Uttar Pradesh

StateCommission

A/2011/95

Smt Saroj - Complainant(s)

Versus

Ansal Housing Construction - Opp.Party(s)

Vijay Kumar Yadav

29 Aug 2019

ORDER

STATE CONSUMER DISPUTES REDRESSAL COMMISSION, UP
C-1 Vikrant Khand 1 (Near Shaheed Path), Gomti Nagar Lucknow-226010
 
First Appeal No. A/2011/95
( Date of Filing : 18 Jan 2011 )
(Arisen out of Order Dated in Case No. of District State Commission)
 
1. Smt Saroj
a
...........Appellant(s)
Versus
1. Ansal Housing Construction
a
...........Respondent(s)
 
BEFORE: 
 HON'BLE MR. Udai Shanker Awasthi PRESIDING MEMBER
 HON'BLE MR. Gobardhan Yadav MEMBER
 
For the Appellant:
For the Respondent:
Dated : 29 Aug 2019
Final Order / Judgement

 

सुरक्षित

 

राज्‍य उपभोक्‍ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।

अपील संख्‍या-95/2011

(जिला मंच, गाजियाबाद द्वारा परिवाद संख्‍या-49/2009 में प‍ारित प्रश्‍नगत आदेश दिनांक 15.11.2010 के विरूद्ध)

 

श्रीमती सरोज पत्‍नी श्री ओम पाल सिंह, निवासिनी-8/968, आदर्श नगर, मोदी नगर, परगना जलालाबाद, तहसील मोदी नगर, जिला गाजियाबाद।

                                   अपीलार्थी/परिवादिनी

 

बनाम

 

अंसल हाउसिंग एण्‍ड कंसट्रक्‍शन लि0, 15 यू.जी.एफ. इन्‍द्र प्रकाश 21 बाराखम्‍भा रोड, नई दिल्‍ली द्वारा जनरल मैनेजर फर्म, अबव नई दिल्‍ली।

 प्रत्‍यर्थी/विपक्षी

समक्ष:-

1. माननीय श्री उदय शंकर अवस्‍थी, पीठासीन सदस्‍य।

2. माननीय श्री गोवर्द्धन यादव, सदस्‍य।

अपीलार्थी की ओर से     : श्री विजय कुमार यादव, विद्वान अधिवक्‍ता।

प्रत्‍यर्थी की ओर से       : श्री अंकित श्रीवास्‍तव के सहयोगी अधिवक्‍ता

  श्री सुशील कुमार मिश्रा।

 

दिनांक : 13.09.2019

 

मा0 श्री उदय शंकर अवस्‍थी, पीठासीन सदस्‍य द्वारा उदघोषित

निर्णय

 

प्रस्‍तुत अपील, जिला मंच, गाजियाबाद द्वारा परिवाद संख्‍या-49/2009 में प‍ारित प्रश्‍नगत आदेश दिनांक 15.11.2010 के विरूद्ध योजित की गयी है।

संक्षेप में तथ्‍य इस प्रकार हैं कि अपीलकर्ता/परिवादिनी के कथनानुसार परिवादिनी ने प्रत्‍यर्थी की राजनगर हाउसिंग योजना सुमंगलम के अन्‍तर्गत दिनांक 19.10.1997 को 10,000/- रूपये की धनराशि नगद अदा करके रसीद संख्‍या-27000 के माध्‍यम से एलजीएफ-109 दुकान का पंजीकरण कराया था। प्रत्‍यर्थी ने बुकिंग करते समय परिवादिनी को आश्‍वस्‍त किया था कि शीघ्र ही निर्माण कार्य सम्‍पन्‍न हो जाएगा तथा कार्य पूर्ण होने पर परिवादिनी से अनुमानित कीमत नियमानुसार प्राप्‍त करके परिवादिनी को एलजीएफ-109 दुकान आवंटित कर देंगे तथा कब्‍जा दे दिया जाएगा। परिवादिनी प्रत्‍यर्थी की बातों पर विश्‍वास करके अपने घर चली गयी और अपने पति को जानकारी प्राप्‍त करने हेतु भेजा, किन्‍तु प्रत्‍यर्थी आश्‍वासन देते रहे कि उक्‍त योजना के अन्‍तर्गत दुकान अवश्‍य दी जाएगी, किन्‍तु प्रत्‍यर्थी ने परिवादिनी को कोई लिखित पत्र नहीं दिया। स्‍थानीय स्‍तर पर जानकारी प्राप्‍त हुई कि प्रत्‍यर्थी ने एलजीएफ-109 दुकान किसी अन्‍य आवंटी को आवंटित कर दी है, जिसका प्रत्‍यर्थी को कोई अधिकार नहीं है। परिवादिनी आंवटन की शर्तों के अनुसार उक्‍त योजना के अन्‍तर्गत धनराशि जमा करके कब्‍जा प्राप्‍त करने को तैयार है, किन्‍तु प्रत्‍यर्थी ने धोखा देकर षणयंत्र के तहत 10,000/- रूपये ऐंठ लिये और श्‍ोष धनराशि प्राप्‍त करके दुकान का कब्‍जा नहीं दिया और न ही परिवादिनी द्वारा जमा की गयी धनराशि मय ब्‍याज वापस की गयी। परिवादिनी द्वारा विधिक नोटिस देने पर उसका कोई जवाब नहीं दिया गया, अत: जमा की गयी धनराशि की मय ब्‍याज वापसी एवं क्षतिपूर्ति की अदायगी हेतु परिवाद जिला मंच के समक्ष प्रस्‍तुत किया गया।

