मौखिक
राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ०प्र० लखनऊ
अपील संख्या- 2487/2003
अखिलेश कुमार अग्रवाल बनाम मै0 अग्रवाल मोटर्स घण्टाघर व एक अन्य
एवं अपील संख्या- 2488/2003
अखिलेश कुमार अग्रवाल बनाम मै0 अग्रवाल मोटर्स घण्टाघर व एक अन्य
दिनांक: 29.05.2023
माननीय सदस्य श्री विकास सक्सेना द्वारा उदघोषित
प्रस्तुत अपील संख्या-2488/2003 अपीलार्थी अखिलेश कुमार की ओर से विद्वान जिला आयोग, हरदोई द्वारा परिवाद संख्या- 95/1996 (अखिलेश कुमार अग्रवाल बनाम मैसर्स अग्रवाल मोटर्स व दो अन्य) एवं अपील संख्या-2487/2003 अखिलेश कुमार अग्रवाल द्वारा परिवाद संख्या- 207/1996 (अखिलेश कुमार अग्रवाल बनाम मैसर्स अपोलो टायर्स लि0 दो अन्य) में पारित निर्णय एवं आदेश दिनांक- 28-02-2003 के विरूद्ध योजित की गयी हैं।
प्रस्तुत अपील में उभय-पक्ष एक ही हैं अत: जिला आयोग द्वारा
एक ही निर्णय के द्वारा दोनों परिवाद निरस्त किये गये हैं जिनसे क्षुब्ध होकर उपरोक्त दोनों अपीलें इस आयोग के सम्मुख योजित की गयी हैं।
अपील की सुनवाई के समय अपीलार्थी की ओर से विद्वान अधिवक्ता श्री विकास अग्रवाल उपस्थित हुए। प्रत्यर्थी की ओर से कोई उपस्थित नहीं हुआ है।
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पीठ द्वारा अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता के तर्क को सुना गया तथा पत्रावली पर उपलब्ध समस्त प्रपत्रों का सम्यक परिशीलन किया गया।
अपील में मुख्य रूप से यह आधार लिये गये हैं कि परिवादी द्वारा क्रय किये गये टायर तथा ट्यूब गारण्टी अवधि में ही क्षतिग्रस्त हो गये। विद्वान जिला आयोग ने इस आधार पर परिवाद खारिज कर दिया है कि वाहन में टायर और ट्यूब का प्रयोग व्यावसायिक उद्ददेश्य से किया जा रहा था। परिवादी द्वारा यह ट्रक अपने जीविकोपार्जन के उद्देश्य से नहीं लिया गया था। जिला आयोग ने परिवादी द्वारा प्रस्तुत शपथ-पत्र का संज्ञान नहीं लिया तथा साक्ष्यों पर पर भी ध्यान नहीं दिया है। इसी आधार पर यह अपील योजित की गयी है।
परिवादी का मुख्य रूप से यह कथन है कि क्रय किये गये टायर गारण्टी अवधि में ही क्षतिग्रस्त हो गये। विद्वान जिला आयोग ने माननीय राष्ट्रीय आयोग द्वारा एस०पट्टबिरामन बनाम एस०पी० सेंटपालानीअप्पन का विनिर्णय 1994 सी०पी०जे० पृष्ठ 40 (एन०सी०) के आधार पर परिवाद खारिज किया है।
प्रश्नगत टायर का प्रयोग परिवादी ने व्यावसायिक बस में किया है, इस प्रकार टायर का प्रयोग व्यावसायिक रूप में हुआ था। अत: धारा- 2(1) (डी) के अन्तर्गत परिवाद उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 के अपवर्धन के आधार परिवादी द्वारा उक्त टायरों का व्यावसायिक उपयोग किया जाना उपभोक्ता के रूप में नहीं माना जा सकता है। विद्वान जिला आयोग द्वारा पारित निर्णय एवं आदेश के उक्त तर्क में बल प्रतीत होता है।
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स्वयं परिवादी ने परिवाद पत्र के प्रथम प्रस्तर में ही यह तथ्य अंकित किया है कि परिवादी ने अपनी बस जिसमें टायर प्रयोग किये गये पंजीयन संख्या– यू०पी० डी० 11 हरदोई से लोनार रोड पर चलती थी। उक्त अभिकथन से यह स्पष्ट है कि बस में जो टायर प्रयोग किये गये उसका व्यावसायिक उपयोग हो रहा था। इस प्रकार टायर का व्यावसायिक प्रयोग होना माना जा सकता है। अत: जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा पारित निर्णय एवं आदेश उचित प्रतीत होता कि उक्त टायरों को व्यावसायिक उद्देश्य से ही क्रय किया गया था।
