Uttar Pradesh

StateCommission

A/2013/230

Post Office - Complainant(s)

Versus

Abdul Hakeem - Opp.Party(s)

Dr U V Singh

04 Mar 2022

ORDER

STATE CONSUMER DISPUTES REDRESSAL COMMISSION, UP
C-1 Vikrant Khand 1 (Near Shaheed Path), Gomti Nagar Lucknow-226010
 
First Appeal No. A/2013/230
( Date of Filing : 07 Feb 2013 )
(Arisen out of Order Dated in Case No. of District State Commission)
 
1. Post Office
a
...........Appellant(s)
Versus
1. Abdul Hakeem
a
...........Respondent(s)
 
BEFORE: 
 HON'BLE MR. Vikas Saxena PRESIDING MEMBER
 
PRESENT:
 
Dated : 04 Mar 2022
Final Order / Judgement

 

सुरक्षित

 

 

राज्‍य उपभोक्‍ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0 लखनऊ

 

(जिला उपभोक्‍ता आयोग, देवरिया द्वारा परिवाद संख्‍या 231 सन 2009   में पारित प्रश्‍नगत निर्णय एवं आदेश दिनांक 05.12.2012  के विरूद्ध)

 

अपील संख्‍या  230 सन 2013

सुपरिण्‍टेंडेंट आफ पोस्‍ट आफिस, देवरिया डिवीजन, देवरिया एवं अन्‍य !

 

    .......अपीलार्थी/प्रत्‍यर्थी

-बनाम-

 

अब्‍दुल हकीम पुत्र श्री अब्‍दुल शकूर पूर्व चेयरमैन, टाउन एरिया, गौरी बाजार, जिला देवरिया।

. .........प्रत्‍यर्थी/परिवादी

 

     

समक्ष:-

 

मा0   श्री विकास सक्‍सेना, सदस्‍य ।

मा0   डा0 आभा गुप्‍ता, सदस्‍य ।

 

अपीलार्थी की ओर से विद्वान अधिवक्‍ता  -  श्री श्रीकृष्‍ण पाठक। 

प्रत्‍यर्थी  की ओर से विद्वान अधिवक्‍ता   -  कोई नहीं ।

 

दिनांक:- 12-04-2022

 

मा0 सदस्‍य डा0 आभा गुप्‍ता   द्वारा उद्घोषित

निर्णय

      प्रस्‍तुत अपील, जिला उपभोक्‍ता आयोग, देवरिया द्वारा परिवाद संख्‍या 232 सन 2009 में पारित प्रश्‍नगत निर्णय एवं आदेश दिनांक 05.12.2012  के विरूद्ध योजित की गयी है। 

      संक्षेप में, परिवादी का कथन है कि परिवादी के रिश्‍तेदारों को इदुज्‍जुहा दिनांक 09.12.2009 के अवसर पर परिवादी के यहां देवरिया आना था जिसके लिए परिवादी ने अलीगढ से गोरखपुर तक वैशाली सुपर फास्‍ट ट्रेन के 8 रिजर्वेशन टिकट रू0 2393.00 के जरिए स्‍पीड पोस्‍ट दिनांक 01.12.2008 को अपने रिश्‍तेदार रिजवाना को अलीगढ के पते पर प्रेषित किए जो 10 दिन के बाद दिनांक 11.12.2008 को परिवादी के उक्‍त रिश्‍तेदार के यहां पहुंचे जिसके कारण रिश्‍तेदार उसके घर नही पहुंच सके । जिससे क्षुब्‍ध होकर प्रतिपूर्ति हेतु परिवाद योजित किया गया।

      विपक्षीगण की ओर से वादोत्‍तर प्रस्‍तुत कर उल्लिखित किया गया कि स्‍पीड पोस्‍ट को जानबूझ कर डिटेन्‍न नहीं किया गया। परिवादी द्वारा स्‍पीड पोस्‍ट करते समय पता लिखते समय कोई न कोई अनियमितता की गयी होगी, जैसे कि पिन कोड आदि नहीं लिखा गया होगा। विभागीय नियमों के अनुसार ''डिले इन डिलीवरी'' के मामले में पोस्‍टल चार्जेज 25.00 रू0 का दो गुना 50.00 रू0 परिवादी पाने का हकदार है।

      विद्वान जिला फोरम ने उभय पक्ष के साक्ष्‍य एवं अभिवचनों के आधार पर यह अवधारित करते हुए कि परिवादी ने कौन सी गलती की, इसका स्‍पष्‍ट उल्‍लेख विपक्षीगण ने प्रतिवाद पत्र में कहीं नहीं किया तथा इस संबंध में 4(2006) सीपीजे 25, पोस्‍ट मास्‍टर पटना बनाम अनिल कुमार गुप्‍ता के उद्धरण को संज्ञान में लेते हुए निम्‍न आदेश पारित किया :-

      '' परिवाद आंशिक रूप से स्‍वीकार किया जाता है। विपक्षीगण को आदेशित किया जाता है कि वे रेलवे टिकट का मूल्‍य रू0 2393.00 एवं स्‍पीड पोस्‍ट चार्ज 25.00 रू0 कुल 2418.00 रू0 दिनांक 01.12.2008 से भुगतान की तिथि तक 10 प्रतिशत सालाना ब्‍याज सहित तथा 5000.00 रू0 क्षतिपूर्ति एवं 2000.00 रू0 वाद व्‍यय के मद में एक माह में परिवादी को भुगतान करें।

