Uttar Pradesh

StateCommission

A/2000/2232

Allahabad Development Authority - Complainant(s)

Versus

Abhijeet Kanoongo - Opp.Party(s)

Deepak Mehrotra

21 Dec 2021

ORDER

STATE CONSUMER DISPUTES REDRESSAL COMMISSION, UP
C-1 Vikrant Khand 1 (Near Shaheed Path), Gomti Nagar Lucknow-226010
 
First Appeal No. A/2000/2232
( Date of Filing : 08 Sep 2000 )
(Arisen out of Order Dated 25/07/2000 in Case No. C/1288/1995 of District Allahabad)
 
1. Allahabad Development Authority
a
...........Appellant(s)
Versus
1. Abhijeet Kanoongo
a
...........Respondent(s)
 
BEFORE: 
 HON'BLE MR. JUSTICE ASHOK KUMAR PRESIDENT
 
PRESENT:
 
Dated : 21 Dec 2021
Final Order / Judgement

(मौखिक)

राज्‍य उपभोक्‍ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0 लखनऊ।

 

अपील संख्‍या :2232/2000

 

(जिला उपभोक्‍ता आयोग, इलाहाबाद द्वारा परिवाद संख्‍या-1288/1995 में पारित निर्णय एवं आदेश दिनांक 25-07-2000 के विरूद्ध)

 

इलाहाबाद विकास प्राधिकरण, इलाहाबाद द्वारा सचिव, इलाहाबाद विकास प्राधिकरण, इन्दिरा भवन, सातवॉं तल, सिविल लाइन्‍स, इलाहाबाद।

                                          .....अपीलार्थी/विपक्षी

बनाम्

अभिजीत कानूनगो पुत्र श्री एस0एम0 कानूनगो द्वारा मुख्‍तारे आम एस0 एम0 कानूनगो निवासी-10 एम0आई0जी0 स्‍टेनली रोड आवास योजना ए0डी0ए0 कालोनी, इलाहाबाद।

  •                                

समक्ष  :-

  1. मा0 न्‍यायमूर्ति श्री अशोक कुमार,       अध्‍यक्ष।

     उपस्थिति :

     अपीलार्थी   की ओर से उपस्थित-  श्री मनोज कुमार।

     प्रत्‍यर्थी  की ओर से उपस्थित-         कोई नहीं।

 

दिनांक : 21-12-2021

 

मा0 न्‍यायमूर्ति श्री अशोक कुमार, अध्‍यक्ष  द्वारा उदघोषित निर्णय

 

       परिवाद संख्‍या-1288/1995 अभिजीत कानूनगो बनाम् इलाहाबाद विकास प्राधिकरण में जिला उपभोक्‍ता फोरम, इलाहाबाद द्वारा पारित निर्णय और आदेश दिनां‍क 25-07-2000 के विरूद्ध यह अपील धारा-15 उपभोक्‍ता संरक्षण अधिनियम के अन्‍तर्गत राज्‍य आयोग के समक्ष प्रस्‍तुत की गयी है।

 

 

 

 

2

      आक्षेपित निर्णय और आदेश के द्वारा जिला आयोग ने परिवाद स्‍वीकार करते हुए निम्‍न आदेश पारित किया है :-

       ‘परिवादी को निर्गत की गयी नोटिस दिनांक 29-03-1995 वास्‍ते मु0 33,500/-रू0 निरस्‍त की जाती है। परिवादी के द्वारा मांगी गयी धनराशि भी अस्‍वीकृत की जाती है। विपक्षी को चाहिए कि परिवादी के पक्ष में जो कार्य शेष हो उसे शीघ्रतापूर्ण कराने के लिए कार्यवाही करें। 300/-रू0 वाद व्‍यय भी विपक्षी परिवादी को 30 दिन के अंदर देगा।‘’

       विद्धान जिला आयोग द्वारा पारित निर्णय एवं आदेश से क्षुब्‍ध होकर परिवाद के विपक्षी इलाहाबाद विकास प्राधिकरण की ओर से यह अपील प्रस्‍तुत की है।

       अपीलार्थी की ओर से विद्धान अधिवक्‍ता श्री मनोज कुमार उपस्थित हैं। प्रत्‍यर्थी की ओर से कोई उपस्थित नहीं है। 

       मेरे द्वारा अपीलार्थी  के विद्धान अधिवक्‍ता के तर्क को सुना है और आक्षेपित निर्णय व आदेश तथा पत्रावली का अवलोकन किया है।

