Uttar Pradesh

StateCommission

A/2559/2016

Babu Banarasidas Institute Of Technology - Complainant(s)

Versus

Ashish Verma - Opp.Party(s)

Alok Ranjan

17 Feb 2022

ORDER

STATE CONSUMER DISPUTES REDRESSAL COMMISSION, UP
C-1 Vikrant Khand 1 (Near Shaheed Path), Gomti Nagar Lucknow-226010
 
First Appeal No. A/2559/2016
( Date of Filing : 13 Oct 2016 )
(Arisen out of Order Dated 09/06/2016 in Case No. C/182/2011 of District Jhansi)
 
1. Babu Banarasidas Institute Of Technology
Ghaziabad
...........Appellant(s)
Versus
1. Ashish Verma
Jhansi
...........Respondent(s)
 
BEFORE: 
 HON'BLE MR. Vikas Saxena PRESIDING MEMBER
 HON'BLE MRS. DR. ABHA GUPTA MEMBER
 
PRESENT:
 
Dated : 17 Feb 2022
Final Order / Judgement

(सुरक्षित)

 

राज्‍य उपभोक्‍ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ

 

अपील सं0- 2559/2016

 

(जिला उपभोक्‍ता विवाद प्रतितोष आयोग, झांसी द्वारा परिवाद सं0- 182/2011 में पारित निर्णय/आदेश दिनांक 09.09.2016 के विरुद्ध)

 

1. Director, Babu Banarsi Das Institute of Technology, 7th Km. Mile Stone From Ghaziabad on (N.H. 58), Delhi Merrut Road, Duhai, Ghaziabad (U.P.)

2. Principal, Babu Banarsi Das Institute of Technology, 7th Km. Mile Stone From Ghaziabad on (N.H. 58), Delhi Merrut Road, Duhai, Ghaziabad (U.P.)

                                                                                              ………..Appellants

 

                                                            Versus

 

Ashish Verma S/O Sri Bhagwan Das R/o 298, Sagar Gate, Jhansi (U.P.)

                                                                                              ………Respondent

 

समक्ष:-

    माननीय श्री विकास सक्‍सेना, सदस्‍य।

    माननीया डॉ0 आभा गुप्‍ता, सदस्‍य 

 

अपीलार्थीगण की ओर से : श्री आलोक रंजन, विद्वान अधिवक्‍ता।

प्रत्‍यर्थी की ओर से     : श्री मनोज कुमार सिंह, विद्वान अधिवक्‍ता।

 

दिनांक:- 22.03.2022   

 

माननीय श्री विकास सक्‍सेना, सदस्‍य द्वारा उद्घोषित

 

निर्णय

1.        परिवाद सं0- 182/2011 आशीष वर्मा तनय बनाम डायरेक्‍टर बाबू बनारसी दास इंस्‍टीट्यूट ऑफ टेक्‍नोलॉजी व एक अन्‍य में जिला उपभोक्‍ता आयोग, झांसी द्वारा पारित निर्णय एवं आदेश दि0 09.09.2016 के विरुद्ध यह अपील धारा 15 उपभोक्‍ता संरक्षण अधिनियम, 1986 के अंतर्गत राज्‍य आयोग के समक्ष प्रस्‍तुत की गई है।

2.        संक्षेप में वाद के तथ्‍य इस प्रकार हैं कि प्रत्‍यर्थी/परिवादी ने यू0पी0टी0यू0 काउंसिलिंग के माध्‍यम से दि0 12.08.2010 को अपीलार्थीगण/विपक्षीगण के इंस्‍टीट्यूट में बी0टेक0 प्रथम वर्ष में प्रवेश लिया था। प्रवेश के समय रू0 85,000/- ड्राफ्ट के माध्‍यम से जमा किए थे। फीस जमा करने के उपरांत प्रत्‍यर्थी/परिवादी दूसरे दिन ही बीमार पड़ गया और कॉलेज नहीं जा सका तथा अपने घर झांसी वापस आ गया। एक लम्‍बे समय तक वह चिकित्‍सीय राय पर कॉलेज नहीं गया और अपने पिता के माध्‍यम से उसने फीस वापस करने को भेजा, लेकिन अपीलार्थी/विपक्षी द्वारा जवाब नहीं दिया गया, अत: वसूली हेतु यह परिवाद प्रस्‍तुत किया गया है।

