भगा दिया और गाड़ी लेकर चले गये।
वाहन निजी प्रयोग हेतु पंजीकृत एवं बीमित था, परन्तु घटना के समय किराये पर सवारी ढोने हेतु उसका प्रयोग किया जा रहा था, जो पंजीयन प्रमाण पत्र और बीमा प्रमाण पत्र एवं मोटर वाहन अधिनियम का उल्लंघन है।
अपीलार्थी/विपक्षी बीमा कम्पनी के विद्वान अधिवक्ता द्वारा सन्दर्भित राजेश कुमार बनाम नेशनल इंश्योरेंस कम्पनी लिमिटेड
-7-
आदि III (2017) C.P.J. 214 N.C. के वाद में माननीय राष्ट्रीय आयोग द्वारा पारित निर्णय में माननीय राष्ट्रीय आयोग ने कहा है कि, “Use of vehicle for commercial purpose as a taxi is duly proved. Repudiation of claim is justified”, परन्तु नेशनल इंश्योरेंस कम्पनी लिमिटेड बनाम नितिन खण्डेलवाल IV (2008) C.P.J. 1 S.C. के वाद में प्राइवेट वाहन को किराये की सवारी ढोने हेतु प्रयोग किये जाने के समय वाहन की लूट की घटना होने पर बीमा कम्पनी को वाहन की बीमित धनराशि की अदायगी हेतु माननीय उच्चतम न्यायालय ने उत्तरदायी माना है। इस वाद में राज्य आयोग ने यह माना कि घटना के समय वाहन बीमा पालिसी के विपरीत टैक्सी के रूप में प्रयोग किया जा रहा था। अत: राज्य आयोग ने वाहन के बीमित मूल्य का 75 प्रतिशत नान स्टैंडर्ड बेसिस पर क्लेम स्वीकार किया। राज्य आयोग के इस निर्णय को माननीय राष्ट्रीय आयोग और माननीय सर्वोच्च न्यायालय दोनों ने कायम रखा है। इसके साथ ही माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने अपने निर्णय में निम्न उल्लेख भी किया है:-
“The State Commission has allowed only 75% claim of the respondent on non-standard basis. We are not deciding whether the State Commission was justified in allowing the claim of the respondent on non-standard basis because the respondent has not filed any appeal against the said order. The said
-8-
order of the State Commission was upheld by the National Commission.”
माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने अमलेन्दु साहू बनाम ओरियण्टल इंश्योरेंस कम्पनी लिमिटेड II (2010) C.P.J. 9 S.C. के वाद में भी प्राइवेट वाहन किराये पर चलाये जाने के समय हुई दुर्घटना में वाहन की क्षतिपूर्ति हेतु नान स्टैंडर्ड बेसिस पर बीमित धनराशि की अदायगी हेतु बीमा कम्पनी को उत्तरदायी माना है।
उपरोक्त विवरण से स्पष्ट है कि चालक ने प्रश्नगत प्राइवेट वाहन पर जो किराया की सवारी बिठाया था उन्हीं सवारियों ने वाहन की लूट कारित की है। अत: चालक का किराये पर सवारी बिठाने का यह अनाधिकृत कार्य वाहन की लूट की घटना में योगदायी प्रभाव रखता है। अत: सम्पूर्ण तथ्यों एवं साक्ष्यों और माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा अमलेन्दु साहू बनाम ओरियण्टल इंश्योरेंस कम्पनी लिमिटेड एवं नेशनल इंश्योरेंस कम्पनी लिमिटेड बनाम नितिन खण्डेलवाल के वाद में दिये गये उपरोक्त निर्णयों को दृष्टिगत रखते हुए मैं इस मत का हूँ कि प्रत्यर्थी/परिवादी को वाहन की बीमित धनराशि का 75 प्रतिशत नान स्टैंडर्ड बेसिस पर दिया जाना उचित है और जिला फोरम का निर्णय व आदेश तदनुसार संशोधित किये जाने योग्य है।
जिला फोरम ने जो 09 प्रतिशत वार्षिक की दर से ब्याज दिया है, वह उचित है। जिला फोरम ने जो 2500/-रू0 वाद व्यय प्रत्यर्थी/परिवादी को दिलाया है, वह भी उचित है।
-9-
जिला फोरम ने जो 10,000/-रू0 क्षतिपूर्ति प्रत्यर्थी/परिवादी को दिलायी है, वह उचित नहीं प्रतीत होती है क्योंकि बीमित धनराशि पर ब्याज दिया जा रहा है।
उपरोक्त निष्कर्ष के आधार पर अपील आंशिक रूप से स्वीकार की जाती है और जिला फोरम का निर्णय व आदेश संशोधित करते हुए अपीलार्थी/विपक्षी बीमा कम्पनी को निर्देशित किया जाता है कि वह प्रत्यर्थी/परिवादी को वाहन के बीमित मूल्य 7,26,750/-रू0 का 75 प्रतिशत नान स्टैंडर्ड बेसिस पर परिवाद प्रस्तुत करने की तिथि से अदायगी की तिथि तक 09 प्रतिशत वार्षिक की दर से ब्याज सहित अदा करे। साथ ही 2,500/-रू0 जिला फोरम द्वारा प्रदान किया गया वाद व्यय भी उसे अदा करे।
जिला फोरम ने प्रत्यर्थी/परिवादी को जो 10,000/-रू0 क्षतिपूर्ति प्रदान की है, उसे अपास्त किया जाता है।
अपील में उभय पक्ष अपना-अपना वाद व्यय स्वयं वहन करेंगे।
धारा-15 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 के अन्तर्गत अपील में जमा धनराशि अर्जित ब्याज सहित जिला फोरम को इस निर्णय के अनुसार निस्तारण हेतु प्रेषित की जाये।
(न्यायमूर्ति अख्तर हुसैन खान)
अध्यक्ष
जितेन्द्र आशु0
कोर्ट नं0-1