राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ
परिवाद संख्या- 61/2016
(सुरक्षित)
Smt. Mustari Begum D/o Mohammad Ayub Khan R/o 7 Teji Khera Lalkothi Parisar P.O. Manak Nagar Lucknow-226001
..............परिवादिनी
बनाम
- Ansal Properties ans Infrastructure Ltd. Having its Local Office at Ground Floor YMCA Campus, 13, Rana Pratap Marg, Lucknow, through its authorized signatory.
- Ansal Properties ans Infrastructure Ltd. Having its Registered Office at 115, Ansal Bhawan, 16 Kasturba Gandhi Marg, New Delhi through its Managing Director. ..........विपक्षीगण
समक्ष:-
1. माननीय न्यायमूर्ति श्री अख्तर हुसैन खान, अध्यक्ष।
अपीलार्थी की ओर से उपस्थित : श्री मनीष जौहरी ।
विद्वान अधिवक्ता ।
प्रत्यर्थी की ओर से उपस्थित : श्री विकास कुमार।
विद्वान अधिवक्ता ।
दिनांक:
मा0 न्यायमूर्ति श्री अख्तर हुसैन खान, अध्यक्ष द्वारा उदघोषित
निर्णय
परिवादिनी श्रीमती मुस्तरी बेगम ने वर्तमान परिवाद धारा-17 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अन्तर्गत विपक्षीगण अन्सल प्रापर्टीज एण्ड इन्फ्रास्ट्रक्चर लि0 द्वारा आथराइजड सिगनेटरी और अन्सल प्रापर्टीज एण्ड इन्फ्रास्ट्रक्चर लि0 द्वारा मैनेजिंग डायरेक्टर के विरूद्ध प्रस्तुत किया है।
परिवाद पत्र के अनुसार परिवादिनी का कथन है कि उसने व उसकी माता होतियम बीबी ने विपक्षीगण द्वारा प्रकाशित विज्ञापन के आधार पर उनकी सुशान्त गोल्फ सिटी हाइटेक टाउनशिप योजना में प्लाट के आवंटन हेतु बुकिंग अमाउंट 5,52,000/-रू0 जमा कर दिनांक 05.10.2011 को बुकिंग की। उसके बाद परिवादिनी व उसकी माता को प्लाट नम्बर 102 सेक्टर-ओ पाकेट-4 में 200 स्कावयर मीटर का सुशान्त गोल्फ सिटी लखनऊ में आवंटित किया गया। जिसका कुल मूल्य 27,60,000/-रू0 था। उसके बाद परिवादिनी व उसकी माता ने दिनांक 04.12.2011 को 2,76,000/-रू0, दिनांक 02.02.2012 को 2,76,000/-रू0, और दिनांक 02.04.2012 को 2,76,000/- रू0 की तीन किस्तें विपक्षीगण को अदा की।
परिवाद पत्र के अनुसार परिवादिनी का कथन है कि विपक्षीगण ने दिनांक 31.10.2011 को उसके पक्ष में करार उपरोक्त प्लाट के आवटंन हेतु निष्पादित किया परन्तु मौके पर कोई विकास कार्य नहीं किया गया। इसके बावजूद परिवादिनी ने किस्तों का भुगतान किया और करार के अनुसार अब अगली किस्त का भुगतान WBM रोड़ के निर्माण किए जाने के समय होना था परन्तु किसी सड़क का निर्माण नहीं किया गया। अत: परिवादिनी व उसी माता ने अग्रिम किस्त का भुगतान नहीं किया।
परिवाद पत्र के अनुसार परिवादिनी का कथन है कि विपक्षीगण ने मौके पर कोई विकास कार्य नहीं किया है और योजना अपूर्ण है तथा चार साल का समय बीतने के बाद भी मौके पर कोई कार्य नहीं हो रहा है। फिर भी विपक्षीगण परिवादिनी से अवशेष धनराशि पर ब्याज की मांग करते है और ब्याज माफ करने हेतु तैयार नहीं है।
