राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।
सुरक्षित
अपील सं0-२२१९/२०११
(जिला फोरम/आयोग, देवरिया द्वारा परिवाद सं0-६९/२००५ में पारित प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश दिनांक १३-११-२००९ के विरूद्ध)
टाटा मोटर्स लिमिटेड (पूर्व में टाटा इंजीनियरिंग एण्ड लोकोमोटिव कं0लि0), बॉम्बे हाउस, २४ होमी मोदी स्ट्रीट, मुम्बई-४०० ००१, द्वारा मैनेजर।
...........अपीलार्थी/विपक्षी।
बनाम
१. अनिल कुमार खण्डेलवाल, न्यू कालोनी, गुरूद्वारा के पीछे, जिला देवरिया।
............ प्रत्यर्थी/परिवादी।
२. मोटर एण्ड जनरल सेल्स लि0 महात्मागांधी मार्ग, लखनऊ द्वारा मैनेजिंग डायरेक्टर।
३. वाराणसी आटो सेल्स, जी0टी0रोड, निकट सिटी स्टेशन, वाराणसी द्वारा मैनेजर।
............ प्रत्यर्थीगण/विपक्षीगण।
अपील सं0-२१६३/२००९
(जिला फोरम/आयोग, देवरिया द्वारा परिवाद सं0-६९/२००५ में पारित प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश दिनांक १३-११-२००९ के विरूद्ध)
१. मोटर एण्ड जनरल सेल लिमिटेड द्वारा ब्रान्च मैनेजर, गोलघर, गोरखपुर एवं एक अन्य।
२. मोटर एण्ड जनरल सेल्स लि0 द्वारा मैनेजिंग डायरेक्टर, ११, महात्मा गांधी मार्ग, लखनऊ।
...........अपीलार्थीगण/विपक्षीगण।
बनाम
१. अनिल कुमार खण्डेलवाल, न्यू कालोनी, गुरूद्वारा के पीछे, जिला देवरिया।
............ प्रत्यर्थी/परिवादी।
२. वाराणसी आटो सेल्स द्वारा वर्क्स मैनेजर, जी0टी0रोड, निकट सिटी स्टेशन, वाराणसी।
३. टाटा इंजीनियरिंग एण्ड लोकोमोटिव कं0लि0 (अब मै0 टाटा मोटर्स लिमिटेड), द्वारा रीजनल मैनेजर, चतुर्थ तल, कंचनजंगा बिल्डिंग, १८, बाराखम्बा रोड, नई दिल्ली।
............ प्रत्यर्थीगण/विपक्षीगण।
समक्ष:-
१- मा0 श्री राजेन्द्र सिंह, सदस्य।
२- मा0 श्री सुशील कुमार, सदस्य।
अपीलार्थी टाटो मोटर्स लि0 की ओर से उपस्थित : श्री राजेश चड्ढा विद्वान अधिवक्ता।
प्रत्यर्थी/परिवादी की ओर से उपस्थित : श्री बी0के0 उपाध्याय विद्वान अधिवक्ता।
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प्रत्यर्थी सं0-२ मोटर एण्ड जनरल सेल्स लि0 की ओर से उपस्थित: श्री राजेश पाण्डेय
विद्वान अधिवक्ता।
प्रत्यर्थी सं0-३ वाराणसी आटो सेल्स की ओर से उपस्थित : कोई नहीं।
दिनांक :- ०४-०३-२०२२.
