PREM KUMAR filed a consumer case on 14 Oct 2022 against AGROTEK COMMERCIAL INVESTMENT PRIVATE LIMITED in the Bareilly-II Consumer Court. The case no is CC/104/2019 and the judgment uploaded on 15 Oct 2022.
जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग- द्वितीय, बरेली।
उपस्थित :- 1- दीपक कुमार त्रिपाठी अध्यक्ष
2- दिनेश कुमार गुप्ता सदस्य
3- कुसुम सिंह सदस्य
परिवाद सं0 : 104/2019
प्रेमकुमार वयस्क पुत्र मंगली निवासी ग्राम चनहेटा थाना सुभाषनगर, जिला बरेली।
..................परिवादी
प्रति
मैसर्स एग्रोटेक कार्मिशियल इन्वेस्टमेन्ट प्राईवेट लि. रजि. शाखा कार्यालय शाहजहांपुर रोड़ शहामतगंज बारादरी, जिला बरेली। द्वारा प्रबन्धक/निदेशक अनोखे लाल पुत्र श्री सियाराम निवासी ग्राम बरोरा पोस्ट बरौर जिला बरेली।
.................विपक्षी
परिवाद संस्थित होने की तिथि 21.06.2019
निर्णय उद्घोषित करने की तिथि 14.10.2022
परिवादी अधिवक्ता श्री दीपनारायण तिवारी।
विपक्षी अधिवक्ता श्री नंदन सिंह।
निर्णय
1. उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 की धारा 12 के अंतर्गत यह परिवाद लाभांश हेतु जमा राशियॉं मय ब्याज सहित रू. 4,00,000/- वापस किए जाने एवं सेवा में कमी के कारण रू. 50,000/- की क्षतिपर्ति प्राप्त करने हेतु दिनांक 21.06.2019 को प्रस्तुत किया गया है।
2. प्रकरण में महत्वपूर्ण स्वीकृत तथ्य कोई भी नहीं है।
3. परिवाद संक्षेप में इस प्रकार है कि अनोखे लाल मैसर्स एग्रोटेक कार्मिशयल इन्वेस्टमेन्ट प्राईवेट लि. फर्म के माध्यम से कृषि यन्त्र एवं रिसोर्ट, इन्फ्रास्टेक्चर एवं रीयल स्टेट से संबंधित आम निजा के लिए निवेश करवाता चला आया हे। परिवादी ने जान-पहचान होने के कारण अनोखे लाल के अनुरोध पर परिवादी ने विपक्षी पर विश्वास करते हुए उक्त फर्म में दिनांक 12.03.2015 को रू.1,50,000/- एवं दिनांक 15.04.2015 को रू.1,50,000/- क्रमशः रसीद संख्या 175 एवं 176 प्राप्त कर 36 माह ’’3वर्ष’’ परिपक्वता अवधि के लिए जमा किए। परिपक्वता अवधि के पश्चात् उक्त दोनो ही जमा पर रू. 2,00,000 - 2,00,000/- इस प्रकार कुल रू. 4,00,000/- विपक्षी द्वारा परिवादी को अदा करना था किन्तु परिपक्वता की अवधि बीतने पर परिवादी ने विपक्षी से रू. 4,00,000/- अदा करने को कहा तो विपक्षी टालमटोल करता रहा। पहले एक माह बाद आने को कहा, एक माह बाद परिवादी द्वारा मॉंगे जाने पर और समय चाहा। कुछ माह बाद परिवादी पुनः उक्त फर्म पर पहुॅंचा तो वहां ताला लगा हुआ था। आस-पास के लोगों से पूछने पर पता चला कि विपक्षी उक्त फर्म को बन्द करके भाग गया है। परिवादी ने उनसे व्यक्तिगत एवं मौखिक फोन के माध्यम से सम्पर्क किया तो विपक्षी ने अभद्र व्यवहार करते हुए परिपक्वता धनराशि अदा करने से स्पष्ट रूप से मना कर दिया। परिवादी ने विपक्षी को नोटिस दिया जिसका विपक्षी ने न तो संतोषजनक उत्तर दिया और न ही उक्त धनराशि को आज तक अदा किया है। अतः परिवादी को विपक्षी से जमा रसीदों की परिपक्वता धनराशि रू. 