राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।
सुरक्षित
अपील सं0-२२४०/२०१५
(जिला मंच, सोनभद्र द्वारा परिवाद सं0-१३९/२०१४ में पारित निर्णय एवं आदेश दिनांक १०-०९-२०१५ के विरूद्ध)
श्रीराम जनरल इंश्योरेंस कम्पनी लिमिटेड, ई-८, ईपीआईपी, रीको इण्डस्ट्रियल एरिया, सीतापुर, जयपुर (राजस्थान)-३०२०२२ ब्रान्च आफिस १६, चिन्तल हाउस, स्टेशन रोड, लखनऊ द्वारा मैनेजर।
................. अपीलार्थी/विपक्षी।
बनाम्
अशोक कुमार गुप्ता पुत्र श्री राम जी गुप्ता निवासी ग्राम चिल्काडाड़ बस्ती, थाना शक्ति नगर, जिला- सोनभद्र।
.................. प्रत्यर्थी/परिवादी।
समक्ष:-
१. मा0 श्री उदय शंकर अवस्थी, पीठासीन सदस्य।
२. मा0 श्री महेश चन्द, सदस्य।
अपीलार्थी ओर से उपस्थित :- श्री दिनेश कुमार विद्वान अधिवक्ता के
सहयोगी श्री आनन्द भार्गव विद्वान अधिवक्ता।
प्रत्यर्थी की ओर से उपस्थित :- श्री विष्णु कुमार मिश्रा विद्वान अधिवक्ता।
दिनांक : ३०-०८-२०१६.
मा0 श्री उदय शंकर अवस्थी, पीठासीन सदस्य द्वारा उदघोषित
निर्णय
प्रस्तुत अपील, जिला मंच, सोनभद्र द्वारा परिवाद सं0-१३९/२०१४ में पारित निर्णय एवं आदेश दिनांक १०-०९-२०१५ के विरूद्ध योजित की गयी है।
संक्षेप में तथ्य इस प्रकार हैं कि प्रत्यर्थी/परिवादी ने अपनी बजाज पल्सर मोटर साईकिल पंजीयन संख्या - यू0पी0 ६४ क्यू०/४९९२ का बीमा अपीलार्थी बीमा कम्पनी से दिनांक ०२-११-२००३ को कराया था। बीमा की अवधि दिनांक ०२-११-२०१३ से ०१-११-२०१४ तक थी। प्रत्यर्थी/परिवादी का यह वाहन दिनांक ०६-०१-२०१४ को समय ०७ – ०८ बजे सायं चोरी हो गया, जिसकी सूचना उसने अपीलार्थी को फोन पर तथा उसके रेनूकूट
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कार्यालय जा कर मौखिक दी, जिस पर प्रत्यर्थी/परिवादी से कहा गया कि सूचना लिखित रूप में प्रथम सूचना रिपोर्ट की प्रति संलग्न करके दी जाय। प्रत्यर्थी/परिवादी द्वारा सम्बन्धित थाने में तत्काल घटना की सूचना दी गयी लेकिन पुलिस द्वारा उसकी रिपोर्ट यह कहकर दर्ज नहीं की गयी कि अभी प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज करने की आवश्यकता नहीं है, गाड़ी आस-पास ही कहीं होगी। पुलिस गाड़ी को अवश्य ढूँढ़ निकालेगी और परिवादी भी अपने स्तर से खोजने का प्रयास करता रहे। इसके बाबजूद भी यदि गाड़ी का पता नहीं चला तब पुलिस परिवादी की प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज कर लेगी। इस आश्वासन के कारण परिवादी अपीलार्थी को तत्काल लिखित प्रार्थना-पत्र व प्रथम सूचना रिपोर्ट नहीं दे सका तथा १०-१२ दिन बीत जाने के बाद भी जब न तो परिवादी की गाड़ी का ही पता चला और न ही परिवादी की प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज की गयी तब परिवादी ने दिनांक २०-०१-२०१४ को प्रश्नगत वाहन के चोरी की लिखित सूचना अपीलार्थी को दी और उन्हें बताया गया कि पुलिस अभी खोज रही है और इस कारण प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज नहीं की गयी है तब अपीलार्थी ने उसका प्रार्थना पत्र ले लिया। अपीलार्थी को सूचना देने