       संक्षेप में वाद के तथ्‍य इस प्रकार है कि विपक्षी द्वारा जनवरी, 1988 में स्‍ववित्‍त पोषित योजना स्‍टेनली रोड, इलाहाबद में 72 मध्‍यवर्गीय भवन का निर्माण करने व आवंटन करने का विज्ञापन किया गया। परिवादी को फ्लैट नम्‍बर-10 आवंटित किया गया तथा परिवादी ने भिन्‍न भिन्‍न तिथियों पर 1,32,000/- का भुगतान विपक्षी को कर दिया। दिनांक 12-10-1990 को कब्‍जा दिया गया। उस समय मूल्‍यवृद्धि के लिए अतिरिक्‍त धनराशि की मांग विपक्षी द्वारा नहीं की गयी। निर्माण अपूर्ण एवं अत्‍यधिक निम्‍नकोटि का किया गया। कई शिकायती पत्र विपक्षी को भेजे गये और बार-बार निवेदन के बावजूद विक्रय पत्र विपक्षी द्वारा निष्‍पादित नहीं किया गया। दिनांक 29-03-1995 को 33,500/-रू0 अतिरिक्‍त धनराशि की मांग विपक्षी द्वारा की गयी जो अवैध है। अंतिम किश्‍त  का भुगतान अगस्‍त, 89 में किया गया था। 40,000/-रू0 आवंटित भवन की मरम्‍मत में व्‍यय हुआ। विपक्षी द्वारा समय पर कब्‍जा नहीं दिया। जो कि विपक्षी की सेवा में कमी है अत: विवश होकर परिवाद योजित किया गया।

 

 

-3-

  विपक्षी ने लिखित उत्‍तर प्रस्‍तुत करते हुए कहा है कि 1,32,000/-रू0 अनुमानित मूल्‍य था तथा कब्‍जा देने के समय तक अंतिम मूल्‍य का निर्धारण नहीं किया जा सका था। योजना के अनुसार कब्‍जा दिया गया था एवं निर्माण ठीक ढंग से किया गया। वास्‍तविक लागत एवं अनुमानित लागत का अंतर देने पर विक्रय पत्र निष्‍पादित किया जाता है। परिवादी को संतोषजनक स्थिति में कब्‍जा दिया गया। वास्‍तविक लागत 1,65,000/-रू0 है। परिवादी से मांगी गयी धनराशि बढ़े हुए लागत की धनराशि है। उनकी ओर से सेवा में कोई कमी नहीं की गयी है।

  विद्धान जिला आयोग द्वारा अपने निष्‍कर्ष में यह अंकित किया गया है कि परिवादी को आवंटित भवन का कब्‍जा 12-10-1990 को दिया गया। आवंटन पत्र में लिखा है कि कब्‍जा लेने से पूर्व बढ़ी हुई लागत का अंतर भुगतान करना है। कब्‍जा अक्‍टूबर, 1990 में दिया गया उसके पूर्व अथवा उसके तुरन्‍त पश्‍चात अतिरिक्‍त धनराशि की मांग नहीं की गयी है। स्‍ववित्‍त पोषित योजना के अन्‍तर्गत फ्लैट का आवंटन किया गया। विपक्षी को चाहिए था कि कब्‍जा के पूर्व वास्‍तविक लागत का निर्धारण करके अंतर की धनराशि ले लेने के पश्‍चात कब्‍जा देता। ऐसा न करके दिनांक 29-03-1995 को अतिरिक्‍त धनराशि की मांग के लिए नोटिस दी गयी यह उचित नहीं है। ऐसी दशा में कई वर्षों के पश्‍चात धनराशि की मांग करना प्रदर्शित करता है कि विपक्षी विक्रय पत्र आदि की कार्यवाही सम्‍पन्‍न न कराने के लिए यह अड़चन पैदा कर रहा है। ऐसी किसी धनराशि को भुगतान करने के लिए परिवादी को विवश नहीं किया जा सकता है। 

       हमने विद्धान जिला आयोग द्वारा पारित निर्णय का अवलोकन किया।

       हमारे विचार से विद्धान जिला आयोग द्वारा पारित निर्णय एवं आदेश में कोई त्रुटि नहीं है तदनुसार अपील निरस्‍त किये जाने योग्‍य है।

आदेश

       अपील निरस्‍त की जाती है। विद्धान जिला आयोग द्वारा पारित निर्णय एवं आदेश की पुष्टि की जाती है।

 

-4-

       उक्‍त आदेश का अनुपालन विपक्षीगण 02 माह की अवधि में किया जाना सुनिश्चित करें।

  अपील में उभयपक्ष अपना-अपना वाद व्‍यय स्‍वयं वहन करेंगे।

आशुलिपिक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस निर्णय/आदेश को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दें।

 

 

 

(न्‍यायमूर्ति अशोक कुमार)

    अध्‍यक्ष

प्रदीप मिश्रा, आशु0 कोर्ट नं0-1

 
 
[HON'BLE MR. JUSTICE ASHOK KUMAR]
PRESIDENT
 

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