4,00,000/- मय 18प्रतिशत ब्याज दिलाया जावे तथा विपक्षी द्वारा सेवा में कमी किए जाने के कारण परिवादी को हुई आर्थिक, मानसिक व शारीरिक क्षति रू. 50,000/- दिलाई जावे।
4. विपक्षी ने परिवादपत्र में उल्लिखित समस्त अभिकथनों से स्पष्टतया इंकार करते हुए प्रस्तुत जवाबदावे के अतिरिक्त कथन में यह विरोधी अभिवचन किया है कि विपक्षी की मैसर्स एग्रोटेक कामर्शियल इन्वेस्टमेन्ट प्राईवेट लि. रजि. के नाम से कोई फर्म न कभी थी और न अभी है। विपक्षी इस फर्म का कभी निदेशक भी नहीं रहा। परिवादी से विपक्षी ने कोई भी राशि जमा करने के लिए कभी नहीं कहा और न ही कोई राशि परिवादी से प्राप्त की। विपक्षी काफी कम प़ढ़ा-लिखा अति सीधा-साधा व्यक्ति है उसके पास थोड़ी सी कृषि भूमि है तथा कुछ भूमि ठेके बटाई पर लेकर कृषि करके परिवार की अजीविका चलाता है। परिवादी ने षड़यंत्र के तहत मिथ्या एवं झूठे तथ्यों को आधार बनाकर विपक्षी के विरूद्ध झूठा परिवाद दाखिल किया है। परिवाद के साथ दाखिल दोनो रसीदें स्वयं परिवादी द्वारा कम्प्यूटर से फर्जी रूप से तैयार कराई गई है। परिवादी व उसके दोनो भाई हुकुम सिंह व लालता प्रसाद उक्त भूमि के पूर्व स्वामी नरपत पुत्र झाऊ द्वारा लिखित वसीयतनामा के आधार पर मालिक व काविज थे। विपक्षी परिवादी का सगा मौसेरा भाई है। परिवादी व उसके भाईयों लालता प्रसाद व हुकुम सिंह ने मिलकर अपनी भूमि स्थित ग्राम कांधरपुर तहसील जिला बरेली में स्थित उक्त भूमि रू. 28,05,000/- में सीता पुत्री गेदन लाल को विक्रय कर दिनांक 18.04.2011 रजिस्ट्री कराई थी जिसमें विपक्षी गवाह बनाया गया था। परिवादी व उसके भाईयों के नियत में खोट आने पर उन्होंने क्रेता सीता के बैनामा के बाद बैक डेट में दिनांक 05.10.1990 का मृतक नरपत के मृत्यु उपरांत अपने लड़के कन्धई व मोहन लाल के नाम फर्जी कूटरचित वसीयत तैयार कर चकबन्दी न्यायालय से विक्रीत भूमि को अपने लड़को के नाम आदेश करा लिया। उक्त क्रेता सीता द्वारा परिवादी व उनके भाई व पुत्रों के विरूद्ध थाना कैण्ट, बरेली में प्रथम सूचना रिपोर्ट संख्या 110/2019 अंतर्गत धारा 467, 468, 469, 471, 420 दिनांक 26.03.2019 में दर्ज कराई गई। परिवादी ने विपक्षी अनोखे लाल से कहा कि वह सिविल न्यायालय में सीता के विरूद्ध वाद दायर कर रहा है, जहां गवाही देनी है कि उक्त बैनामा रूपयों का कोई लेन-देन मेरे सामने नहीं हुआ। विपक्षी द्वारा झूठी गवाही देने से मना करने पर परिवादी ने विपक्षी के विरूद्ध झूठा मुकदमें में फसाने की धमकी दी।
