Uttar Pradesh

Faizabad

CC/124/01

B.B SINGH - Complainant(s)

Versus

ARUN KUMAR - Opp.Party(s)

16 Oct 2015

ORDER

DISTRICT CONSUMER DISPUTES REDRESSAL FORUM
Judgement of Faizabad
 
Complaint Case No. CC/124/01
 
1. B.B SINGH
SAKIN SIDHHIR NARSINGHPUR PO. PAR. MANGALASI TEH SOHAWAL DIS FZD
...........Complainant(s)
Versus
1. ARUN KUMAR
MAIN BRANCH FAIZABAD
............Opp.Party(s)
 
BEFORE: 
 HON'BLE MR. JUSTICE MR. CHANDRA PAAL PRESIDENT
 HON'BLE MRS. MAYA DEVI SHAKYA MEMBER
 HON'BLE MR. VISHNU UPADHYAY MEMBER
 
For the Complainant:
For the Opp. Party:
ORDER

जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष फोरम फैजाबाद ।

 

उपस्थित -     (1) श्री चन्द्र पाल, अध्यक्ष
        (2) श्रीमती माया देवी शाक्य, सदस्या
(3) श्री विष्णु उपाध्याय, सदस्य

              परिवाद सं0-   124 /2001

भगवान बक्ष सिंह आयु करीब 68 वर्श पुत्र श्री महादेव सिंह साकिन ग्राम सिडहिर नरसिंहपुर पोस्ट-सिड़हिर नरसिंहपुर परगना मंगलसी तहसील सोहावल जिला फैजाबाद। 
                                                              .................वादी
               
