राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।
सुरक्षित
अपील संख्या-1430/2006
(जिला उपभोक्ता फोरम, चित्रकूट द्वारा परिवाद संख्या 22/2000 में पारित निर्णय दिनांक 10.05.2006 के विरूद्ध)
बलराम गुप्ता पुत्र श्री राम गुप्ता निवासी बल्दाऊगंज, शंकर बाजार,
कर्वी, जिला चित्रकूट, यू0पी0। .......अपीलार्थी/विपक्षी
बनाम्
1.इलाहाबाद बैंक, ब्रांच कर्वी, जिला चित्रकूट, यू0पी0 द्वारा ब्रांच मैनेजर।
2.युनाइटेड इंडिया इं0कं0लि0, पीली कोठी, बांदा, जिला बांदा, द्वारा
ब्रांच मैनेजर। .......प्रत्यर्थीगण/परिवादीगण
समक्ष:-
1. मा0 श्री राज कमल गुप्ता, पीठासीन सदस्य।
2. मा0 श्री महेश चन्द, सदस्य।
अपीलार्थी की ओर से उपस्थित : श्री आर0के0 गुप्ता, विद्वान अधिवक्ता।
प्रत्यर्थी की ओर से उपस्थित : कोई नहीं।
दिनांक 14.11.2018
मा0 श्री राज कमल गुप्ता, पीठासीन सदस्य द्वारा उदघोषित
निर्णय
प्रस्तुत अपील जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष फोरम चित्रकूट द्वारा परिवाद संख्या 22/2000 में पारित प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश दि. 10.05.2006 के विरूद्ध प्रस्तुत की गई है। जिला मंच द्वारा परिवाद को खंडित किया गया है।
संक्षेप में तथ्य इस प्रकार है कि परिवादी ने एक फोटोकापी मशीन प्रधानमंत्री रोजगार योजना के अंतर्गत इलाहाबाद शाखा बैंक कर्वी से लोन लेकर खरीदा। यह मशीन रू. 89825/- में खरीदी गई थी। इस मशीन का बीमा प्रतिवादी संख्या 1 इलाहाबाद बैंक द्वारा करवाया गया था, अत: बीमा की पालिसी तथा बीमे की अन्य सभी कागजात शाखा प्रबंधक के पास थे। परिवादी द्वारा कई बार प्रयास किया गया कि उसके बीमे के बारे में बताया जाए, परन्तु बैंक ने सदैव यह कहकर उसे वापस कर दिया कि मशीन का बीमा तथा
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बीमा खर्च की जिम्मेदारी बैंक की है और खर्च वापसी तक बीमा कराने तक उसके भुगतान की जिम्मेदारी बैंक की है। दि. 04.01.2000 को रात्रि 8 बजे परिवादी की दुकान में शार्ट सर्किट से आग लग गई, जिसमें क्रय की गई फोटो स्टेट मशीन, एक अंग्रेजी टाइपिंग मशीन सहित पूरा फर्नीचर तथा अन्य सामान जलकर राख हो गया, दुकान में लगभग रू. 110000/- का नुकसान हुआ। परिवादी के अनुसार उसने रजिस्टर्ड डाक से दि. 05.01.2000 को बैंक को सूचना भेजी। परिवादी का यह भी कथन है कि उसने विपक्षी संख्या 1 से मशीन का बीमा करने वाली कंपनी को भी सूचना भेजने हेतु कहा तो बैंक द्वारा यह कहा गया कि यह बैंक की जिम्मेदारी है। आग की सूचना फायर बिग्रेड को दी गई थी। परिवादी के अनुसार कंपनी ने आग से हुई क्षति का क्लेम देने से मना कर दिया।
विपक्षी संख्या 1 इलाहाबाद बैंक ने जिला मंच के समक्ष अपना लिखित कथन प्रस्तुत करके यह अभिकथन किया कि बैंक ने परिवादी को फोटोस्टेट मशीन क्रय के लिए रू. 85500/- का ऋण स्वीकृत किया था ताकि बेरोजगार, शिक्षित युवकों को रोजगार व आजीविका के साधन उपलब्ध हो सकें। परिवादी ने अक्टूबर 1996 में उक्त योजना के अंतर्गत भलीभांति वापसी की शर्तों के विषय में आवेदन किया था। ऋण की वापसी 60 बराबर मासिक किश्तों में की जानी चाहिए थी, लेकिन परिवादी ने अपना मासिक किश्तों का भुगतान कभी समय से नहीं किया तथा जुलाई 1999 से बैंक से कोई सरोकार नहीं रखा। परिवादी पर वर्ष 2000 में रू. 74826/- की बकाया धनराशि देय थी। परिवादी ने बैंक के अवशेष ऋण रू. 65310/- से पीछा छुड़ाने के लिए कूट रचना करके वाद योजित किया है।
जिला मंच के समक्ष विपक्षी संख्या 2 बीमा कंपनी की ओर से प्रतिवाद
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पत्र प्रस्तुत कर परिवाद का प्रतिवाद किया गया और यह अभिकथन किया गया कि परिवादी का परिवाद निराधार व साजिशी है। परिवादी ने मशीन की कथित दुर्घटना की कोई सूचना प्रतिवादी संख्या 2 बीमा कंपनी को नहीं दी और न ही उसके द्वारा कोई क्लेम प्रस्तुत किया है।
पीठ ने अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता की बहस सुनी एवं पत्रावली पर उपलब्ध अभिलेखों एवं साक्ष्यों का भलीभांति परिशीलन किया गया। प्रत्यर्थी की ओर से कोई उपस्थित नहीं है।