के बाद अपीलार्थी द्वारा प्रत्यर्थी/परिवादी का बीमा दावा दर्ज किया गया तथा यह कहा गया कि अपने स्तर से जांच कर क्लेम का भुगतान किया जायेगा, किन्तु प्रत्यर्थी/परिवादी घटना की प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज कराके अपीलार्थी को अविलम्ब उपलब्ध करा दे। बिना प्रथम सूचना रिपोर्ट के क्लेम का निस्तारण सम्भव नहीं होगा। प्रत्यर्थी/परिवादी के दावे पर अपीलार्थी ने अपने स्तर पर अन्वेषक नियुक्त करके घटना का अन्वेषण कराया तथा अन्वेषक द्वारा घटना को सही पाया गया। अपीलार्थी द्वारा प्रथम सूचना रिपोर्ट की मांग किए जाने पर प्रत्यर्थी/परिवादी पुन: सम्बन्धित थाने में कथित घटना के सन्दर्भ में प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज कराने गया, किन्तु पुलिस द्वारा उसकी प्रथम सूचना रिपोर्ट लिखने से मना कर दिया गया। तब परिवादी ने दिनांक १५-०२-२०१४ को पुलिस अधीक्षक, सोनभद्र को पंजीकृत डाक से प्रार्थना पत्र प्रेषित किया, लेकिन कोई कार्यवाही न होने पर न्यायालय सिविल जज जूनियर डिवीजन/मैजिस्ट्रेट दुद्धी सोनभद्र में प्रार्थना पत्र प्रस्तुत किया, जिस पर न्यायालय द्वारा दिनांक ०७-०४-२०१४ को प्रभारी थाना
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शक्तिनगर को प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज कर विधि अनुरूप विवेचना करने हेतु आदेशित किया गया, जिसके अनुपालन में सम्बन्धित थाने की पुलिस द्वारा प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज करके मामले की विवेचना की गयी। माल-मुल्जिम का पता न लगने और न ही निकट भविष्य में पता लगने की कोई उम्मीद के कारण विवेचना समाप्त करते हुए न्यायालय में अन्तिम आख्या प्रेषित की गयी। अन्तिम आख्या में चोरी की घटना घटित होना पाया। न्यायालय के आदेशानुसार प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज होने के बाद प्रत्यर्थी/परिवादी ने प्रथम सूचना रिपोर्ट की प्रति अपीलार्थी बीमा कम्पनी को उपलब्ध करायी, किन्तु अपीलार्थी ने अपने पत्र दिनांक ०९-०९-२०१४ द्वारा प्रत्यर्थी/परिवादी का बीमा दावा कथित चोरी की घटना की सूचना देने में विलम्ब होने तथा प्रथम सूचना रिपोर्ट विलम्ब से दर्ज कराने के आधार पर निरस्त कर दिया। अत: चोरी गयी मोटर साईकिल के मूल्य ७८,६००/- रू० की ब्याज सहित अदायगी हेतु तथा क्षतिपूर्ति की अदायगी हेतु परिवाद जिला मंच के समक्ष योजित किया गया।
अपीलार्थी बीमा कम्पनी की ओर से जिला मंच के समक्ष प्रतिवाद पत्र प्रस्तुत किया गया। अपीलार्थी के कथनानुसार गलत तथ्यों के आधार पर परिवाद योजित किया गया। प्रत्यर्थी/परिवादी का वाहन चोरी नहीं हुआ। स्वयं उसने वाहन गायब कर दिया है अथवा बेच दिया है। अवैध रूप से पैसा हड़पने के लिए बीमा दावा प्रेषित किया गया। कथित चोरी की घटना के १४ दिन बाद प्रथम सूचना रिपोर्ट प्रत्यर्थी/परिवादी द्वारा लिखाई गयी, जबकि बीमा पालिसी की शर्तों के अनुसार चोरी की घटना की सूचना प्रत्यर्थी/परिवादी द्वारा तत्काल अपीलार्थी को दी जानी चाहिए थी। तत्काल सूचना न देकर प्रत्यर्थी/परिवादी द्वारा बीमा की शर्तों का उल्लंघन किया गया, अत: बीमा दावे का भुगतान अपीलार्थी द्वारा नहीं किया गया। अपीलार्थी द्वारा सेवा में कोई त्रुटि नहीं की गयी है।