बनाम
1.    अरूण कुमार पाण्डेय कैषियर स्टेट बैंक आँफ इण्डिया मुख्य षाखा फैजाबाद षहर व जिला- फैजाबाद।
2.    स्टेट बैंक आँफ इण्डिया मुख्य षाखा फैजाबाद षहर व जिला फैजाबाद द्वारा षाखा प्रबन्धक।                                           ............... विपक्षीगण
निर्णय दिनाॅंक 16.10.2015            
उद्घोषित द्वारा: श्रीमती माया देवी षाक्य, सदस्या।
                        निर्णय
    परिवादी के परिवाद का संक्षेप इस प्रकार है कि परिवादी प्राइमरी पाठषाला का अवकाष प्राप्त पेन्षन भोगी कर्मचारी तथा मुख्य पेषा कृशि है और सम्पन्न व्यक्ति है। विपक्षी नं01 स्टेट बैंक इण्डिया मुख्य षाखा षहर फैजाबाद में बतौर कैषियर के पद पर नियुक्त है। स्टेट बैंक के कर्मचारीगण परिवादी के गाँव में कैम्प लगाए थे और दिनंाक 24-08-2001 को इन कर्मचारियों ने रूपये 75,000/- सी0सी0 एकाउन्ट परिवादी के नाम खोला था और कहा कि बैंक में आकर अपने सी0 सी0 एकाउन्ट से कुछ लोन ले लो और खाता चालू हो जाय बाद में पासबुक किसी दिन कैम्प में ही दे देगें। परिवादी को अभी तक पास बुक नहीं प्रदान की गयी। कर्मचारियों के कहने पर परिवादी दिनंाक 24-08-2001 को ही स्टेट बेैंक फैजाबाद में गया, रूपये 20,000/- का विदड्राल फार्म परिवादी के सी0 सी0 एकाउन्ट से परिवादी के नाम अधिकारियों ने भर कर और उस पर परिवादी का हस्ताक्षर कराकर उपरोक्त बैंक में उक्त फार्म को जमा किया और परिवादी को एक टोकन उक्त धनराषि को निकालवाने हेतु दिया जिसका नं0 1 था, विपक्षी नं01 ने काउन्टर पर पूछा कि कितना रूपया निकाल रहे हो इस पर परिवादी ने कहा कि रूपये 20,000/- निकाल रहा हूँ, इतने में विपक्षी नं01 ने दस दस रूपये की दो गड्डी सौ-सौ नोटों की परिवादी को दिया, उसे देखकर परिवादी ने काउन्टर पर ही विपक्षी नं0 1 से कहा कि उक्त रूपया तो दो हजार ही है, इस पर विपक्षी नं0 1 ने काउन्टर बन्द करते हुए आवेष में आकर कहा कि मैंने पूरा रूपया दे दिया और काउन्टर बन्द करके विपक्षी नं0 1 बैंक के अन्दर चला गया। परिवादी को जब टोकन मिला था तो उक्त प्रकार के लोन के मामले से सम्बन्धित छः टोकन अन्य कृशकों को भी जारी किया गया था और परिवादी के टोकन को लेकर सभी टोकेन नं0 1 से 7 नम्बर तक थे और सभी सातों टोकन विपक्षी नं0 1 के पास साथ-साथ जमा हुए थे, परन्तु विपक्षी नं0 1 अखिरी टोकेन यानी नं0 7 के टोकेन से पेमेन्ट करना षुरू किया और इस तरह परिवादी को सबके अन्त में उक्त पेमेन्ट किया। परिवादी बेैंक के अन्दर गया ताकि परिवादी बैंक मेैनेजर से मिलकर सारी बात बतावे परन्तु बैंक के बड़े मैनेजर नहीं थे और छोटे मैनेजर साहब मिले उनसे सारी बातें बताई। छोटे मैनेजर ने विपक्षी नं0 1 को अपने पास बुलाया परन्तु विपक्षी नं0 1 करीब आधे धण्टे के बाद आया। मैनेजर साहब ने उक्त मामले में सारी बातें उनसे पूँछी तो विपक्षी नं0 1 ने बताया कि उसने रूपये 20,000/- सोै-सौ रूपये की नोटों की दो गड्डियाँ प्रत्येक रूपये दस दस हजार रूपये की धनराषि परिवादी को दिया है। विपक्षी नं0 1 ने अपनी कुमंषा से सारी सच्चाई को पी गया और परिवादी को गन्दी-गन्दी गाली व धमकी भी दिया। घटना के बारे में परिवादी स्थनीय थाना कोतवाली नगर फैजाबाद में रिपोर्ट करने उसी दिन गया परन्तु वहाँ के पुलिस के लोग हीला हवाली करने लगे परिवादी ने उच्चअधिकारियों से सम्पर्क किया तब स्थनीय पुलिस ने दिनंाक 27-08-2001 को परिवादी की रिपोर्ट विपक्षी नं01 के विरूद्व धारा-406, 420, 504, 506 भा0 द0 वि0 के अन्र्तगत अपराघ संख्या 2055/2001 पर अंकित की, विपक्षी नं0 1 ने परिवादी को धनराषि रूपये 2000/- दिया है वह बैंक से सील, मुहर व हस्ताक्षरित है। जिसे परिवादी उसी हालत में अपने पास साक्ष्य हेतु रखे हुए है और उन गडिडयों के ऊपर के भाग की छाया प्रति परिवादी वाद पत्र के साथ संलग्न कर रहा है जो विपक्षी नं0 1 ने धोखा दिया है, बीस हजार रूपये न देकर केवल दो हजार रूपये ही भुगतान किया है। परिवादी को विपक्षीगण से भुगतान षुदा रूपये 18,000/- तथा रूपये 50,000/- क्षतिपूर्ति दिलाया जाए। 