3.        अपीलार्थीगण/विपक्षीगण की ओर से जवाबदावे में रू0 80,000/- फीस जमा करना स्‍वीकार किया गया और कहा कि रू0 85,000/- जमा करने के उपरांत प्रत्‍यर्थी/परिवादी इंस्‍टीट्यूट उपस्थित नहीं आया उसकी सीट खाली रह गई जिससे अपीलार्थीगण/विपक्षीगण का काफी नुकसान हुआ। प्रत्‍यर्थी/परिवादी द्वारा अपना प्रवेश रद्द करने की सूचना नहीं दी गई, इसलिए वह किसी भी राशि को पाने का अधिकारी नहीं है। विद्वान जिला उपभोक्‍ता आयोग ने इस आधार पर प्रत्‍यर्थी/परिवादी का परिवाद आज्ञप्‍त किया कि प्रत्‍यर्थी/परिवादी के पिता द्वारा अपीलार्थीगण/विपक्षीगण को पत्र लिखा गया था जो उसने दाखिल किया है, कागज सं0- 6 प्रत्‍यर्थी/परिवादी की ओर से दाखिल किए गए जिसमें उल्‍लेख किया गया है कि अगर कोई भी विद्यार्थी सूचना देने के उपरांत गैर हाजिर हो जाता है या कॉलेज छोड़ देता है तो 1,000/-रू0 प्रोसेसिंग शुल्‍क काटकर शेष धनराशि वा‍पस की जायेगी। प्रत्‍यर्थी/परिवादी बीमारी के कारण विद्यालय में उपस्थित नहीं हो सका था, अत: उक्‍त प्रपत्र के अनुसार प्रत्‍यर्थी/परिवादी फीस पाने का अधिकारी है। उक्‍त निर्णय व आदेश से व्‍यथित होकर यह अपील प्रस्‍तुत की गई है, जिसमें यह आधार लिए गए हैं कि विद्वान जिला उपभोक्‍ता आयोग, झांसी को क्षेत्रीय क्षेत्राधिकार नहीं है, क्‍योंकि वाद का कारण गाजियाबाद जहां पर इंस्‍टीट्यूट है उत्‍पन्‍न होता है तथा अपील एवं निष्‍पादन के स्‍तर पर भी क्षेत्राधिकार के प्रश्‍न को उठाया जा सकता है। इसके अतिरिक्‍त उपभोक्‍ता संरक्षण अधिनियम के अंतर्गत किसी छात्र द्वारा अदा की गई फीस सेवा के प्रतिफल के रूप में नहीं मानी जा सकती है। इसके अतिरिक्‍त मा0 सर्वोच्‍च न्‍यायालय द्वारा हाल ही में यह निर्णीत किया गया है कि शिक्षा सेवा की श्रेणी में नहीं आती है और छात्र एवं शिक्षण संस्‍थान के मध्‍य उपभोक्‍ता व सेवा प्रदाता का सम्‍बन्‍ध नहीं माना जा सकता है। इस आधार पर दावा निरस्‍त करने एवं अपील स्‍वीकार किए की प्रार्थना की गई है।

4.        अपीलार्थीगण के विद्वान अधिवक्‍ता श्री आलोक रंजन तथा प्रत्‍यर्थी के विद्वान अधिवक्‍ता श्री मनोज कुमार सिंह को सुना गया। प्रश्‍नगत निर्णय व आदेश तथा पत्रावली पर उपलब्‍ध अभिलेखों का सम्‍यक परिशीलन किया गया।