परिवादी जालसाज करने वाला व्यक्ति है उसको फर्जी व कूटरचित प्रपत्र तैयार करने व कराने में महारत हासिल है। इसी के तहत परिवादी ने विपक्षी से रू. 4,00,000/- वसूल करने के उद्देश्य से मैसर्स एग्रीटेक कामर्शियल इंवेस्टमेन्ट प्रा. लि. के नाम से फर्जी रसीद छपवाकर झूठा मुकिदमा दायर किया हे। विपक्षी की कभी कोई फर्म नहीं थी। परिवादी विपक्षी से कोई भी राशि प्राप्त करने का अधिकारी नहीं हे। परिवाद हर्जाने के साथ निरस्त किया जावे।
5. परिवादी ने अपने पक्ष समर्थन में एफ.डी. रसीद क्रमांक 175 राशि रू. 1,50,000/- परिपक्वता राशि रू. 2,00,000/- तथा रसीद क्रमांक 176 राशि रू. 1,50,000/- परिपक्वता राशि रू. 2,00,000/- दस्तावेजी साक्ष्य के रूप में प्रस्तुत किए हे तथा साक्ष्य में स्वयं का शपथपत्र प्रस्तुत किया है तथा विपक्षी द्वारा साक्ष्य प्रस्तुत करने के पश्चात् स्वयं का प्रत्युत्तर शपथपत्र प्रस्तुत किया है। साथ ही अपने भाई लालता प्रसाद, पुत्र त्रिलोकी सिंह व पड़ोसी अरविंद कुमार के शपथपत्र प्रस्तुत किए है तथा बाद में विचारण के दौरान भतीजा राकेश कुमार, एक परिचित रविन्द्र सिंह एवं पुनः अपना शपथपत्र साक्ष्य में प्रस्तुत किया हे।
6. इसके विपरीत विपक्षी ने साक्ष्य के रूप में स्वयं का तथा अपने गांव में रहने वाले अन्य व्यक्ति धनीपाल के शपथपत्र पर कथन प्रस्तुत किए है तथा दस्तावेजी साक्ष्य के रूप में परिवादी तथा अन्य दो लोग सीता एवं एक अन्य के विरूद्ध प्रस्तुत सिविल वाद सं. 823/2014 एवं वाद सं. 824/2014 दोनो में पारित निर्णय दिनांक 26.10.2017, ग्राम भगौतीपुर का खाता विवरण, रजिस्ट्री लेखपत्र विवरण, परिवादी तथा उसके दो भाईयों द्वारा श्रीमती सीता को रू. 28,05,000/- में किया गया बैनामा दिनांक 18.04.2011 की प्रति, श्रीमती सीमा द्वारा दिनांक 26.03.2019 को थाना कैण्ट, बरेली में परिवादी तथा अन्य 10लोगों के विरूद्ध की गई प्रथम सूचना रिपोर्ट की प्रति प्रस्तुत की है तथा स्वयं का एक अन्य शपथपत्र साक्ष्य में प्रस्तुत किया है।
7. परिवाद के निस्तारण हेतु निम्नलिखित विचारणीय प्रश्न उत्पन्न होते हैः-
प्रथम क्या विपक्षी ने परिवादी के प्रति सेवा में कोई कमी की है?
द्वितीय क्या परिवादी विपक्षी से रसीद क्रमांक 175 व रसीद
क्रमांक 176 के अनुसार परिपक्वता की तिथि तक कुल राशि
रू. 4,00,000/- 18प्रतिशत ब्याज सहित तथा सेवा में कमी की
क्षतिपूर्ति रू. 50,000/- प्राप्त करने का अधिकारी है?