विद्वान जिला मंच ने प्रत्यर्थी/परिवादी के परिवाद को आंशिक रूप से स्वीकार करते हुए अपीलार्थी को निर्देशित किया कि वह परिवादी को बीमित धनराशि ६१,११५/- रू० का भुगतान एक माह में करे। इसके अतिरित वाद व्यय के रूप में मु0 १,०००/- रू०
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का भुगतान अपीलार्थी द्वारा प्रत्यर्थी/परिवाद को किए जाने हेतु आदेश दिया गया।
इस निर्णय से क्षुब्ध होकर यह अपील योजित की गयी।
हमने अपीलार्थी की ओर से विद्वान अधिवक्ता श्री दिनेश कुमार सहयोगी श्री आनन्द भार्गव विद्वान अधिवक्ता एवं प्रत्यर्थी की ओर से विद्वान अधिवक्ता श्री विष्णु कुमार मिश्रा के तर्क सुने तथा अभिलेखों का अवलोकन किया।
उल्लेखनीय है कि यह अपील जिला मंच द्वारा पारित प्रश्नगत आदेश दिनांकित १०-०९-२००१५ के विरूद्ध दिनांक २८-१०-२०१५ को योजित की गयी है, जबकि निर्णय की प्रमाणित प्रतिलिपि अपीलार्थी को दिनांक १६-०९-२०१५ को प्राप्त हुई है। अपील के प्रस्तुतीकरण में हुए विलम्ब को क्षमा करने हेतु अपीलार्थी बीमा कम्पनी की ओर से प्रार्थना पत्र प्रस्तुत किया गया है तथा इस प्रार्थना में किए गये अभिकथनों के समर्थन में अपीलार्थी ने श्री आनन्द मिश्रा पुत्र श्री वी0एन0 मिश्रा मैनेजर लीगल का शपथ पत्र प्रस्तुत किया गया है। अपील के प्रस्तुतीकरण में हुए विलम्ब के सम्बन्ध में अपीलार्थी बीमा कम्पनी की ओर से दिया गया स्पष्टीकरण सन्तोषजनक पाते हुए अपील के प्रस्तुतीकरण में हुआ विलम्ब क्षमा किया जाता है।
अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता द्वारा मुख्य रूप से यह तर्क प्रस्तुत किया गया कि प्रश्नगत वाहन की कथित चोरी की घटना दिनांक ०६-०१-२०१४ की बतायी गयी है, जबकि इस चोरी की घटना की सूचना अपीलार्थी बीमा कम्पनी को दिनांक २०-०१-२०१४ को अर्थात् १४ दिन विलम्ब से दी गयी तथा वाहन चोरी की प्रथम सूचना रिपोर्ट सम्बन्धित थाने में दिनांक ०४-०७-२०१४ को अथार्त् लगभग ०५ माह १५ दिन विलम्ब से लिखायी गयी। अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता द्वारा यह तर्क भी प्रस्तुत किया गया कि प्रश्नगत पालिसी में निर्दिष्ट शर्तों के अनुसार चोरी की घटना की तत्काल सूचना प्रत्यर्थी/परिवादी द्वारा अपीलार्थी बीमा कम्पनी को दिया जाना आवश्यक था, किन्तु उसने बीमा की शर्तों का उल्लंघन करते हुए कथित चोरी की सूचना तत्काल उपलब्ध नहीं करायी। अधिवक्ता अपीलार्थी द्वारा इस सन्दर्भ में प्रश्नगत बीमा पालिसी में उल्लिखित निम्नलिखित शर्त की ओर हमारा ध्यान आकृष्ट किया गया :-
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‘’ This Policy and the Schedule shall be read together and any expression to which a specific meaning has been attached in any part of this Policy or of the Schedule shall bear the same meaning wherever it may appear.