मा0 श्री राजेन्द्र सिंह, सदस्य द्वारा उदघोषित
निर्णय
यह अपील, उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम १९८६ के अन्तर्गत अपील सं0-२२१९/२०११ एवं अपील सं0-२१६३२००९ जिला फोरम/आयोग, देवरिया द्वारा एक ही परिवाद सं0-६९/२००५ में पारित प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश दिनांक १३-११-२००९ के विरूद्ध योजित की गयी हैं, अत: इन दोनों अपीलों का निस्तारण एक साथ किया जा रहा है। अपील सं0-२२१९/२०११ अग्रणी होगी।
हमने उभय पक्ष के विद्वान अधिवक्तागण की बहस सुनी तथा पत्रावलियों का सम्यक रूप से परिशीलन किया।
अपीलार्थी टाटा मोटर्स लि0 द्वारा एक प्रार्थना पत्र दिनांकित १५-११-२०११ अपील योजित करने में हुए विलम्ब को क्षमा करने के लिए प्रस्तुत किया गया है जिसके अनुसार अपीलार्थी को प्रश्नगत निर्णय के बारे में कोई सूचना नहीं दी गई और जब निष्पादन वाद में उसे समन की प्राप्ति हुई तब उसे परिवाद के निर्णय के बारे में जानकारी हुई। इसके पश्चात् अपीलार्थी ने अपना अधिवक्ता नियुक्त किया और प्रश्नगत निर्णय की प्रमाणित प्रति दिनांक १३-१०-२०११ को प्राप्त की। इस प्रति को अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता ने दिल्ली क्षेत्रीय कार्यालय को भेजा, जहॉं पर यह दिनांक २४-१०-२०११ को प्राप्त हुई। तब तक दीपावली का अवकाश हो चुका था, अत: सम्बन्धित क्षेत्रीय कार्यालय द्वारा प्रश्नगत निर्णय का अवलोकन नहीं किया गया। अन्त में अपील प्रस्तुत करने की स्वीकृति दिनांक ०८-११-२०११ को प्राप्त हुई, जिसके पश्चात् समस्त अभिलेख लखनऊ भेजे गए, जहॉं पर इन्हें लखनऊ के अधिवक्ता को अपील प्रस्तुत करने के लिए प्राप्त कराया गया। लखनऊ के अधिवक्ता ने इस सम्बन्ध में कुछ अन्य अभिलेखों की मांग की और फिर उन्हें ये अभिलेख उपलब्ध कराए गए। इस तरह जो विलम्ब हुआ वह
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जानबूझकर नहीं किया गया बल्कि ऊपरलिखित परिस्थितियों के अन्तर्गत हुआ। अत: माननीय न्यायालय से अनुरोध है कि विलम्ब को क्षमा करने की कृपा की जाए।
सर्वप्रथम हमने विद्वान जिला फोरम के प्रश्नगत निर्णय का अवलोकन किया। अपीलार्थी/विपक्षी ने विद्वान जिला फोरम के समक्ष अपना लिखित कथन, शपथ पत्र और लिखित बहस प्रस्तुत किए है जो विपक्षी सं0-१, २ व ३ द्वारा दाखिल किए गए हैं और विपक्षी सं0-४ की ओर से भी लिखित कथन व शपथ पत्र तथा लिखित बहस प्रस्तुत किए गए, जिससे यह स्पष्ट होता है कि विद्वान जिला फोरम के समक्ष सभी विपक्षी पक्षकार पक्षकार सं0-१ लगायत ४ उपस्थित थे, जिन्होंने परिवाद की कार्यवाही में सक्रिय रूप से भाग लिया और अपने अभिकथन, शपथ पत्र तथा साक्ष्य प्रस्तुत किए। अत: यह नहीं कहा जा सकता कि अपीलार्थी को परिवाद के सम्बन्ध में कोई जानकारी नहीं थी।
प्रश्नगत निर्णय दिनांक १३-११-२००९ का है और अपीलार्थी ने प्रमाणित प्रति दिनांक १३-१०-२०११ को प्राप्त की अर्थात् ०२ वर्ष पश्चात्। अपीलार्थी/विपक्षी इतना विस्तृत तन्त्र होते हुए भी अपने वाद की समुचित पैरवी/कार्यवाही नहीं कर सका अर्थात् यह कहा जाए कि इन्होंने अपनी अपील प्रस्तुत करने में कोई रूचि नहीं दिखाई और अपील विलम्ब से दिनांक १६-११-२०११ को प्रस्तुत की गई अर्थात् लगभग ०२ वर्ष पश्चात् अपील प्रस्तुत की गई।
उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अन्तर्गत अपील प्रस्तुत करनेकी अवधि और विलम्ब से अपील प्रस्तुत करने के सम्बन्ध में निम्नांकित न्यायिक दृष्टान्त महत्वपूर्ण हैं :-