    विपक्षी संख्या 1 ने अपना षपथ पत्र प्रस्तुत किया तथा कथित किया है कि भारतीय स्टेट बैंक की फैजाबाद षाखा में दिनांक 24-08-2001 को कैषियर के पद पर तैनात था। दिनंाक 24-08-2001 को परिवादी की डयूटी काउन्टर नम्बर 1 जो बैंक पेमेन्ट का काउन्टर होता है पर थी। रूपये 17,30,000/- भुगतान हेतु कार्य प्रारम्भ होने पर हैड कैषियर द्वारा प्राप्त कराया गया था। दिनंाक 24-08-2001 को भगवान बक्ष सिंह टोकन नम्बर 1 लाकर दिये थे जिनका विड्राल बाउचर रुपये 20,000/- भुगतान करने हेतु प्राप्त हुआ था, 
टोकन देने पर उत्तरदाता ने रूपये 20,000/- का भुगतान परिवादी को देकर विड्राल बाउचर के पीछे उनके हस्ताक्षर प्राप्त किये थे। परिवादी को रूपये 100/- के दो पैकेट जिनमें प्रत्येक में 100-100 पीस थे, यानि 10-10 हजार की दो गड्डी प्राप्त करायी थी। भगवान बक्ष सिंह भुगतान पाकर काउन्टर से चले गये थे। भुगतान प्राप्त करने के लगभग आधे बाद भगवान बक्ष सिंह ने षिकायत किया कि उन्हें बीस हजार के स्थान पर केवल रूपये 2,000/- का भुगतान किया गया है। षिकायत पर हैड कैषियर श्री एस0 के0 सक्सेना द्वारा उत्तरदाता की तलाषी लेकर काउन्टर न0 1 से बाहर कर दिया था और उत्तरदाता के नोट एवम् अभिलेखों की जाँच किया था, जाँच में उत्तरदाता के काउन्टर नं0 1 पर कोई गड़बडी़ नहीं पायी गयी थी, कैष भी बढ़ा हुआ नहीं पाया गया था। भगवान बक्ष सिंह की षिकायत पर पूरी जाँच की गयी और उत्तरदाता से भी पँूछतँाछ की गयी थी। भगवान बक्ष सिंह का यह कथन कि उन्हें 10-10 के नोट के दो पैकेट दिये गये थे एकदम गलत है, उत्तरदाता को फंसाने की गरज से एकदम झूठी बात कही गयी है। वास्तव में भगवान बक्ष सिंह को 100-100 के नांेटों की दो पैकेट दिये थे। जिसका इन्द्राज भी, भुगतान रजिस्टर में उसी समय उत्तरदाता ने किया था। भगवान बक्ष सिंह ने उत्तरदाता के नाम थाना कोतवाली में एफ0 आई0 आर0 दर्ज करायी थी जिस रिपोर्ट पर पुलिस द्वारा विवेचना की गयी थी और तथ्यों को असत्य पाने पर पुलिस ने फाइनल रिपोर्ट लगा दिया है। भगवान बक्ष का यह कथन कि सातों टोकन एक साथ ले लिये थे और सबको अलग-अलग भुगतान किये और सबसे बाद में भगवान सिंह को भुगतान किया यह सही नहीं है। भुगतान के नियमानुसार काउन्टर पर भुगतान प्राप्त करने वालों की लाइन लगी रहती है और एक एक कर सभी भुगतान प्राप्त करने वाले टोकन देते हैं और बाउचर पर लिखी हुयी धनराषि को प्राप्त करके बाउचर के पीछे अपना हस्ताक्षर करते हैं। भगवान बक्ष से उत्तरदाता की किसी प्रकार की कोई रंजिष नहीं है, रंजिष की बात एकदम गलत है। दर असल भगवान बक्ष सिंह झँूठा आरोप लगाकर बैंक से अनुचित रूप से रुपया प्राप्त करना चाहते थे। भगवान बक्ष सिंह ने अपनी कपोल, कलपित झूठी घटना को नया रूप देने हेतु जो झूठे तथ्य कहे हैं सब गलत हैं। 
    विपक्षी संख्या 2 ने अपना उत्तर पत्र प्रस्तुत किया तथा कथित किया है कि परिवादी कृशक है यह स्वीकार है, विपक्षी संख्या 1 उत्तरदाता बैंक की फैजाबाद षाखा में कैषियर के पद पर तैनात है। परिवादी द्वारा एक प्रथम सूचना रिपोर्ट दिनंाक 27-08-2001 को अपराध संख्या 2055 सन् 2001 विपक्षी संख्या 1 के विरूद्व अन्तर्गत धारा- 406, 420, 504 व 506 भा0 द0 वि0 के अन्र्तगत दर्ज करायी है, जो दिनंाक 27-08-2001 को 16ः30 बजे अंकित की गयी है, दिनंाक 24-08-2001 को उत्तरदाता विपक्षी बैंक में काउन्टर कैषियर द्वारा उक्त धन का भुगतान ही किया गया है। परिवादी को किसान के्रडिट कार्ड के माध्यम से ऋण साख सीमा कृशि कार्य हेेतु उत्तरदाता की फैजाबाद षाखा से रूपये 75,000/- का 24-08-2001 को स्वीकृत किया गया है, जिसका खाता नम्बर 01670081231 है, प्रथम भुगतान लेने हेतु परिवादी ने रूपये 20,000/- का आहरण फार्म भरा जिसे उत्तरदाता के उपप्रबन्धक कृशि द्वारा पास कर भुगतान हेतु भेज दिया गया था। कैष काउन्टर पर दिनंाक 24-08-2001 को अरुण कुमार पाण्डेय कैषियर तैनात थे। दिनांक 24.08.2001 को कैष काउन्टर पर कुछ कहा सुनी हुई जिस पर भगवान बक्ष सिंह ने हेड कैषियर एस0 के0 सक्सेना व उपप्रबन्धक कैष को सूचित