परिवाद पत्र के अनुसार परिवादिनी का कथन है कि दिनांक 11.01.2016 को उसने स्वयं साईट पर जाकर निरीक्षण किया तो यह देखकर चकित रही कि वहां पर काम बन्द है और कोई बिल्डि़ग मैटीरियल, श्रमिक या औजार मौके पर नहीं है। इसके साथ ही उसके द्वारा पता करने पर मौके पर उपलब्ध व्यक्ति ने बताया कि काम बन्द कर दिया गया है। परिवाद पत्र के अनुसार परिवादिनी का कथन है कि विपक्षीगण वर्तमान परियोजना का काम बन्द कर दूसरी जगह पर निर्माण कार्य कर रहे है और ऐसा प्रतीत होता है कि प्रश्नगत हाईटेक टाउनशिप के प्लाट का कब्जा परिवादिनी को देने की योजना नहीं रखते हैं। इस प्रकार उन्होंने परिवादिनी के साथ छल और धोखा किया है और उसके द्वारा जमा धनराशि का प्रयोग दूसरी योजना में कर रहे है। अत: परिवादिनी ने परिवाद प्रस्तुत कर अनुतोष इस आशय का चाहा है कि उसे आवंटित प्लाट पर कब्जा तीन मास में दिलाया जाए अथवा उसके द्वारा जमा धनराशि 13,80,000/-रू0 18% वार्षिक ब्याज सहित वापिस दिलायी जाए। इसके साथ ही 10,00,000/-रू0 मानसिक कष्ट हेतु क्षतिपूर्ति और 1,00,000/-रू0 वादव्यय की भी मांग की है।
विपक्षीगण दिनांक 20.04.2016 को अपने अधिवक्ता श्री अनुराग सिंह के माध्यम से उपस्थित हुए, परन्तु 45 दिन की निर्धारित समयावधि के अंदर लिखित कथन प्रस्तुत नहीं किया। विपक्षी की ओर से लिखित कथन दिनांक 24.08.2016 को प्रस्तुत किया गया जो धारा-13(2)(A) उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अन्तर्गत स्वीकार किए जाने योग्य नहीं रहा है अत: विपक्षीगण को लिखित कथन की ग्रहता के बिन्दु पर सुनवाई हेतु अवसर दिया गया, परन्तु विपक्षीगण की ओर से लिखित कथन विलम्ब माफी प्रार्थना पत्र के साथ प्रस्तुत नहीं किया गया है और न ही लिखित कथन ग्रहण किए जाने पर बल ही दिया गया।
परिवादिनी ने परिवाद पत्र के कथन के समर्थन में शपथ पत्र व अभिलेख प्रस्तुत किया है। विपक्षीगण की ओर से कोई साक्ष्य प्रस्तुत नहीं किया गया है।
परिवादिनी की ओर से विद्वान अधिवक्ता श्री मोहित जौहरी के सहायक अधिवक्ता श्री मोहम्मद रफी खान और विपक्षीगण की ओर से विद्वान अधिक्ता श्री विकास कुमार उपस्थित आए है।
मैंने उभयपक्ष के तर्क को सुना है और पत्रावली का अवलोकन किया है।
परिवादिनी की ओर से शपथ पत्र उद्धतरण खतौनी और श्रीमती होतियम बीबी के मृत्यु प्रमाण पत्र के साथ प्रस्तुत किया गया है जिससे यह स्पष्ट है कि श्रीमती होतियम बीबी की मृत्यु हो चुकी है और उनकी एकमात्र वारिस परिवादिनी श्री मुश्तरी बेगम है। करार दिनांकित 31.10.2011 (PLOT BUYER AGREEMENT) के प्रस्तर-2 में प्राविधान है कि आवंटित प्लाट का भुगतान SCHEDULE-1/ SCHEDULE-1 A जो AGREEMENT के साथ संलग्न है के अनुसार किस्तों में किया जाएगा। करार पत्र के साथ संलग्न SCHEDULE-1 A में आवंटित प्लाट का बेसिक सेल प्राइस 27,60,000/-रू0 अंकित है और इसका भुगतान DEVELOPMENT LINKED INSTALLMENT PLAN के अनुसार होना है जिसके अनुसार 5,52,000/-रू0 एलाटमेंट के समय दिया जाना है और एलाटमेंट के 2 महीने के अन्दर दूसरी किस्त 2,76,000/- रू0 की दी जानी है। उसके 2 मास के बाद तीसरी किस्त 2,76,000/- रू0 की दी जानी है और पुन: 2 माह बाद चौथी किस्त 2,76,000/- रू0 की अदा होनी है। उसके बाद 5वी किस्त WBM रोड़ बनाए जाने के समय 2,76,000/- रू0 की अदा होनी है। उल्लेखनीय है कि DEVELOPMENT LINKED INSTALLMENT PLAN के अनुसार उपरोक्त प्रथम किस्त बेसिक सेल प्राइस का 20% है और दूसरी से आठवी किस्त बेसिक सेल प्राइस का 10% है। जबकि 9 वी और 10 वी किस्त बेसिक सेल प्राइस का 5% है। आवंटित करार के साथ संलग्न पेमेन्ट प्लान से यह स्पष्ट है कि पांचवी किस्त WBM रोड़ के निर्माण के समय देय है। परिवादिनी के अनसार अबतक विपक्षीगण