      उक्‍त आदेश से क्षुब्‍ध होकर यह अपील योजित की गयी है।

      अपील के आधारों में कहा गया है कि जिला आयोग का निर्णय साक्ष्‍य एवं विधि के विरूद्ध है और दोषपूर्ण है। अपील स्‍वीकार कर जिला आयोग का निर्णय व आदेश समाप्‍त करते हुए परिवाद निरस्‍त किया जाए ।

      हमने अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्‍ता के तर्क विस्‍तारपूर्वक सुने एवं पत्रावली पर उपलब्‍ध साक्ष्‍यों का सम्‍यक अवलोकन किया। बहस हेतु प्रत्‍यर्थी/परिवादी की ओर से न तो कोई उपस्थित हुआ और न लिखित कथन प्रस्‍तुत किया गया।

अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्‍ता श्री श्रीकृष्‍ण पाठक  द्वारा यह अवगत कराया गया कि डाकघर द्वारा दी गयी सेवायें मात्र Statutory and there is no contractual liability हैं। उनका यह भी तर्क है कि समान्‍यतया पंजीकृत पत्र को एक स्‍थान से उनके गन्‍तव्‍य तक एक सप्‍ताह का समय लगता है। चूंकि प्रश्‍नगत रजिस्‍टर्ड डाक सम्‍बन्धित प्राप्‍तकर्ता को उसके निवास पर उसे वितरित कर दी गयी] ऐसी स्थिति में अपीलार्थी की ओर से कोई सेवा में कमी नहीं की गयी है। अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्‍ता का यह भी तर्क है कि प्रश्‍नगत प्रकरण इण्डियन पोस्‍ट आफिस एक्‍ट की धाराधारा-06 से बाधित है, जो निम्‍नवत् अंकित है :-

 

Section 6 of the Indian Post Office Act. 1989 reads as under :

 

 “6, Exemption from liability for loss, misdelivery, delay or damage - The Government shall not incur any liability by reason of the loss, misdelivery or delay of or damage to, any postal article in course of transmission by post, except insofar as such liability may in express terms be undertaken by the Central Government as hereinafter provided and no officer of the Post Office shall incur any liability by reason of any such loss, misdelivery, delay or damage, unless he has caused the same fraudulently or by his willful act or default.”

अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्‍ता ने अपने तर्क के समर्थन में मा0 राष्‍ट्रीय आयोग नई दिल्‍ली द्वारा 2009 (1) सीपीसी 360 (एनसी) रंजीत सिंह बनाम् से‍क्रेटरी डिपार्टमेंट आफ पोस्‍ट्स गवर्नमेंट आफ इण्डिया] नई दिल्‍ली व अन्‍य Revision Petition No. 2751of 2008 Decided on  17-09-2008 में पारित विधि व्‍यवस्‍था को सन्‍दर्भित किया] जिसके अन्‍तर्गत निम्‍नवत् अवधारित किया गया है:- “ Section 6 – Postal service – A registered letter containing demand draft was sent by the complainant which was not delivered to addressee – Complaint filed – District Forum accepting the complaint directed OP to pay amount of bank draft with interest at the rate of 18 % p.a. and cost of Rs.5,000/- - State Commission set aside the order giving rise to present revision – Held, in view of the Post Office Act, postal employees cannot be held liable for mis-delivery of the registered letter in the absence of any willful act on their part – Order of State Commission upheld.”

 

उपरोक्‍त विश्‍लेषण के आधर पर पीठ इस निष्‍कर्ष पर पहुँचती है कि भारतीय डाक अधिनियम की धारा-06 एवं माननीय राष्‍ट्रीय आयोग के द्वारा अवधारित विधि व्‍यवस्‍था के आलोक में जिला मंच द्वारा पारित प्रश्‍नगत निर्णय एवं ओदश विधि संगत एवं न्‍यायोचित नहीं है। फलस्‍वरूप अपील स्‍वीकार करते हुए जिला मंच का प्रश्‍नगत निर्णय एवं आदेश अपास्‍त होने तथा परिवाद निरस्‍त किये जाने योगय है।

      परिणामत: प्रस्‍तुत अपील स्‍वीकार किए जाने योग्‍य है।  

आदेश

       अपील स्‍वीकार की जाती है तथा जिला उपभोक्‍ता आयोग, देवरिया द्वारा परिवाद संख्‍या 231 सन 2009 में पारित प्रश्‍नगत निर्णय एवं आदेश दिनांक 05.12.2012  निरस्‍त किया जाता है।

      अपील व्‍यय उभय पक्ष अपना अपना स्‍वयं वहन करेगें।

      इस निर्णय की प्रमाणित प्रति नियमानुसार पक्षकारों को उपलब्‍ध करायी जाए।

आशुलिपिक/वैयक्तिक सहायक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस आदेश को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दें।

 

 

(विकास सक्‍सेना)                         (डा0 आभा गुप्‍ता)

           सदस्‍य                                     सदस्‍य   

  सुबोल श्रीवास्‍तव

 (पी0ए0(कोर्ट नं0-3)

 

 
 
[HON'BLE MR. Vikas Saxena]
PRESIDING MEMBER
 

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