प्रत्‍यर्थी द्वारा प्रतिवाद पत्र जिला मंच के समक्ष प्रस्‍तुत किया गया। प्रत्‍यर्थी ने अपने लिखित कथन में अपनी सुमंगलम योजना में एक दुकान नम्‍बर एलजीएफ-109 के लिए परिवादिनी द्वारा आवेदन किया जाना तथा 10,000/- रूपये बुकिंग धनराशि जमा किया जाना स्‍वीकार किया है तथा प्रत्‍यर्थी का यह भी कथन है कि उक्‍त दुकान का मूल्‍य 70,000/- रूपये निश्‍चित था। उक्‍त योजना के अन्‍तर्गत बकाया धनराशि का भुगतान निर्धारित अवधि के मध्‍य किया जाना था, किन्‍तु परिवादिनी द्वारा धनराशि जमा नहीं की गयी। प्रत्‍यर्थी का यह भी कथन है कि परिवाद कालबाधित है।

जिला मंच ने प्रश्‍नगत निर्णय द्वारा परिवाद कालबाधित मानते हुए निरस्‍त कर दिया।

इस आदेश से क्षुब्‍ध होकर यह अपील योजित की गयी है।

हमने अपीलकर्ता के विद्वान अधिवक्‍ता श्री विजय कुमार यादव   तथा प्रत्‍यर्थी के विद्वान अधिवक्‍ता श्री अंकित श्रीवास्‍तव द्वारा अधिकृत अधिवक्‍ता श्री सुशील कुमार मिश्रा के तर्क सुने तथा अभिलेखों का अवकोकन किया।

अपीलकर्ता के विद्वान अधिवक्‍ता द्वारा यह तर्क प्रस्‍तुत किया गया कि यह तथ्‍य निर्विवाद है कि अपीलकर्ता/परिवादिनी ने 10,000/- रूपये प्रश्‍नगत दुकान क्रय करने हेतु बुकिंग धनराशि के रूप में प्रत्‍यर्थी/विपक्षी  को प्राप्‍त कराये, किन्‍तु प्रत्‍यर्थी द्वारा इस दुकान की शेष धनराशि प्राप्‍त  करने हेतु कोई सूचना परिवादिनी को प्रेषित नहीं की। यदि ऐसी कोई  सूचना परिवादिनी को प्रेषित की गयी होती तो निश्चित रूप से परिवादिनी उक्‍त धनराशि जमा करके प्रश्‍नगत दुकान का कब्‍जा प्राप्‍त करती, किन्‍तु प्रत्‍यर्थी द्वारा न ही शेष धनराशि प्राप्‍त करके प्रश्‍नगत दुकान का कब्‍जा परिवादिनी को दिया गया और न ही परिवादिनी द्वारा जमा की गयी धनराशि, उसे वापस की गयी। इस प्रकार प्रत्‍यर्थी द्वारा सेवा में त्रुटि की गयी है। परिवाद कालबाधित होने के सन्‍दर्भ में अपीलकर्ता/परिवादिनी की ओर से यह तर्क प्रस्‍तुत किया गया कि प्रस्‍तुत प्रकरण में वादकारण निरन्‍तर उत्‍पन्‍न होना माना जाएगा। अ‍त: परिवाद कालबाधित नहीं माना जा सकता।