1. Notice shall be given in writing to the Company immediately upon the occurrence of any accidental or loss or damage and in the event of any claim and thereafter the insured shall give all such information and assistance as the company shall require. Every letter claim writ summons and or process or copy thereof shall be forwarded to the company immediately on receipt by the insured. Notice shall also be given in writing to the Company immediately. The insured shall have knowledge of any impending prosecution inquest or fatal injury in respect of any occurence which may give rise to a claim under this Policy. In case of theft of other criminal act which may be the subject of a claim under this Policy the insured shall give immediate notice to the police and co-operate with the Company in securing the conviction of the offender. ‘’
अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता द्वारा यह तर्क प्रस्तुत किया गया कि बीमा पालिसी की शर्तों का उल्लंघन होने के कारण बीमा दावा अपीलार्थी द्वारा निरस्त किया गया। अपीलार्थी द्वारा सेवा में कोई त्रुटि नहीं की गयी। प्रत्यर्थी/परिवादी द्वारा समय से सूचना उपलब्ध न कराए जाने के कारण अपीलार्थी प्रश्नगत वाहन को अपने स्तर से खोजने के अधिकार से वंचित रहा गया।
अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता द्वारा इस सन्दर्भ में सिविल अपील सं0-६७३९/२०१० ओरियण्टल इंश्योरेंस कं0लि0 बनाम परवेश चन्द्र चड्ढा के मामले में माननीय उच्चतम न्यायालय द्वारा दिए गये निर्णय दिनांक १७-०८-२०१०, पुनरीक्षण याचिका सं0-३२६९/२०१४ श्रीराम जनरल इंश्यारेंस कं0 लि0 बनाम आनन्द सिंह के मामले में माननीय राष्ट्रीय आयोग द्वारा दिए गये निर्णय दिनांक २९-०४-२०१६ एवं पुनरीक्षण सं0-३८००/२०१३ शिव प्रिया बनाम चोला मण्डलम एम.एस. जनरल इंश्योरेंस कं0लि0, I (2016) CPJ 410 (NC) के मामले में माननीय राष्ट्रीय आयोग द्वारा दिए गये निर्णय
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दिनांक ०४-१२-२०१५ पर विश्वास व्यक्त किया गया। अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता द्वारा सन्दर्भित उपरोक्त निर्णयों का हमने अवलोकन किया। इन सभी मामलों में बीमाधारक द्वारा वाहन चोरी की तत्काल सूचना न दिए जाने पर कोई स्पष्टीकरण प्रस्तुत नहीं किया गया था। अत: बीमा की शर्तों का उल्लंघन मानते हुए बीमा दावा की अदायगी न किया जाना सेवा में त्रुटि नहीं माना गया। तद्नुसार बीमा दावा को अस्वीकार किया जाना अनुचित नहीं माना गया।
जहॉं तक प्रस्तुत मामले का प्रश्न है प्रश्नगत वाहन की चोरी दिनांक ०६-०१-२०१४ को होना बताया गया है। प्रत्यर्थी/परिवादी का यह कथन है कि चोरी की सूचना उसने अपीलार्थी को फोन पर तथा रेनूकूट कार्यालय जाकर मौखिक रूप से दी थी, जिस पर उससे कहा गया कि सूचना लिखित में दी जाय तथा प्रथम सूचना रिपोर्ट की प्रति संलग्न करके दी जाय। अत: प्रत्यर्थी/परिवादी ने सम्बन्धित थाने में तत्काल लिखित सूचना दी लेकिन पुलिस द्वारा उसकी प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज नहीं की गयी। यह कहा गया कि प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज करने की आवश्यकता नहीं है, गाड़ी आस-पास ही कहीं होगी। पुलिस गाड़ी को अवश्य ढूँढ़ निकालेगी और परिवादी भी अपने स्तर से खोजने का प्रयास करता रहे। इसके बाबजूद भी यदि गाड़ी का पता नहीं चला तब पुलिस परिवादी की प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज कर लेगी। इस आश्वासन के कारण परिवादी