प्रथम विचारणीय प्रश्न पर विवेचना एवं निष्कर्ष
8. परिवादी के अनुसार अनोखे लाल मैसर्स एग्रोटेक कार्मिशियल इन्वेस्टमेन्ट प्राईवेट लि. रजि. शाखा कार्यालय शाहजहांपुर रोड़ शहामतगंज बारादरी, जिला बरेली का प्रबंधक/निदेशक के रूप में आम जनता से निवेश आदि करवाता चला आया है। उक्त तथ्य से विपक्षी ने स्पष्ट रूप से इंकार किया है। इसी तरह परिवादी ने अनोखे लाल के आग्रह पर दिनांक 12.03.2015 को विपक्षी द्वारा बनवाई गई फर्म में रू. 1,50,000/- तथा दिनांक 15.04.2015 को रू. 1,50,000/- जमा किए जाने का अभिवचन किया है जिसके संबंध में परिवादी ने पृष्ठ क्रमांक 29 में संलग्न एफ.डी. रसीद क्रमांक 175 एवं पृष्ठ क्रमांक 30 में संलग्न एफ.डी. रसीद क्रमांक 176 प्रस्तुत की है जिनकी छायाप्रतियां पृष्ठ क्रमांक 2, पृष्ठ क्रमांक 13 एवं पृष्ठ क्रमांक 14 में भी संलग्न है। उक्त प्रस्तुत एफ.डी. रसीद क्रमांक 175 में रू. 1,50,000/- जमा करने की तिथि दिनांक 12.03.2015 होना, परिपक्वता अवधि दिनांक 11.03.2018 होना तथा परिपक्वता राशि रू. 2,00,000/- दर्शाया हे। इसी प्रकार एफ.डी. रसीद क्रमांक 176 में दिनांक 15.04.2015 को रू. 1,50,000/- जमा होना जिसकी परिपक्वता तिथि दिनांक 14.04.2018 होना तथा परिपक्वता राशि रू. 2,00,000/- होना उल्लिखित है। किन्तु विपक्षी ने परिवादी से उक्त राशि प्राप्त करने अथवा उक्त राशि हेतु रसीद क्रमाकं 175 एवं 176 जारी करने से स्पष्ट इंकार किया हे। अतः विपक्षी के कोई फर्म बनाए जाने अथवा उसका निदेशक होने अथवा परिवादी से कोई राशि जमा कराए जाने अथवा उक्त राशि के संबंध में कोई रसीद जारी किए जाने से इंकार किए जाने के कारण उक्त तथ्य की सिद्धि का भार परिवादी पर है।
9. परिवादी प्रेम कुमार ने साक्ष्य के रूप में प्रस्तुत शपथपत्र से परिवादपत्र में उल्लिखित तथ्यों का समर्थन करते हुए विपक्षी ’’मैसर्स एग्रोटेक........’’ का प्रबंधक/निदेशक होना, विपक्षी द्वारा परिवादी से अत्यधिक लाभांश का रिटर्न प्राप्त होना कहते हुए विपक्षी के यहां क्रमशः दिनांक 12.03.2015 एवं दिनांक 15.04.2015 को रू. 1,50,000 - 1,50,000/- जमा कराए जाने की साक्ष्य दी हे। तत्पश्चात् परिवादी की साक्ष्य समाप्त होने के पश्चात् विपक्षी द्वारा साक्ष्य प्रस्तुत करने के उपरांत पुनः प्रत्युत्तर शपथपत्र प्रस्तुत किया है तथा साथ में अपने भाई लालता प्रसाद, पुत्र त्रिलोक सिंह एवं अरविंद कुमार के शपथपत्र प्रस्तुत किए है तथा बाद में भतीजा राकेश कुमार एवं अन्य परिचित रविन्द्र सिंह के शपथपत्र पर कथन प्रस्तुत किए है। उक्त पांचों साक्षी लालता प्रसाद, त्रिलोक सिंह, अरविंद कुमार, राकेश कुमार व रविन्द्र सिंह ने भी परिवादी के अभिवचन एवं परिवादी द्वारा दिए गए शपथपत्र के कथनों का समर्थन करते हुए इस आशय की साक्ष्य दी है कि यह सभी दिनांक 12.03.2015 एवं दिनांक 15.04.3015 को परिवादी के साथ गए थे तथा इनके सामने ही परिवादी ने विपक्षी से उक्त दोनो तिथियों को रू. 