प्रत्‍यर्थी के विद्वान अधिवक्‍ता द्वारा यह तर्क प्रस्‍तुत किया गया कि प्रस्‍तुत प्रकरण में परिवादिनी ने व्‍यावसायिक प्रयोजन हेतु दुकान बुक करायी थी। अत: परिवादिनी उपभोक्‍ता संरक्षण अधिनियम की धारा 2 (1) (डी) के अन्‍तर्गत उपभोक्‍ता नहीं मानी जा सकती। प्रत्‍यर्थी की ओर से यह तर्क भी प्रस्‍तुत किया गया कि प्रस्‍तुत प्रकरण में परिवादिनी द्वारा 10,000/- रूपये की धनराशि दिनांक 19.10.1997 को जमा की गयी तथा परिवाद वर्ष 2009 में योजित किया गया। इस प्रकार परिवाद वादकारण उत्‍पन्‍न होने की तिथि से दो वर्ष के अन्‍दर योजित न किये जाने के कारण परिवाद कालबाधित है।

परिवाद के अभिकथनों से यह स्‍पष्‍ट है कि परिवादिनी द्वारा व्‍यावसायिक परिसर (दुकान) के आवंटन हेतु पंजीकरण धनराशि जमा की गयी थी। परिवाद के अभिकथनों में परिवादिनी द्वारा यह अभिकथित नहीं किया गया है कि यह दुकान स्‍व:रोजगार हेतु क्रय की जा रही थी। ऐसी परिस्थिति में परिवादिनी उपभोक्‍ता संरक्षण अधिनियम की धारा 2 (1) (डी) के अन्‍तर्गत उपभोक्‍ता नहीं मानी जा सकती।

यह भी उल्‍लेखनीय है कि परिवाद के अभिकथनों में परिवादिनी ने यह स्‍पष्‍ट नहीं किया है कि प्रश्‍नगत दुकान का निर्माण कब तक पूर्ण किया जाना प्रस्‍तावित था तथा इसका कब्‍जा परिवादिनी को कब तक दिया जाना था। प्रश्‍नगत दुकान के क्रय से संबंधित संविदा की शर्तें परिवाद के अभिकथनों में स्‍पष्‍ट नहीं की गयीं हैं। परिवाद के अभिकथनों में परिवादिनी ने यह भी अभिकथित किया है कि उसे स्‍थानीय स्‍तर पर यह जानकारी प्राप्‍त हुई कि प्रश्‍नगत दुकान परिवादिनी के अतिरिक्‍त किसी अन्‍य आवंटी को आवंटित कर दी गयी। जिस तिथि पर प्रश्‍नगत दुकान का कब्‍जा दिया जाना प्रस्‍तावित था उस तिथि पर कब्‍जा न दिये जाने की स्थिति में उक्‍त तिथि से वादकारण उत्‍पन्‍न होना स्‍वाभाविक रूप से माना जाएगा साथ ही परिवादिनी के अतिरिक्‍त किसी अन्‍य व्‍यक्ति को प्रश्‍नगत दुकान आवंटित किये जाने की तिथि से भी वादकारण उत्‍पन्‍न होना माना जा सकता है, किन्‍तु उन तिथियों को परिवादिनी द्वारा स्‍पष्‍ट नहीं किया गया है। प्रस्‍तुत प्रकरण में परिवादिनी द्वारा दी गई विधिक नोटिस की तिथि तक वादकारण विस्‍तारित नहीं माना जा सकता। निर्विवाद रूप से परिवादिनी ने दिनांक 19.10.1997 को 10,000/- रूपये बुकिंग धनराशि के रूप में जमा किया और इस धनराशि की वापसी हेतु परिवादिनी द्वारा परिवाद वर्ष 2009 में योजित किया गया है। ऐसी परिस्थिति में हमारे विचार से परिवाद कालबाधित है। जिला मंच ने परिवाद को कालबाधित मानते हुए प्रश्‍नगत निर्णय पारित करके कोई त्रुटि नहीं की है। अपील में कोई बल नहीं है, अत: निरस्‍त किये जाने योग्‍य है।

आदेश

 

प्रस्‍तुत अपील निरस्‍त की जाती है।

उभय पक्ष अपना-अपना अपीलीय व्‍यय स्‍वंय वहन करेंगे।

उभय पक्ष को इस निर्णय एवं आदेश की सत्‍यप्रतिलिपि नियमानुसार उपलब्‍ध करा दी जाये।

                   

 

 

 

 

(उदय शंकर अवस्‍थी)                        (गोवर्द्धन यादव)

पीठासीन सदस्‍य                                सदस्‍य

 

 

 

 

लक्ष्‍मन, आशु0, कोर्ट-2    

 
 
[HON'BLE MR. Udai Shanker Awasthi]
PRESIDING MEMBER
 
 
[HON'BLE MR. Gobardhan Yadav]
MEMBER
 

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