ने WBM रोड़ का निर्माण प्रारम्भ नहीं किया है। विपक्षीगण की ओर से ऐसा कोई साक्ष्य या अभिलेख प्रस्तुत नहीं किया गया है जिसके आधार पर यह कहा जा सके कि विपक्षीगण ने अपनी प्रश्नगत योजना में WBM रोड़ का निर्माण किया है और उसके बाद परिवादिनी ने देय किस्त का भुगतान नहीं किया है। अत: पत्रावली पर उपलब्ध साक्ष्यों के आधार पर यह स्पष्ट होता है कि परिवादिनी ने एलाटमेंट करार के अनुसार एलाटमेंट करार के साथ संलग्न पेमेंट प्लान के अनुसार किस्तों का भुगतान समय से किया है और उसने किस्तों के भुगतान में कोई चूक नहीं की है।
विपक्षी की ओर से ऐसा कोई साक्ष्य नहीं दिखाया गया है जिसके आधार पर यह कहा जा सके कि पेमेन्ट प्लान के क्रम संख्या– 5 ता 9 के विकास कार्य आवंटित प्लाट में किए गए हैं। परिवादिनी ने शपथ पत्र प्रस्तुत कर स्पष्ट कथन किया है कि विपक्षी ने मौके पर कोई विकास कार्य नहीं किया है। आवंटन करार दिनांक 31.10.2011 को निष्पादित किया गया है और करार के अनुसार परिवादिनी ने दिनांक 02.04.2012 तक कुल 13,80,000/-रू0 अर्थात् कुल मूल्य का 50% जमा किया है। पांच साल से अधिक समय बीतने के बाद भी विपक्षी ने तयशुदा विकास कार्य पूरा कर आवंटित भूखंड का कब्जा परिवादिनी को आफर नहीं किया है। करार के बाद 50% भुगतान प्राप्त करने के बाद भी करार का पूर्ण रूपेण निष्पादन इतनी लम्बी अवधि तक रोका जाना निश्चित रूप से सेवा में त्रुटि एवं अनुचित व्यापार पद्धति है। विलम्ब का कोई सन्तोषजनक कारण विपक्षी नहीं दर्शित कर सका है। अत: सम्पूर्ण तथ्यों व परिस्थतियों एवं याचित अनुतोष पर विचार करते हुए यह उचित प्रतीत होता है कि विपक्षी को यह आदेशित किया जाए कि वह परिवादिनी को आवंटित भूखण्ड के सम्बन्ध में पेमेन्ट प्लान की पांचवी किस्त से नवीं किस्त में अंकित विकास कार्य समयबद्ध तरीके से पूराकर पेमेन्ट प्लान के अनुसार भुगतान प्राप्त करे और आवंटित भूखण्ड का कब्जा परिवादिनी को इस निर्णय की तिथि से 9 मास के अन्दर प्रदान करें तथा विक्रय पत्र निष्पादित करे। यदि इस अवधि में विपक्षी तयशुदा विकास कार्य पूराकर परिवादिनी को कब्जा हस्तगत करने में असफल रहता है तब परिवादिनी को सम्पूर्ण जमा धनराशि जमा करने की तिथि से अदायगी की तिथि तक 18% वार्षिक ब्याज की दर से उसे वापिस करने हेतु विपक्षी को आदेशित किया जाना उचित है।
परिवादिनी को और कोई अनुतोष प्रदान करने हेतु उचित आधार नहीं है।
उपरोक्त निष्कर्ष के आधार पर परिवाद आंशिक रूप से स्वीकार किया जाता है और विपक्षीगण को आदेशित किया जाता है कि वह परिवादिनी को आवंटित भूखण्ड के सम्बन्ध में पेमेन्ट प्लान की पांचवी किस्त से नवीं किस्त में अंकित विकास कार्य समयबद्ध तरीके से पूराकर पेमेन्ट प्लान के अनुसार भुगतान प्राप्त करे और आवंटित भूखण्ड का कब्जा परिवादिनी को इस निर्णय की तिथि से 9 मास के अन्दर प्रदान करें तथा विक्रय पत्र निष्पादित करे। यदि इस अवधि में विपक्षी तयशुदा विकास कार्य पूराकर परिवादिनी को आवंटित भूखंड का कब्जा हस्तगत करने में असफल रहता है तब विपक्षी, परिवादिनी को सम्पूर्ण जमा धनराशि, जमा करने की तिथि से अदायगी की तिथि तक 18% वार्षिक ब्याज की दर से ब्याज सहित अदा करेंगे।
परिवाद में उभयपक्ष अपना-अपना वादव्यय स्वयं वहन करेंगे।
(न्यायमूर्ति अख्तर हुसैन खान)
अध्यक्ष
सुधांशु आशु0
कोर्ट नं0-1