किया कि उन्हें 20,000/- के स्थान रूपये 2,000/- का भुगतान किया गया है। उक्त तथ्य के संज्ञान में आते ही तुरन्त उपप्रबन्धक कैष द्वारा अरूण कुमार पाण्डेय के कैष काउन्टर के संव्यवहार को बन्द करा दिया तथा उक्त कैषियर अरूण कुमार पाण्डेय के कैष की तुरन्त ही जाँच श्री सक्सेना द्वारा की गयी, जिसमें दिनंाक 24-08-2001 को कैषियर अरूण कुमार पाण्डेय द्वारा की गयी प्राप्तियाँ एवं भुगतान की जाँच गयी तो श्री सक्सेना उपप्रबन्धक केैष को अरूण कुमार पाण्डेय की प्राप्तियाँ एवं भुगतान में कोई त्रृटि नहीं पायी गयी और पेमेन्ट रजिस्टर में भी परिवादी श्री भगवान बक्ष सिंह को 100-100 रूपये डिनांमिनेषन के दो पैकेट भुगतान में दिये गये थे, यह तथ्य उपप्रबन्धक कैष द्वारा भगवान बक्ष को बता भी दिया गया था, जिसके बावजूद भी भगवान बक्ष ने मुख्य प्रबन्धक कार्यवाहक से षिकायत किया था और भगवान बक्ष सिंह की षिकायत पर तुरन्त ही कैषियर एवं उपप्रबन्धक कैष से पूछताँछ की गयी तो भगवान बक्ष सिंह द्वारा लगाये गये आरोप असत्य पाये गये। उत्तरदाता ने विवेचनाधिकारी को भगवान बक्ष सिंह द्वारा दिये गये विद्डाल फार्म की प्रमाणित छायाप्रति दिनंाक 28-08-2001 को ही उपलब्ध करा दी थी। परिवादी द्वारा लगाये गये आरोप कपोल कल्पित मनगंढत व निराधार हैं। जिसे परिवादी बैंक द्वारा दी गयी रकम को विवादित बनाने की कूट रचना कर रहा है। दो गडिडयों की छाया प्रतियां परिवाद पत्र के साथ संलग्न करने से किसी प्रकार से यह नहीं प्रमाणित होता है कि उक्त गडिडयों का भुगतान दिनंाक 24-08-2001 को प्रष्नगत विद्ड्राल के एवज में प्राप्त कराया गया था। बैंक द्वारा प्रदान की गयी सेवाओं में किसी भी प्रकार की त्रृटि नहीं की गयी हैै। परिवादी द्वारा उठाया गया बिन्दु ही अपराध सं0 2055 सन् 2001 में सन्निहित है, जिस कारण भी प्रस्तुत परिवाद न्यायालय श्रीमान जिला फोरम के समक्ष चलने योग्य नहीं है। परिवादी द्वारा प्रस्तुत वाद के एक कम्प्लीकेटेड प्रष्न को उठाया है, जिसका विचारण न्यायालय जिला फोरम के समक्ष नहीं हो सकता है। परिवादी का परिवाद निरस्त किये जाने योग्य है।
    पत्रावली का भली भाँति परिषीलन किया। परिवादी एवं विपक्षी द्वारा दाखिल प्रपत्रों व साक्ष्यों का अवलोकन किया। परिवादी ने अपने पक्ष के समर्थन में प्रथम सूचना रिपोर्ट की छाया प्रति दाखिल की है। परिवादी ने ऐसा कोई प्रमाण या साक्ष्य इस तथ्य का दाखिल नहीं किया है, कि परिवादी को रूपये 100 - 100 के नोट के स्थान पर रूपये 10/- के नोंटों के पैकेट दिये गये थे। प्रथम सूचना रिपोर्ट के तथ्य परिवादी के कथन को प्रमाणित नहीं करते है, कि रूपये 100 - 100 के नोटों के स्थान पर रूपये 10 के नोटों के पैकेट दिये गये थे। विपक्षी बैंक ने भी कैष वितरण के लेजर व परिवादी के बाउचर की छाया प्रतियाँ दाखिल नहीं की हैं, बैंक ने नोटों के सम्बन्ध में अपनी कोई जाँच रिपोर्ट दाखिल नहीं की है। परिवादी के कथन दाखिल साक्ष्यों व प्रपत्रों से प्रमाणित नही होते हैं। जब कि दोनों विपक्षीगणों ने परिवादी के आरोपों से इन्कार करते हुये अपने षपथ पत्र दाखिल किये हंै। परिवादी अपना प्रमाणित करने में असफल रहा है। विपक्षी बैंक ने अपनी सेवा में कोई कमी नहीं की है। परिवादी का परिवाद खारिज किये जाने योग्य है
आदेश
परिवादी का परिवाद खारिज किया जाता है।  
          (विष्णु उपाध्याय)         (माया देवी शाक्य)             (चन्द्र पाल)              
              सदस्य                  सदस्या                    अध्यक्ष      
निर्णय एवं आदेश आज दिनांक 16.10.2015 को खुले न्यायालय में हस्ताक्षरित एवं उद्घोषित किया गया।

          (विष्णु उपाध्याय)         (माया देवी शाक्य)             (चन्द्र पाल)           
              सदस्य                  सदस्या                    अध्यक्ष

 
 
[HON'BLE MR. JUSTICE MR. CHANDRA PAAL]
PRESIDENT
 
[HON'BLE MRS. MAYA DEVI SHAKYA]
MEMBER
 
[HON'BLE MR. VISHNU UPADHYAY]
MEMBER

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