1,50,000 - 1,50,000/- देकर रसीद क्रमांक 175 एवं 176 प्राप्त की थी। परिवादी का पुत्र त्रिलोक सिंह शपथपत्र में यह कथन भी करता है कि उसने दोनो बार स्वयं बैग से निकालकर उक्त राशियां विपक्षी अनोखे लाल को दी थी। विपक्षी अनोखे लाल ने शपथपत्र पर प्रस्तुत कथनों को उक्त तथ्यों से स्पष्टतया इंकार किया है। विपक्षी की ओर से अपने गॉंव के अन्य व्यक्ति धर्मपाल का शपथपत्र भी प्रस्तुत किया गया है जिसने विपक्षी द्वारा प्रस्तुत जवाबदावे तथा विपक्षी अनोखे लाल द्वारा प्रस्तुत शपथपत्र पर साक्ष्य में उल्लिखित कथनों का समर्थन करते हुए इस आशय की साक्ष्य दी है कि विपक्षी की ’’मैसर्स एग्रोटेक........’’ कभी कोई फर्म नहीं थी और न ही अंयत्र कहीं है क्योंकि विपक्षी फर्म चलाने लायक न तो कोई योग्य है, न हिम्मत है और न ही इतनी धनराशि है। साक्षी यह भी कथन करता है कि अनोखे लाल कम पढ़ा-लिखा व्यक्ति हे, थोड़ी कृषि भूमि है तथा दूसरे लोगों की कृषि भूमि ठेका बटाई पर लेकर परिवार का भरण-पोषण करता है।
10. परिवादी द्वारा विपक्षी को दी गई उक्त राशियां अथवा विपक्षी द्वारा ’’मैसर्स एग्रोटेक........’’ फर्म बनाए जाने के संबंध में परिवादी की ओर से प्रस्तुत शपथपत्रीय साक्ष्य है। विपक्षी की ओर से प्रस्तुत शपथपत्रीय साक्ष्य से खण्डन किया गया है। विधि के अनुसार रू. 100/- से अधिक लेन-देन के संबंध में दस्तावेजी साक्ष्य महत्वपूर्ण होती है। इस संबंध में परिवादी की ओर से पृष्ठ क्रमांक 29 एवं पृष्ठ क्रमांक 30 में संलग्न एफ.डी. रसीदे प्रस्तुत की गई है जिसमें 3लोगों के हस्ताक्षर होना प्रकट होते है जिसमें प्रथम हस्ताक्षर ’’त्मबमपअमक इल’’ प्राप्त करने वाला, द्वितीय हस्ताक्षर ’’ैपहदण् वि ब्ेंपमत’’ के है तथा तृतीय हस्ताक्षर ’’ैपहदण् वि ।बबवनदजंदज’’ के होना दर्शित होते हे। परिवादी ने उक्त तीनों हस्ताक्षर में से एक भी हस्ताक्षर विपक्षी अनोखे लाल के होने के संबंध में न तो कोई अभिवचन किया है और न ही परिवादी अथवा परिवादी की ओर से प्रस्तुत किसी अन्य साक्षी ने भी अपने साक्ष्य में यह कहा है कि उक्त दोनो रसीदों में कहीं भी विपक्षी अनोखे लाल के हस्ताक्षर है।