In Mahindra & Mahindra Financial Services Ltd. Vs. Naresh Singh, I(2013) CPJ 407 (NC), where the delay was of 71 days only, it was held by the Hon'ble National Commission that "condonation cannot be a matter of routine and the petitioner is required to explain delay for each and every date after expiry of the period of limitation". In the instant matter, the appellants have not given any explanation of delay for each and every day. In U.P. Avas Evam Vikas Parishad Vs. Brij Kishore Pandey, IV (2009) CPJ 217 (NC), where the delay was of only 84 days, it was held that "this is enough to
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demonstrate that there was no reason for this delay, much less a sufficient cause to warrant its condonation." In the instant matter, the cause shown by the appellants has been vehemently denied by the respondent on cogent reasons. Furthermore, In Anshul Agarwal Vs. New Okhla Industrial Development Authority, IV (2011) CPJ 62 (SC), it was observed by the Hon'ble Apex Court that "it is also apposite to observe that while deciding an application filed in such cases for condonation of delay, the Court has to keep in mind that special period of limitation has been prescribed in the Consumer Protection Act for filing appeals and revisions in consumer matter and the objection of expeditious adjudication of consumer disputes will get defeated if this court was to entertain highly belated petition against the orders of Consumer Fora."
इस प्रकार स्पष्ट है कि इस मामले में अपीलार्थी/विपक्षी की घोर लापरवाही परिलक्षित है और विलम्ब क्षमा करने का कोई भी यथोचित स्पष्टीकरण नहीं दिया गया है। अत: ऐसी स्थिति में वर्तमान अपील उपरोक्त न्यायिक दृष्टान्तों के अनुसार कालबाधित होने के आधार पर निरस्त होने योग्य है।
जहॉं तक अपील सं0-२१६३/२००९ का सम्बन्ध है, दिनांक १६-०२-२०२२ को बहस के दौरान् अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता श्री राजेश पाण्डेय ने यह बताया कि इस मामले में अपीलार्थी का कोई दायित्व नहीं है और यह अपील पूर्व अधिवक्ता द्वारा गलती से दाखिल कर दी गई है। अत: यह अपील इसी स्तर पर अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता श्री राजेश पाण्डेय के इस कथन को ध्यान में रखते हुए अन्तिम रूप से निस्तारित करते हुए निरस्त किए जाने योग्य है।
आदेश
वर्तमान अपील सं0-२२१९/२०११ कालबाधित होने के आधार पर निरस्त की जाती है तथा अपील सं0-२१६३/२००९ अधिवक्ता अपीलार्थी के उपरोक्त कथन के आधार पर निरस्त की जाती है।
अपील व्यय उभय पक्ष पर।
इस निर्णय की मूल प्रति अग्रणी अपील सं0-२२१९/२०११ में रखी जाए तथा एक
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प्रमाणित प्रतिलिपि अपील सं0-२१६३/२००९ में रखी जाए।
उभय पक्ष को इस निर्णय की प्रमाणित प्रति नियमानुसार उपलब्ध करायी जाय।
वैयक्तिक सहायक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस निर्णय को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दें।
(सुशील कुमार) (राजेन्द्र सिंह)
सदस्य सदस्य
निर्णय आज खुले न्यायालय में हस्ताक्षरित, दिनांकित होकर उद्घोषित किया गया।
(सुशील कुमार) (राजेन्द्र सिंह)
सदस्य सदस्य
प्रमोद कुमार
वैय0सहा0ग्रेड-१,
कोर्ट नं.-२.