अपीलार्थी ने यह तर्क प्रस्तुत किया कि विद्वान जिला आयोग ने इस तथ्य पर विचार नहीं किया कि परिवादी ने अपने जीविकोपार्जन के उद्देश्य से स्वरोजगार हेतु बस क्रय किया था।
अपीलार्थी का उपरोक्त तर्क मानने योग्य नहीं है क्योंकि परिवाद पत्र के अवलोकन से यह स्पष्ट होता है कि परिवाद पत्र में कहीं पर भी परिवादी ने इस तथ्य का उल्लेख साक्ष्यों द्वारा साबित नहीं किया है कि वह अपने जीविकोपार्जन के उद्देश्य से स्वरोजगार हेतु बस में उक्त टायरों का प्रयोग कर रहा था। इस सम्बन्ध में माननीय राष्ट्रीय आयोग द्वारा शिखा बिड़ला बनाम डी०एल०एफ० रिटेलर्स में प्रकाशित । (2013) सी०पी०जे० पृष्ठ 665 का उल्लेख करना उचित होगा जिसमें माननीय राष्ट्रीय आयोग द्वारा यह निर्णीत किया गया है कि धारा- 2(1) (डी) के अन्तर्गत परिवाद उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अपवर्जन का लाभ लेने के लिए परिवादी को स्पष्ट रूप से यह
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उल्लिखित करना होगा कि वह क्रय की गयी वस्तु अथवा सेवाओं का प्रयोग अपने जीविकोपार्जन हेतु स्वरोजगार के उद्देश्य से कर रहा था।
माननीय राष्ट्रीय आयोग द्वारा दिये निर्णय का उल्लेख परिवादी द्वारा अपने परिवाद पत्र में कहीं नहीं किया गया है, अत: यह नहीं माना जा सकता है कि परिवादी द्वारा उपरोक्त टायरों का प्रयोग स्वरोजगार के उद्देश्य से जीविकोपार्जन हेतु किया जा रहा था। अत: इस मामले में जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा दिया गया निष्कर्ष उचित प्रतीत होता है कि क्रय किये गये टायरों का प्रयोग व्यावसायिक उद्देश्य से किया जा रहा था।
जहॉं तक बस का प्रश्न है परिवादी द्वारा मात्र यह कथन किया गया कि प्रश्नगत टायर गारण्टी अवधि में ही क्षतिग्रस्त हो गये थे इसलिए यह उपधारणा लिया जाना कि टायरों में निर्माण संबंधी कोई दोष था उचित नहीं माना जा सकता है।
इस सम्बन्ध में मर्चेण्ट इंश्योरेंश ग्रुप की वेबसाइट में यह उल्लिखित किया गया है कि टायरों के क्षतिग्रस्त होने के विभिन्न कारण हो सकते हैं, जैसे हवा का दबाव उचित न होना, टायरों का प्रयोग किया जाने वाला वाहन जिस मार्ग पर चलता है उसकी दशा भी टायरों को प्रभावित करती है। इसके अतिरिक्त ओवरलोडिंग के कारण अत्यधिक ऊष्मा उत्पन्न होती है जिसके कारण भी टायर प्रभावित होते हैं। इस प्रकार उपरोक्त कारणों में टायरों को क्षतिग्रस्त होने का अनदेशा बना रहता है।
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परिवादी द्वारा यह भी साबित नहीं किया गया कि प्रश्नगत टायरों में पूर्व से ही निर्माण संबंधी दोष होने के कारण टायर गारण्टी अवधि में ही क्षतिग्रस्त हो गये।
उपरोक्त सम्पूर्ण तथ्यों एवं परिस्थितियों पर विचार करने के उपरान्त हम इस मत के हैं कि विद्वान जिला आयोग ने तथ्यों को उचित ढंग से विश्लेषित करते हुए निर्णय एवं आदेश पारित किया है जिसमें किसी हस्तक्षेप की आवश्यक नहीं है, तदनुसार प्रस्तुत दोनों ही अपीलें निरस्त किये जाने योग्य हैं।
आदेश
प्रस्तुत दोनों अपीलें निरस्त की जाती है। विद्वान जिला आयोग द्वारा पारित निर्णय एवं आदेश की पुष्टि की जाती है।
प्रस्तुत अपील में अपीलार्थी द्वारा यदि कोई धनराशि जमा की गयी हो तो उक्त जमा धनराशि अर्जित ब्याज सहित जिला आयोग को यथाशीघ्र विधि के अनुसार वापस की जाए।
आशुलिपिक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस निर्णय/आदेश को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दें।
(विकास सक्सेना) (सुधा उपाध्याय)
सदस्य सदस्य
कृष्णा–आशु0 कोर्ट नं0 3