अपीलार्थी को तत्काल लिखित प्रार्थना-पत्र व प्रथम सूचना रिपोर्ट नहीं दे सका तथा १०-१२ दिन बीत जाने के बाद भी जब न तो परिवादी की गाड़ी का ही पता चला और न ही परिवादी की प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज की गयी तब परिवादी ने दिनांक २०-०१-२०१४ को प्रश्नगत वाहन के चोरी की लिखित सूचना अपीलार्थी को दी। अपीलार्थी द्वारा प्रथम सूचना रिपोर्ट की मांग किए जाने पर प्रत्यर्थी/परिवादी पुन: सम्बन्धित थाने में कथित घटना के सन्दर्भ में प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज कराने गया, किन्तु पुलिस द्वारा उसकी प्रथम सूचना रिपोर्ट लिखने से इन्कार करने पर परिवादी ने दिनांक १५-०२-२०१४ को पुलिस अधीक्षक, सोनभद्र को पंजीकृत डाक से प्रार्थना पत्र प्रेषित किया। इस पर भी कोई कार्यवाही न होने पर न्यायालय सिविल जज जूनियर डिवीजन/मैजिस्ट्रेट दुद्धी सोनभद्र में प्रार्थना पत्र प्रस्तुत
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किया, जिस पर न्यायालय द्वारा दिनांक ०७-०४-२०१४ को प्रभारी थाना शक्तिनगर को प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज कर विधि अनुरूप विवेचना करने हेतु आदेशित किया गया, जिसके अनुपालन में सम्बन्धित थाने की पुलिस द्वारा प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज की गयी तथा मामले की विवेचना की गयी तथा विवेचना में वाहन चोरी की घटना सही पायी गयी, किन्तु माल-मुल्जिम का पता न लगने के कारण विवेचना समाप्त करते हुए न्यायालय में अन्तिम आख्या प्रेषित की गयी। प्रत्यर्थी/परिवादी का यह भी कथन है कि परिवादी द्वारा प्रस्तुत बीमा दावा के सन्दर्भ में अपीलार्थी द्वारा अपने स्तर से अन्वेषक की नियुक्ति की गयी और अन्वेषक ने चोरी की घटना को सही पाया।
इस प्रकार स्पष्ट है कि प्रस्तुत मामले में तत्काल चोरी की सूचना अपीलार्थी को उपलब्ध न कराये जाने का उचित स्पष्टीकरण प्रत्यर्थी/परिवादी द्वारा प्रस्तुत किया गया है। प्रत्यर्थी/परिवादी के इस कथन को अपीलार्थी ने जिला मंच के समक्ष प्रस्तुत प्रतिवाद पत्र में अस्वीकार नहीं किया है कि कथित चोरी की घटना के सन्दर्भ में नियुक्त अन्वेषक ने चोरी की घटना को सही पाया था। अपीलार्थी द्वारा इस तथ्य से भी इन्कार नहीं किया गया कि सम्बन्धित थाने की पुलिस द्वारा की गयी विवेचना में भी चोरी की कथित घटना को सही पाया गया। अपीलार्थी का यह कथन नहीं है कि चोरी की कथित घटना में प्रत्यर्थी की किसी प्रकार से मिली भगत थी। यह नितान्त अस्वाभाविक है कि अपने वाहन की चोरी हो जाने तथा वाहन के बीमित होने के बाबजूद कोई व्यक्ति चोरी की घटना की सूचना बीमा कम्पनी को तत्काल उपलब्ध न कराये। ऐसी परिस्थिति में प्रत्यर्थी/परिवादी द्वारा तत्काल सूचना उपलब्ध न कराये जाने के सन्दर्भ में प्रस्तुत किया गया स्पष्टीकरण सन्तोषजनक माना जा सकता है। मामले से सम्बन्धित परिस्थितियों के आलोक में यह स्पष्ट है कि वस्तुत: प्रत्यर्थी/परिवादी द्वारा चोरी की सूचना दर्ज कराए जाने हेतु तत्काल प्रयास किया गया, किन्तु सम्बन्धित थाने में तत्काल प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज न किए जाने का दण्ड प्रत्यर्थी/परिवादी को दिया जाना न्यायसंगत नहीं होगा।
प्रत्यर्थी/परिवादी के विद्वान अधिवक्ता द्वारा इस सन्दर्भ में आई0आर0डी0ए0 द्वारा जारी सर्कुलर दिनांक २०-०९-२०११ की ओर हमारा ध्यान आकृष्ट किया गया। इस सर्कुलर के अनुसार – ‘’ The Authority has been receiving several complaints
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that claims are being rejected on the ground of delayed submission of intimation and documents.