अपीलार्थी ने अपने अपील आधार में यह अभिकथन किया है कि जिला मंच का निर्णय एवं आदेश मनमाना, शून्य तथा त्रूटिपूर्ण है। निर्णय के प्रथम पेज पर जिला मंच के अध्यक्ष, पुरूष व महिला सदस्य की उपस्थिति दर्शाई गई है, लेकिन हस्ताक्षर केवल अध्यक्ष व पुरूष सदस्य द्वारा ही निर्णय पर किया गया है तथा जिला मंच का निर्णय जो दि. 16.05.2006 के निर्णय के लिए निर्धारित था उसे दि. 10.05.2006 को ही निर्णीत कर दिया। जिला मंच के समक्ष प्रस्तुत किए गए साक्ष्य, अंतरदेशीय पत्र का संज्ञान न लेकर त्रुटि की है। जिला मंच ने फायर बिग्रेड की रिपोर्ट पर भी विश्वास न कर त्रुटि की है। यह बैंक की जिम्मेदारी थी कि वह लगातार मशीन का बीमा कराता। बैंक ने कभी सूचित नहीं किया कि उसके द्वारा क्रय की फोटो स्टेट मशीन का बीमा नहीं किया गया है। उसके द्वारा समस्त ऋण की धनराशि का भुगतान किया जा चुका है।
यह तथ्य निर्विवाद है कि परिवादी को इलाहाबाद बैंक विपक्षी संख्या 1 द्वारा रू. 85500/- का ऋण प्रधानमंत्री रोजगार योजना के अंतर्गत दिया था। परिवादी ने इस ऋण से फोटो स्टेट मशीन क्रय की। परिवादी के अनुसार उसकी बीमा की पालिसी तथा अन्य कागजात बैंक के पास थे और बीमा का कोई
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कागज उसे नहीं दिया गया। परिवादी के अनुसार दि. 04.01.2000 की रात्रि 8 बजे उसकी दुकान में शार्ट सर्किट से आग लग गई, जिसमें मशीन व अन्य सामान जलकर राख हो गया। उसके अनुसार लगभग रू. 110000/- का नुकसान हुआ। पत्रावली पर उपलब्ध पालिसी के कवर नोट से यह स्पष्ट होता है कि परिवादी की मशीन और रा मटैरियल इंश्योरेंस कंपनी द्वारा दि. 23.12.97 से 22.12.98 तक एवं 23.12.98 से 22.12.99 तक बीमित किया गया था। दि. 22.12.99 के बाद कोई बीमा पालिसी न तो बैंक द्वारा न ही परिवादी द्वारा ली गई, अत: यह स्पष्ट है कि जब दि. 04.01.2000 को परिवादी की दुकान में आग लगी थी तो उसकी मशीन व अन्य सामान बीमित नहीं था। अब प्रश्न उठता है कि क्या बीमा प्रीमियम देने की जिम्मेदारी परिवादी की थी या बैंक की। बैंक का कहना है कि परिवादी ने मासिक किश्तों का भुगतान कभी भी समय से नहीं किया। बैंक के अनुसार यह परिवादी की जिम्मेदारी थी कि वे नियमित किश्तों के भुगतान करता रहे और उसे यह भी सुनिश्चित करना चाहिए था कि बैंक द्वारा बीमा के संबंध में वांछित कार्यवाही की गयी है या नहीं। बैंक का कथन है कि जुलाई 1999 के बाद परिवादी ने बैंक से सारे संबंध समाप्त कर लिए थे और उसका बैंक में आना जाना नहीं था। इंश्योरंस बीमा कंपनी और बीमित व्यक्ति के मध्य एक संविदा है और बीमित व्यक्ति की यह जिम्मेदारी है कि वह यह सुनिश्चित करें कि उसकी दुकान व सामान का जो बीमा किया गया है उसका नियमित प्रीमियम अदा होता रहे जिससे पालिसी ‘ लैप्स ‘ न होने पाए। जब परिवादी ने 1999 के बाद किश्तों को समय से नहीं दिया तो यह बैंक की जिम्मेदारी नहीं थी कि वह बीमा कंपनी को नियमित रूप से प्रीमियम अदा करता रहे। परिवादी की यह
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जिम्मेदारी थी कि वह बैंक से लिए गए ऋण की किश्तों का भुगतान समय से करे और इस बीच अपनी दुकान के अंदर रखी गई मशीन व रा मटेरियल आदि का बीमा भी सुनिश्चित करे, जिसके लिए उसे पृथक से प्रीमियम की धनराशि अदा करनी होती है जो उसके द्वारा नहीं किया गया, अत: इस प्रकरण में परिवादी ही स्वयं लापरवाह रहा है और इसके लिए न तो बैंक जिम्मेदार है और न ही बीमा कंपनी। जिला मंच ने साक्ष्यों की विस्तृत विवेचना करते हुए अपना निर्णय दिया है, हम जिला मंच के निर्णय एवं आदेश से सहमत हैं। जिला मंच का निर्णय/आदेश पुष्ट किए जाने योग्य है। तदनुसार प्रस्तुत अपील निरस्त किए जाने योग्य है।
आदेश
प्रस्तुत अपील निरस्त की जाती है तथा जिला मंच का निर्णय/आदेश दि. 10.05.2006 की पुष्टि की जाती है।
उभय पक्ष अपना-अपना अपीलीय-व्यय भार स्वंय वहन करेंगे।
निर्णय की प्रमाणित प्रतिलिपि पक्षकारों को नियमानुसार उपलब्ध कराई जाए।
(राज कमल गुप्ता) (महेश चन्द )
पीठासीन सदस्य सदस्य
राकेश, पी0ए0-2
कोर्ट-3