11. प्रकरण के विचारण के दौरान विपक्षी की ओर से पृष्ठ क्रमांक 29 एवं पृष्ठ क्रमांक 30 में संलग्न उक्त रसीदों पर दर्शित हस्ताक्षर हस्तलिपि विशेषज्ञ से जांच कराए जाने हेतु आवेदनपत्र प्रस्तुत किया गया था किन्तु चूॅंकि परिवादी ने ही यह कहीं भी व्यक्त नहीं किया है कि उक्त रसीदों में विपक्षी अनोखे लाल के हस्ताक्षर थे तथा परिवादी ने ऐसे किसी व्यक्ति का नाम भी नहीं बतलाया है जिनके उन रसीदों पर हस्ताक्षर है। अतः हस्ताक्षर के लिए कोई व्यक्ति उपलब्ध न होने के कारण उक्त आवेदन निरस्त किया गया था। इस प्रकार से परिवादी ने विपक्षी अथवा विपक्षी की ओर से उक्त रसीदों पर हस्ताक्षर करने वाले किसी व्यक्ति का नाम नहीं बतलाया हे। इसके अलावा पृष्ठ क्रमांक 29 एवं पृष्ठ क्रमांक 30 में संलग्न एफ.डी. रसीदों पर आयोग द्वारा अवलोकन करने पर देखने मात्र से ही यह प्रकट होता है कि पृष्ठ क्रमांक 29 एवं पृष्ठ क्रमांक 30 में ’’त्मबमपअमक इल’’ के कॉलम में अंकित हस्ताक्षर में काफी भिन्नता हे। इसी प्रकार ’’ैपहदण् व्ि ब्ेंपमत’’ एवं ’’ैपहदण् व्ि ।बबवनदजंदज’’ में अंकित हस्ताक्षरों में भी आपस में मिलाए जाने पर काफी भिन्नता है। अतः परिवादी उक्त दस्तावेजी साक्ष्य में यह प्रमाणित करने में पूर्णतया असफल रहा है कि विपक्षी ने पृष्ठ क्रमांक 29 एवं पृष्ठ क्रमांक 30 में संलग्न रसीदें परिवादी को प्रदान की थी।
12. इसके अलावा जहां परिवादी के अनुसार उसने दिनांक 12.03.2015 एवं उसके एक माह पश्चात् दिनांक 15.04.2015 को रू. 1,50,000 - 1,50,000/- इस प्रकार कुल रू. 3,00,000/- दिए थे। यद्यपि परिवादी के अनुसार उक्त राशि नकद दी गई थी किन्तु लगभग एक माह के भीतर रू. 3,00,000/- यदि परिवादी ने विपक्षी को नकद दिए थे तो उक्त राशि परिवादी कहां से लाया था। इस संबंध में न तो परिवादपत्र में उल्लेख है और न ही उक्त संबंध में परिवादी ने कोई मौखिक एवं दस्तावेजी साक्ष्य दी है क्योंकि इतनी अधिक धनराशि जोकि रू. 3,00,000/- होती है। परिवादी ने यदि बैंक से निकाली थी तो परिवादी उक्त संबंध में अपना बैंक स्टेटमेंट प्रस्तुत कर सकता था या यदि किसी अन्य व्यक्ति से प्राप्त किया था तो उस व्यक्ति को साक्षी के रूप में प्रस्तुत कर उसके शपथपत्र पर कथन प्रस्तुत कर सकता था तथा ऐसे व्यक्ति से बैंक एकाउण्ट का स्टेटमेंट भी प्रस्तुत करा सकता था। अतः मात्र मौखिक साक्ष्य के आधार पर यह प्रमाणित नहीं माना जा सकता कि परिवादी ने विपक्षी को रू. 12.03.2015 को रू. 1,50,000/- अथवा दिनांक 15.04.2015 को रू. 1,50,000/- दिए थे।