5.        अपील में पहला प्रश्‍न यह उठाया गया है कि विद्वान जिला उपभोक्‍ता आयोग, झांसी को परिवाद की सुनवाई का क्षेत्राधिकार नहीं है। उपरोक्‍त तर्क में बल प्रतीत होता है। अपीलार्थीगण द्वारा मा0 सर्वोच्‍च न्‍यायालय द्वारा पारित निर्णय AIR 1995 सुप्रीम कोर्ट पृष्‍ठ 2001 में यह निर्णीत किया गया है कि क्षेत्राधिकार का प्रश्‍न अपीलीय अथवा किसी भी स्‍तर पर उठाया जा सकता है। प्रस्‍तुत मामले में अपीलार्थीगण/विपक्षीगण बाबू बनारसी दास इंस्‍टीट्यूट ऑफ टेक्‍नोलॉजी, गाजियाबाद में स्थित दर्शाया गया है जो परिवाद पत्र से ही स्‍पष्‍ट होता है। धारा 2(11) उपभोक्‍ता संरक्षण अधिनियम, 1986 यह प्रदान करता है कि या तो अपीलार्थीगण/विपक्षीगण के कार्य के स्‍थान पर अथवा जहां पर वह लाभ के लिए व्‍यवसाय करता हो वाद लाया जा सकता है अथवा जहां वाद का कारण उत्‍पन्‍न होता है वहां वाद लाया जा सकता है। स्‍पष्‍ट रूप से अपीलार्थीगण अर्थात परिवाद के विपक्षीगण का इंस्‍टीट्यूट गाजियाबाद में स्थित है जिसे प्रत्‍यर्थी/परिवादी ने स्‍वयं स्‍वीकार किया है। इसके अतिरिक्‍त प्रत्‍यर्थी/परिवादी ने अपने परिवाद पत्र में यह भी स्‍वीकार किया है कि उसके द्वारा गाजियाबाद में इंस्‍टीट्यूट में प्रवेश लिया गया तथा फीस भी गाजियाबाद में ही जमा की गई जिससे वाद का कारण भी गाजियाबाद में उत्‍पन्‍न होना स्‍वयं परिवाद से स्‍पष्‍ट होता है, अत: धारा 2(11) के अनुसार वाद गाजियाबाद में योजित किया जा सकता है एवं विद्वान जिला उपभोक्‍ता आयोग, झांसी को उपभोक्‍ता संरक्षण अधिनियम, 1986 जो इस मामले पर लागू है के अनुसार वाद का क्षेत्राधिकार नहीं है।

6.        अपीलार्थीगण/विपक्षीगण द्वारा दूसरा तर्क यह लिया गया है कि छात्र एवं शिक्षा संस्‍थान के मध्‍य उपभोक्‍ता एवं सेवा प्रदाता के सम्‍बन्‍ध नहीं होते हैं तथा छात्र उपभोक्‍ता की श्रेणी में नहीं आता है, क्‍योंकि छात्र एवं शिक्षा संस्‍थान के मध्‍य विवाद उपभोक्‍ता संरक्षण अधिनियम के अंतर्गत पोषणीय नहीं है।

7.        इस सम्‍बन्‍ध में वर्तमान प्रचलित विधि के अनुसार मा0 राष्‍ट्रीय आयोग द्वारा पारित निर्णय मनु सोलंकी व अन्‍य बनाम विनायक यूनिवर्सिटी प्रकाशित I(2020) C.P.J. पेज 210 उल्‍लेखनीय है। इस सम्‍बन्‍ध में मा0 राष्‍ट्रीय आयोग द्वारा यह निर्णीत किया गया है कि छात्र एवं शिक्षा संस्‍थान के मध्‍य सम्‍बन्‍ध के लिए वाद उपभोक्‍ता संरक्षण अधिनियम के अंतर्गत नहीं लाया जा सकता है। प्रत्‍यर्थी/परिवादी विधिनुसार उचित न्‍यायालय में अपना वाद प्रस्‍तुत कर सकता है।

8.        उपरोक्‍त निर्णय को दृष्टिगत करते हुए भी यह वाद उपभोक्‍ता संरक्षण अधिनियम के अंतर्गत पोषणीय नहीं है। विद्वान जिला उपभोक्‍ता आयोग द्वारा क्षेत्राधिकार से बाहर जाकर यह निर्णय पारित किया गया है जो अपास्‍त होने योग्‍य है तथा अपील स्‍वीकार किए जाने योग्‍य है।   

                          आदेश

9.        अपील स्‍वीकार की जाती है। प्रश्‍नगत निर्णय व आदेश अपास्‍त किया जाता है तथा प्रत्‍यर्थी/परिवादी का परिवाद खारिज किया जाता है। प्रत्‍यर्थी/परिवादी अपना मामला उचित न्‍यायालय में उठा सकता है।            ‍              

          अपील में उभयपक्ष अपना-अपना वाद व्‍यय स्‍वयं वहन करेंगे।

          अपील में धारा 15 उपभोक्‍ता संरक्षण अधिनियम के अंतर्गत अपीलार्थीगण द्वारा जमा धनराशि अर्जित ब्‍याज सहित इस निर्णय व आदेश के अनुसार अपीलार्थीगण को वापस की जाए।          

          आशुलिपिक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस निर्णय/आदेश को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दें।

                            

   (विकास सक्‍सेना)                             (डॉ0 आभा गुप्‍ता)           

       सदस्‍य                                       सदस्‍य           

 

शेर सिंह, आशु0,

कोर्ट नं0-3

 

 
 
[HON'BLE MR. Vikas Saxena]
PRESIDING MEMBER
 
 
[HON'BLE MRS. DR. ABHA GUPTA]
MEMBER
 

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