The current contractual obligation imposing the condition that the claims shall be intimated to the insurer with prescribed documents within a specified number of days is necessary for insurers for affecting various post claims activities like investigation, loss assessment, provisioning, claim settlement etc. However, this condition should not prevent settlement of genuine claims, particularly when there is delay in intimation or in submission of documents due to unavoidable circumstances. The insurers’ decision to reject a claim shall be based on sound logic and valid grounds. ‘’
जहॉं तक प्रस्तुत मामले का प्रश्न है, मामले के तथ्य एवं परिस्थितियों से यह स्पष्ट है कि प्रत्यर्थी/परिवादी का बीमा दावा झूँठा नहीं है। अत: आई0आर0डी0ए0 के उपरोक्त सर्कुलर के आलोक में मात्र कथित चोरी की लिखित सूचना तत्काल उपलब्ध न कराए जाने के आधार पर बीमा दावा निरस्त किया जाना न्यायासंगत नहीं माना जा सकता। ऐसी परिस्थिति में प्रत्यर्थी/परिवादी का बीमा दावा स्वीकार न करके अपीलार्थी द्वारा सेवा में त्रुटि की गयी है।
उपरोक्त विवेचन के आलोक में हमारे विचार से प्रश्नगत निर्णय में हस्तक्षेप करने का कोई औचित्य नहीं होगा। यह भी उल्लेखनीय है कि विद्वान जिला मंच ने प्रश्नगत निर्णय में बीमित धनराशि की एक माह में अदायगी न किए जाने की स्थिति में ब्याज की अदायगी हेतु कोई आदेश पारित नहीं किया है। हमारे विचार से इस सन्दर्भ में आदेश पारित किया न्यायोचित होगा। अपील में बल नहीं है। अपील निरस्त किए जाने योग्य है।
आदेश
प्रस्तुत अपील निरस्त की जाती है। जिला मंच, सोनभद्र द्वारा परिवाद सं0-१३९/२०१४ में पारित निर्णय एवं आदेश दिनांक १०-०९-२०१५ की पुष्टि करते हुए अपीलार्थी को यह भी निर्देश दिया जाता है कि बीमित धनराशि ६१,११५/- रू० की इस निर्णय की तिथि से एक माह के अन्दर प्रत्यर्थी/परिवादी को अदायगी न किए जाने की स्थिति में अपीलार्थी प्रत्यर्थी/परिवादी को परिवाद योजित किए जाने की तिथि से सम्पूर्ण
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धनराशि की अदायगी की तिथि तक ०९ प्रतिशत वार्षिक साधारण ब्याज की अदायगी करने का उत्तरायी होगा। यह भी आदेश पारित किया जाता है कि इस आयोग द्वारा पारित अन्तरिम आदेश दिनांकित १८-११-२०१५ के अनुपालन में जिला मंच के समक्ष अपीलार्थी द्वारा जमा की गयी धनराशि (यदि कोई हो) अर्जित ब्याज सहित उपरोक्त देय धनराशि में समायोजित की जायेगी।
उभय पक्ष इस अपील का व्यय-भार स्वयं अपना-अपना वहन करेंगे।
उभय पक्ष को इस निर्णय की प्रमाणित प्रतिलिपि नियमानुसार उपलब्ध करायी जाय।
(उदय शंकर अवस्थी)
पीठासीन सदस्य
(महेश चन्द)
सदस्य
प्रमोद कुमार
वैय0सहा0ग्रेड-१,
कोर्ट-४.