13. परिवादी ने विपक्षी द्वारा ’’मैसर्स एग्रोटेक........’’ कम्पनी चलाए जाना व्यक्ति किया है जिसे विपक्षी ने स्पष्ट रूप से इंकार किया हे। यहॉं तक की विपक्षी ने प्रकरण में विचारण के दौरान परिवादी के कथन की सत्यता की जांच होती आयोग के अनुमति से प्रश्नावली भी प्रस्तुत की थी जोकि पृष्ठ क्रमांक 63/1 व पृष्ठ क्रमांक 63/2 में है जिसमें विपक्षी ने परिवादी से प्रश्न किया था कि क्या यदि विपक्षी ’’मैसर्स एग्रोटेक........’’ रजिस्टर्ड फर्म है-यदि हॉं तो फर्म का रजिस्ट्रेशन नम्बर क्या है और फर्म में कौन-कौन पार्टनर है तथा फर्म कब से रजिस्टर्ड हे? परिवादी ने प्रश्नावली का शपथपत्र के रूप में जवाब प्रस्तुत किया है जिसमें उक्त जानकारी न होने का उल्लेख करते हुए उक्त तथ्य की समस्त जानकारी विपक्षी को ही होने का कथन किया है। उक्त प्रश्नावली में विपक्षी ने यह भी प्रश्न किया है कि उक्त ’’मैसर्स एग्रोटेक........’’ के आफिस का क्या पता था, आफिस किस बिल्डिंग में था तथा वह बिल्डिंग विपक्षी की थी तथा किराए की थी? उक्त संबंध में भी परिवादी ने प्रस्तुत शपथपत्र पर कथन में उक्त जानकारी स्वयं को न होकर विपक्षी को ही होने का कथन किया है। इस प्रकार से परिवादी विपक्षी द्वारा निर्मित कथित फर्म की स्थिति दर्शित करने में भी असफल रहा है।
14. यहॉं यह तथ्य महत्वपूर्ण है कि परिवादी ने परिवादपत्र में विपक्षी से केवल जान-पहचान होना दर्शित किया है जबकि विपक्षी ने प्रस्तुत जवाबदावे में ही परिवादी तथा स्वयं के मध्य सगे मौसेरे भाई होना बतलाया हे। उक्त तथ्य को प्रश्नावली पर दिए जवाब में परिवादी ने पहली बार स्वीकार किया है। इस संबंध में विपक्षी की ओर से परिवादी तथा स्वयं के ननिहाल भगौतीपुर के खाता विवरण प्रस्तुत किया गया है। पृष्ठ क्रमांक 38 में संलग्न उक्त खाता विवरण में ननिहाल की कुछ जमीन में परिवादी तथा विपक्षी का नाम सहस्वामी के रूप में दर्शित होना भी पाया जाता हे। अतः परिवादी द्वारा परिवादपत्र में इस तथ्य को छिपाया जाना कि परिवादी व विपक्षी सगे मसोरे भाई हे, परिवादी के नियत पर प्रश्नचिन्ह उत्पन्न होता हे। चूॅंकि विपक्षी ने जवाबदावे में इस आशय का अभिवचन किया है कि परिवादी तथा उसके भाईयों ने नरपत द्वारा लिखित वसीयानामा के आधार पर काबिज भूमि रू. 28,05,000/- में सीता को विक्रय की थी जिसके बैनामें पर गवाह विपक्षी को बनाया था तथा परिवादी और उसके भाईयों ने उक्त पूर्व भू-स्वामी नरपत की अपने पुत्र व भतीजों के नाम कूटरचित वसीयतनामा तैयार कर चंकबंदी न्यायालय से बिक्री भूमि को अपने लड़को के नाम का आदेश करा लिया। जिसके संबंध में सीता ने परिवादी तथा उसके भाईयों आदि के विरूद्ध थाना कैण्ट में प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज कराई थी तथा परिवादी ने सीता के विरूद्ध सिविल वाद प्रस्तुत करते हुए विपक्षी को झूठी गवाही देने के लिए कहा था जिसे विपक्षी द्वारा मना करने पर परिवादी द्वारा उसे झूठे केस में फसाने की धमकी दी थी। पृष्ठ क्रमांक 41/1 लगायत 41/3 में संलग्न प्रथम सूचना रिपोर्ट, पृष्ठ क्रमांक 31/1 लगायत 31/2 में संलग्न वाद सं. 423/2014 के निर्णय दिनांक 26.10.2017 एवं पृष्ठ क्रमांक 32/1 लगायत 32/4 में संलग्न वाद संख्या 824/2014 निर्णय दिनांक 26.10.2017 तथा पृष्ठ क्रमांक 39 में संलग्न रजिस्ट्री लेखपत्र विवरण व पृष्ठ क्रमांक 40/1 लगायत 40/4 में संलग्न बैनामा के अवलोकन से इस तथ्य की पुष्टि पाई जाती है कि परिवादी तथा उसके अन्य दो भाईयों ने अन्य व्यक्ति नरपत के वसीयतनामा के आधार पर प्राप्त भूमि का सीता को बैनामा किया था तथा बाद में सीता के विरूद्ध इस संबंध में सिविल वाद प्रस्तुत किया था कि वह भूमि उसके पुत्रों आदि को नरपत ने वसीयत की थी तथा उक्त एकपक्ष्ीय सिविल प्रकरण में सीता के पक्ष में किया गया बैनामा निरस्त किए जाने का आदेश भी प्राप्त किया था। पृष्ठ क्रमांक 40/1 लगायत 40/4 में संलग्न बैनामा के अवलोकन से यह भी स्पष्ट है कि इसमें विपक्षी अनोखे लाल को परिवादी ने गवाह भी बनाया था।
15. उपरोक्त साक्ष्य के विश्लेषण के आधार पर यह स्पष्ट है कि परिवादी यह प्रमाणित करने में पूर्ण रूप से असफल रहा है कि विपक्षी ने कोई फर्म खोली थी अथवा विपक्षी के कहने पर परिवादी ने कोई राशि जमा की थी। अतः जब विपक्षी द्वारा परिवादी से कोई राशि लाभांश हेतु जमा किए जाने हेतु किया जाना ही प्रमाणित नहीं है। ऐसी दशा में परिवादी तथा विपक्षी के मध्य उपभोक्ता एवं सेवा प्रदाता के संबंध होना ही नहीं पाया जाता है तथा विपक्षी द्वारा परिवादी को कोई राशि देय होना भी नहीं माना जा सकता। विपक्षी द्वारा परिवादी के साथ सेवा में कमी किया जाना प्रमाणित नहीं माना जा सकता। इस प्रकार प्रथम विचारणीय प्रश्न पर नकारात्मक निष्कर्ष प्राप्त होता है।
द्वितीय विचारणीय प्रश्न पर विवेचना एवं निष्कर्ष
16. प्रथम विचारणीय प्रश्न में साक्ष्य के विस्तृत विश्लेषण के पश्चात् प्राप्त निष्कर्ष के आधार पर यह पाया गया है कि परिवादी स्वयं तथा विपक्षी के मध्य उपभोक्ता एवं सेवा प्रदाता के संबंध होना प्रमाणित करने में तथा विपक्षी को कोई राशि दिए जाना प्रमाणित किए जाने में असफल रहा है। अतः परिवादी विपक्षी से किसी प्रकार की सहायता प्राप्त करने का अधिकारी होना नहीं माना जा सकता हे। इस प्रकार से द्वितीय विचारणीय प्रश्न पर भी नकारात्मक निष्कर्ष प्राप्त होता है।
17. उपरोक्त दोनो ही विचारणीय प्रश्न पर प्राप्त निष्कर्ष के परिणामस्वरूप परिवादी की ओर से प्रस्तुत उपभोक्ता परिवाद निरस्त किया जाता है। उभयपक्ष अपना-अपना वाद व्यय स्वयं वहन करेंगे।
(कुसुम सिंह) (दिनेश कुमार गुप्ता) (दीपक कुमार त्रिपाठी)
सदस्य सदस्य अध्यक्ष
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